लव या लव मैरिजों का प्रचलन घटे तो रुक सकते हैं कई प्रकार के अपराध !
मनोचिकित्सकों
एवं समाज सुधारकों की मदद से प्रेम पाखंडियों एवं प्रेम अपराधियों पर
नकेल कसकर ही बलात्कारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।ऐसे प्रेम पाखंडों से
न केवल महिलाएँ एवं लड़कियाँ ही असुरक्षित हो रही हैं अपितु पुरुष एवं लड़के
भी प्रताड़ित हो रहे हैं।ऐसे मामलों की भी कमी नहीं है जिनमें महिलाओं ने
अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की होती है। इसी प्रकार
लड़कियों ने नए प्रेमी के साथ मिलकर पुराने प्रेमी की हत्या करने कराने
में अपना रोल निभाया होता है।पिछले वर्ष समाचारों में सुना था कि इसी चक्कर में प्रेमी के साथ मिलकर किसी लड़की ने अपने पिता की हत्या की थी।इसप्रकार प्रायः देखा जाता है कि भले स्त्री-पुरुष एवं लड़के-लड़कियाँ
ही इसमें अधिक पीड़ित एवं प्रताड़ित होते हैं।प्रेम के पाखंड का ये सारा नरक
दस से पंद्रह प्रतिशत लोग करते हैं यही लोग लवलबाते घूमते हैं कुछ प्रेम
करते हैं लड़ते भिड़ते मरते मारते हैं सफल असफल जो भी होते हैं बदनामी पूरे
देश और समाज की होती है। भले ही मीडिया के लिए कुछ ख़बरें बन जाती हों
किन्तु सरकार शासन एवं समाज में बहुत तनाव व्याप्त हो जाता है।जिन्होंने
कभी किसी से हँसी मजाक भी नहीं की होती है फिर भी केवल पुरुष या स्त्री
होने के कारण उन्हें भी अपमानित होना पड़ता है।
एक और बात ध्यान देने की है कि जब महिलाएँ पुरुषों की बराबरी में खड़ी हो रही हैं तो जब वो भी आम समाज की समान हिस्से दार हैं तो केवल महिला सुरक्षा के लिए अलग से कोई कानून क्यों?समाज में जब स्त्री पुरुष दो ही होते हैं तो महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो पुरुष बेचारे कहाँ जाएँ?आखिर सारे पुरुष तो बलात्कारी नहीं होते हैं और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनने की बात कहते ही सारा पुरुष समाज कटघरे में खड़ा दिखाई देता है।
एक और बात ध्यान देने की है कि जब महिलाएँ पुरुषों की बराबरी में खड़ी हो रही हैं तो जब वो भी आम समाज की समान हिस्से दार हैं तो केवल महिला सुरक्षा के लिए अलग से कोई कानून क्यों?समाज में जब स्त्री पुरुष दो ही होते हैं तो महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो पुरुष बेचारे कहाँ जाएँ?आखिर सारे पुरुष तो बलात्कारी नहीं होते हैं और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनने की बात कहते ही सारा पुरुष समाज कटघरे में खड़ा दिखाई देता है।
इसके
अलावा आज बच्चों के अपहरण हत्याएँ एवं वृद्धों की हत्याएँ युवाओं के अपहरण
और हत्याएँ उद्योग पतियों के अपहरण और हत्याएँ आदि कोई अपराध छोटे बड़े
नहीं होते। अपराध तो अपराध होते हैं और अपराधी अपराधी होता है, चाहें वह
महिलाओं का अपराधी हो या पुरुषों का,अपराधों में भेद
भाव नहीं किया जाना चाहिए।किसी पर भी अत्याचार न हों हमारी समझ में तो
सरकार की सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी होनी चाहिए फिर केवल महिला सुरक्षा
बिल क्यों ?
मीडिया के महापुरुषों से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि किसी मुद्दे को उठाने से पूर्व समाज के हित का ध्यान जरूर रखा जाए।आज की भाषा में किसी एकान्तिक स्थल में बैठे दो असफल प्रेमियों की तकरार होने पर यदि पुलिस आकर उन्हें खदेड़ दे तो मीडिया के लोग चिल्लाने लगते हैं कि पुलिस प्यार पर पहरा लगा रही है और यदि ऐसा न करें और जोड़ों की तकरार मरने मारने तक पहुँच जाए कोई किसी का गला दबा दे और वह घायल हो जाए या मर ही जाए अर्थात हत्या कर दी जाए तो यही मीडिया के लोग चिल्लाने लगते हैं कि पुलिस कहाँ सो रही थी?आखिर मीडिया के लोग पुलिस वालों से कराना क्या चाहते हैं ?समझ में नहीं आता है!
