Tuesday, July 2, 2013

शासन के साथ साथ सदाचरण भी जरूरी !

सभी प्रकार के सदाचारी अधिकारियों से निवेदन,सभी प्रकार के शिक्षित सदाचारी लोगों से निवेदन, अपने देश, समाज के लिए समर्पित लोगों से प्रार्थना ,आखिर अपने देश वासियों को ही अपना क्यों नहीं मानने   लगे हैं अपने ही लोग ? 
     हम सभी  विद्या की देवी सरस्वती की  वरद   संतान हैं एवं भारत माता के प्राण पुत्र  पुत्री आदि हैं ।जन्म जन्मान्तर के पुण्यों  एवं इस जन्म के शिक्षा सम्बन्धी कठोर परिश्रम के परिणाम स्वरूप आपको सर्व सम्मान्य पदों तक पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।स्वस्थ शरीर है।घर परिवार कुशल है प्रतिष्ठा भी है ।माता पिता का पुण्य प्रसाद, गुरुजनों  का विद्या प्रसाद एवं पूर्वजों का आशीर्वाद ही  हम सब की सफलता  के रूप में फलित   हुआ है । मैं आप सबके के अत्यंत उन्नत  भाग्य   को  नमन करता हूँ ।
     चूँकि मैंने  भी   कुछ विषयों  से  एम.ए. एवं  बी.एच.यू. से  पी.एच. डी. की है कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं जिनमें कुछ पाठ्य क्रम में पढ़ाई भी जा रही हैं। हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि  मैं भी शिक्षा के परिश्रम से सुपरिचित हूँ। आरक्षण आन्दोलन में कुछ राजनेताओं के  द्वारा जातिगत  गालियों एवं आधारहीन आरोपों  से आहत होकर सरकार से आजीवन नौकरी न माँगने का मैंने व्रत ले रखा है।इसलिए नैतिक सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज शोधन के प्रयास में लगा हूँ।मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूँ कि हमें अपने अपने स्तर से देश के सैनिकों की तरह उत्साह पूर्वक समाज को अपनापन देने  का प्रयास करना चाहिए। 
      श्रीमान जी,देश की स्थिति पर आप सभी की तरह ही मैं भी चिंतित हूँ,किन्तु परिस्थियाँ दिनों दिन अनियंत्रित होती जा रही हैं।राजनैतिक बात ब्यवहारों ने देश, समाज एवं परिवारों  की समरसता को छिन्न भिन्न सा कर दिया है। घर घर एवं जन जन के मन में ऐसी राजनीति समाई हुई है कि लोग अपनों से परायों जैसा कूट नैतिक वर्ताव करने लगे हैं। हर किसी के पास प्रकट बोलने के लिए कुछ नहीं है लोग सब कुछ छिपाना चाहते हैं,न जाने कितना और किस बात का भय समाया हुआ है लोगों में !इसीप्रकार मोबाईल पास में है किन्तु बात किससे करें?उन्हें भय है कि कहीं कुछ छिपा हुआ खुल न जाए !इस डर से मन की बात किसी से कहना नहीं चाहते! परेशान होकर भड़भड़ाते हैं तो किसी किसी को फोन मिला लिया करते  हैं किन्तु इधर उधर की बातें करके रख देते हैं फोन!इसीप्रकार कई कई गाड़ियाँ दरवाजे पर खड़ी हैं किन्तु जाएँ किसके घर !कहीं शांति नहीं है।
