Sunday, June 8, 2014

आम कार्यकर्ता किससे कहे अपनी व्यथा ?उत्साह बर्द्धन तो उसका भी जरूरी है !

    राजनीति में आम कार्यकर्ता को भी मिलना चाहिए अपने शीर्ष नेताओं का हेल्प लाइन नंबर ताकि वो अपनी बात भी पहुँचा सके अपने शीर्ष नेतृत्व तक और सुनी जाए उसकी भी आवाज !कार्यकर्त्ता चुनावों के समय पार्टी के पक्ष में केवल वातावरण तैयार करने के लिए ही नहीं होता है अपितु उसकी भी कुछ इच्छा आवश्यकता मजबूरियाँ परेशानियाँ आदि हो सकती हैं उन्हें क्यों न सुना जाए ! 
       वैसे भी अब तो चुनाव भी हो गए अपनी पार्टी सत्ता में भी आ गई अब तो आम कार्यकर्ताओं को भी लोग बताने लगे हैं अपने जरूरी काम और घर वाले भी पूछने लगे हैं उनसे हिसाब किताब कि जिसे जो बनना था सो तो बन गया जो रह गया सो अब बन जाएगा किन्तु पार्टी की नज़रों में तुम कहाँ हो.……!       

      राजनैतिक लोगों या दलों के विषय में  कई बार ग्रामीण लोग भी बड़ी अच्छी समीक्षा कर लेते हैं। कानपुर के एक वृद्ध से किसी कोल्ड स्टोरेज में मेरी एक सामान्य मुलाकात हुई, कुछ और लोग भी वहीं  बैठ गए।राजनैतिक चर्चाएँ चलने लगीं, सब लोग अपनी अपनी बात बोलने लगे, बहस बढ़ने लगी, इसी बीच उन वृद्ध जन ने बोलते हुए कहा कि कार्य कर्ताओं का सबसे अधिक प्रोत्साहन समाज वादी पार्टी करती है। उसका कार्यकर्ता कितनी भी बड़ी गलती कर के आवे तो वो पार्टी अपने कार्य कर्ता को कभी दुदकारती  या धिक्कारती नहीं है अपितु मुशीबत में उसकी मदद करती है भले वह गलत ही क्यों न हो!आप स्वयं देख लेना कि सपा अपने बाहुबली विधायक एवं मंत्री रह चुके  अपने सहयोगी को इस मुशीबत  में कितनी भी बड़ी कुर्वानी करके उसे कानून की नजरों से बचाकर निकाल कर ले आएगी और लोग एवं पार्टियाँ देखती रह जाएँगी।वैसे भी वो उस पार्टी के ऐसे विधायक हैं जो जेल मंत्री रह कर जेलों  के लिए जो सुख सुविधाएँ जुटाते उन्हें चेक करने के लिए कुछ दिन के लिए जेल चले भी जाते हैं इस रूप में भी वह सरकार और पार्टी का ही काम करते हैं।   
     सपा के बाद नंबर दो पर अपने कार्य कर्ताओं का  सबसे अधिक संरक्षण एवं प्रोत्साहन बहुजन समाज पार्टी  करती है। उसका कार्यकर्ता कितनी भी बड़ी गलती कर के आवे तो भी वह अपने कार्य कर्ता को कभी दुदकारती या धिक्कारती नहीं है अपितु मुशीबत में उसकी अधिक मदद भले ही न कर पावे किन्तु वह अपने कार्यकर्ता के साथ खड़ी जरूर होती है और उसे विश्वास दिलाती है कि जब वो सत्ता में आएँगे तो उसके अपमान का बदला जरूर लेंगे और वे लेते भी हैं, भले वह गलत ही क्यों न हो !
        कांग्रेस अपने कार्यकर्ता को बिना कोई आश्वासन दिए बेशक सामाजिक रूप से उसका पक्ष ले न ले  कई मुद्दों पर भले उसकी निंदा आलोचना ही करना पड़े  किन्तु मदद जरूर करती है तथा कभी भी अपने कार्यकर्ता का मनोबल नहीं टूटने देती है एवं अपने कार्यकर्ता पर कभी संदेह नहीं करती है। उसके ऐसा करने  का विश्वास कार्यकर्ता को भी होता है इसी बल पर वो अपनी बात पर डटा रहता है।  