एक और समस्या है कि ऐसे तथाकथित प्रेमी जोड़े प्रायः समाज से अलग होकर सुनशान जगहों में झाड़ियों,पार्कों,पार्किंगों,सड़कों पर ही बिचरण करते हैं ताकि असमाजिक हरकतें करने में विशेष कठिनाई न हो जबकि पुलिस इसके उलट चलती है, अर्थात वो भीड़ भाड़ वाले इलाकों की सुरक्षा में लगे रहते हैं शायद वो सोचते हैं कि सुनशान जगहों में कोई क्यों जाएगा?वो भी विशेषकर लड़कियाँ ऐसी जगहों पर क्यों जाएँगी?
इसी प्रकार ऐसे प्रेमी जोड़े किसी सवारी पर भी बैठेंगे तो यह देखकर कि उन्हें सुनशान वातावरण कितना मिलेगा?एक ही लक्ष्य ताकि प्यार प्रकट करने वाली असमाजिक हरकतों में कोई डिस्टर्ब न कर सके! वो बैठते भी ऐसी ही सवारियों पर हैं और असमाजिक हरकतें भी करते हैं।जिन्हें देखकर कुछ जवान लड़के लड़कियों की जवानी यदि बेकाबू हो ही जाए और वो भी उसी जोड़े के साथ असमाजिक हरकतों में सम्मिलित होकर कोई बड़ा से बड़ा अपराध कर बैठें तो उन्हें तो फाँसी की सजा माँगी जा रही है किन्तु ऐसे प्रेम पाखंडी जोड़ों का महिमा मंडन किया जाता है,आखिर क्यों?क्या इस प्रकार से अपराध नियंत्रित हो सकेंगे?आखिर उन दर्शकों को नपुंसक या अंधा क्यों माना जाय?सारे सदाचरण की आशा दूसरे से ही क्यों की जाए?कुछ अपनी भी जिम्मेदारी बनती है क्या हमें अपने रहन सहन और आचरण पर संयम नहीं रखना चाहिए?वैसे भी हमें राम राज्य की गलतफहमी में कतई नहीं रहना चाहिए,जबकि रामराज्य में भी सीता हरण को रोका नहीं जा सका था।
अगर सरकार और पुलिस के बस की बात होती तो दिल्ली के चर्चित बस बलात्कार कांड के बाद ऐसी दुर्घटनाओं में कमी आई होती किन्तु अनुमान है कि उसके बाद से और बढ़ोत्तरी ही हुई है।जहाँ तक शक्त कानून बनाने की बात है तो अभी तक किसी बड़ी दुर्घटना की प्रतीक्षा की जा रही थी क्या?नियम पूर्वक कानून का पालन होता तो क्या अभी तक बनाए गए कानून ऐसी दुर्घटनाएँ रोक पाने में वास्तव में सक्षम नहीं थे?और यदि ऐसा है तो आश्चर्य है!और यदि ऐसा नहीं है तो ज्यादा खतरनाक है !जैसे किसी रोगी का इलाज करते समय यदि चिकित्सक को बार बार दवाएँ बदलनी पड़ रही हों और रोगी को लाभ न हो पा रहा हो इसका मतलब है कि या तो चिकित्सक अयोग्य है या दवाएँ या तो ठीक नहीं हैं या फिर ठीक ढंग से चलाई नहीं जा रही हैं, और यदि इनमें से कोई कारण नहीं हैं तो फिर पक्का है कि मरीज ही ठीक हो सकने की स्थिति में नहीं है। कहीं सरकार और शासन भी इसी मज़बूरी का शिकार तो नहीं है?किन्तु वोट भय से समाज के सामने यह सच कहने का साहस सरकार ही न कर पा रही हो?
सच्चाई यह है कि एक प्रेम पाखंडी लड़का या लड़की प्रेम के नाम पर कम से कम दस दस लड़के या लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुके होते हैं अर्थात लड़का दस लड़कियों की इसी प्रकार लड़की दस लड़कों की जिंदगी बरबाद करके तब कहीं एक जगह जाकर सेटिंग बैठा पाते हैं उसका भी भरोसा इसलिए नहीं होता है कि अक्सर झूठे सब्ज बाग दिखाकर बनाए गए ये संबंध चलेंगे कब तक ?और कब आपसी दुश्मनी में तब्दील हो जाएँगे? कैसे कहा जा सकता है!