     पार्कों, राहों, चौराहों, बाजारों में  अपरिचित या अल्प परिचित लोगों से कभी कभी हो जाती हैं कुछ बातें!उसमें भी कुशल डिप्लोमेटिक लोगों की तरह एक सीमा रेखा खींच कर बात करनी होती है।उनके एजेंडे के हिसाब से कुछ विषय निश्चित होते हैं,जैसे- राजनैतिक या हवा पानी के प्रदूषण की बातें,महँगाई एवं सामाजिक क्राइम सम्बन्धी चर्चाएँ,स्वास्थ्य तथा खाने पीने की बातें करते कराते बीत रही हैं जिंदगी की बहुमूल्य स्वाँसें,किन्तु मन किसी से नहीं खोला जा रहा है। समाज के मन में यह अघोषित सा भय व्याप्त  है कैसे निकाला जाए इसे ! इसी अर्द्ध चेतनता के घुटन भरे वातावरण में हो रहे हैं सब प्रकार के अपराध ! अनिच्छा से ही सही जबर्दश्ती घुट घुट कर जीते जा रहे हैं लोग!हँसने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ रही है।आज अपनों के बीच बैठकर हँसने मुस्कुराने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।लोग अपनों से मिलते ही कहना शुरू कर देते हैं आओ कभी घर खाना खूना खाओ,चाय पानी सानी पियो!इसी प्रकार कभी कोई घर आ जाए तो आते ही और गरम लोगे या ठंडा ?इसप्रकार खिला पिलाकर बिना कुछ बात चीत किए ही उसे यह कहकर बिदा कर देते हैं कि अच्छा ठीक है फिर कभी आना,बस इतना कहकर जोड़ देते हैं दोनों हाथ ! इस प्रकार भगा दिया जाता है आगंतुक अतिथि नातेरिश्तेदार !अतिथि पूजन वाले देश में क्या यही अतिथि सत्कार है!ऐसा क्यों समझा गया कि वह केवल खाने पीने के लिए ही यहाँ आया था।हो सकता है कि वह भी अपने मन की कोई बात ही आप से कहकर अपना मन ही हल्का करने आया हो !
    इसी प्रकार तिथि त्योहारों में भी यही मनहूसियत छाई हुई है ।शादी विवाहों के कार्यक्रम आयोजित करने वाले लोग पैसा तो अपनी औकात से अधिक लगा रहे होते हैं शादी में ! लेकिन जरा जरा सी बात पर ऐसे  चिड़ चिड़ाने लगते हैं।मानों खिलापिलाकर समाज का ऋण उतार रहे हों !
      जिसके भरोसे  अपना काम आगे भी चलना होता है या जिसके पास अधिक पैसा होता है या नेता ख़ूँटा, अथवा अधिकारी टाइप का कोई भारी भरकम आदमी, जिसे शादी पर बुलाने के लिए बाप बेटों ने औकात लगा रखी होती है बस उसकी प्रतीक्षा हो रही होती है उसी को फोन पर फोन हो रहे होते हैं उसी के विषय में चर्चा हो रही होती है उसी के साथ केवल मोबाईल पर बात हो रही होती है,पिता पुत्र मिला रहे होते हैं बस उसी को फोन!!!उसे ही रास्ता बताया जा रहा होता है कि आपको कहाँ से कैसे कैसे आना है!उसके आने पर ही सारा प्रोग्राम प्रारंभ होता है बस उसी के साथ फोटो खिंचवाई जाती हैं।उसके अतिथि सत्कार को देखकर वर बिचारा मन ही मन परेशान होता है वह मन ही मन सोच रहा होता है कि शादी हमारी और स्वागत इनका !!!खैर, उसी  बलिपशु से वर बधू को आशीर्वाद दिलवाया जाता है, जब किसी शादी समारोह में ऐसे किसी बलिपशु के पीछे पीछे घर के सारे सदस्यों को घूमते देखा जाता है तो लोग समझ ही लेते  हैं कि ये तो कँगले हैं इसी बलिपशु की कमाई के सहारे जीते हैं ये लोग! शादी के बाद भी इन्हीं के गले पड़ेंगे ये सारे पिता पुत्र आदि सारा परिवार !!!इसलिए इधर उस बलिपशु के तलवे चाटने में पूरा कुनवा लगा है उधर आए हुए बाकी व्यवहारियों  से मिलने वाला घर का वहाँ कोई होता नहीं है तो व्यवहारी लोग आपस में ही मिल जुल कर लिफाफा पकड़ाते और चले जाते हैं खाएँ न खाएँ कहाँ कोई है कोई पूछने वाला?आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं। 

