भारत पर महाभारत की ग्रहदशा
इंद्रप्रस्थ (दिल्ली)गद्दी पर
महाभारत की ग्रहदशा एक बार फिर आ गई है। सन् 2012से 2014 ये चुनावों का
मौसम है। आज इतिहास अपने को दोहराने जा रहा है भ्रष्टाचार एवं महँगाई रूपी
रणभेरियॉं बज चुकी हैं।चुनावी महाभारत के लिए रथयात्राओं के बहाने
मनोरथयात्राएँ निकाली जा रही हैं। इसी महाभारत के लिए भारत भ्रमण पर बाबा
लोग भी निकलने लगे हैं। चारों ओर चुनावी वातावरण की घमासान घटा छाने लगी
है।
कुछ स्वरूपोपजीवी शिखंडियों ने कमान सॅभाल
रखी है आखिर शिखंडियों के पास वीरता हो या न हो स्वरूप का लाभ तो मिलता ही
है जिसे यदि कोई अपनी बहादुरी समझे तो समझे। कौन होगा शिखंडी इस महाभारत
युद्ध का और कौन बनेगा धृतराष्ट ? किसके मत्थे मढ़ा जाएगा भ्रष्टाचार रूपी
महाभारत युद्ध का यह दोष ? भ्रष्टाचार तथा महँगाई पर मौन बैठी गांधारी किसे
समझा जाएगा? एवं सत्ता के शीर्ष पद को लपक लेने के सपने सॅंजोए कलियुगी
महाभारत का कौन है युवराज दुर्योधन ?
वहॉं
द्रोपदी चीर हरण आदि अपराधों से समाज त्रस्त था।यहॉं चरित्रहरण लीला का लोग
आनंद ले रहे हैं।आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है पॉंसे फेंके जा रहे हैं
लोगों ने अपने अपने मोर्चे दाब लिए हैं ।कौन कितना झूठ बोलेगा लिस्ट जारी
कर दी गई हैं जो गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला लेता हो और किसी की न सुनता हो उसे
किस चैनल पर भेजा जाए? बेशरम नेताओं की लिस्टें अलग हैं।जो बिना शिर
पैर के आरोप लगा लेने में महिर हों उसके लिए कसम भी खा जाएँ , हिंदी में
गाली देकर अंग्रजी में सॉरी कह लेने में माहिर हों ऐसे नरपशुओं की हर जगह
बड़ी डिमांड बनी रहती है।
कौरवराज सभा में
जब मर्यादा की धज्जियाँ उड़ाई जा रही थीं तब राजा न केवल मौन था अपितु इस
भाव से बोझिल भी था कि राजा तो पांडु था मैं तो समय पास करने के लिए हूँ।आज
भी राजा इसी भावना से भावित है इसीलिए कुछ लोग तुलना करने लगे हैं किंतु
मैं ऐसा करके धृतराष्ट का अपमान नहीं करना चाहता।
धृतराष्ट कुछ देख नहीं सकते थे किंतु ये तो देख लेते हैं।धृतराष्ट युद्ध
में लड़ने भी नहीं गए ये भी वोट माँगने नहीं जाते और न ही चीर हरण जैसा
कोई अन्य अपराध ही किया था ये भी ऐसे ही हैं । बढ़े बूढ़े सम्माननीय
लोगों वा और किसी का अपमान भी नहीं किया था। सब अच्छाइयों के होते हुए भी
किसी प्रकार के अपराध में सीधे तौर पर सम्मिलित हुए बिना भी धृतराष्ट को
समाज आज तक कोसता है। क्या धृतराष्ट ईमानदार नहीं थे ?उन्होंने राजा के रूप
में अपनी नैतिक जिम्मेदारी निर्वाह करने का प्रयास भी किया किंतु एक कुंठा
तो थी ही कि राज्य पाण्डु का है। मैं तो समय पास करने भर के लिए राजा
हूँ ।
महाभारत काल में गांधारी कुछ देखना
नहीं चाहती थी आज की गांधारी देखती तो है किंतु ऑंखें फेर लेती है। बोलती
नहीं है वह वोट मॉंगकर सरकार बनवाकर ठेके पर उठा देती है। इससे किसी
घोटाले के लिए कोई जिम्मेदार नहीं होता है सत्ता दो केंद्रों में विभाजित
होती है और दोनों का काम चलता है। चुनावों के समय दोनों फिर निकल पड़ते हैं
वोट मॉंगने को।बस यही खेल चला करता है।
रही
बात युवराज की जब आज लोकतंत्र है तब भी तो खानदान बल वाला ही सबसे अधिक
बलवान माना जाता है,वही सपने देख सकता है और किसी को तो यह हक भी नहीं है।