मीडिया के महापुरुषों से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि किसी मुद्दे को उठाने से पूर्व समाज के हित का ध्यान जरूर रखा जाए।आज की भाषा में किसी एकान्तिक स्थल में बैठे दो असफल प्रेमियों की तकरार होने पर यदि पुलिस आकर उन्हें खदेड़ दे तो मीडिया के लोग चिल्लाने लगते हैं कि पुलिस प्यार पर पहरा लगा रही है और यदि ऐसा न करें और जोड़ों की तकरार मरने मारने तक पहुँच जाए कोई किसी का गला दबा दे और वह घायल हो जाए या मर ही जाए अर्थात हत्या कर दी जाए तो यही मीडिया के लोग चिल्लाने लगते हैं कि पुलिस कहाँ सो रही थी?आखिर मीडिया के लोग पुलिस वालों से कराना क्या चाहते हैं ?समझ में नहीं आता है!
एक और समस्या है कि ऐसे तथाकथित प्रेमी जोड़े प्रायः समाज से अलग होकर सुनशान जगहों में झाड़ियों,पार्कों,पार्किंगों,सड़कों पर ही बिचरण करते हैं ताकि असमाजिक हरकतें करने में विशेष कठिनाई न हो जबकि पुलिस इसके उलट चलती है, अर्थात वो भीड़ भाड़ वाले इलाकों की सुरक्षा में लगे रहते हैं शायद वो सोचते हैं कि सुनशान जगहों में कोई क्यों जाएगा?वो भी विशेषकर लड़कियाँ ऐसी जगहों पर क्यों जाएँगी?
इसी प्रकार ऐसे प्रेमी जोड़े किसी सवारी पर भी बैठेंगे तो यह देखकर कि उन्हें सुनशान वातावरण कितना मिलेगा?एक ही लक्ष्य ताकि प्यार प्रकट करने वाली असमाजिक हरकतों में कोई डिस्टर्ब न कर सके! वो बैठते भी ऐसी ही सवारियों पर हैं और असमाजिक हरकतें भी करते हैं।जिन्हें देखकर कुछ जवान लड़के लड़कियों की जवानी यदि बेकाबू हो ही जाए और वो भी उसी जोड़े के साथ असमाजिक हरकतों में सम्मिलित होकर कोई बड़ा से बड़ा अपराध कर बैठें तो उन्हें तो फाँसी की सजा माँगी जा रही है किन्तु ऐसे प्रेम पाखंडी जोड़ों का महिमा मंडन किया जाता है,आखिर क्यों?क्या इस प्रकार से अपराध नियंत्रित हो सकेंगे?आखिर उन दर्शकों को नपुंसक या अंधा क्यों माना जाय?सारे सदाचरण की आशा दूसरे से ही क्यों की जाए?कुछ अपनी भी जिम्मेदारी बनती है क्या हमें अपने रहन सहन और आचरण पर संयम नहीं रखना चाहिए?वैसे भी हमें राम राज्य की गलतफहमी में कतई नहीं रहना चाहिए,जबकि रामराज्य में भी सीता हरण को रोका नहीं जा सका था।
अगर सरकार और पुलिस के बस की बात होती तो दिल्ली के चर्चित बस बलात्कार कांड के बाद ऐसी दुर्घटनाओं में कमी आई होती किन्तु अनुमान है कि उसके बाद से और बढ़ोत्तरी ही हुई है।जहाँ तक शक्त कानून बनाने की बात है तो अभी तक किसी बड़ी दुर्घटना की प्रतीक्षा की जा रही थी क्या?नियम पूर्वक कानून का पालन होता तो क्या अभी तक बनाए गए कानून ऐसी दुर्घटनाएँ रोक पाने में वास्तव में सक्षम नहीं थे?और यदि ऐसा है तो आश्चर्य है!और यदि ऐसा नहीं है तो ज्यादा खतरनाक है !जैसे किसी रोगी का इलाज करते समय यदि चिकित्सक को बार बार दवाएँ बदलनी पड़ रही हों और रोगी को लाभ न हो पा रहा हो इसका मतलब है कि या तो चिकित्सक अयोग्य है या दवाएँ या तो ठीक नहीं हैं या फिर ठीक ढंग से चलाई नहीं जा रही हैं, और यदि इनमें से कोई कारण नहीं हैं तो फिर पक्का है कि मरीज ही ठीक हो सकने की स्थिति में नहीं है। कहीं सरकार और शासन भी इसी मज़बूरी का शिकार तो नहीं है?किन्तु वोट भय से समाज के सामने यह सच कहने का साहस सरकार ही न कर पा रही हो?
