भटके हुए लड़के लड़कियों कठोर कानून का कितना असर होगा ?
मैंने सुना है कि श्री राम के राज्य में हाथी और सिंह एक घाट पर पानी पीते थे किसी को किसी से कोई भय नहीं होता था फिर भी वो हाथी एक घाट पर
पानी भले पीते थे किन्तु सिंह के स्वभाव में चूँकि हिंसा है इसलिए उसके साथ निश्चित दूरी बनाकर रहते थे। इसका प्रमुख कारण यह था कि अहिंसा या हिंसा का निर्णय तो सिंह के ऊपर है वह हिंसा का पालन करे या अहिंसा का व्रत ले! अथवा अहिंसा का व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे।ये उसी को पता है।ऐसी परिस्थिति में व्रती सिंह अपना व्रत कब तोड़ दे तो हाथी की जान पर बन आएगी। इसलिए सिंह जैसे चाहे वैसे रहे किन्तु हाथी को अपनी ओर से सावधानी तो रखनी ही चाहिए। ये उदाहरण अहिंसक समाज का है।
इसी प्रकार महिलाओं से बलात्कार तो चारित्रिक हिंसा की परिधि में आता है मेरा निवेदन यह है कि जैसे हाथी पर हमला करना सिंह की कमजोरी है उसीप्रकार महिलाओं के प्रति बासनात्मक दृष्टि रखना पुरुषों की कमजोरी है। इस भावना की पुराणकाल से लेकर अभी तक असंख्य बार परीक्षा भी हो चुकी है लगभग हर बार पुरुष वर्ग इस विषय में महिलाओं से हारता रहा है। यद्यपि नारद जी तो जीत गए किन्तु प्रभु ने उन्हें हराने के लिए माया रची और उन्हें हराया भी।शायद भगवान भी यही दिखाना चाहते थे कि इस सृष्टि की सबसे सुन्दर कृति स्त्री है जो अपनी सुन्दरता पर पुरुष मन को आकृष्ट न कर सके उसका स्त्री होना निष्फल है।
जिसकी बातें सुनना अच्छा लगता हो
जिसको या जिसका देखनाअच्छा लगता हो
जिसकी बातें सुनना अच्छा लगता हो
जिसको छूना अच्छा लगता हो
जिसको सूँघना अच्छा लगता हो
ये सब गुण यदि एक साथ कहीं खोजने हों तो पुरुषों को स्त्रियों में एवं स्त्रियों को पुरुषों में मिल सकते हैं। इसीलिए पुरुष बड़ी बड़ी धार्मिक बातें करते करते फिसल जाते हैं। ये बात सबके साथ लागू होती है स्वयं मैं ही क्यों न होऊं। कुछ धार्मिक लोगों को भी ये बात समझ में आ गई उन्होंने भी जहाँ जैसे जितने पाए उतने हाथ मारे एक दिन किसी अखवार में एक चित्र देखने को मिला वो चित्र मैं साभार यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ इनकी भावना जो भी हो उससे हमारा अभिप्राय नहीं है वो आप लोग समझें ..हमारा अभिप्राय मात्र इतना है कि समाज पर इन बातों का भी असर पड़ता है इस चित्र पर मैं केवल इतना ही कहूँगा ।
इसलिए पुरुष वर्ग बातें चाहे जितने बैराग्य की कर ले स्त्रियों की सुरक्षा की कर ले किन्तु मौका मिलता है तो सब उसी रंग में रँग जाते हैं। इसीलिए ऋषियों ने पुरुषों के लिए नियम निश्चित किए कि वे एकांत में अपनी माता बहन बेटी के साथ न बैठे!
माता स्वस्रा दुहित्रा वा......!