वर्तमान राजनैतिक युवराज का निशाना भी सत्ता के सर्वोच्च र्शिखर हैं दल से
जुडे हुए आयु वृद्ध अनुभव वृद्ध आदि सभी नेतागण युवराज के आगे नतमस्तक
होते हैं । वे सुशिक्षा या किसी अन्य प्रकार की योग्यता के बल से युक्त
होने पर भी खानदान बल के बिना बेकार हैं। जब कभी ऐसे सुयोग्य सुशिक्षित
लोगों को अयोग्य लोगों की चाटुकारिता करते देखता हूँ तो महाभारत का चीर
हरण प्रसंग कौंध उठता है और बिना किसी से पूछे ही समझ लेता हूँ कि संभवतः
ऐसी ही कोई मजबूरी रही होगी उन महापुरुषों की जिनका मौन समर्थन युवराज को
हासिल था।
युवराज का स्पष्ट उद्घोष था कि सुई की
नोक के बराबर भूमि भी युद्ध के बिना नहीं दूँगा। आज भी वही है। सतोगुणी
लोगों की अच्छी सलाह मानने में भी इतना कष्ट क्यों?क्या अब गैर राजनैतिक
बड़े बूढे़ सदाचारी लोगों को राष्टहित में बात कहने का अधिकार भी नहीं रहा
उन्हें इस देश में मुख बंद करके रहना होगा ? भ्रष्टाचार समाप्त करने की
नेक सलाह देने वाले अन्ना हजारे जैसे सदाचारी समाजसेवियों को भी आज उसी
प्रकार चुनावीयुद्ध के लिए ललकारा जा रहा है जैसे महाभारत काल में युवराज
का उद्घोष था। जैसे महाभारत काल में विदुर से कहा गया था कि यदि आपको पसंद न
हो तो आप भी विपक्षियों के साथ मिलकर युद्ध का सामना करो। महाभारत में
विदुर की बात मानी भले न गई हो किंतु बोलने पर तो कोई प्रतिबंध नहीं था।
उस युग में युवराज की ईच्छा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था सर्वोच्चपदों
पर बैठे आयु वृद्ध अनुभव वृद्ध लोग भी उसे सलाम ठोंकते थे इस युग का हाल
वही है, सबकोई देख रहा है। खानदान बल से बली युवराज का स्वप्न वहॉं भी
राष्ट्र की शीर्ष सत्ता हथियाना था और यहॉं भी .......!
आखिर धृतराष्ट्र के राजा रहते हुए भी तो युवराज को सभी शक्तियॉं प्राप्त
थीं तब उसने प्रजा के हित में कोई काम क्यों नहीं किया ? केवल दबे कुचले
लोगों को गले लगाने का नाटक करके कर्ण जैसे वीर को अपने साथ मिला लिया और
अपनी सत्तालोलुपता की बलिबेदी पर बलिदान कर दिया।यही तो आज भी हो रहा है।
आखिर गरीबों के घर खाना खाकर तथा उनके साथ फोटो खिंचवाकर ही तो हमेशा से
चुनावी महाभारत में विजय पायी जाती रही है। क्या ये सच नहीं है? क्या आज भी
वही नहीं हो रहा है ?
वहॉं युवराज के जीजा
जयद्रथ छल करने के कारण अभिमन्यु वध के दोषी हुए थे इससे कौरवों का बहुत
अपयश हुआ था। आज फिर आर्थिक घोटालों के रूप में वही सब कुछ सुनाई पड़ रहा
है। जीजा अपयश के कारण बने हैं ।
इस प्रकार
की परिस्थिति बनने का परिणाम ही था कि योग्य और अयोग्य लोगों के पक्ष में
सारा राष्ट्र बँट गया और महाभारत जैसा युद्ध झेलकर गंभीर कीमत चुकानी पड़ी
देश को!
वैसे भी जनता
हर पॉंच वर्ष के लिए युधिष्ठर मान कर राजा बनाती है और धृतराष्ट समझ कर
उतार देती है। अबकी बार का धृतराष्ट कौन होगा और कौन बनेगा युधिष्ठर ?
किसे कहा जाएगा युवराज ?इस महाभारत की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि कृष्ण
का पता नहीं होगा शकुनी लड़ाएँगे यह युद्ध!शकुनियों का बोलबाला रहेगा जो हिंदी में गाली देकर अंग्रेजी में माफी मॉंग लेंगे इस प्रकार भड़काऊ वातावरण बना रहेगा।
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