यह कैसी भेदभाव पूर्ण पत्रकारिता और विज्ञापन
यदि
आशाराम ने अपने सारस्वत मंत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसा बेतुका बयान
विज्ञापन के लिए दिया है तो इसमें मीडिया को क्या और क्यों परेशानी हो रही है? आखिर विज्ञापनों में सच कहाँ बोला जाता है । घटना अच्छी बुरी जो भी हो चतुर व्यापारी तो अपने फायदे की बात ही पकड़ता है। जब उनका व्यापार ही धर्म है तो विज्ञापन भी करेंगे ही !
उसमें
उन्होंने कहा है कि यदि उस लड़की ने बाबाजी से सारस्वत मंत्र की दीक्षा ली
होती तो वह उन अपराधियों को भाई बना सकती थी,और इस दुर्दशा से बच जाती।यह
सुनकर सारी मीडिया के लोगों ने टी.वी.चैनलों पर चीखना चिल्लाना आखिर क्यों
शुरू कर दिया है ?आखिर विज्ञापन के नाम पर आप भी तो यही करते हैं। बाबाओं
को बरबाद करने में मीडिया का कम रोल नहीं है।उन्हें झूठ बोलना तो आपने ही
सिखाया है।पैसे कमवा कर आश्रमों को होटल बनवाया आपने! आप ही तो उनसे पैसे
ले लेकर झूठ मूठ में प्रशंसा के पुल बॉंधते रहे। जिसने कभी किसी मंत्र का
एक माला भी जप न किया हो उसे हिमालय का तपस्वी तक बता देते हैं आप! जिसने
कभी किसी संस्कृत विश्व विद्यालय या संस्कृत विद्यालय का मुख ही न देखा हो
तथा ज्योतिष विषय की कभी कोई परीक्षा ही न पास की हो या परीक्षा में बैठा
ही न हो।ऐसे लोग जब टी.वी.चैनलों पर पहुँचते हैं तो उनका परिचय दिया जा
रहा होता है कि देश के जाने माने ज्योतिषाचार्य!इसका सीधा साधा अर्थ होता
है कि इसने किसी संस्कृत विश्व विद्यालय या संस्कृत विद्यालय से ज्योतिष
विषय लेकर एम.ए.परीक्षा पास की है। यह कितना बड़ा झूठ है जो मीडिया के
द्वारा बोला जाता है जिसका जिम्मेदार मीडिया और केवल मीडिया है।जिसने कभी
धार्मिक ग्रंथों का मुख न देखा हो उसे वेद शास्त्रों का ज्ञाता बताते हैं
आप! बड़े बड़े ब्यापारियों को ज्योतिषी बनाकर उतार
दिया आप ने,और शास्त्रीय विद्वानों,ज्योतिषियों को दर दर भटकने पर अपमानित
होने पर आपने मजबूर किया है।आज भी टी.वी.चैनलों पर इंसानों जैसे शरीर धारण
करके पधारने वाले या शास्त्रीय घोषणाएँ करने वाले
लोगों से कभी आपने यह जानने की कोशिश की कि संबंधित बिषय में आपने पढ़ा आखिर
क्या है?जिस बिषय में आप जानकारी देने आए हैं उस बिषय में आप की अपनी
जानकारी आखिर कितनी है? और यदि नहीं तो ये भ्रम,पाखंड या अंध विश्वास
फैलाने आप यहॉं आखिर क्यों चले आए? जब प्राचीन बिषयों के पढ़ने पढ़ाने के लिए
सरकार ने संस्कृत विश्व विद्यालयों की व्यवस्था की है तो कभी किसी
शास्त्रीय उद्घोषक की संबंधित बिषय की डिग्रियॉं आपने चेक कीं ?उससे उसकी उस बिशय में शैक्षणिक योग्यता जानने की कोशिश की आपने?यदि नहीं तो क्यों?
पुराने जमाने में राजा महाराजा लोग विभिन्न बिषयों पर भविष्य वाणियों
के माध्यम से ज्योतिषियों की परीक्षा लिया करते थे जिसमें झूठे
शास्त्रियों के लिए दंड विधान भी था। आज वो परंपरा लुप्त हो गयी है तो
सरकार ने उसकी जगह ही संस्कृत विश्व विद्यालयों या संस्कृत विद्यालयों के
द्वारा परीक्षा और डिग्री की व्यवस्था की है किंतु उसका पालन न तो लोग कर
रहे हैं न मीडिया कर रहा है और न ही कानून ही ऐसे फर्जी ज्योतिषियों पर कोई
शिकंजा ही कस रहा है।
आज ऐसे नियंत्रण संबंधी कहीं कोई प्रयास नहीं दिखाई पड़ रहे हैं आज
डिग्रियों की व्यवस्था है तो वो चेक की जानी चाहिए किंतु ऐसा नहीं हो पाता
है।क्या इतना भी दायित्व नहीं बनता था आपका?बात बात में बाल में खाल
निकालने वाले मीडिया पुरुष धार्मिक विषयों में
अनजान बनने का दिखावा आखिर क्यों करते हैं?फर्जी शंकराचार्यों का मुद्दा
स्वरूपानंद जी महाराज ने उठाया किंतु कितना साथ मिला मीडिया का?