     जहाँ तक भाजपा की बात है तो  भारतीय जनता पार्टी का निरपराध कार्यकर्ता भी यदि किसी गलत आरोप में भी फँसाया गया हो  और वह यदि अपनी पार्टी के  अपने आकाओं के पास मदद के लिए पहुँचे,तो वे नेता लोग उस मुद्दे पर अपने कार्यकर्ता का मनोबल तोड़ते हुए उससे किनारा करने की नियत से उसकी बात पहले तो उपेक्षा पूर्ण ढंग से सुनते हैं फिर उसी की बातों से कुछ उसकी गलतियाँ  ढूँढ़ कर उसे लज्जित तथा जलील करते हैं।  पहले तो उसे धमकाते हैं फिर कानून व्यवस्था का भय दिखाकर इसमें उसका कैसे कैसे नुकसान हो सकता है और उसे  कितनी कठोर सजा हो सकती है ये सब बढ़ा चढ़ा कर समझाते डरवाते हैं,और पार्टी की प्रतिष्ठा न गिरने पाए यह भी उसे बताते हैं। कुछ ले देकर काम निकालने की सलाह भी देते हैं कि इससे पार्टी की प्रतिष्ठा भी बची रहेगी और काम भी हो जाएगा।जब वह कार्यकर्ता ले देकर काम करने को तैयार हो जाता है,तब उसकी सेटिंग करवाने के नाम पर वही धर्म शास्त्री नेता कमीशन न लेकर  किसी और के बहाने से उससे सहयोग राशि रूपी  धन ले लेते हैं और उसका काम करवा देते हैं इस प्रकार से जब काम हो जाता है तो उसके ऊपर अहसान करने लगते हैं किन्तु वह कार्यकर्ता सब कुछ समझ चुका होता है। चूँकि जिन कार्यकर्ताओं के परिश्रम और पसीने से चुनाव जीतने वाले अधिकांश पार्षद से लेकर सांसद तक;मंत्रियों का मुझे पता नहीं है बाकी अपना एवं अपने नाते रिश्तेदारों के अलावा जो पैसा दे उसका काम कराने में रूचि ले रहे होते हैं या जिसके लिए पार्टी आला कमान जिसके लिए डंडा दे उसका काम होता है।इसके अलावा विरोधी पार्टियों के लोगों का काम होता है केवल इस लालच में कि जब हम हार जाएँगे तब ये लोग तो काम आएँगे ही अपने एवं अपने नाते रिश्तेदारों के काम तो होते रहेंगे ही। इसप्रकार सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित होकर चलते हैं अपनी धर्मशास्त्री पार्टी के नेता!कई लोगों की तो कोशिश यही होती है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे चरित्रवान परिश्रमी कार्य कर्ताओं को आगे बढ़ने ही न दिया जाए अन्यथा उनकी शिक्षा एवं ईमानदारी अपनी कार्यशैली में बाधक बनेगी !और यदि वो आगे बढ़ेंगे तो अपने लिए घातक होंगें इसलिए अपने विरोधी एवं पार्टी के हितैषी कार्यकर्ताओं को अक्सर यह कहकर संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है कि वो तो अहंकारी हैं या कुछ अन्य सतहे आरोप लगा दिए जाते हैं ।अतः उस कार्यकर्ता को भी बेशक बाद में पार्टी से निकाल ही दिया जाए किन्तु उसकी अपनी प्रिय पार्टी कम से कम अंतिम बार ही सही बात तो उसकी भी सुनने की कोई व्यवस्था करे ! उसे उन्हीं की कृपा का मोहताज बनाकर न छोड़ा जाए जो उस पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के नाम पर पार्टी से बाहर करना चाह रहे हैं इसलिए कुछ तो ऐसा हो कि जिससे पार्टी का कोई अनुशासित सिपाही किसी सीनियर के द्वारा कही गई पार्टीहित से अलग उसके निजी स्वार्थों की पूर्ति सम्बन्धी बात मानने के लिए सम्पूर्ण रूप से बाध्य न रहे !

