दुर्गा शक्ति नागपाल के रूप में एकआईएएस अधिकारी का ही नहीं अपितु यह संपूर्ण शिक्षा जगत 
                           का अपमान है! 
  
  
       महज 12वीं तक पढ़े उत्तर प्रदेश सरकार के एक नेता ने गांव 
वालों को  अपने  पावर का अहसास दिलाते हुए कितने  गर्व से 
कहा है कि मैंने एक फोन पर 41 मिनट में 
आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल को सस्पेंड करा दिया!!!यह राजनैतिक अंध विश्वास का कितना बड़ा उदाहरण है !
     
 पढ़ने के लिए लाखों छात्रों छात्राओं को  न केवल घर द्वार छोड़ कर  दूर जाना
 पड़ता है अपितु  घर द्वार भूलना पड़ता है!सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन 
करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है केवल इतना ही नहीं  कहाँ 
तक कहें  कुछ बनने के लिए एक विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना 
पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया  जन्म  होता 
है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है  कि उसे अपना मन मारकर 
आजीवन जीवन ढोना पड़ता  है ! 
    
 ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को  खाने का स्वाद,  स्वजनों से संवाद एवं  
हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता 
है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी 
बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे 
विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य  के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता 
उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान 
होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!
     
 जब मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो गंगा जी के किनारे अस्सी 
घाट पर मिले एक साधक ने   शिक्षा साधना के विषय में समझाते हुए हमसे  कहा 
था कि जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर बाँधकर पानी में डाल दिया जाए उस  पानी
 में डूबे हुए व्यक्ति के मनमें जितनी छटपटाहट होती है जब तक बाहर नहीं 
निकल आता है तब तक साँस नहीं लेता है ठीक इसीप्रकार की छटपटाहट शिक्षा साधक
 में होनी चाहिए ।स विद्यामधिगच्छति!अर्थात वह विद्या की ओर जा पाता है अन्यथा थोड़े भी भटकाव वाले लोग फिसल जाते हैं   यह सूत्र ही हमारे भी जीवन का मूल मंत्र बना!
      आज
 बहन दुर्गा शक्ति नागपाल जैसी तेजस्विनी एक आईएएस अधिकारी का उत्तर प्रदेश
 सरकार द्वारा किया गया अपमान हर उस हर सरस्वती पुत्र पुत्री  का अपमान है 
जिसने जीवन में शिक्षा के लिए कभी भी कठोर साधना की है!जिसने एक-एक मिनट 
आईएएस बनने का सपना बुना हो जो 
देश की सबसे बड़ी सिविल सर्विसेस परीक्षा पास करके आई हो , उसके ईमानदार 
कर्मठ एवं प्रतिष्ठा पूर्ण 
जीवन से ऐसे तुच्छ लोग खिलवाड़ कर रहे हैं जो  नेता भी नहीं हो सकते!कहाँ है
 इनमें जन सेवा की भावना कहाँ है देश प्रेम?ये निर्मम लोग राजनैतिक छिछलेपन
 में किसी पुण्यवती अधिकारी की  प्रतिष्ठा से कैसे खिलवाड़ कर रहे  हैं 
इन्हें धिक्कार है!!! 
पढ़े लिखे ईमानदार लोगों की जरूरत किसी को नहीं है!   

                      काश  मैं भी नेता  होता !
 
हर
 पार्टी के लोगों को मैंने यह कहते  सुना है कि वो राजनैतिक शुद्धि के लिए 
पढ़े लिखे ईमानदार लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं।जिससे देश में ईमानदार
 राजनीति का वातावरण बनाया जा सके। यह सुनकर मैंने सोचा कि मैंने भी तीन 
विषय से आचार्य (एम.ए.)  दो विषय से अलग से एम.ए. एवं बी.एच.यू. से पीएच.डी
 की है।करीब150 किताबें लिखी हैं यद्यपि सारी प्रकाशित नहीं हैं,कई काव्य 
ग्रंथ भी हैं।प्रवचन भाषण आदि करने ही होते हैं।आरक्षण आंदोलन से आहत होकर 
मैंने आजीवन सरकार से नौकरी न मॉंगने का व्रत लिया हुआ है। वैसे भी 
ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता रहा  हूँ। फिलहाल अभी तक निष्कलंक जीवन है यह कहने में हमें कोई संकोच नहीं हैं।            
     