    बच्चे के जन्म से लेकर अब तक आशा लगाकर बैठे  दादा दादी का आशीर्वाद मारा मारा फिर रहा होता है!दादा दादी की तबियत खराब बताकर उन्हें नींद की गोली देकर सुला दिया जाता है उन्हें क्या पता कि आखिर उन्हें चक्कर क्यों आ रहे थे?नींद की गोली कोई बता कर थोड़े ही दी जाती है। 

     बुआ बहन बेटी टाइप की घर की बेटियों से  कौन मिलना चाहता है ? उल्टा वही मिलकर साथ लाई अपने अपने पतियों को समझा देती हैं कि सारा काम यही सँभाल रहे हैं इसलिए बहुत ब्यस्त हैं।खैर,क्या कहें! पहले तो लोग खाना पीना स्वयं बनाते थे फिर भी पूछ लेते थे एक दूसरे के सुख दुःख हाल समाचार,एवं  खाने पीने के लिए आदि आदि। आधुनिकता के चक्कर में कहाँ पहुँच रहे हैं हम लोग ?          क्या  पहले लोग कमाते खाते नहीं थे आज अपहरण करके फिरौती वसूलने या घूस लेने की जरूरत क्यों पड़ती है क्या आज अधिक खाया जाने लगा है ? सच्चाई तो यह है कि आज आधुनिकताके नाम पर गंध खाया जाने लगा है!

      क्या पहले शादियाँ नहीं होती थीं ?आज बस इतने लिए मित्रता के नाम पर मूत्रता के लिए पागल हो रहा है समाज!इसे प्यार कहा जा रहा है ये दुर्भाग्य है कि मनुष्य योनि प्राप्त करके भी चिंतन केवल सेक्स का !यह तो पशु योनि में भी संभव था।ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है इसमें ईश्वर हमसे कुछ और कराना चाह रहा होगा जो पशु योनि में संभव न हो सकता था ।आधुनिकता के नाम पर छोटी छोटी पर अत्याचार !ये अपने देश की संस्कृति तो न थी इस देश की तो पहचान ही संयम से थी!क्या हो गया है अपने दुलारे भारत वर्ष को!फैशन ने बरबाद कर दी अपनी संस्कृति! पहले हम ऐसे तो न थे !

  पहले लोग  सेक्स और निजी सुख सुविधाओं से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए भी कुछ करते  थे  अब सारी जिंदगी ही मुखता(खाना)  से मूत्रता(सेक्स) के बीच समिट कर रह गई है इसके अलावा किसी के लिए कोई दायित्व महत्वपूर्ण बचा ही नहीं है क्या हो गया है अपने इस भारतीय समाज को ?