इसीलिए ऋषियों ने न तो पुरुषों के मन पर विश्वास किया और न ही स्त्रियों के मन पर पुरुषों के विषय में किया और कहा कि
भ्राता पिता पुत्र उरगारी।
पुरुष मनोहर निरखति नारी॥
अर्थात भाई, पिता और पुत्र शरीर भी स्त्रियों के मन पर बासनात्मक असर डाल सकते हैं।इसीलिए स्त्रियों को पुरुषों से और पुरुषों को स्त्रियों से एक निश्चित दूरी बनाकर रहने को कहा गया है।
यहाँ एक विशेष बात यह है कि बासना के बढ़े बेग को झेलकर भी सामान्य दिखने का अद्भुत गुण ईश्वर ने स्त्रियों में दिया है पुरुषों में नहीं ।इसीलिए स्त्रियों को शरीर ढककर रहने के रीति रिवाज मिलकर चलाए गए थे जो अभी तक प्रचलन में थे और समाज व्यवस्थित रूप से चल भी रहा था,किन्तु अब कुछ लोगों को परेशानी होने लगी जिन्होंने स्त्री पुरुषों में बराबरी का नारा दिया।
इसमें नई बात कोई नहीं है जन्म से लेकर मृत्यु तक हर काम एवं रहन सहन सभी स्त्री पुरुषों में बराबर हैं ही हमेशा से थे आज भी हैं आगे भी रहेंगे।हाँ लैंगिक एवं लैंगिक स्वभाव में जो अंतर है वो अंतर प्रकृति ने जन्म से ही बनाया है उसे मिटाया नहीं जा सकता है।जैसे स्त्रियों को हर महीने रजस्राव होता है पुरुषों को नहीं जबकि भोजन दोनों एक जैसा करते हैं। दूसरी बात संतान को जन्म देने का दायित्व स्त्री पुरुषों को बराबर दिया गया है जिसमें पुरुष अपना दायित्व कुछ मिनटों में पूरा कर लेता है जबकि स्त्रियों को अपना दायित्व निभाने में नव महीने लग जाते हैं।इसीप्रकार दूध माता के स्तनों में ही आता है पिता में नहीं !ये सब बड़ी घटनाएँ हैं जो बातों से नहीं बदली जा सकती हैं इनका रहन सहन एवं स्वभाव पर भी अंतर पड़ता है जिसे बलपूर्वक या कानून बनाकर बराबर नहीं किया जा सकता है ।
चिकित्सा शास्त्र में मैंने पढ़ा है कि गर्भ धारण में स्त्री का रज और पुरुष का वीर्य एक निश्चित अनुपात में होता है तो नपुंसक बच्चा जन्म लेता है और यदि स्त्री का रज उस अनुपात से अधिक हुआ तो कन्या संतान होती है इसी प्रकार पुरुष का वीर्य एक निश्चित अनुपात से यदि अधिक हुआ तो पुत्र संतान होती है। इसी में जो गर्भ नपुंसकता के अनुपात की अपेक्षा स्त्री रज की अधिकता लिए हुए होते हैं वो होती तो लड़कियाँ हैं किन्तु इनका रहन सहन बोली भाषा सब लड़कों की तरह हो जाती है कई को तो दाड़ी मूँछ के बाल भी निकलते देखे गए हैं।इसीप्रकार जो गर्भ नपुंसकता के अनुपात की अपेक्षा पुरुष वीर्य की अधिकता लिए हुए होते हैं वो कहने को तो लड़के होते हैं किन्तु इनका रहन सहन बोली भाषा सब लड़कियों
की तरह हो जाती है कई लड़कों के तो दाड़ी मूँछ के बाल भी नहीं निकलते या कम निकलते देखे गए हैं।विशेषकर ये सीमा रेखा के समीप वाले स्त्री पुरुषों की ये सोच है कि हम स्त्री पुरुष जो भी हैं किन्तु हम में कोई अंतर नहीं है यह भी सच है कि उन में कोई अंतर है भी नहीं।बासनात्मिका दृष्टि से ऐसी स्त्रियाँ न तो पुरुषों को अपनी ओर आकृष्ट कर पाती हैं न ही ऐसे पुरुष ही स्त्रियों को अपनी ओर आकृष्ट कर पाते हैं। इसलिए इन्हें किसी प्रकार के बलात्कार या ब्यभिचार का भय नहीं होता है किन्तु जब इनके भाषण या बहस सुनकर कोई संपूर्णअंश स्त्री पुरुष भी अपना कन्धा किसी विषमलिंग शरीर के कंधे से मिलाते हैं तो संपूर्णअंश स्त्री पुरुष उबल पड़ते हैं और सामाजिक
ब्यभिचार के शिकार होते हैं। ऐसे में क्या करे सरकार और क्या करें समाज सुधारक या पुलिस ?
