बाबाओं
को ब्यभिचार के लिए धन देने वालों ने धन दिया,मन देने वालों ने मन दिया
तन देने वालों ने तन दिया कुछ लोगों ने तो जीवन ही दे दिया है ये सच्चाई है
फिरभी दोष केवल बाबाओं का ही है क्या?
जहाँ तक मेरी निजी धारणा है मैं ऐसे सभी धर्म व्यापारी बाबाओं के आचरणों
से आहत हूँ मेरा विश्वास है कि ऐसे सभी अविरक्त महात्माओं से किसी भी रूप
में जुड़े रहने वाले किसी भी स्त्री पुरुष को तब तक विश्वसनीय नहीं माना
जाना चाहिए जब तक जाँच रिपोर्ट न आ जाए क्योंकि वैराग्य विहीन बाबाओं के
आश्रमों में एक रात भी किसी ने क्या सोच कर गुजारी?यह बात मानी जा सकती है
कि किसी को शुरू के दो चार दिन चारित्र्यिक प्रदूषण का शिकार न बनाया गया
हो किन्तु वहाँ का वातावरण कैसा है इसका आभास तो प्रारंभ में हो ही जाता है
फिर भी वहाँ महीनों या वर्षों बिताना कहाँ तक उचित था?खैर एक शिकायत मुझे
मीडिया से भी है कि बिना बैराग्य वाले धनी सभी बाबाओं में धन का सुख भोगने
कि भावना तो आ ही जाती है जो सब में ही है फिर मीडिया का क्रोध केवल
आशाराम पर ही क्यों हैं यदि मीडिया का उद्देश्य वास्तव में धर्म रक्षा है
तो खुल कर एक बार आ जाना चाहिए सामने!
एक और चिंता कि बात है कि
आज तक किसी टी.वी. चैनल पर किसी परिचर्चा में कोई संत नहीं लाया गया जो
अपना पक्ष भी रखता ? ये जो आर्टिफिशियल बाबा परिचर्चाओ में सम्मिलित किए
भी जा रहे हैं उनका धर्म से क्या लेना देना? कोई भाजपा का बाबा होता है कोई
कांग्रेस या किसी अन्य दल का कुछ लुटे पिटे पत्रकार या वकील रह चुके होते
हैं,या कुछ बाबा होने के बाद भी किसी सभा सोसायटी के अध्यक्ष बने फिरते
हैं किन्तु इन बवालियों का मन भजन में तो लगता नहीं है इसलिए लाल कपड़ों
में शरीर तो लिपेट लिया है किन्तु मन अपनी पुरानी आदतें छोड़ने को तैयार
नहीं है आजतक ऐसे सभी असफल आशाराम ही आशाराम की आलोचनाओं में ज्यादा रुचि
ले रहे हैं बाकी चरित्रवान संतों के पास समय कहाँ है कि वे ऐसे प्रपंचों
में फंसें !
इसी प्रकार चरित्रवान आम स्त्री पुरुषों के पास न तो
समय बाबाओं के पीछे पीछे घूमने का है और न ही उनकी निंदा या समर्थन में
साथ देने का | ऐसी महंगाई में जीवन चला पाना ही कितना कठिन है फिर भले
लोगों के पास बबई गिरी के लिए समय कहाँ है !
अब समय आ गया है जब
ऐसी हरकतों पर लगाम लगनी चाहिए जिससे धर्म की हानि संभव हो अन्यथा इन
लोगों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा किन्तु कुछ लोगों की ऐसी हरकतों से सच्चरित्र
साधुओं पर भी अंगुलियाँ उठने लगी हैं जो सबसे बड़ा चिंता का विषय है!
इन सब बातों के साथ साथ यह स्वीकार करने में भी अब संकोच नहीं होना चाहिए
कि अब समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग सेक्स के प्रति समर्पित हो चुका है जिसमें
नेताओं से लेकर बाबाओ तक ने बढचढ कर भाग ले रखा है| सेक्स के प्रति
समर्पण में स्त्री पुरुषों में लगभग समानता दिखती है अगर बाबा दुश्चरित्र
हैं तो उनके प्रति समर्पित होने वाली भीड़ का समर्पण भी देखते ही बनता है!
मलमल बाबा की तथाकथित कृपा लूटने के लिए लालायित गिडगिडा रहे भक्तों को
देखकर कई बार मैं सोचने लगता हूँ कि आज मलमल दरवार में बात बात में रोने
वाली भक्ताएं कल चिल्लाती घूमेंगी! आखिर इस सच को समाज समझने के लिए तैयार
क्यों नहीं है कि अब युग बदल चुका है ये कलियुग है इसका प्रभाव बाबाओं पर
भी पड़ा है सदाचार का उपदेश देने वाले बाबा अब दुराचार में जेलों बंद हो रहे
हैं इस लिए बहुत संभल कर चलने कि जरुरत है !
अब समाज की सोच
बिलकुल बदल चुकी है आज सेक्स से जुड़े अधिकांश अपराधों में दोनों तरफ से
पहले तो सब कुछ ठीक चलता है किन्तु बाद में जब आपसी असंतोष पनपता है तब
स्त्री निरपराध और पुरुष अपराधी घोषित कर दिया जाता है!
गैंग
रेप के अधिकांश केशों में भी कुछ ऐसा ही घटित होता है किसी सार्वजानिक स्थल
पर अपने प्रेमी नाम के सेक्स क्षुधा से पीड़ित लड़के की अश्लील हरकतें हँस
हँस कर सहने या उसमें साथ देने वाली लड़की को देखकर देखने वालों का बेचैन
होना स्वाभाविक है इन्हीं दर्शको में यदि शरारती किस्म के कुछ लड़के एक
जैसी मानसिकता के हुए तो ऐसे जोड़ों के पीछे लग जाते हैं और जहाँ एकांत मिला
वहीँ उस अकेले प्रेमी नाम के सेक्सालु को पकड़ कर बांध देते हैं क्योंकि वे
कई होते हैं और फिर लड़की के साथ करते हैं मनमानी!
मेट्रो के फुटेज
देखने के बाद तो यह और साफ हो चुका है कि प्रेमी जोड़े मेट्रो में भी ऐसी
हरकतें करते हैं जिनके सुधरे बिना ऐसी दुर्घटनाओं पर कानून के बल पर लगाम
लगा पाना निजी तौर पर हमें दिवा स्वप्न से अधिक कुछ नहीं लगता है
!खैर...हमें तो यही कहना है की सबके सुधरने पर ही सुधर संभव हो सकता है
जादू या किसी भी प्रकार के चमत्कार की उम्मीद तो प्रशासन से भी नहीं की
जानी चाहिए!
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