Thursday, June 19, 2014

सरकार के मंत्री कैसे होने चाहिए बूढ़े या जवान ?

बूढ़े लोगों की उपेक्षा और जवान लोगों को मंत्रीपद दिए जाने का लाभ और हानियाँ !

     किसी भी सरकार के मंत्रियों में तीन गुण अवश्य देखे जाने चाहिए-1. अनुभव 2. सम्मान 3. संयम (चरित्र)

 बूढ़े लोगों को मंत्री बनाए जाने से इन तीनों गुणों का  स्वाभाविक लाभ होता है । 

    वहीँ दूसरी ओर  युवावस्था के मंत्रियों में अनुभव की कमी होती है और उन्हें मंत्री होने का सम्मान देना तो पड़ता है किन्तु ऐसे लोगों को सहज सम्मान नहीं मिलता है और रही बात चरित्र की तो युवा  अवस्था में गलतियाँ तो हो ही सकती  हैं ! इसीलिए जवानी प्रिय सरकारों का पाँच वर्षीय कार्यकाल तो सीखने सिखाने और आरोपों का सामना करने एवं सफाई देने में ही निकल जाता है !

     बूढ़े लोग यदि मंत्री बनाए जाएँ तो सरकारों को ऐसी समस्याओं का सामना ही नहीं करना पड़ता है वैसे भी मंत्रियों को तो विचार ही देने होते हैं कोई युद्ध तो लड़ना नहीं होता है जो उनमें जवानी की जरूरत हो !इसलिए बूढ़े मंत्रियों के होने से कई लाभ होते हैं -

1. अनुभवी होने के कारण वो समस्याओं का समाधान शीघ्र खोज लेते हैं ।       

2. बयोवृद्ध होने के कारण हर कोई उन्हें स्वाभाविक सम्मान देता ही है ।

3. बुढ़ापे के कारण लोग उनके चरित्र पर संदेह नहीं करते हैं क्योंकि उनका इन्द्रिय निग्रह स्वाभाविक रूप से होने लगता है !

    इसीलिए रामायण में भी कहा गया है कि - 

            "जाम्बवंत मंत्री अति बूढ़ा"

   इसीप्रकार से रावण का मंत्री माल्यवान उसका नाना होने के कारण बूढ़ा ही रहा होगा!

      श्री राम जी के मंत्री सुमंत जी भी बूढ़े थे लिखा गया है कि सुमन्त जी की आयु 9 हजार 9 सौ 99 वर्ष 11 महीने थी यथा -

सुमन्त जन्मपट्टे तस्यायुः संख्यां ददर्श सः |

जन्म कालात्सहस्राणि नव नव शतानि च||

 नव नवति वर्षाणि मासस्त्वैकादशैव हि||

     बूढ़े लोगों  को मंत्री बनाए जाने के पीछे एक और बड़ा कारण था कि वो लोग आयु एवं अनुभव वृद्ध होने के कारण अप्रिय लगने वाली भी हितकारी राय वो बड़ी ही निर्भीकता पूर्वक मंत्री मंडल में विचारार्थ रख  दिया करते थे जो न चाहते हुए भी सम्पूर्ण मंत्रिमंडल को सहनी एवं माननी पड़ती थी। 

     वैसे भी कहा गया है कि सत्ता के जिस शीर्ष नेतृत्व को उसके मंत्री लोग ही  भयभीत होकर या सशंकित रहकर या  चाटुकारिता पूर्वक अपनी सलाह देने लगें तो ऐसे अहंकारी राजा का पतन निश्चित होता है यथा -

   दो. सचिव वैद्य गुरु तीन जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।

        अर्थ धर्म  तन  तीन  कर  होहि   बेगिहीं  नास ॥

                                              -राम चरित मानस

    यह तब और अधिक चिंतनीय हो जाता है जब सत्ता के सर्वे सर्वा प्रमुख पुरुष को पता चल जाए कि हमारे मंत्री हमसे इतने अधिक भयभीत  रहने लगे हैं कि वो हमें खुश करने के लिए हमारे पैर छू रहे  हैं और ऐसी परिस्थिति में उन्हें पैर छूने से रोका  जाना चाहिए किन्तु लाख टके का सवाल यह है कि पैर छूने को भले ही रोक दिया जाए किन्तु वो डरते हैं इस बात  से इनकार कैसे किया जा सकता है और जिसके मंत्री ही अपने शीर्ष नेतृत्व से डरते हों ऐसी सत्ता सुयश  कैसे प्रदान कर सकती है !  

     किसी भी सरकार के बनने में जवान  लोग  जब मंत्री बनाए जाएँगे तो उन पर बलात्कार और मार पीट के आरोप तो लग ही सकते हैं गाली गलौच से लेकर  बलात्कार तक के आरोप भी तो लगभग  युवाओं पर ही लगाए  जाते हैं किन्तु इसकी सफाई कैसे दी जाए और यदि सफाई ही देनी पड़ी तो मंत्री पद का सम्मान कैसा और यदि सम्मान ही नहीं रहेगा तो जनता विश्वास कैसे करेगी जबकि जनता  का विश्वास सबसे अधिक जरूरी है ।

     बूढ़ों पर कोई बलात्कार का संदेह नहीं करेगा,उनका सभी लोग सम्मान करते हैं उनके पास सारे जीवन का अनुभव होता है वैसे भी  मंत्रियों को युद्ध तो लड़ना नहीं होता है उन्हें अपने विचार ही देने होते हैं और सारे जीवन के अनुभव से विचार तो बुढ़ापे में ही परिपक्व होते हैं इसलिए बूढ़े लोग किसी भी संगठन का मेरु दंड होते हैं क्योंकि उनमें इन्द्रिय निग्रह स्वाभाविक होता है इसलिए उन पर कोई बलात्कार का संदेह भी नहीं करेगा,और उनका सम्मान भी सभी लोग करते हैं ।   

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