दोषियों को कठोर सजा हो एवं ऐसे अक्षम्य अपराध रोकने के गंभीर प्रयास किए जाएँ !
राजधानी दिल्ली के बस बलात्कार कांड की दरिंदगी की निंदा
जितनी भी की जाए कम है और अपराधियों पर कार्यवाही भी कठोर से कठोर हो ऐसी
पूरे देश वा समाज की ईच्छा है उस लड़की के साथ जितनी दरिंदगी की गई वह सोच कर आज भी मन सिहर
उठता है।सारा देश उसके साथ खड़ा हुआ किंतु नियति के कराल काल से उसे बचाया
नहीं जा सका।मेरा यहॉं एक और निवेदन मीडिया से भी है कि ऐसे सभी प्रकार के
विशेष पीड़ा प्रद मामलों में बिना भेद भाव के आवाज उठाई जानी चाहिए,इस जन
जागरण की लव को भी बुझने नहीं दिया जाना चाहिए।
हाँ,दामिनी बलात्कार केश पर मीडियापूरी तरह डटा रहा, यह चिंतन का विषय है कि अबकी पहली बार ईमानदारी पूर्वक मीडिया ने इस विषय में इतना जन जागरण
किया है इसके कारण चाहें जो रहे हों किंतु मीडिया का रोल
इसके पहले कभी इन विषयों में इतना प्रशंसनीय नहीं रहा।आखिर अपराध तो अपराध
होता है वह हो किसी के भी साथ! जितने भी अपराध, बलात्कार और भ्रष्टाचार
हुए या होते हैं या आगे होंगे उनकी खबरें दिखाने या उन पर कार्यवाही में
किसी प्रकार का भेद भाव आगे भी नहीं किया जाना चाहिए।
खबरों में सुनने को मिला की बीरता पुरस्कार दिए जाने पर बिचार हो रहा है
किंतु किसे और किस बात के लिए? आखिर उन दोनों के साथ एक अत्यंत दुखद
दुर्घटना घटी अपराधियों ने बड़ी निर्ममता से उन्हें चोट पहुँचाने का हर
संभव प्रयास किया।उचित तो यह है कि प्रयास ऐसे किए जाएँ जिससे अब किसी और
के साथ ऐसी दुर्घटना न घटने दी जाए। कम से कम इसे एक व्रत,
चुनौती या संकल्प के
रूप में स्वीकार करना चाहिए।रही बात बीरता पुरस्कार की तो उस बेचारी के
सामने उन अपराधियों ने सहने के अलावा विकल्प ही क्या छोड़ा था?ईश्वर प्रदत्त
अवशेष स्वॉंसें तो लेनी ही थीं जिसे जो मन आवे वो कहे किंतु वहॉं जो बीती
सो सहा अपने बचाव में जो कुछ कर सकी वो किया यहॉ वीरता किस बात की ? यह भी
ध्यान रखना है कि कहीं पुरस्कार आदि के द्वारा जनता का ध्यान भटकने न पाए। रही उस लड़के को पुरस्कार देने की बात उसका पिच्चर
देखकर रात में आना,सूनी बस में बैठना,इतना सब होने पर बचने या बचाने के शोर मचाना आदि कुछ विकल्प संभवतः उसके पास थे किन्तु अपने घर वालों के इस भय से कि पिच्चर देखकर
इतनी रात में किसी लड़की के साथ कहॉं जा रहे थे? उसने इसीलिए अपने घर वालों को फोन नहीं
किया। मैंने उसके किसी इंटरब्यू में उसकी यह बात सुनी, यदि यह सही है तो ऐसी परिस्थिति में भी
यदि उसे वीरता पुरस्कार देना है तो कोई बात नहीं है किंतु अपराध रोकने के
लिए कठोर कानून तो बनने ही चाहिए!एक और विनम्र निवेदन है कि बाद में इलाज
के लिए सिंगापुर भेजने का अर्थ है कि शायद वहॉं इलाज की व्यवस्था यहाँ की अपेक्षा अधिक
अच्छी होगी यदि ऐसा था तो वहॉं पहले भेजा जा सकता था।वैसे भी अपने सक्षम
भारत में उस तरह के इलाज की व्यवस्था कर पाना क्यों संभव नहीं हैं जैसी
सिंगापुर में या विदेशों में या अन्य जगहों पर है, क्योंकि इस हिसाब से तो आम
आदमी बिना उचित इलाज के ही मर जाएगा! आखिर ऐसी बीमारियों के इलाज के लिए देश का आम
आदमी कहॉं जाए?नेता लोग तो अक्सर विदेशों में ही इलाज कराने जाते हैं आम आदमी
क्या करे?
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