भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Saturday, October 12, 2013
टी.वी.चैनलों ने धर्म के क्षेत्र में बड़ा काम किया है
जिन लोगों को प्रचारित करके जिनके चार चार करोड़ अनुयायी बनाए जा चुके हों और उनमें से बहुत बड़ा वर्ग आज भी उनके प्रतिपूर्ण समर्पित हो वह यह मानने को तैयार ही न हो कि उनके गुरु जी गलत हो सकते हैं उन्हें लगता हो कि वे फंसाए जा रहे हैं इसलिए हमें उनका साथ देना चाहिए और यदि इस भावना से भावित होकर उन चार करोड़ अनुयायियों में से चार लाख अनुयायी भी ऐसा करने पर तुल ही जाते हैं तो उन्हें कैसे समझाया जाएगा?आखिर मीडिया उन्हें अपने मातहत क्यों रखना चाहता है कि किसी के विषय में जब तक मीडिया कहे ठीक तो ठीक जिस दिन मीडिया कहे गलत तो गलत मान लेना चाहिए आखिर ऐसा क्यों करें आम लोग? उन्हें भी आपनी बुद्धि से जांचने परखने का मौका क्यों न दिया जाए!रही बात किसी आरोपी के विषय में कानून अपना काम करता रहेगा जो फैसला आएगा उसे मानने के लिए है हर कोई बाध्य है क्योंकि कानूनी हर फैसले के आधारभूत जो तर्क निकलकर सामने आते हैं उसमें समाज को मानने के लिए पर्याप्त सामग्री होती है मीडिया कि तरह नहीं होता है कि जिसे टी.वी. चैनल पर दिखने का मन हो वह आकर मीडिया के बनाए नियमों के अनुशार सम्बंधित व्यक्ति की निंदा करने लगे तो मीडिया उसे भी सम्बंधित व्यक्ति का राजदार सेवादार आदि बताने लगता है आखिर क्या प्रमाण होते हैं मीडिया के पास ?
इसीप्रकार कामदेव को योगगुरु कहने लगा मीडिया आखिर योगगुरु कहने का क्या आधार था किस संत सम्मलेन में कामदेव को किसने थी योगगुरु की उपाधि? वैसे भी जो योगासन सिखाता है वो योगी कैसे कहा जा सकता है!फर्जी एवं अयोग्य लोगों को धार्मिक आस्थावान लोग संत,जगद गुरु शंकराचार्य आदि झूठी पद पदवी धारण करने वाले फर्जी लोगों को केवल पैसे के बल पर मन चाही पद पदवियों से संबोधित करता है मीडिया आखिर ऐसा खिलवाड़ सनातन धर्म के साथ ही क्यों ?
इससे भी गंभीर विषय यह है कि धर्म एवं धर्म शास्त्रों के नाम से पैसे के बल पर मीडिया और टी.वी.चैनलों की कृपा से प्रसिद्ध हो चुके किसी भी अच्छे बुरे व्यक्ति की एकदम निचले स्तर के शब्दों से निंदा अचानक की जाने लगे यह स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है| मानवीय भूल की गुंजाइस तो हर जगह बनी ही रहती है कम से कम एक प्रतिशत गुंजाइस भी यदि किसी के निर्दोष निकलने की हो तो भी उसकी प्रतीक्षा की जानी चाहिए इसीलिए किसी भी व्यक्ति के विषय में क़ानूनी जाँच के परिणाम आने से पूर्व मीडिया के द्वारा सीधे सजा नहीं सुना देनी चाहिए| किसी आरोपी को सैतान कह देना कामी या बलात्कारी कहने लगना या और भी अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने लगना आदि सोचकर कई बार लगता है कि आखिर मीडिया को इतनी जल्दी क्यों है!क्या उन्हें न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है फैसला आने तक प्रतीक्षा की जानी चाहिए थी जो संयम मीडिया में नहीं दिख रहा है |
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