भ्रष्टाचार के इस युग में सरकारी सुरक्षा पर भी एक सीमा तक ही भरोसा किया जा सकता है।वैसे भी सरकार जो सुरक्षा देती है वह तो है ही,बाकी आत्मरक्षा में किसी भी प्रकार की कोताही अपनी तरफ से भी नहीं बरती जानी चाहिए । कोई कानून कितना भी चुस्त हो तो भी कोई दुर्घटना घटने के बाद ही अपराधी को दंड दिया जा सकता है,किन्तु उस समय अपराधी को कितना भी बड़ा दंड दे दिया जाए भले वह फाँसी ही क्यों न हो किन्तु उससे क्षतिपूर्ति तो हो पाना संभव नहीं होता है।
अपराध करने से पूर्व तो हर कोई अपराधी अपराधी नहीं होता है उस समय तो न केवल सभी लोग अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी पकड़े गए अपराधी को कठोर दंड एवं बलात्कारी को फाँसी की सजा माँगते हैं।लाखों लोग रोडों पर उतर आते हैं।जिंदाबाद ,मुर्दाबाद ,हैजाबाद फैजाबाद करने में किसी का क्या जाता है जो जहाँ जितना चाहे चिल्ला ले किन्तु यहाँ एक सच्चाई हम सभी को स्वीकार करनी होगी कि जितने लोग किसी अपराध के विरुद्ध चिल्लाने लगते हैं वही यदि ईमानदारी पूर्वक अपराधियों के विरुद्ध संगठित हो जाएँ तो भी बहुत बड़ा सुधार संभव हो सकता है ।
अधिक क्या कहा जाए प्रायः महत्वपूर्ण बड़े लोग सुरा सुंदरी के शौकीन देखे जाते हैं।कई राजनैतिक दलों के लोग भी होते हैं।किसी अपराध में पर पकड़े जाने पर कुछ दिनों के लिए पार्टी से निकाल दिए जाते हैं और शोर शांत होते ही फिर पार्टियों में उन्हें वापस ले लिया जाता है।हरियाणा के एक वृद्ध एक दिन ट्रेन में मिले, वो बलात्कार से लेकर भ्रष्टाचार तक के सभी ऐसे विषयों के सन्दर्भ कह रहे थे कि यदि फाँसी जैसा कठोर कानून बन भी जाए तो भी फाँसी पर लटकाए गरीब ही जाएँगे कोई बड़ा आदमी क्यों फँसेगा ? यदि भूल चूक से ज्यादा हो हल्ला मचने पर कोई बड़ा आदमी पकड़ भी जाए तो उसके साथ अन्य बहुत सारे लोगों की पोल खुलने का भय होता है इसलिए उसे वो सारे प्रभावी लोग मिलजुलकर जल्दी से जल्दी बचा लेते हैं। इसीप्रकार राजनैतिक पार्टियाँ अपने लोगों को पार्टी में फिर से वापस ले लेती हैं। यह सुनकर मुझे लगा कि आम आदमी सरकार एवं सरकारी तंत्र से इतना निराश है !