        आखिर  आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बढ़ते हुए अपराधों को कैसे रोका जाए कैसे निपटा जाए अपराधियों से ? बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे जघन्यतम अत्याचारों से कैसे निपटा जाए ?क्या इनका समाधान फाँसी जैसे कठोर कानूनों से हो सकता है?यदि नहीं तो और दूसरा रास्ता क्या है ?
       दूसरा रास्ता हो सकता है धर्म एवं चरित्रवान धार्मिक  लोगों का सहारा किन्तु बचे ही कहाँ हैं आज चरित्रवान धार्मिक लोग !जो हैं भी उनकी संख्या अत्यंत कम है उनके पास साधन भी सीमित होते हैं। बिना पाप के पैसा और बिना पैसे के प्रचार प्रसार कैसे हो।इसलिए बचे खुचे चरित्रवान धार्मिक लोगों के साथ साथ हमारी प्रार्थना सभी शिक्षित एवं चरित्रवान लोगों से है कि हमारे तुम्हारे पूर्वजों का यह देश है इसकी संस्कृति हमारे तुम्हारे सहारे छोड़कर गए हैं वे महापुरुष !क्या हम तुम मिलजुलकर नहीं बचा सकते इसकी पावन परम्पराएँ !!! 
    धार्मिक  लोगों  की आधुनिक फसल में त्याग तपस्या, चरित्र, संयम, साधना, विद्या  आदि हो न हो किन्तु किसी स्त्री को लड़का कैसे होगा इसकी दवा से लेकर सारा कर्मकांड जितना बाबाओं को पता होता है उतना बेचारे गृहस्थों को कहाँ पता होता है उन्हें एक गृहस्थी में ही रहना होता है उनके साधन एवं अनुभव सीमित होते हैं।बाबाओं के अन्दर तो लड़का पैदा करने का अथाह ज्ञान विज्ञान भरा है कई बाबा तो इसी गलत फहमी  में अरबों खरबों पति व्यापारी हो गए आज केवल राजनैतिक दखल बनाने के लिए काले धन  के मुद्दे की टोकरी सिर पर लिए घूम रहे हैं ताकि कोई उन्हें चोर न समझ ले !किन्तु समझने वाले समझ चुके हैं कि बाबाओं के पास धन कैसा,बाबाओं का व्यापार कैसा ? और यदि बाबाओं के पास धन भी है व्यापार भी है और राजनैतिक दखल भी है तो साधू किस बात के ?किन्तु कलियुग है इसमें तो सबकुछ चलता है!अक्सर गधे सिंह की खाल ओढ़े घूम रहे हैं !
      अब तो अधिकांश गुरु, जगदगुरु ,महंत ,श्री महंत ,मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, साधु , संत ,कथा बाचक ,पंडित , पंडे ,पुजारी टाइप  के आम लोग अब आस्‍था को ताक पर रखकर  सिर्फ कमाई करने में जुट गये हैं,इसके लिए उन्हें कितना भी बड़ा पाप क्यों न करना पड़े किन्तु पैसे तो चाहिए ही !
      इस समय बढ़ते अपराधों एवं भ्रष्टाचार को रोकने में धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था क्योंकि धर्म ही एक मात्र मन पर असर डाल  सकता है किन्तु लोगों में धन की बढ़ी भूख के कारण दुर्भाग्य से धर्म एवं शास्त्रीय विषयों में  भी  पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार का ही बोल बाला दिखता है। धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित हर पिलर हिल रहा है।आज बढ़ते बलात्कार ,पाप, अपराध एवं भ्रष्टाचार के न रुक पाने  में कानून व्यवस्था का फेलियर कम है धर्म एवं शास्त्रीय विषयों से सम्बंधित महापुरुषों का फेलियर मुख्य है क्योंकि अपराध होने पर कानून सजा देता है किन्तु धर्म एवं शास्त्र तो अपराध सम्बंधित भावना ही न बने इस दृष्टि से मन पर संयम और सदाचार की बात करता है।पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ   वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?

     अध्यापक वर्ग की स्थिति यह है सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती इस विषय में कोई अधिकारी कर्मचारी नियंत्रण करने को तैयार ही नहीं है क्या उसका यह दायित्व नहीं बनता कि वो अपने तथा कथित शिक्षक शेरों से पूछे कि तुम्हारे स्कूलों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों से पीछे क्यों रहते हैं तुम चालीस से पचास हजार की सैलरी किस बात की लेते हो?यदि तुम पढ़े भी नहीं हो पढ़ा भी नहीं सकते हो और स्कूल में ड्यूटी भी नहीं दे सकते हो!रोज तुम्हारा जरूरी काम लगता है।किसी सरकारी स्कूल में एक अध्यापक के हिस्से में यदि पचास बच्चे आते हैं उनकी शिक्षा के प्रारम्भिक काल में जिस अध्यापक की लापरवाही करने के कारण वे पढ़ नहीं पाए और अपराधों की ओर मुड़ गए उनके समस्त आपराधिक जीवन के लिए उस प्राथमिक अध्यापक को जिम्मेदार मानकर उसे ही दण्डित किया जाए !तो अभी अपराधियों की संख्या में कमी आने लगेगी ! सरकारी शिक्षकों से पूछा जाना चाहिए कि यदि   तुम्हारे यहाँ भोजन भी बँटता है पैसे भी दिए जाते हैं।फीस या एडमीशन फीस भी नहीं ली जाती है और जनता की गाढ़ी कमाई में से टैक्स रूप में प्राप्त की गई धनराशि से पचासों हजार महीने की सैलरी तुम्हें दी जाती है !उन शिक्षकों से  यह क्यों  नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर आम जनता का विश्वास आप  क्यों नहीं जीत पा रहे हैं ?असक्षम अभिभावक आर्थिक मज़बूरी   में अपने बच्चे को आपके यहाँ क्यों पढ़ाता है प्रसन्नता से क्यों नहीं?आपकी शिक्षा अधिक है आप ट्रेंड भी हैं फिर भी प्राइवेट स्कूलों से आप क्यों पिटते जा रहे हैं! आपकी उच्च शिक्षा एवं ट्रेंड होने का क्या लाभ हुआ समाज को? सरकारी शिक्षकों से क्या यह भी नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर आप लोगों के अपने बच्चे क्यों नहीं पढ़ते हैं सरकारी स्कूलों में ?यदि वो न मानें तो एक बार इस बात की ईमानदारी पूर्वक जाँच करा ली जाए! तो  पता  चल जाएगा कि शिक्षकों की ऐसी लापरवाही से बिगड़ने वाले बच्चे आगे क्या क्या अपराध  कर सकते हैं! आखिर पढ़ें न पढ़ें भूख तो उन्हें भी समय से लगेगी ही और भी सारी जरूरतें उनकी भी सबकी तरह ही होंगी।जैसे स्कूल में बच्चों को बिना पढ़ाए यदि शिक्षक ख़ुशी ख़ुशी सैलरी लेकर दिन बिता सकते हैं।