 इस प्रकार से अपनी शैक्षणिक सामर्थ्य  का राजनैतिक दृष्टि से देशहित में 
सदुपयोग करना चाहता था, इसी दृष्टि से मैंने लगभग हर पार्टी से संपर्क करने
 के लिए सबको पत्र लिखे अपनी पुस्तकें भेजीं अपने डिग्री प्रमाणपत्र भेजे 
फोन पर भी संपर्क करने का प्रयास किया,किंतु कहीं किसी ने हमसे मिलने के 
लिए रुचि नहीं ली।किसी ने हमें पत्रोत्तर देना भी ठीक नहीं समझा।कई जगह तो 
दो दो बार पत्र डाले किंतु कहीं कोई चर्चा न हो सकी किसी ने मुझे पत्र 
लिखने लायक या फोन करने लायक नहीं समझा मिलने की बात तो बहुत दूर की है।
     
 हमारे राष्ट्रपति जी दुर्गा जी के भक्त हैं यह सुनकर उन्हें अपनी दोहा 
चौपाई में लिखी दुर्गा सप्तशती की पुस्तकें  भेंट करके अपनी कुछ बात निवेदन
 करने का मन बनाया किंतु वहॉं पुस्तकें एवं पत्र भेजने के बाद भी उसके 
उत्तर में कोई पत्र नहीं मिला।
       इसके बाद कुछ हिंदू संगठनों से  इसलिए संपर्क किया कि मेरी धार्मिक शिक्षा विशेष रूप से है शायद  वहीं हमारा या हमारी शिक्षा का जनहित में शैक्षणिक सदुपयोग हो सके तो अच्छा होगा तो वहॉं के बड़े बड़े लोगों ने हमसे मिलना ठीक नहीं समझा,उनसे
 छोटे लोगों को हमारी शिक्षा में कोई प्रत्यक्ष रुचि नहीं हुई, यद्यपि वहॉ 
मुझे इसलिए उन्होंने संपर्क में रहने को कहा ताकि हमारी समाज में जो गुडबिल
 है उसे संगठन के हित में आर्थिक रूप से कैस किया जा सके ऐसा उन्होंने कहा 
भी!यहॉं से इसी प्रकार के यदा कदा फोन भी आये जिनमें मैंने पैसे के कारण 
रुचि नहीं ली। 
      इसके 
बाद निष्कलंक जीवन बेदाग चारि़त्र का नारा देने वाले एक सामाजिक संगठन से 
जुड़ने के लिए वहॉं के मुखिया को अपना साहित्य भेजा और मिलने के लिए पत्र के
 माध्यम से समय मॉंगा किंतु वहॉं भी मुझे घास नहीं डाली गई।इसके बाद ब्लाग 
पर बैठ कर चुपचाप मैं अपने बिचार लिखने लगा।
     