सच्चाई यह है कि एक प्रेम पाखंडी लड़का या लड़की प्रेम के नाम पर कम से कम दस दस लड़के या लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुके होते हैं अर्थात लड़का दस लड़कियों की इसी प्रकार लड़की दस लड़कों की जिंदगी बरबाद करके तब कहीं एक जगह जाकर सेटिंग बैठा पाते हैं उसका भी भरोसा इसलिए नहीं होता है कि अक्सर झूठे सब्ज बाग दिखाकर बनाए गए ये संबंध चलेंगे कब तक ?और कब आपसी दुश्मनी में तब्दील हो जाएँगे? कैसे कहा जा सकता है!
यहाँ एक और चिंतनीय बात ये होती है कि ऐसे लैला-मजनूँ महोदया तथा महोदय लोग अतीत में जो दस दस जिंदगी बरबाद करके आए हैं इससे न जाने उन दस का कितना बड़ा नुकसान हुआ होगा, कितने दिन कैसे कैसे तनाव में उन्होंने काटे होंगे,कितने लोगों के ताने सहने पड़े होंगे, वो न जाने कहाँ कितने दिनों से जलालत की घुटन भरी जिंदगी जी रहे होंगे?इसका अनुमान कोई भी नहीं लगा सकता पुलिस भी नहीं।
ऐसे बरबाद हो चुके लोग कब कहाँ तेजाब की बोतल लिए मिल जाएँ! या कब कहाँ कैसे हमला कर दें?कैसे अनुमान लगाया जा सकता है?कई बार तो लगातार तनाव सहते सहते ऐसे लुटे पिटे लोग हिंसक हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में जिसने उन्हें धोखा दिया था उसके न मिलने पर ये वो खीझ किसी और पर निकाल रहे होते हैं और कर रहे होते हैं किन्हीं शरीरों की नृशंसता पूर्वक हत्या या अन्य तरीकों से छीछालेदर!जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे अपराधों की भयंकरता देखकर लोग ऐसे अपराधियों को फाँसी की सजा दिलाना चाहते हैं कठोर कानून बनाने की माँग करते हैं,किन्तु चारों ओर से ऐसा निराश हताश प्रेमी कानूनी सजा से पूर्व ही फाँसी की की सजा का उपहास जैसा उड़ाते हुए फाँसी जैसी कठोर सजा का वरण स्वयं कर लेता है और झूल जाता है फाँसी पर!किन्तु छोड़ जाता है अपने पीछे असंख्य अन सुलझे सवाल किन्तु किससे कौन पूछे कि आखिर प्रेम के नाम पर उसके साथ क्यों की गई थी धोखाधड़ी?उसने जो अपराध किया था उसकी सजा तो उसे मिली किन्तु उसके साथ प्यार का खेल खेल करके जिसने उसे धोखा दिया होगा जिसके कारण उसकी यह दुर्दशा हुई हो तो उसकी अपनी मौत का जिम्मेदार किसे माना जाए ?