    इसीप्रकार सरकारी अस्पतालों के डाक्टर प्राइवेट नर्सिंग होमों से अपने अस्पताल को पिटते देखकर भी ख़ुशी ख़ुशी सैलरी उठा सकते हैं।समाज की निगाहों में प्राइवेट कोरियर सुविधा से पिट चुका डाक विभाग,इसीप्रकार  प्राइवेट मोबाइलों से कम लोकप्रिय सरकारी दूरभाष सेवाएँ हैं किन्तु इन सभी विभागों के सरकारी कर्मचारियों की सैलरी प्राइवेट कर्मचारियों की सैलरी के मुकाबले बहुत अधिक होती है क्या इन्हें काम न करने का इनाम दिया जाता है ?आखिर प्राइवेट  की अपेक्षा अधिक सैलरी लेकर भी समाज का विश्वास क्यों नहीं जीत पा रहे हैं हर विभाग के सरकारी कर्मचारी ?

       ये प्रमाण है इस बात का कि वो अपने काम के प्रति उतनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं जितनी निभानी चाहिए। ऐसे लोगों से ही प्रेरित होकर शरारती तत्व सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि जब भगवान या कानून ऐसे सरकारी कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है तो हमारा भी कुछ नहीं बिगड़ेगा और करते हैं ठोंक कर अपराध !आखिर वो अपना आदर्श शिक्षकों को न मानें तो किसे मानें!जब शिक्षक ही काम चोर होंगे तो बच्चे कैसे होंगे? प्राइवेट स्कूलों में हर कोई अपने बच्चे को पढ़ा नहीं सकता सरकारी स्कूलों में यदि पढ़ाई नहीं होगी तो खाली दिमाग कुछ भी कर सकता है!वह सहने के लिए समाज को हमेशा तैयार रहना होगा!इन बच्चों का भविष्य बिगाड़ने वाले शिक्षकों के साथ साथ समाज के वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो ऐसा देखते हुए भी सह रहे हैं ।किसी कवि ने लिखा है कि 
    जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।।
         शिष्याओं के शीलहरण जैसी मटुकनाथों की  निंदनीय निरंकुश नियति  को देखकर लगता है कि आखिर कौन सत्प्रेरणा देगा  समाज को जब शिक्षकों के द्वारा संस्कृति पर ऐसे हमले किए जाएँगे !!!ऐसे शिक्षकों की चारित्र्यिक बदमाशी को देखकर इनसे प्रभावित हुआ युवा वर्ग इसी रास्ते पर अग्रसर होता जा रहा है और तबसे प्रेम प्यार नाम के चारित्र्यिक पतन की घटनाएँ अक्सर सुनाई पड़ती हैं। यदि शुरू में ही मटुक नाथों पर लगाम लगाई गई होती तो बलात्कार की घटनाएँ इतनी बढ़ी नहीं होतीं। शिक्षकों के प्रति समाज के मन में सम्मान का भाव होता है यदि शिक्षक ही ऐसा निंदनीय आचरण करेंगे तो समाज के मनमें  विकार होना स्वाभाविक ही है। 
   इसी प्रकार प्यार के खेल में भी जब कोई लड़की किसी लड़के को अपना शरीर सौंपती है तो इतनी आसानी से नहीं बन जाते हैं ये रिश्ते! वहाँ भी सौ प्रतिशत अपराध की सम्भावना रहती है इसके पहले दोनों ही अपने अपने स्तर से इस दिशा में कई कई जगह कई कई बार सफल या असफल प्रयास करके देख चुके होते हैं तब कहीं जाकर एक जगह सेटिंग बन पाती है।पहला पहला तरबूज काटा जाए और वो लाल निकले इसकी गारंटी कहाँ होती है वैसे भी ऐसा भाग्य कहाँ देखा जाता है? यदि भाग्य इतना ही प्रबल होता तो लव के नाम पर सेक्स के लिए पशुओं की तरह घर के अपनों से बगावत करके किसी के पीछे पीछे झाड़ी, जंगलों, पार्कों,पर्किंगों,कूड़ादानों के पास लुक छिप कर क्यों मिलना पड़ता?उन्हें भी इंसानों की तरह ससम्मान विवाह का आनंद मिला होता!