बी.पी.सिंह जी की सरकार के समय में राजनेताओं के आधारहीन अदूरदर्शी फैसलों 
से सारा समाज आहत था आरक्षण से लेकर श्री राम मंदिर आन्दोलन तक उसी समय की 
उपज थे और दोनों में निरपराध लोग मारे गए!उस समय के बाद राज नीति धीरे धीरे
 प्रदूषित होती चली जा रही है।बहुत दिन बाद जब अटल जी की सरकार आई उसमें तो
 देश वासियों के प्रति अपनापन दिखा जिसमें जनता को सुख सुविधाएँ मिलती 
दिखीं भी जनता की जरूरत की चीजें जनता की आर्थिक क्षमता के अनुशार उपलब्ध 
कराने का प्रयास हुआ।इसके अलावा तो आँकड़ों और आश्वासनों का खेल चलता रहता 
है जनता मरे मरती रहे,महँगाई बढ़े बढ़ती रहे अपराध बढ़ें बढ़ते रहें, सरकारें 
बड़ी बेशर्मी से पूरे देश में सुख चैन के आँकड़े लेकर प्रेस कांफ्रेंस करती 
रहती हैं ये जनता की पीड़ा से अपरिचित सरकारें या यूँ कह लें कि जनता से दूर
 रहकर केवल चुनावी खेल खेलने वाली सरकारें कभी भी समाज एवं देश हित में 
नहीं हो सकती हैं इन्हें अपने काम पर भरोसा ही नहीं होता है इसलिए हर चुनाव
 केवल उन्माद फैलाकर जी तना चाहती हैं!इन राजनैतिक दलों का उद्देश्य ही जन 
सेवा न होकर कैसे भी सत्ता में बने रहना होता है सत्ता  से हटते ही चेहरे 
की चमक चली जाती है। ये भावना ठीक नहीं है हर राजनेता के मनमें  समाज के 
लिए स्थाई सेवा भाव तो चाहिए ही जो अधिकांश नेताओं में नहीं  दिखता ऐसे में
 उन्माद फैलाकर चुनाव जीतने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प दिखता भी नहीं है
 जातिगत आरक्षण के रूप में बी.पी.सिंह जी ने भी उसी शार्टकट का ही सहारा 
लिया जो समाज के लिए दुखद साबित हुआ! 
    इसी 
राजनैतिक कुचाल से आहत होकर बेरोजगारी के भय से युवा वर्ग न केवल घबड़ा गया 
अपितु  आरक्षण के समर्थन और विरोध में संघर्ष पूर्ण आन्दोलनों में कूद पड़ा 
!जिस प्रकार से एक साथ एक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के समूह भी एक दूसरे
 से लड़ रहे थे जाति व्यूहों में बँट चुका था सारा देश !कितना दारुण दृश्य 
था वह! जब बड़ी संख्या में छात्र आत्म दाह करने पर मजबूर हो रहे  थे! उसी 
समय में पटना में आरक्षण विरोधी छात्रों पर सरकारी मशीनरी ने गोली चलाई 
जिसमें कई छात्र घायल हुए थे इसी में एक छात्र श्री शैलेन्द्र सिंह जी मारे
 गए थे जिनका दाह संस्कार वाराणसी के हरिश्चंद घाट पर किया गया था उस समय 
वहाँ बहुत भीड़ उमड़ी थी जिसमे बहुत सारे लोग रो रहे थे बड़ा भावुक वातावरण था
 मैं भी उसी भीड़ में खड़े रो रहा था !वह विद्यार्थी जीवन था मैंने उसी 
भावुकता  वश अपने मन में ही एक व्रत ले लिया कि अब मैं कभी सरकार से नौकरी 
नहीं मागूँगा !!!उसके बाद ईश्वर की कृपा से इतना पढ़ने के बाद भी आज तक 
सरकारी नौकरी के लिए किसी प्रपत्र पर कभी साइन तक भी नहीं किए हैं ये बात 
हमारे सैकड़ों मित्रों को पता है। मुझे लगा कि मैं भी तो उसी सवर्ण जाति से 
हूँ जिस पर दबाने कुचलने एवं शोषण करने के आरोप लगाए जा रहे हैं! हम 
सवर्णों के अधिकारों के लिए ही तो शैलेन्द्र सिंह जी का बलिदान हुआ है!
    इसके
 बाद आर्थिक तंगी और धनाभाव से होने वाली बहुत    सारी समस्याओं का सामना 
तो करना ही था जो  सपरिवार मैं आज तक कर भी रहा हूँ !बचपन में पिता जी का 
देहांत हो गया था संघर्ष पूर्ण जीवन जीते जीते माता जी भी असमय  में ही चल 
बसीं ! कुल मिलाकर परिस्थियाँ अच्छी नहीं थीं।केवल विद्या का साथ 
था।शैक्षणिक शोषण भी समाज के अर्थ संपन्न लोगों ने करने में कोई कोर कसर 
नहीं छोड़ी परिस्थियों का लाभ तो चालाक या सक्षम  लोग उठा ही लेते हैं!
     
मुझे  लगा कि जब अब नौकरी करनी नहीं है तो  शिक्षा का समाज हित में ही 
सदुपयोग किया जाए और जन जागरण किया जाए कि किसी जाति के पीछे रह जाने में 
सवर्णों का कोई हाथ नहीं है ये राजनेताओं के द्वारा गढ़े गए किस्से हैं। इस 
प्रकार आपसी भाईचारे की भावना भरना हमारा लक्ष्य था जिसके लिए कुछ प्राइवेट
    संगठनों से जुड़ा तो देखा  वो समाज सेवा तो कहाँ वो लोग समाज से केवल धन
 इकट्ठा करने की बात किया करते और सोचते भी यही थे!मुझे लगा कि यही करना है
 तो किसी राजनैतिक दल से जुड़ जाता हूँ सभी दलों और यथासंभव यथा सुलभ नेताओं
 से संपर्क किया किन्तु किसी ने मुझमें समाज सेवा के वो गुण नहीं पाए जो एक
 राजनेता में होने चाहिए!मेरे व्रती,शिक्षित ,सदाचारी,त्याग पूर्ण समाजसेवी
  जीवन   की बातें कहाँ पसंद की जाती हैं राजनीति में? वहाँ तो ऐसी बातें 
लिखकर भाषणों में पढ़ने के काम आती हैं। 
     इस प्रकार से सब जगह एवं सभी दलों से निराश अंततः अब मैं राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान नामक संस्थान के तत्वावधान में यथा संभव जन हित के कार्य करने का प्रयत्न करता रहता हूँ।
   