हॉं, मीडिया ने माया कलेंडर की दुनियॉं के विनाश होने संबंधी भविष्यवाणी को प्रचारित करके समाज के मन में मृत्यु भय
भरने के प्रयास में जरूर पूरी ताकत झोंक दी थी।देखा जाए तो ऐसे सभी प्रकार
के अंध विश्वासों के लिए केवल मीडिया को ही जिम्मेदार माना जा सकता
है।
पत्रकारिता के काम से जुडे़ लोगों का नजरिया आज इतना अधिक बदल चुका है कि दिनों दिन उनसे भी विश्वास उठने सा लगा
है। कहॉं गायब होते जा रहे हैं अब पत्रकारिता के महानमूल्य?छोटी से छोटी
बात को बढ़ा चढा़ कर पेश करना और बड़ी से बड़ी बात को नजरंदाज कर देना अक्सर
मीडिया पर संदेह करने के लिए काफी होता जा रहा है। जो मुद्दा इन्हें सूट कर
जाए उस पर दिन दिन भर चर्चा बहस करना कराना उसकी ही खबरें दिखाना बस वही
वो रहता है। अर्जुन की आँख की तरह सारा ध्यान चिड़िया की आँख पर ही होता है
किंतु इन लोगों की चिड़िया की आँख भी पैसों,परिस्थितियों और निजी हित अनहित के
आधार पर बदलती रहती है।आज पत्रकारिता में भी निजी स्वार्थ सर्वोपरि माना
जाने लगा है। इनका ध्यान घटनाओं की गंभीरता से भटकने लगा है। पत्रकारिता के
धर्म की परवाह किसे है? सबका अपना अपना निजी धर्म है।
योग से लेकर आयुर्वेद, तंत्र, मंत्र, सिद्धि, साधना, ज्योतिष, वास्तु आदि झूठ सॉंच भविष्य भाषण,
नाच गाना, कथा, प्रवचन,निर्मल बाबा गिरी,साधु संत गिरी,मंडलेश्वर
महामंडलेश्वर गुरु जगद्गुरु आदि क्षेत्रों में डालडा को देशी घी बनाने में
मीडिया का बहुत बड़ा रोल रहा है। फर्जी डिग्रीवाले ज्योतिषी लोग मीडिया की
कृपा से ही तो छाए हुए हैं काशी हिंदू विश्व विद्यालय आदि देश के बड़े
शिक्षण संस्थानों से सविधि पाठ्यक्रम पूर्वक वर्षों तक परिश्रम करके इन
बिषयों में डिग्री प्राप्त करने वाले ज्योतिष विद्वान केवल इस लिए मारे
फिर रहे हैं कि उनके पास मीडिया को देने के लिए पैसे नहीं होते हैं।यदि उन
विद्वानों का भी प्रचार प्रसार किया जाए तो
शास्त्रीय विज्ञान का प्रचार प्रसार होगा।अंध विश्वास फैलाने वाले फर्जी
डिग्रीधारी लोगों को समाज पहिचान चुका होगा तो वह स्वयं इनके चंगुल में न
फॅंसकर शास्त्रीय विद्वानों का लाभ लेगा।वहॉं लाभ भी होगा पैसे भी कम
लगेंगे।अंधविश्वास अपने आप समाप्त हो जाएगा।
इसीप्रकार धर्म के किसी
क्षेत्र में किसी बाबा को अपनी कितनी भी कैसी भी प्रशंसा करवानी हो वो
सब पैसे के बल पर की या कराई जा सकती है।किसी बाबा को जब चाहें तो चढ़ा दें
जब चाहें गिरा दें आजकल कुछ मीडिया के लोग भी
नेताओं की तरह अपने को देश एवं समाज का स्वयंभू मालिक समझने लगे हैं।अच्छी
से अच्छी बात की आलोचना और बुरी से बुरी बात की प्रशंसा सुनते सुनते समाज
तंग होता जा रहा है।इसमें भी विशेष बात यह है कि राजनैतिक क्षे़त्र से
लेकर सामाजिक आदि सभी क्षेत्रों में इन्हीं मीडिया के महा पुरुषों की बात
मानी जाती है।राजनेता भी इन्हीं की हॉं में हॉं मिलाते हैं। जो ये दिखाते
हैं वो वो देखते हैं जो ये समझाते हैं वो वो समझते हैं जो ये बोलवाते हैं
वो वो बोलते हैं।नेताओं और पत्रकारों के बीच आपसी समझ बहुत अच्छी होती है।
पत्रकार
जिसकी निंदा करना चाहते हैं पहले स्वयं चीखते चिल्लाते हैं फिर उस मुद्दे
पर निंदा करने वाले किसी अच्छे नेता से मिलकर उसके मुख में माईक लगा