इसलिए मेरा विचार तो यह है कि यथा संभव अपनी एवं अपने बेटा बेटी की सुरक्षा पर अपना भी ध्यान एवं सतर्कता विशेष वरती जानी चाहिए ।ऐसी वेष भूषा एवं रहन सहन से बचा जाना चाहिए जिससे किसी प्रकार का उपद्रव संभावित हो।वैसे भी जब राम राज्य में अपराध पूरी तरह नहीं रोका जा सका तो इस भ्रष्टाचार के युग में ऐसी काल्पनिक ईच्छा ही क्यों पालना ?यह राम राज्य तो है भी नहीं !आज पुलिस की भी अपनी सीमाएँ हैं उनसे बहुत अपेक्षा क्यों रखना ?वो अपना दायित्व निर्वाह करते रहें वही बहुत है ।
कुछ जवान लड़के लड़कियों की सेक्स भूख उन पर इस कदर हावी है कि क्या करना है कहाँ करना है?उन्हें पता ही नहीं है। वे करना क्या चाह रहे हैं तथा कर क्या रहे हैं यह बात आज किसी से छिपी नहीं है। सामूहिक या सार्वजानिक स्थलों पर चल रही लड़के लड़कियों की रासलीला कामक्रीड़ा आदि देखकर हर कोई समझ रहा है कि सेक्स के लिए ये जवान लड़के लड़कियाँ कितने परेशान हैं? ये जोड़े कोई मौका मिलते ही एक दूसरे को चूमने चाटने में लग जाते हैं।लिफ्ट में चढ़ने के चन्द्र मिनट भी चिपकने चाटने में निकलते हैं।सभी लोगों के देखते देखते एक दूसरे के शरीरों में कहाँ कब हाथ लगा देंगे कोई भरोस नहीं होता है ।कुछ जवान लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के गले में हाथ डालकर चलने लगते हैं।आप ईमानदारी से सोचिए कि इतने प्रेमपूर्वक सार्व जनिक रूप से दो सगे जवान भाई भी इस युग में रहते या चलते देखे जाते हैं क्या ? ये या इस तरह के और भी सारे शिथिल आचरण मन की जिस बेचैनी का बयान करते हैं वो सेक्स और केवल सेक्स है इसके अलावा कुछ भी नहीं है ।
इस प्रकार से लुकते छिपते हुए छीन झपट कर आधा अधूरा सेक्स सुख पाकर बेचैन युवक युवतियाँ अपने को नियंत्रित रख पाएँगे इसकी संभावना बहुत कम होती है अर्थात वो कभी भी कुछ भी करने पर उतारू हो जाते हैं।सम्पूर्ण सेक्स की अपेक्षा ये आधा अधूरा सेक्स सुख सबसे अधिक घातक होता है।ऐसे लुक छिप कर आधा अधूरा सेक्स सुख भोगने वाले लोग अधिकतर कहीं जाने आने उठने बैठने के लिए के लिए कम भीड़ भाड़ वाला रास्ता या स्थान ही चुनते हैं। वो कहीं जाने आने के लिए सवारी भी ऐसी ही चुनते हैं जिसमें भीड़ भाड़ बिलकुल न हो जिससे स्वतन्त्र मौज मस्ती का समय अधिक मिल जाता है।बस पर बैठेंगे तो खाली बस देखकर,यहाँ तक कि आटो पर चलते हैं वहाँ भी चलते समय सारी हरकतें जारी रहती हैं।यही गलत आदतें देखकर कई बार भले लोग भी इन अपराधों में सम्मिलित हो जाते हैं। इसी कारण हत्या, बलात्कार आदि सब कुछ होते देखा जाता है,क्योंकि इसमें सम्बंधित जोड़ा तो आधा अधूरा सेक्स सुख पाकर बेचैन होता है किन्तु जिसका कोई सम्बन्ध ही नहीं है ऐसा दर्शक उनसे अधिक बेचैन होता है आखिर वो भी तो स्त्रीत्व या पुंसत्व से संपन्न होगा।ये बात हमें भूलनी नहीं चाहिए । यदि किसी के पास सोने की अशर्फियाँ हैं उन्हें देख कर किसी देखने वाले को पाने का लालच हो सकता है।इसी प्रकार अच्छा पकवान देखकर देखने वाले के मुख में यदि पानी आ जाता है और इनको नहीं रोका जा सकता है तो सबसे अधिक बलवान सेक्स सुख के लालची को कैसे रोका जा सकता है ? विश्वामित्र, पराशर, नारद, सौभरि जैसे ऋषि एवं चौदह हजार स्त्रियों का पति रावण भी सीता को एकांत में अकेली देखकर अपने को रोक नहीं पाया तो आज ऐसे संयम एवं सदाचरण की परिकल्पना ही क्यों करनी?आज तो राम राज्य भी नहीं है फिर ऐसी आशा किससे और क्यों ?
काम शास्त्र एवं साहित्य शास्त्र में इस प्रकार का वर्णन भी मिलता है -
ज्ञातः स्वादुः विवृत जघना कः बिहातुं समर्थः?