 यहॉं यह अपनी निजी कहानी लिखने का अभिप्राय केवल यह है कि इन राजनेताओं को
 अपने दलों में अपने साथ जोड़ने में न जाने किस शैक्षणिक या और प्रकार की 
योग्यता की आवश्यकता होती है जिन ईमानदार कार्यकर्ताओं के नाम पर वे जिनकी 
तलाश किया करते हैं न जाने वे कौन से भाग्यशाली लोग होते हैं,और वे अपनी किस योग्यता से अपनी ओर राजनैतिक समाज को प्रभावित किया करते हैं?मुझे
 तो केवल इतना पता है कि  हमारे जैसा शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति इन 
राजनैतिक लोगों के किसी काम का नहीं है तो आम ग्रामीण या सामान्य आदमी इन 
राजनैतिक या सामाजिक संगठनों से क्या आशा  रखे?अगर उसे अपनी कोई समस्या 
कहनी ही हो तो किससे कहे ?और यदि राजनैतिक क्षेत्र में जुड़कर कोई काम करना 
ही हो तो कैसे करे ?
     मेरा उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर  बनाना है, जिससे समाज अपनी हर 
जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग
आपसी भाई चारे से रह लेते थे!आज साधन बहुत हो गए हैं किन्तु उनका उपयोग
 बिलकुल नहीं के बराबर है मोबाईल हर किसी की जेब में पड़ा है किन्तु बात 
किससे करें! कारें दरवाजे पर खड़ी हैं किंतु जाएँ किसके घर? सबसे तो संबंध 
बिगाड़ रखे हैं! न जानें क्यों ? सरकारी कानून बल,सरकारी सोर्स सिफारिस बल 
धनबल कहाँ किसी के काम आ पा रहे हैं जो इनके सहारे रहा सो मरा !
     आज आधे 
अधूरे कपड़े पहनने वाली फैशनेबल लड़कियों की हिम्मत तो सरकार खूब बँधा  रही 
है कि आप जैसे चाहो वैसे रहो हम तुम्हारे साथ हैं तुम्हें कोई रोक नहीं 
सकता   किन्तु खाली हिम्मत बँधाने से क्या होता है लड़कियों की मदद कितनी कर
 पा रही है सरकार?पुराने ढंग से रहने में हमें पिछड़ा दकियानूसी रूढ़िवादी 
आदि कहलाने का खतरा है किन्तु सरकारी सुरक्षा के भरोसे तो खतरा ही खतरा है!अब ये 
हमें सोचना है कि सरकारी सुरक्षा बल के भरोसे अपनी छीछालेदर कराने के बाद 
भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहना है या बिना छीछालेदर कराए ही 
भारतीय संस्कृति की छाँव में सुरक्षित रहने  में भलाई है!चारों ओर आधुनिक 
फैशन में रहने पर खतरा ही खतरा है!
  
