भागवत में नागवत लोट रहे नाग
समाज को बर्बाद करने में धर्म
एवं शास्त्रों से जुड़े लोगों का बहुत बड़ा रोल रहा है और धर्म एवं शास्त्रों
से जुड़े लोगों को बर्बाद करने में मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा है और अभी
भी है!
भागवत कथा का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व है इससे न केवल प्रेतांशिक
दोष छूट जाते हैं अपितु संतान सुखयोग बनता है।भगवान की भक्ति मिलती है
मुक्ति तो मिलती ही है।ये सब भागवत सुनने पढ़ने एवं भक्तिभाव से चिंतन करने
से होता है।इसे कहने सुनने के भी इसके कुछ शास्त्रीय नियम होते हैं| जो
चरित्रवान कथावाचक होते हैं वो तो उन नियमों का पालन करते है वहीँ दूसरी ओर
चरित्र विहीन जिगोलो ,मजनूँ ,भाट, या नचैया गवैया भागवती भोगियों ने
दूसरे का धन धर्म लूटने के लिए श्रीमद भगवत जैसे पवित्र ग्रन्थ को धंधे में
उतार दिया है!
वास्तव में इन बलात्कारों की
जड़ें धर्म में मिलेंगी यदि इनकी जाँच ईमानदारी से की जाए !जब तक इस तरह के
गिरोहों का वास्तविक भंडाफोड़ नहीं होगा तब तक एक दो बाबा या कथा बाचक
पकड़कर दिखाया जाएगा कि देखो ये बलात्कारी हैं ये बात इसलिए मानने योग्य
नहीं है कि बाकी क्यों नहीं पकड़े जाते क्या उनसे इन पकड़ने वालों की कोई
साँठ गाँठ है यदि वे नहीं पकड़े जाएँगे तो पकड़े गए लोगों को ही कैसे दोषी
मान लिया जाए ?केवल ऐसे लोगों या मीडिया के कहने पर जिनका व्यवहार स्वयं
में पक्षपाती है ।
ऐसे चरित्र विहीन कथा
भौंकताओं से
क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि शुकदेव जी ने क्या नाच गा कर तबला ढोलक बजा
कर भागवत कथा कही थी ?या बात बात में शास्त्रीय प्रमाणों की बात करने वाले
इन भागवत प्रदूषकों को ऐसा करने के कोई शास्त्र प्रमाण भी मिले हैं ?इसी
प्रकार से भागवतसप्ताह करने वालों को सात दिन में श्रीमद भगवत के अठारह
हजार श्लोकों की व्याख्या करना तो मुश्किल हो जाता है उसमें नाचने गाने का
समय कब और कैसे मिल जाता है क्या इसे भागवत कथाओं के नाम पर धोखाधड़ी नहीं
कहा जाएगा?ऐसे पाखंडियों के कथा विज्ञापन मीडिया भी खूब छापता या दिखाता है
क्या यह मीडिया का दोष नहीं है ?
अभी तीस वर्ष पहले तक नचैयों गवैयों की कुदृष्टि
श्रीमद भगवत जैसे पवित्र ग्रन्थ पर नहीं पड़ी थी तब तक वक्ता चरित्र वान होते थे तो
समाज भी सदाचारी था और जब वक्ता ही औरतों को रिझाने वाली वेष भूषा नाच गाना
आदि सब कुछ करेंगे उन्हीं में घुसे घूँमेंगे तो समाज में उसका दुष्प्रभाव तो पड़ेगा ही !इसमें समाज
का क्या दोष? बलात्कारी बाबाओं एवं कथा भौंकताओं का ब्यभिचार ही इस रूप नें समाज में
प्रतिबिंबित हो रहा है जिनके सदाचरण से समाज सदाचारी हो सकता है उन्हीं के
दुराचरण से समाज दुराचारी क्यों नहीं हो सकता ? अगर समाज के दस बीस दुराचारी पकड़ कर
कानून उनको फाँसी दे भी दे तो भी ये दुराचरण बंद नहीं होंगे जब तक इन
दुराचारों की जड़ों को नष्ट नहीं किया जाएगा! इनकी जड़ें धर्म कर्म से जुड़े लोगों में हैं जिनकी बारीकी से छान बीन करनी होगी !