देंगे।बस खबरें ही खबरें बरसने लगती हैं।जिन्हें सुनकर गली मोहल्ले के नेता
लोग धरना, प्रदर्शन, रैली, जुलूस,रोडजाम,रेलजाम,बंद, महाबंद, भारत बंद आदि
सब कुछ करने लगते हैं।समाज सुरक्षा के नाम पर सरकारी फंड भोगी कुछ
स्वयंसेवी संगठन भी ऐसी भीड़ भाड़ में अपने भी एक आध छोटे मोटे जुलूस उलूस
निकाल कर फोटो ओटो खींच कर रख लेते हैं,जो आगे पीछे फंड वंड पास कराने में
काम दिया करती हैं।यहॉं सबसे विशेष बात यह होती है कि हर आदमी एक दूसरे
को देखकर आगे बढ़ रहा होता है।इसमें प्रायः किसी की सोच सम्मिलित नहीं होती
है।ऐसे आंदोलन मीडिया जब तक चलाना चाहे तब तक चलाता रहता है।
प्रायः बलात्कार तो बहुत बार सुनाई देते
हैं कई बार तो छोटी छोटी बच्चियों के साथ बडे़ बड़े लोग संसर्गरत पकड़े या
पाए जा चुके हैं।कई केसों में तो बलात्कार के बाद हत्या भी कर दी जाती
है।कई बार तो ऐसा भी खबरों में ही सुनने में आया कि बलात्कारी ने दुष्कर्म
के बाद न केवल हत्या की अपितु उसका मांस भी पका कर खाया था।इतने सब के बाद
भी मीडिया में दो चार लाइनों की ही खबर बन पाती रही।यहॉं तक कि अभी हाल में
ही कई बलात्कार के कांड हुए कुछ में तो मर्डर की भी खबरें पाई गईं किंतु
सभी खबरें संक्षेप में ही रहीं ।
हाँ,
दामिनी बलात्कार केस पर मीडियापूरी तरह डटा रहा, यह चिंतन का विषय है कि
अबकी पहली बार ईमानदारी पूर्वक मीडिया ने इस बिषय में इतना जन जागरण किया
है इसके कारण चाहें जो रहे हों किंतु मीडिया का रोल इसके पहले कभी इन
बिषयों में इतना प्रशंसनीय नहीं रहा।आखिर अपराध तो अपराध होता है वह हो
किसी के भी साथ! जितने भी अपराध, बलात्कार और भ्रष्टाचार हुए या होते हैं
या आगे होंगे उनकी खबरें दिखाने या उन पर कार्यवाही में किसी प्रकार का भेद
भाव नहीं किया जाना चाहिए।
इसी प्रकार मर्डर बहुत हुए किंतु आरुषी मर्डरकेस में ईमानदारी पूर्वक मीडिया ने जन जागरण किया था।
बोरबेल में कई बच्चे गिरे किंतु प्रिंस 23 जुलाई 2006: को कुरुक्षेत्र का 5
वर्षीय प्रिंस अपने घर के पास खुले एक 60 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया। 40
घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उसे निकाला जा सका।उसके बोरवेल में
गिरने पर मीडियापूरी तरह वहीं डटा रहा, यह चिंतन का विषय है।अन्ना हजारे
के पहले अनशन में मीडिया ने ईमानदारी पूर्वक जन जागरण किया था तो सरकार को झुकना भी पड़ा था।अबकी ऐसा नहीं हुआ तो असर भी नहीं पड़ा ।
मेरा मीडिया से इन सभी विषयों में मात्र इतना निवेदन है कि निष्पक्ष
भावना से समय समय पर राष्ट्रहित में सरकार को प्रेरित करना एवं जन जागरण
करना ही चाहिए धर्म आदि बिषयों में भी सरकार एवं समाज के सामने सही तस्वीर
प्रस्तुत करने का प्रयास होना ही चाहिए। जब
तक ऐसा नहीं हो पाता तब तक ऐसे किसी भी आशा राम की किसी भी बात बुरा क्यों
मानना ?विज्ञापन करने में जितना झूठ बोलने का किसी और को अधिकार है उतना
उन्हें भी है ।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि किसी को
केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय प्राचीन विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी लेना चाह रहे हों।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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