ज्योतिष विज्ञान है इसको प्रश्नोंनोत्तरों से समझें 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी संस्थापकःराजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान                 
                                    तथा
दुर्गापूजाप्रचारपरिवार एवं ज्योतिष जनजागरण मंच 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             
 
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी   ज्योतिषाचार्य(एम.ए.ज्योतिष)
 संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी   
   एम.ए.      हिन्दी    
  कानपुर   विश्व  विद्यालय पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता  
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी 
 पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)   
 
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू.  वाराणसी  
  प्रश्न- ज्योतिष तंत्र मंत्र  अंधविश्वास है क्या ? 
 उत्तर - यदि ज्योतिष तंत्र मंत्र  अंधविश्वास है तो संस्कृत के सरकारी  विश्व  
विद्यालयों में पाठ्यक्रम का परिपालन करते हुए ज्योतिष  विषय में 
एम.ए. पी.एच.डी. आदि  डिग्रियाँ क्यों कराई जा रही हैं ?यदि ये सरकार या मीडिया वास्तव में इन शास्त्रीय विषयों को अंधविश्वास
 मानता है तो इन विषयों की पढाई के लिए संचालित विश्वविद्यालयों में खर्च 
की जा रही बड़ी धनराशि एवं वहाँ पढ़ने वाले बच्चों  के भविष्य की सुरक्षा 
के लिए ऐसे विश्व  
विद्यालयों को ही बंद कर दिया जाना चाहिएअन्यथा इसे विज्ञान घोषित किया जाय
 और इस विद्या एवं इससे जुड़े विद्वानों का सम्मान हो साथ ही ज्योतिष आदि 
की फर्जी डिग्री वालों पर दंडात्मक कार्यवाही की जाए विज्ञापन एजेंसियों या
 मीडिया पर इस बात के लिए दबाव बनाया जाए कि ज्योतिष आदि विषयों में 
फर्जी डिग्री वालों का प्रचार प्रसार किया जाए। 
प्रश्न- लाल किताब  की गणित और इसके उपाय कितने विश्वास करने लायक हैं ?
उत्तर-ज्योतिष की जिन किताबों का ज्योतिष के विश्व विद्यालयीय स्लेबस में कहीं  कोई उल्लेख नहीं है ऐसी 
कोई किताब है भी या नहीं  किन्तु कुछ लोगों ने कलरों पर किताबें लिखी या लिखाई हैं जैसे लाल किताब ऐसे  ही लाल ,नीली ,पीली ,हरी ,गुलाबी आदि हर कलर में किताबें लोगों ने अपने अपने मन से एक 
एक एक किताब
 लिखकर रख ली है ।इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि कुछ पढ़ना लिखना नहीं पड़ता है 
ज्योतिष के नाम पर जो मन आवे सो बोलो या बको जब प्रमाण देने की बात आवे तो तथाकथित अपनी 
अपनी किताबों का नाम बता दो बचाव हो  जाएगा।
 प्रश्न- उपायों के नाम पर कुत्ते बिल्लियों को खिलाना पिलाना पूजना सिखाया जाता है कितना उचित है? 
उत्तर- उपायों के नाम पर 
आधारहीन मनगढ़न्त बातों की बकवास होती है। कुत्ते, चींटी, चमगादड़, उल्लू, 
बटेर, मुर्गी, मछली, हल्दी, सिन्दूर, नींबू, मिर्ची, काले उड़द, तिल, कोयला,
 घास गोबर, नग, नगीने, यन्त्र-तन्त्र-ताबीजों आदि को तथाकथित लोग खाना, 
पहनना, ओढ़ना, बिछाना, जेब में रखने आदि बातों के लिए प्रेरित किया करते 
हैं। ऐसी थोथी बातों का शास्त्र में न तो कहीं आधार है और न ही प्रमाण? 
मानने वाले सोचते हैं कि आखिर इन बातों को बताने वाले का स्वार्थ क्या है 
और कर लेने में हमारा नुकसान ही क्या है?
    
