Thursday, October 17, 2013

क्या आम आदमी पार्टी का मुख्यमंत्री बनेगा दिल्ली में ?

   कैसा रहेगा आम आदमी पार्टी का चुनावी भविष्य ?  

   दिल्ली के आगामी चुनावी परिदृश्य में ज्योतिषीय  दृष्टि से जहाँ तक बात आम आदमी पार्टी की है इस पार्टी में अरविंद जी के विरोध  में भड़कने वाले असंतोष के कारण इस दल का कोई सबल आस्तित्व  बन पाने से पहले ही काल्पनिक ईमानदार वाद बिखर सकता है ! इससे बचाव के लिए अरविन्द जी को चाहिए कि उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व केवल श्रीमान अरविन्द जी तक ही सीमित न रहे उन्हें अपने ही समान अधिकार प्राप्त कुछ अन्य कार्य कर्ताओं को अपने ही समान शक्ति संपन्न बनाना चाहिए।यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो दिल्ली के चुनावों में उनकी सामर्थ्य उनकी आशा की अपेक्षा बहुत कम रहेगी।
       ऐसी विषम परिस्थिति का सामना आम आदमी पार्टी को करना पड़ेगा ! भाजपा की अपेक्षा इनके लिए एक दरवाजा यह तो खुला है कि इन्हें जो मिलना है सो मिलना ही है खोने को कुछ नहीं है!यद्यपि वर्तमान परिस्थिति में अपनी बढ़ी लोकप्रियता को वोट के रूप में बदलकर अपनी साख बचाए रख पाना  आम आदमी पार्टी लिए भी अत्यंत  कठिन होगा। अत्यधिक तैयारी की आवश्यकता है।इस विषय में और अधिक जानकारी के लिए 
                                  ( आम आदमी पार्टी में अरविन्द जी का भविष्य ?
    नाम से हमारा  लेख Google पर  पढ़ा  जा सकता है। 
  दूसरी ओर चुनावी ज्योतिषीय  दृष्टि से इस चुनावी समर में भाजपा के पाँच विजयों का एक साथ संगठित होकर चुनावी विजय के लिए विशेष परिश्रम पूर्वक काम करके  सफलता हासिल कर पाना यदि असंभव नहीं तो असंभव जैसा जरूर होगा। वैसे भी दिल्ली  भाजपा जब तक अपने पाँचों बिजय बीरों को दिल्ली में एक साथ लगभग समान अधिकारों के साथ जमाए  रखेगी तब तक दिल्ली भाजपा के हाथ में मुख्यमंत्री पद पहुँचना अत्यंत कठिन लगता है !श्रीमान साहब सिंह वर्मा जी के बाद दिल्ली भाजपा में कोई सर्वसम्मान्य नेता उभर ही नहीं पाया।दिल्ली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर  इन पाँचों बिजय बीरों की समान सहभागिता के कारण आपसी खींचतान से जूझ रही पार्टी का कोई प्रमुख चेहरा नहीं बन पाया जिसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर जनता उनके पक्ष में मतदान करे।यही वो प्रमुख कारण है जिससे दिल्ली भाजपा लम्बे समय दिल्ली की सत्ता से बाहर है अन्यथा सोच कर देखा जाए तो अतीत में भाजपा से ऐसी कौन सी बड़ी भूल हुई है जिसका दंड भाजपा को आज तक सत्ता से दूर रहकर मिल रहा है?जनता में भाजपा के विरुद्ध कोई आक्रोश भी नहीं दिखता है भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाकर भी भाजपा को सत्ता से नहीं हटाया गया था।केवल आलू प्याज की महँगाई पर भाजपा को  सत्ता छोडनी पड़ी थी।यदि यही एक कारण भाजपा के सत्ता से हटने का था तो दिल्ली के काँग्रेस शासन में तो ऐसा अक्सर होता रहता है वर्तमान में भी महँगाई चर्म सीमा पर है फिर भी इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहे काँग्रेस शासनके विरुद्ध कोई लहर भी बनती नहीं दिख पा रही है!आखिर इसका कारण  क्या है क्यों दिल्ली में भाजपा रही अब तक सत्ता से दूर और आगे आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए क्या विशेष हो पाएगा? 
(इस विषय में और अधिक जानकारी के लिए Delhi V.J.P. ke 4 Vijay  नाम से हमारा  लेख Google पर सर्च करके पढ़ा  जा सकता है।)  
  इन पाँचों विजय महानुभावों से वरिष्ठ,प्रभावी,लोकप्रिय  एवं जनता की दृष्टि में विश्वसनीय कोई ऐसा व्यक्ति भाजपा की ओर से आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया जाए जिसके तत्वाधान में प्रसन्नता पूर्वक पाँचों विजयपूर्ण मनोयोग से काम करने को तैयार हो जाएँ तो आगामी चुनावों में विजयी हो सकती है भाजपा !अन्यथा दिल्ली के आगामी चुनावों में भाजपा की सफलता संदेहास्पद  मानी जानी  चाहिए! 
     इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दिल्ली के पाँचों विजयों को एक साथ दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया नहीं जा सकता और इनमें से आगे पीछे कोई बनना नहीं चाहेगा!यदि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आगे लाया जाएगा तो ये पाँचों विजय उसका दोष भी आपस में ही एक दूसरे पर ही मढेंगे जिसका चुनावी नुकसान भाजपा को ही होगा और फायदा विरोधी पार्टी अर्थात कांग्रेस को होगा इसलिए भाजपा की ओर से इन पाँचों विजयों को पार्टी के प्रति समर्पित करने के लिए यदि गंभीर प्रयास नहीं किए जाते तो काँग्रेस अर्थात शीला दीक्षित जी को पराजित कर भाजपा के लिए आसान नहीं होगा!
   वैसे भी ज्योतिषीय  दृष्टि से शीला दीक्षित जी का कई वर्ष तक अच्छा ही अच्छा समय है। इनकी अपनी ग्रहस्थिति के अनुशार  साधारण तैयारी के द्वारा इन्हें चुनावी समर में पराजित कर पाना विरोधियों के लिए अत्यंत कठिन होगा।
      भाजपा हो या आम आदमी पार्टी दोनों के द्वारा अभी तक की गई चुनावी तैयारियाँ श्रीमती शीला दीक्षित जी को पराजित करने के लिए अपर्याप्त हैं एक ज्योतिष वैज्ञानिक होने के नाते मैं कहना  चाहता हूँ कि श्रीमती शीला दीक्षित जी एक  अजेय चुनावी योद्धा के रूप में आगामी चुनावों में अपने चुनावी प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकलते दिख रही हैं।यदि ऐसा हो ही गया तो इसका श्रेय मुख्य मंत्री के रूप में शीला दीक्षित जी की कार्यकुशलता को कम एवं विपक्षी दलों की शिथिल चुनावी तैयारियों को अधिक देना होगा ।

      कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विपक्षी पार्टियों  के पास उतनी तयारी दिखती नहीं है सफल होने के लिए जिसकी उन्हें आवश्यकता है। यदि हालात ऐसे ही रहे तो चुनावी समर में शीला दीक्षित जी को पराजित कर पाना विपक्षी पार्टियों के लिए अत्यंत कठिन होगा। 

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