     लोग कई बार सस्ती मिलने वाली विवादित जमीनें खरीद कर फिर उन्हें विवाद मुक्त बनाने के लिए अपने आश्रित कार्यकर्ताओं का उपयोग करते हैं ऐसा देखा जाता है जिससे न पार्टी का कोई हित  होता है और न उस कार्यकर्ता का कोई लालच किन्तु यदि वो उनकी बात न माने तो क़तर दिए जाते हैं उसके पर आखिर किससे कहे वो अपने मन की व्यथा ?

     कई बार तो चुनाव जिताने के लिए जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं ने उन विरोधियों से लड़ाई मोल ली थी और अपने प्रत्याशी के जीत जाने के बाद भी उन विरोधियों के द्वारा वो पार्टी कार्यकर्ता पिट रहे होते हैं किन्तु अपना विजयी प्रत्याशी या तो मौन होता है, या अपने क्षेत्र के विकास करने की बातें करने लगता है या अपनी व्यस्तता बताने लगता है। कई बार तो विरोधियों के द्वारा पिटे अपने कार्यकर्ता अपने विजयी प्रत्याशी के पास सिफारिश के लिए आते हैं तो वो अपने चुनावी विरोधियों के साथ अन्दर बैठकर न केवल चाय नास्ता कर रहे होते हैं अपितु अपने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा या किसी बहाने से उनसे मिलने को मना करके और  अपने विरोधियों के समर्थन में सिफारिशी फोन तक कर रहे होते हैं।
      वो निराश  हताश कार्यकर्त्ता अपने गेहूँ धान बेच बेचकर या ब्याज पर पैसे ले लेकर करा रहे होते हैं अपनी जमानत!ऐसा कार्य कर्ता  सभी प्रकार से बेइज्जत होने के बाद मौन होकर सुनता है पड़ोसियों के ब्यंग! घर वालों के आवारागर्दी के आरोप!चूँकि समाज में रहना सभी के साथ साथ होता है इसलिए बात बात में विरोधियों के द्वारा किया गया अपमान  सहना पड़ता है, अपने विजयी प्रत्याशी की गाड़ियों में बैठकर विरोधियों को जाते देखकर असह्य पीड़ा होती है जो सहने को मजबूर होता है कभी समर्पित रह चुका पार्टी कार्यकर्ता!अब वह अपनी छतों पर लगे हुए अपनी प्रिय पार्टी के झंडे उतार देता है और फाड़ देता है अपनी प्रिय पार्टी के बैनर पोस्टर!और तमाम प्रकार से बेईज्जत होकर भारी मन से अपनी ही  पार्टी से किनारा करने लगता है और करने लगता है अपने ही प्रिय नेताओं की बुराई!उधर हनीमून पीरियड खतम होते ही अब अपने विजयी प्रत्याशी की ओर से बुलावा भेजा जाता है मिलने के लिए!दुर्भाग्य से  तब तक उस  कार्यकर्ता का मन इतना मर चुका होता है कि वो चाह कर भी मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। इस बीच उसे विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की याद आती है कि काश!मैं भी वहाँ या उस पार्टी में होता तो मेरी भी इतनी बेइज्जती नहीं होती ! और मुशीबत में पार्टी हमारे भी साथ खड़ी होती। इस प्रकार वह पुरानी पार्टी छोड़ कर किसी  दूसरी पार्टी में सम्मिलित हो जाता है। ऐसी मठाधीशी के कारण खदेड़ दी जाती है कई प्रदेशों  से भारतीय जनता पार्टी !इसलिए अबकी बार के विश्वास  को बरकरार रखने का सामूहिक प्रयास हो तो अच्छा है !
       अक्सर देखा जाता है कि जिस प्रत्याशी की विजय हुई होती है वो दंद फंद घूस घोटाले करके पैसे कमा लेना चाहता है इमेज बिगड़ेगी तो अधिक से अधिक अगले चुनाव में पार्टी टिकट नहीं देगी तो पैसे के बलपर किसी और जिताऊ पार्टी से टिकट खरीद लाएँगे,
किन्तु जो कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के लिए समर्पित है उसके खून में भाजपा के आदर्श सिद्धांत हैं उसके हृदय पर भाजपा अंकित है ऐसे कर्तव्यनिष्ठ एवं पार्टी के प्रति दृढ़ संकल्पी कार्यकर्ता पार्टी की हार्दिक धरोहर हैं संपत्ति हैं जिन्हें ठेस लगने पर संगठन तिल तिल करके टूटने लगता है पता भले चुनावी परिणाम आने के बाद  लगता हो ! इसलिए ऐसे भाजपा साधकों की साधना का स्थाई सम्मान हो जिनके जाने से पार्टी का स्थाई नुकसान होता है । ऐसे  विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को अपनाने एवं उनकी शिकायतें दूर करने के लिए पार्टी को सर्व सुलभ हेल्प लाइन नंबर जारी करना चाहिए जिससे  पार्टी का आम कार्यकर्ता अपनी पीड़ा अपने सम्मानित शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचा सके। जिससे कि हर कार्यकर्ता की क्षमता का देश हित एवं पार्टी हित में उपयोग किया जा सके। और अटल जी,अडवाणी जी या नरेन्द्र मोदी जी ही क्यों हर कार्यकर्ता अपने प्रति समाज का विश्वास जीत सकने में सफल हो सके।
       इस प्रकार से उसी कोल्ड स्टोरेज में बैठे  एक दूसरे किसान महोदय ने  हमारा परिचय पूछा और कहने लगे कि भैया !भाजपा को समझाओ कि वो अपने कार्यकर्ताओं को अपनी विश्वसनीयता एवं अपने बलबूते पर चुनाव लड़ने को बाध्य करें जिससे वो हमेशा ही कार्यकर्ताओं एवं समाज के साथ अच्छा  व्यवहार करेंगे अन्यथा वो केवल चुनावों के समय सक्रिय होते हैं बाक़ी तो उनकी ही नहीं सुनी जाती है तो वो बेचारे जनता की क्या सुनें !उनके कार्यकर्ताओं को एक गलत फहमी हमेंशा रहती है कि चुनावों के समय पार्टी कोई अच्छा चेहरा एवं दमदार धार्मिक या ऐतिहासिक मुद्दा ढूँढ़ कर लाएगी जिसे देखसुन कर  लोग अपने आपसे बोट देंगे या फिर चुनावों के समय कोई हैवीवेट प्रत्याशी उतार देगी इस भ्रम में वो उतनी तैयारी वास्तव में कर नहीं पा जितने की उसको आवश्यकता होती है। 