क्या आपने कभी विचार किया कि आपके पूर्व जन्म के कर्म ही भाग्य का रूप लेते
 हैं। वही कर्म अच्छे होते हैं तो सौभाग्य और बुरे होते हैं तो दुर्भाग्य 
के रूप में इस जन्म में भोगने पड़ते हैं। पूर्व जन्म के अच्छे बुरे कर्मों 
की सूचना देने का आधार ग्रह और ज्योतिष  है। जिस ग्रह से सम्बन्धित अपराध 
हम पिछले जन्म करते हैं इस जन्म में वही ग्रह प्रतिकूल हो जाता है। इसी 
प्रकार अच्छा करने से ग्रह अनुकूल होते हैं। बुरे फल की सूचना देने वाले 
ग्रहों को शान्त  करने के लिए वेदों में मन्त्र लिखे होते हैं जिन्हें जपने
 से संकट का वेग कम हो जाता है किन्तु नष्ट नहीं होता अपितु लम्बे समय तक 
चलता है। क्योंकि गीता में लिखा है ‘‘अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’’ अपने किए हुए शुभाशुभ कर्म अवश्य  भोगने पड़ते हैं।
अब आप स्वयं सोचिए कौवे-कुत्ते, चींटी-चमगादड़  गोबर कोयला, आदि आपका भाग्य कैसे सँभाल सकते हैं?
प्रश्न-ग्रहों को शांत करने में दान का कितना महत्त्व होता है ?   
उत्तर- दान की बात तो शास्त्र सम्मत है। दान पाने वाले का लाभ होता है 
जिसको लाभ होता है वह आशीर्वाद देता है। उससे पुण्य का निर्माण होता है। जो
 आड़े-तिरछे समय में रक्षा कर लेता है। कई बार एक गाड़ी का एक्सीडेंट होता 
है। कुछ लोग बच जाते हैं कुछ मर जाते हैं। यह पुण्यों का ही खेल है । 
क्योंकि जहाँ आपका वश  नहीं चलता वहाँ भी पुण्यों की पहुँच होती है।कई बार 
लोग कोढियों या विकलांगों को जो धन देते हैं वह दान न होकर सहयोग होता है।दान हमेशा अपने से श्रेष्ठ एवं सुखी को दिया जाता है।
प्रश्न- नग-नगीनों को पहनने से ग्रह शांत हो जाते हैं क्या ?
उत्तर-जहाँ तक बात नग-नगीनों की है। यद्यपि ज्योतिष  के ग्रन्थों में ग्रहों की 
मणियों का वर्णन मिलता है, किन्तु इन्हें धारण करने से भाग्य लाभ में क्या 
सहयोग मिलता है?यह स्पष्ट नहीं है। वेद में इस विषय 
में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि आयुर्वेद स्वीकार करता 
है कि जिस रोग के लिए जो औषधि आयुर्वेद में कही गई है उसे पहनने से,
 उसे दवा के रूप में खाने से एवं उसकी भस्मादि का हवन करने से रोगों से 
मुक्ति मिलती है।कम से कम भाग्य की दृष्टि से तो विशेष प्रभाव 
नहीं दीख पड़ता है। प्रश्न -मन्त्रों के जप का कितना असर होता है?  
 
उत्तर-मन्त्र जप तथा देवता की आराधना का 
अत्यन्त फल होता है। यह सर्व विदित एवं स्पष्ट है। वैदिक विधा में तो 
ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनका वेदमंत्र जपना ही एकमात्र विकल्प है और इसका ही असर सबसे अधिक होता है। 
प्रश्न -ग्रहों को शान्त करने का सबसे उत्तम उपाय जब 
वेदमंत्र जपना ही है तो कुछ लोग इधर उधर के उपाय क्यों बताते हैं? 
 
उत्तर-कम्प्यूटर से बनाई गई कुण्डलियाँ उतनी सही नहीं होती हैं फिर भी जिसने कुंडली बनाना नहीं
 सीखा इसलिए कम्प्यूटर रख लिया कुंडली बनाने का मजाक करने लगा।इसी प्रकार कोई कितना भी पढ़ा हो किन्तु वेद मन्त्र बिना गुरू से पढ़े आते नहीं हैं।अब जिसे वेद मन्त्र पढ़ने के लिए समय एवं साधन ही न मिले हों तो वो कौओं कुत्तों साग सब्जियों के उपाय न बतावें तो बेचारे क्या करें?कुछ लोग मानते हैं कि जो पिछले जन्म में जिस योनि में था उन्हीं का पूजन करना सिखाता है जैसे पिछले जन्म में  कुत्ते 
की योनि में पैदा हुआ जीव इस जन्म में अपने कर्म भोग वश कुत्ते  पूजना अर्थात इनके उपाय सिखाते
 हैं।इसीप्रकार हर व्यक्ति अपने अपने पुरखों की पूजा करना सिखाता है किन्तु
 जो पिछले जन्म में देवता थे वे देवताओं की पूजा करना एवं वेद मंत्र जपना 
सिखाते हैं जो सही है ।ज्ञानहीन लोग बड़े भाग्य से मिले सुर दुर्लभ 
मानव जीवन का भाग्य कौआ, कुत्ता, चीटी-चमगादड़ों में  ढूँढ़ना सिखा रहे हैं।
प्रश्न-जो लोग बिना वेद मन्त्रों के जप के ही अन्य टटका टोने वाले उपाय बताते हैं वे क्या गलत होते हैं? उत्तर-समाज में एक बड़ा वर्ग है जिसका कोई सदाचरण 
नहीं मिलता, यह वर्ग अध्ययन, साधना आदि योग्यता से विहीन है। इनमें केवल 
नकल करने की कला होती है। ऐसे कलाकार ज्योतिष वेत्ताओं की तरह अपना रंग रूप
 सजा कर उन्हीं की देखी सुनी कही भाषा तथा वेष भूषा की नकल करने लगे हैं। 
ऐसे लोगों ने न कुछ पढ़ा है न किसी के शिष्य हैं न ज्योतिष की कोई किताब 
देखी है। उसका भी कारण है कि ज्योतिष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं वो 
इन्हें आती नहीं है। ये लोग बात-बात में कहते हैं कि मैंने ज्योतिष में 
रिसर्च की है। जो पढ़ा ही नहीं वो रिसर्च क्या करेगा खाक? 
 
 
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