कथा कहने वाले के नियमः-
विरक्तो वैष्णवो विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत ।
दृष्टटान्तकुशलोधीरोवक्ताकार्योतिनिःस्पृहः।। भागवते
अर्थः-वेद
शास्त्र की स्पष्ट व्याख्या करने वाला,अच्छे उदाहरणदेकर भागवत समझाने
वाला, विवेकवान, निस्पृह,विरक्त,एवं विष्णुभक्त ब्राह्मण को बक्ता बनावे।
कथा वक्ता के दाढ़ी आदि के बाल बना लेने के नियमः-
वक्त्राक्षौरं प्रकर्तव्यं दिनादर्वाग्व्रताप्तये । भागवते
अर्थः- कथा प्रारंभ करने के एक दिन पहले वक्ता को दाढ़ी आदि के बाल बना
लेने चाहिए क्योंकि कथा प्रारंभ के बाद फिर सात दिन तक क्षौर नहीं करना
होता है।
ऐसे कथा कहने वाले से कथा न सुनेः-
अनेकधर्म भ्रान्ताः स्त्रैणाः पाखंडवादिनः।
शुकशास्त्र कथोच्चारेत्याज्यास्ते यदि पंडिताः।।
भागवते
अनेकधर्म को मानने वाले ,एवं स्त्रियों को रिझाने के लिए तरह तरह की
वेषभूषा धारण करनेवाले,नाचने गाने वाले पाखंडी वक्ता से कथा न सुने।
कथा कहने वाला धन का लोभी न होः-
लोक वित्त धनागार पुत्र चिंतां व्युदस्य च।। भागवते
अर्थः-संसार संपत्ति धन घर पुत्रादि की चिंता छोड़कर केवल कथा में ध्यान दे।
कथा का समयः-
आसूर्योदयमारभ्य सार्धत्रिप्रहरान्तकम्।
वाचनीया कथा सम्यग्धीरकंठं सुधीमता।।
सूर्योदय
से कथा आरंभ करके साढ़े तीन प्रहर अर्थात साढ़ेदस घंटे तक मध्यम स्वर से
अच्छी तरह कथा बॉंचे।दोपहर में दो घटी अर्थात 48मिनट कथा बंद रखे उस समय
लोगों को कथा के अनुशार ही संकीर्तन करना चाहिए।
इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन 9घंटे42मिनट कथा बॉंचने पर सात दिन में
विद्वान वक्ता कथा पूरी कर सकता है किंतु आजकल तो न इतने घंटे कथा होती है
और न ही कथा बॉंची जाती है आजकल तो कथा कहने का रिवाज है। यहॉं ध्यान देने
की बात है कि कथा कहने में जो मन आएगा वो बोला जाएगा किंतु कथा बॉंचने में
तो जो लिखा है उसी की सीमा में रह कर बोलना होता है।उदाहरण भी उसी सीमा में
रहकर देने होते हैं यहॉंतक कि दोपहर का संकीर्तन भी कथा के अनुरूप ही करना
होता है ताकि अवकाश के उस समय में भी कोई इधरउधर की चर्चा न करे अर्थात
कथा परिषर में व्यर्थ का संगीत नाचना,गाना,या अभागवत चर्चा न हो।
आज कल पहली बात तो यह है कि लोग भागवत कथा बॉंचते ही नहीं हैं।सब जो मन
आता है सो कहते हैं उसका भागवत की पोथी से कोई लेनादेना ही नहीं होता है।
दूसरा प्रतिदिन 9घंटे42मिनट जैसा कोई नियम नहीं होता है।तीसरा सारा समय
नाचने गाने में ही चला जाता है कथा कब होती है पता नहीं सारी कथाएँ रगड़ कर
केवल उन्हीं में समय दिया जाता है जिनमें झॉंकियॉं बना सजा कर समाज के
सामने भीख मॉगने के लिए रोना धोना कर सकें।सब के सब कथा गायक एक ही झूठ
बोलते हैं कि पाठशाला के नाम पर दे दो।कन्याओं के विवाह के नाम पर दे
दो।चिकित्सालय के नाम पर दे दो।वृद्धाश्रम के नाम पर दे दो।रूक्मिणी विवाह
के नाम पर दे दो।सुदामा की भीख के नाम पर दे दो। अरे भाई! भागवत कथा में इन
भिखारियों का क्या काम?यहॉं नाचने गाने का क्या काम?पहले तो कभी भागवत
कथाओं में संगीत का सहारा लिया नहीं गया।कहीं ये बिना पढ़े लिखे लोग ऐसा तो
नहीं समझते हैं कि व्यास जी और शुकदेव जी के बश का संगीत था ही नहीं।
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज,अखंडानंदजी महाराज,डोंगरेजी महाराज
जैसे महापुरूषों के द्वारा निभाई गईं प्राचीन परंपराओं का पालन भी हम नहीं
कर सके हमें धिक्कार है।
वक्ताओं के नाम पर
मजनूँ बने फिरते नचैया गवैया भागवत वक्ताओं ने इस परमहंसी संहिता को
भिखारियों की भीख मॉंगने वाली किताब बना दिया।
इस
आत्म रंजन की संहिता को मनोरंजन तक सीमित कर दिया।कैसे कर सकेगी यह लोगों
का कल्यान?कैसे ज्ञान वैराग्य बढ़ेगा? कैसे घटेगा देश का भ्रष्टचार?
नचैया गवैया इन भागवती भिखारियों ने न केवल सनातनी संस्कृति की अपूरणीय
क्षति की है अपितु चरित्रवान भागवत विद्वानों को खड़े होने लायक नहीं रखा है
इतनी फिसलन पैदा की है।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
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