 सरकारों में जनसेवा की सोच ही आज कहाँ है किस घमंड में जी रहे हम लोग ? 
सरकारें पति पत्नी का तलाक कराने का कानून तो बना सकती हैं किन्तु पति 
पत्नी में प्रेम नहीं पैदा कर सकती हैं!जबकि प्रेम सबसे अधिक जरूरी है वो 
हमें ही करना है इसीप्रकार से पड़ोसी से लेकर सभी सम्पर्कियों से मुकदमा लड़ो
 तो सरकारें एवं कानून तुम्हारा साथ देंगे किन्तु यदि इनसे प्रेम करना चाहो
 तो इसके सूत्र न तो कानून में हैं और न ही  सरकारों के पास 
!किन्तु जो स्त्री पुरुष इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहे हैं उन्होंने सरकारी 
कानूनी सुरक्षा बल के घमंड में  अपने सारे सम्पर्कियों सम्बन्धियों से तलाक
 कर लिया है किन्तु सरकार कब कहाँ किसके काम आई है? राजनीति,राजनेता एवं 
सरकारें तो हर विषय में आश्वासन देकर धोखा देती रहती हैं!ये हर विषय में 
इनकी आदत में है!सरकार के खून में पाया जाने वाला यह गद्दारी दोष अब तो 
सरकारी  कर्मचारियों में भी आने लगा है! अब तो इनके मन में भी समाज के 
प्रति अपनापन खतम सा होता जा रहा है घूस दो तो काम होगा  अन्यथा नहीं होगा 
आप कानूनी अधिकारों की पर्चियाँ पकड़े घूमते रहो !लोगों का मानना है चूँकि घूँस आदि 
भ्रष्टाचार के माध्यम से लिया धन का हिस्सा जब सरकारी दुलारे राजापूत सरकार
 तक पहुँचा देते हैं तब अपने नौनिहालों पर खुश होकर सरकारें उन्हें महँगाई 
भत्ता बढ़ा चढ़ा कर देने लगती हैं सैलरी ड्योढ़ी दोगुनी आदि कुछ भी कर देती 
हैं वो कुछ काम करें न करें किन्तु सैलरी तो बढ़ानी ही होती है!अपनों को तो 
सरकार एक दम बरदान की तरह बाँटती रहती है दुश्मन तो केवल आम जनता है सरकार 
एवं सरकारी कर्मचारी दोनों ही आम जनता को पराया समझने लगते हैं! 
    सरकारी 
प्राथमिक  स्कूलों को ही लें उनकी पचासों हजार सैलरी होती है किंतु वो 
सरकारी दुलारे या तो स्कूल नहीं जाते हैं यदि गए  भी तो जब मन आया  या घर 
बालों की याद आई तो  बच्चों की तरह स्कूल से भाग आते हैं पढ़ने पढ़ाने की 
चर्चा वहाँ  कहाँ कौन  करता है और कोई करे भी तो क्यों? इनकी इसी लापरवाही
 से बच्चों के भोजन में  गंदगी  की ख़बरें तो हमेंशा से मिलती रहीं किन्तु इस बीच  तो जहर तक  
भोजन में निकला बच्चों की मौतें तक हुई हैं किंतु बच्चे तो आम जनता के थे कर्मचारी  
अपने हैं इसलिए थोड़ा बहुतशोर शराबा मचाकर ये प्रकरण ही बंद कर दिया जाएगा !
 आगे आ रही है दिवाली पर फिर बढ़ेगी सैलरी महँगाई भत्ता आदि आदि!
    अपने शिक्षकों
 को दो  चार दस हजार की  सैलरी देने वाले प्राइवेट स्कूल अपने बच्चों को 
शिक्षकों से अच्छे ढंग से पढ़वा  लेते हैं और लोग भी बहुत सारा धन देकर वहाँ 
अपने बच्चों का एडमीशन करवाने के लिए ललचा रहे होते हैं किंतु वही लोग फ्री में 
पढ़ाने वाले सरकारी स्कूलों को घृणा की नजर से देख रहे होते हैं! यदि सोच कर 
 देखा जाए तो लगता  है कि यदि प्राइवेट स्कूल न होते तो क्या होता? सरकारी 
शिक्षकों,स्कूलों के भरोसे कैसा होता देश की शिक्षा का हाल?
    