आज सरकार आपसी सहमति से होने वाले सेक्स की उम्र सीमा घटाने पर विचार कर रही है। साथ ही यह भी सुना है कि सरकार सेक्स एजुकेशन की व्यवस्था भी कर रही है।आखिर क्या जरूरत है सेक्स सुविधाएँ देने की?क्या ऐसी व्यवस्थाएँ करने से फिर
नहीं घटेंगी ऐसी घनघोर घटनाएँ !निजी तौर पर मेरा अपना मानना है कि प्रज्ज्वलित आग की लव को जैसे तेल के बड़े बड़े टैंकर डाल कर नहीं बुझाया जा सकता है उसी प्रकार सरकार द्वारा सेक्स एजुकेशन की शिक्षा दिए जाने से छात्र छात्राओं में बढ़ते ब्यभिचार को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।इससे छात्र छात्राओं के आपसी संकोच टूटेंगे,अध्यापकों का सम्मान घटेगा,अध्यापकों और छात्राओं के बीच ब्यभिचार बढ़ेगा।घरों में बड़े बूढों की मान्य मर्यादाएँ टूटेंगी, छात्र छात्राएँ सेक्स एजुकेशन के नाम पर घरों में ब्यभिचार का खेल खेलने लगेंगे।
ऐसे बरबाद हो चुके लोग कब कहाँ तेजाब की बोतल लिए मिल जाएँ! या कब कहाँ कैसे हमला कर दें?कैसे अनुमान लगाया जा सकता है?कई बार तो लगातार तनाव सहते सहते ऐसे लुटे पिटे लोग हिंसक हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में जिसने उन्हें धोखा दिया था उसके न मिलने पर ये वो खीझ किसी और पर निकाल रहे होते हैं और कर रहे होते हैं किन्हीं शरीरों की नृशंसता पूर्वक हत्या या अन्य तरीकों से छीछालेदर!जिसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे अपराधों की भयंकरता देखकर लोग ऐसे अपराधियों को फाँसी की सजा दिलाना चाहते हैं कठोर कानून बनाने की माँग करते हैं,किन्तु चारों ओर से ऐसा निराश हताश प्रेमी कानूनी सजा से पूर्व ही फाँसी की की सजा का उपहास जैसा उड़ाते हुए फाँसी जैसी कठोर सजा का वरण स्वयं कर लेता है और झूल जाता है फाँसी पर!किन्तु छोड़ जाता है अपने पीछे असंख्य अन सुलझे सवाल किन्तु किससे कौन पूछे कि आखिर प्रेम के नाम पर उसके साथ क्यों की गई थी धोखाधड़ी?उसने जो अपराध किया था उसकी सजा तो उसे मिली किन्तु उसके साथ प्यार का खेल खेल करके जिसने उसे धोखा दिया होगा जिसके कारण उसकी यह दुर्दशा हुई हो तो उसकी अपनी मौत का जिम्मेदार किसे माना जाए ?
आज सरकार आपसी सहमति से होने वाले सेक्स की उम्र सीमा घटाने पर विचार कर रही है। साथ ही यह भी सुना है कि सरकार सेक्स एजुकेशन की व्यवस्था भी कर रही है।आखिर क्या जरूरत है सेक्स सुविधाएँ देने की?क्या ऐसी व्यवस्थाएँ करने से फिर
नहीं घटेंगी ऐसी घनघोर घटनाएँ !निजी तौर पर मेरा अपना मानना है कि प्रज्ज्वलित आग की लव को जैसे तेल के बड़े बड़े टैंकर डाल कर नहीं बुझाया जा सकता है उसी प्रकार सरकार द्वारा सेक्स एजुकेशन की शिक्षा दिए जाने से छात्र छात्राओं में बढ़ते ब्यभिचार को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।इससे छात्र छात्राओं के आपसी संकोच टूटेंगे,अध्यापकों का सम्मान घटेगा,अध्यापकों और छात्राओं के बीच ब्यभिचार बढ़ेगा।घरों में बड़े बूढों की मान्य मर्यादाएँ टूटेंगी, छात्र छात्राएँ सेक्स एजुकेशन के नाम पर घरों में ब्यभिचार का खेल खेलने लगेंगे।
ऐसी परिस्थिति में हर जगह
हर मुद्दे पर फेल सरकारें इसे नियंत्रित कैसे कर सकेंगी?शक्त कानून बनाकर
आखिर कितने लोगों को फाँसी पर लटका दिया जाएगा?वैसे भी सरकारी इस प्रकार
के ऊल जुलूल प्रयास किसी बन्दर को गुड़ दिखाकर डंडे मारने की प्रवृत्ति जैसे
ही हैं।
सरकार द्वारा किए जा रहे इन सारे उपायों का प्रभावी असर होते कम से कम हमें तो नहीं ही दिखता है।बाकी सरकार जाने!इतना ज़रूर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार के इन तथाकथित प्रेम के पाखंडों पर यदि सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जाए एवं मनोचिकित्सकों,समाज सुधारकों की मदद ली जाए इन सबके समवेत प्रयासों , सुझावों को ईमानदारी पूर्वक लागू किया जाए तो संभव है कि ऐसे घोर घृणित अपराधों में लगाम लगाई जा सके।
सरकार द्वारा किए जा रहे इन सारे उपायों का प्रभावी असर होते कम से कम हमें तो नहीं ही दिखता है।बाकी सरकार जाने!इतना ज़रूर मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि किसी भी प्रकार के इन तथाकथित प्रेम के पाखंडों पर यदि सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जाए एवं मनोचिकित्सकों,समाज सुधारकों की मदद ली जाए इन सबके समवेत प्रयासों , सुझावों को ईमानदारी पूर्वक लागू किया जाए तो संभव है कि ऐसे घोर घृणित अपराधों में लगाम लगाई जा सके।
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