      इसी प्रकार एक और बुजुर्ग बैठे थे उन्होंने कहा कि  मैं बात बताता हूँ साफ कि भाजपा चुनावों के समय किसी ऐतिहासिक, धार्मिक  या   धार्मिक महापुरुष के व्यक्तित्व की बलि देकर चुनाव जीतेगी हर चुनाव  में उसे कोई न कोई बलि पशु  मिल ही जाता है किन्तु जनता अब सब समझने लगी है।
     ऐसे ही देश में एक और बड़ी पार्टी है उसके बड़े बूढ़े कार्यकर्ता लोग भी अपना ज्ञान,गरिमा,शिक्षा ,उम्र,अनुभव आदि सारी मर्यादा भूल कर जिसकी ओर दंडवत लेटने,प्रणाम करने या जिसे पूजने लगते हैं वह उनका अपना बलिपशु होता है जब पार्टी की छबि घोटालों के कारण बहुत खराब हो जाती है तब इसी  बलि के बल पर उन्हें चुनाव जीतने  में कोई खास दिक्कत नहीं उठानी पड़ती है। इस प्रकार से उस पार्टी के कार्य कर्ता बेझिझक होकर  सत्ता  सुख भोगते रहते हैं । उन्होंने अपनी विजय का यही मूलमंत्र मान रखा  है।     

       इस प्रकार उन लोगों  की बातें सुनकर इसमें हमें   भी न केवल कुछ सच्चाई लगी अपितु लगा कि यदि वास्तव में ऐसा ही है तो भाजपा को भी चाहिए कि वो अपने कार्यकर्ताओं  के समर्पण को उनकी मजबूरी न समझे अपितु उनका सम्मान करे।
      
     
 

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