सरकार एवं 
सरकारी कर्मचारियों  के एक बड़े वर्ग ने जिस प्रकार से जनता के विश्वास को 
तोड़ा है वह किसी 
से छिपा  नहीं है आज लोग सरकारी अस्पतालों पर नहीं प्राइवेट नर्शिंग होमों 
पर भरोसा करते हैं,सरकारी डाक पर नहीं कोरियर पर भरोसा करते हैं,सरकारी 
फ़ोनों की जगह प्राइवेट कंपनियों ने विश्वास जमाया है! सरकार के हर विभाग का
 यही  हाल है! जनता का विश्वास  सरकारी कर्मचारी किसी क्षेत्र में नहीं जीत
 पा रहे हैं सच्चाई यह है कि सरकारी कर्मचारी जनता की परवाह किए बिना फैसले
 लेते हैं वो जनता का विश्वास जीतने की जरूरत ही नहीं समझते इसके 
दुष्परिणाम पुलिस के क्षेत्र में साफ दिखाई पड़ते हैं चूँकि पुलिस विभाग में
 प्राइवेट का विकल्प नहीं है इसलिए वहाँ उन्हीं से काम चलाना है चूँकि वहाँ
 काम 
प्रापर ढंग से चल नहीं पा रहा है जनता हर सरकारी विभाग की तरह ही पुलिस 
विभाग से भी असंतुष्ट है इसीलिए पुलिस और जनता के  बीच हिंसक झड़पें 
तक होने लगी हैं जो अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है उससे  भी ज्यादा चिंता  
का विषय यह है कि कोई अपराधी तो किसी वारदात के बाद भाग जाता है किन्तु 
वहाँ 
पहुँची पुलिस के साथ जनता अपराधियों जैसा वर्ताव करती है उसे यह विश्वास ही
 नहीं होता है कि पुलिस वाले हमारी सुरक्षा के लिए आए हैं !!! 
     इन सब  बातों को ध्यान में रखते हुए ही मैं सरकार एवं 
सरकारी कर्मचारियों  के सामने एक प्रश्न छोड़ता हूँ कि जनता का विश्वास 
जीतने की जिम्मेदारी  आपकी आखिर  क्यों नहीं है?
     मेरा मानना है कि यदि पुलिस
 विभाग की तरह ही  अन्य क्षेत्रों में भी प्राइवेट का विकल्प न होता तो 
वहाँ भी हो रही होतीं हिंसक झड़पें!मुझे अंदेशा है कि आरक्षण लीला की 
राजनैतिक सच्चाई जिस दिन जनता समझेगी उस दिन सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों 
 के विरुद्ध जो जनाक्रोश जनता में जागेगा वह भारतीय समृद्ध लोकतंत्र के लिए
 भयावह सुनामी की तरह होगा! इसलिए अभी भी समय है कि सरकार एवं सरकारी 
कर्मचारियों को  सारे छल कपट छोड़ कर जनता का विश्वास जीतने का प्रयास करना 
चाहिए !
      आज
 भ्रष्टाचार के आरोप हर विभाग पर लगाए जा रहे हैं इस देश की भोली भाली सीधी
 साधी जनता के साथ यह खुली गद्दारी है  जिसे छिपाने 
केलिए जनता को जाति संप्रदाय के नाम पर आरक्षण  की भीख बाँटते रहते हैं!वो 
भी लोगों के मस्तक पर केवल भिखारी होने का ठप्पा लगा देते हैं किसी को कुछ 
 देना 
ही होता तो आजादी के इतने दिन बीत गए लोगों की स्थिति अब तक सुधर गई होती 
और 
आरक्षण समाप्त भी हो गया होता, लोग आपस में भाईचारे से रहने भी  लगते 
किन्तु
 लाख टके का सवाल है कि फिर राजनीति कैसे होती ?अब तक आम जनता के हिस्से 
में केवल  आश्वासन  और उन्माद आते हैं!कि तुम्हारा शोषण किसने किया ! 
हिन्दू-मुश्लिमों को , आदमी-औरतों को ,  हरिजन -सवर्णों   को अलग अलग ढंग 
से  भड़काकर  लड़ाने का काम नेताओं ने संभाल रखा है केवल भाषण अमन चैन के 
देते हैं इनके इरादों में ही खोट है कैसे होगी समाज में शांति?      
वर्तमान
 समय में समाज  अपनी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान राजनीति में ही खोजने
 लगा  है उसका अपना मन मरता चला जा रहा है ! यही कारण है कि राजनेताओं के 
मनोबल इतने अधिक बढ़ गए हैं कि  वो हमेशा कुछ कुछ देने की बातें करने लगे 
हैं भीख में  वोट मँगाकर  जनसेवा का अधिकार पाने वाले राजनैतिक भिखारी आज 
जनता को भिखारी सिद्ध कर देने में लगे हैं! यह देश का दुर्भाग्य ही है!अब 
लोगों  स्वयं जाग  कर इन कुचालों का पर्दाफास करना होगा और जीतना होगा एक 
दूसरे का बहुमूल्य विश्वास यही हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान  का उद्देश्य समाज को आत्म निर्भर  बनाना है, जिससे समाज अपनी हर 
जरूरत के लिए सरकार की कृपा पर ही आश्रित न रहे!आखिर पुराने समय में भी तो लोग
आपसी भाई चारे से रह लेते थे! धन्यवाद!!!
 
 
 
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