       इस प्रेम की कठिन प्रक्रिया से गुजरते गुजरते पटते पटाते हुए झूठ साँच बोलते बोलते अक्सर प्रेमी प्रेमिका पीछे कई कई लोगों को घायल कर चुके होते हैं!किसको कितने घाव मिले हैं वो उन्हें ही पता होगा जिन्होंने भोगी होगी वह पीड़ा! उनमें से कई तो ऐसे भी होंगे जो न किसी से कह सकते होंगे और न ही सह सकते होंगे वो अपनी परेशानी को कहाँ कैसे रियक्ट कर रहे होंगे किसी को क्या पता ?इसकी भी क्या गारंटी कि वो कोई अपराध नहीं करेंगे!इस प्रतिशोध की ज्वाला को कोई कैसे कहाँ तक आगे बढ़ा ले जाएगा  पता नहीं ?
      इतिहास में भी ऐसे प्रकरणों में बड़े बड़े खून खराबा हुए हैं बड़े बड़े राजबंश उजड़ गए!एक दो चार नहीं हजारों लाखों सैनिक अपने आका राजाओं की प्रेम नाम की ऐय्यासी पर शहीद होते देखे गए हैं। इसलिए यह प्रेम नाम की ऐय्यासी का खेल ख़त्म होने से पहले फिलहाल हमें तो सभी प्रकार के अपराध ,अपहरण, हत्याएँ,नशे का कारोबार रुकते नहीं दिखता!सरकार के बश का होता तो अब तक रोक लेती !हाँ,यदि प्रेम नाम के खिलवाड़ पर प्रतिबन्ध लगे तो सभी प्रकार के अपराधों में कमी आएगी यह बात मैं पूर्ण विश्वास से कह सकता हूँ।यद्यपि विवाह पूर्व जिसका  जिससे सेक्स होगा उसे पति पत्नी माना जाएगा इस बात में भी दम है इससे भी अपराध घटेंगे किन्तु यहाँ दो जगह दिक्कत आएगी एक तो जो छोटी छोटी बच्चियों के साथ अत्याचार हो रहे हैं उनके विषय में अलग से कुछ सोचना होगा दूसरी बात जो अपने जीवन साथी को जब पसंद नहीं करेगा तब वह उसे अपने जीवन से अलग करने के लिए  सबकुछ कर सकता है  जिसे अपराध कहते हैं इस विषय में भी अलग से कुछ सोचना होगा!
      प्रारंभ में तो यह संबंध समझौता पूर्वक चलता है।चूँकि इस तरह के संबंधों की नींव ही सम्पूर्ण रूप से झूठ पर आधारित होती है दोनों ने एक दूसरे से खूब झूठ बोला होता है जैसे जैसे सम्बन्ध आगे बढ़ते हैं एक दूसरे की सच्चाई भी एक दूसरे के सामने आने लगती है।इसलिए जब स्वार्थ बाधित होने लगता है तो लड़के लड़कियाँ किनारा करने लगते  हैं,ऐसे समय लड़कियाँ बलात्कार का केस लगाने की धमकी देती हैं जबकि लड़कों ने उनके साथ अश्लील सीडी बना रखी होती है इसप्रकार जब दोनों ही दोनों को धमकी देने लगते हैं तब तक दोनों के घर वालों को दोनों के विषय में कुछ पता नहीं होता है अक्सर इस मोड़ पर पहुँचे जोड़े का बिना अपराध के सकुशल वापस पीछे लौट पाना बहुत कठिन होता जाता है।
     इसी प्रकार किसी ऐसे ही जोड़े के बीच जब कोई तीसरा या तीसरी आ जाए तब जोड़े के दोनों  सदस्यों को एक दूसरे के साथ एकांत में घूमना, फिरना, बैठना, उठना बिलकुल बंद कर देना चाहिए न जाने कौन किसका कब कहाँ गला दबा दे! ऐसी परिस्थिति में एक दूसरे पर विश्वास करना अत्यंत कठिन एवं दुखद होता है। महाभारत में कहा गया है कि