अर्थात एक बार आधा अधूरा बासनात्मक सुख का स्वाद पता लग जाने पर फिर उस तरह की परिस्थिति देखकर भी कौन बासनात्मक सुख की ईच्छा छोड़ पाने में समर्थ हो सकेगा ?अर्थात कोई नहीं !
इसी प्रकार आयुर्वेद में शरीर के तीन मुख्य उपस्तंभ बताए गए हैं भोजन, निद्रा और मैथुन अर्थात सेक्स । इनके कम और अधिक होते ही शरीर रोगी होने लगता है।इसलिए भोजन, नींद और बासनात्मक आवश्यकता न बढ़ाई जा सकती है और न ही घटाई जा सकती है।इसे रोक पाना अत्यंत कठिन होता है उसमें भी आज कल विवाह बिलंब से होने लगे हैं जिससे यह और कठिन लगने लगा है।पुराने समय लोग व्रत उपवास करके संयम करते थे ।कुछ लोग योग क्रियाओं के द्वारा उर्ध्वरेता आदि बन जाते थे जो इस कलियुग में काफी असंभव सा लगता है।
इस विषय में देवल ऋषि ने कहा है कि
दीर्घकालं ब्रह्मचर्यं नरमेधाश्वमेधकौ ।
इमान् धर्मान् कलियुगे बर्ज्यान् आहुर्मनीषिभिः।।
अर्थ - लंबे समय तक ब्रह्मचर्य पालन करना ,नरमेध और अश्वमेध ये सब बातें कलियुग में ऋषियों के द्वारा रोकी गई हैं । हो सकता है कि पुराने ऋषियों को कलियुग के ब्रह्मचारियों का भरोसा ही न रहा हो ।
विश्वामित्र पराशर प्रभृतयो वाताम्बु पर्णाशनाः |
तेपि स्त्री मुख पङ्कजं सुललितं दृष्टैव मोहं गताः||
अर्थ -विश्वामित्र पराशर आदि ऋषि पत्ते खाते एवं जल पीकर रहते थे जब उन्होंने स्त्रियों का मुख कमल देखा तो अपने को सँभाल नहीं सके और मोहित हो गए और किसी को क्या कहा जाए ?
वैदिक काल से हमारे ऋषि-मुनि सदियों से ब्रह्मचर्य जीवन बिताते आयें हैं।आज भी बहुत सारे चरित्र वान उर्ध्वरेता ऋषि-मुनि सांसारिक भोग बासनाओं एवं धन दौलत से दूर संयमित जीवन जी रहे होंगे ।
इस प्रकार से जब तक ऐसे प्रेम के पाखंडी लोग झूठ बोलकर लुकछिप कर सेक्स सुख लेते रहते हैं तब तक
इस पाखंड को प्रेम कहते हैं और जब झूठ का पोल खुल जाए और आपस में न पटने लगे और एक पक्ष जबर्दस्ती प्रेम करने का पाखंड करने लग पड़े तो इसे बलात्कार कहते हैं ,धन आदि का
लोभ देकर प्रेम का पाखंड करें तो इसे व्यभिचार कहते हैं ,और उससे सुंदर कोई दूसरी लड़की या लड़का मिल
जाए तो पहली वाली या वाले को दिखा दिखाकर उसके साथ सब सुख भोग करें तो उसे
अत्याचार कहते हैं। इसी विधा में आगे चलकर भगने- भगाने, प्रेम और
प्रेमविवाह, आदि की दुखद दुर्घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं ।
जिनका
अपने माता पिता भाई बहन आदि समस्त स्वजनों से प्रेम न रहा हो उनसे छिपते
छिपाते किसी अन्य लड़के या लड़की के साथ भगते भगाते सेक्स सुख की तलाश में
व्याकुल भटकते अपवित्र प्रेमी जब अपनों को भूल गए तब परायों का कब तक साथ
दे पाएँगे कहा नहीं जा सकता है।जहॉं पहले वाले से अधिक सुंदर कोई नया
पार्टनर मिला तो उसी के चिपक गए ये पहले वाले को भूल गए,ये कैसा प्रेम ?
पवित्र प्रेम तो जन्म जन्मांतर तक चलता है।वो कभी घटता नहीं है दिनों दिन
बढ़ा ही करता है।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
No comments:
Post a Comment