      परभावानुरक्ता  हि नारी ब्यालीमिवस्थितम्||
                                                              -महाभारत
    अर्थात किसी  जोड़े का कोई सदस्य जब किसी और पर आशक्त या फिदा हो जाता या जाती है ऐसे पराशक्त लड़के या लड़कियों को सर्प एवं सर्पिणी मानकर इन पर भरोसा कभी नहीं करना चाहिए।

   ऐसे समय शिक्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है।  हर किसी को चारित्रिक संयम सदाचार आदि गुणों का संग्रहअपने जीवन में स्वयं करना चाहिए।शिक्षा ली ही इसीलिए  जाती  है यही शिक्षा का फल भी है जो लोग पढ़ लिख कर भी बलात्कार करते हैं, बेलेन्टाइन डे मनाते या तथाकथित प्यार का खेल खेलते घूमते हैं। ये उनके शिक्षित होने का फल नहीं है, क्योंकि यदि आप किसी की बहन बेटी के साथ प्यार का खेल खेलेंगे तो कोई आपकी बहन बेटी को भी अपनी हबस का शिकार बनाएगा।यदि उसको अपने  गुणों से नहीं प्रभावित कर पायेगा तो दुर्गुणों से करेगा,बलात्कार करेगा।आखिर उसे भी अपनी बहन बेटी के साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला जो लेना है।बहन बेटी की इज्जत को वो अपने स्वाभिमान या आत्म सम्मान से जोड़कर देखता है।ये भारत वर्ष है यहाँ अभी भी लोग इतने बेशर्म नहीं हुए हैं कि बलात्कार और बेलेन्टाइन डे के नाम पर अपनी  बहन बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड़ होने दें । ये भारत वर्ष का इतिहास रहा है इसी भावना पर हजारों राजा महाराजा शहीद होते  चले गए।हजारों रियासतें तवाह हो गईं।

    यह हर किसी को  अपनी  बहन बेटी के साथ होता देखकर बहुत  बुरा लगता है।ऐसी स्थिति में लोग मार पीट से लेकर हत्या तक सब कुछ कर देना चाहते हैं।ऐसी परिस्थिति में एक व्यक्ति की चारित्रिक  गड़बड़ी  के कारण  बलात्कार से लेकर  हत्या तक सब कुछ तो हो गया।ऐसी बदले की भावना के विरुद्ध फाँसी जैसी सजा का भी कोई भय नहीं होगा।इसलिए यह मानना चाहिए कि  विद्या का फल इतना डरावना कभी हो ही नहीं सकता है। विद्या तो सुख शांति संयम सदाचार आदि गुणों से संपन्न करती है।विद्या तो सेक्स अर्थात बासना पर आत्म नियंत्रण  की क्षमता प्रदान करती है।

       अतएव सबसे प्रार्थना है कि हमें अपराधियों से अधिक उनके आका  भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करके हमें मिलजुल कर उन पर लगाम लगानी होगी उन भटके हुए लोगों को प्रेम पूर्वक समझाना होगा कि यह देश और ये देश वासी उनके अपने ही हैं उनसे भी अपने पन का ही व्यवहार करें ।


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