Tuesday, August 27, 2013

किसी भी तीर्थ स्थल की परिक्रमा कभी भी हो सकती है

अयोध्या की परिक्रमा से परेशान राजनेताओं के झुंड!

    अधिकांश राजनेता राजनैतिक दल एवं सरकारें श्री राम भक्तों का अकारण उत्पीड़न केवल इसीलिए करती रहती हैं जिससे दूसरे समुदाय के लोगों को खुश कर सकें, संभव है कि वो समुदाय ऐसा न भी चाहते हों !अभी तक तो केवल विश्व हिन्दू परिषद् एवं संत समाज का ही यह उद्घोष रहता था किन्तु अब की बार  इस पवित्र परिक्रमा यात्रा पर लगाई गई रोक से तो न केवल यह सिद्ध हो गया अपितु सारे विश्व ने देख भी लिया और समझ गया कि देश के संत एवं हिन्दू संगठन हमेंशा से सच ही कहते रहे हैं !क्योंकि बिना किसी तनाव या धमकी के यदि दो ढाई सौ संत प्रतिदिन परिक्रमा करते तो कैसे सामाजिक सौहार्द्र बिगड़ जाता!   

     सच तो यह है कि स्वाभिमानी हिन्दुओं को सरकार एवं प्रशासन से एक बार पूछना चाहिए कि हिन्दुओं की किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधि साम्प्रदायिक कैसे मान ली जाती है ?दूसरी बात  उनके लिए केवल अल्प संख्यकों का वोट ही यदि इतना महत्त्व रखता है तो बहु संख्यक हिन्दू वर्ग को भी चाहिए कि वो भी अपने वोट के महत्त्व को न केवल समझे अपितु संगठित होकर उन्हें इस बात का एहसास भी करावे साथ ही उसी राजनैतिक दल के साथ जुड़े जो हिन्दुओं के सनातन प्रतीकों की रक्षा करने में सक्षम हो,हिन्दुओं के हितों का भी ध्यान रखे, साथ ही रामराज्य की पावन परम्पराओं के पथ पर अग्रसर रह कर भ्रष्टाचार मुक्त संस्कार युक्त सुशासन दे सके !

      जैसा कि कुछ लोगों ने तर्क दिया कि इस चतुर्मास के समय  में कोई भी धार्मिक यात्रा नहीं की जा सकती !क्योंकि इसका शास्त्रीय निषेध है! इस पर उनका तर्क है कि श्री राम ने भी बन में अपनी यात्रा रोक दी थी और पर्वत पर रह कर चातुर्मास किया था!

   इस पर मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि चातुर्मास एक व्रत होता है कुछ लोग इसका पालन करते हैं कुछ नहीं भी करते हैं जो नहीं करते उन पर चातुर्मास व्रत बल पूर्वक कैसे थोपा जा सकता है?इसका यह मतलब भी नहीं है कि वे अशास्त्रीय हैं क्योंकि वे और और प्रकार के व्रतों का पालन करते हैं उसमें चौरासी कोसी अयोध्या की परिक्रमा भी हो सकती है। ये हिन्दू धर्म के  व्रतों की प्रक्रिया है वो जैसे चाहें वैसे करें क्यों नहीं कर सकते ?यदि इससे साम्प्रदायिक तनाव फैल सकता है तो इसमें हिन्दुओं का क्या दोष?इसके लिए वो संप्रदाय जिम्मेदार हैं जो हिन्दुओं के धर्माचरण को सह नहीं पाते हैं! इसमें सरकार को कूदने की क्या जरूरत थी ?

    जहाँ तक श्री राम ने बन में अपनी यात्रा रोक दी थी की बात है, उसका अभिप्राय यह है कि बन पर्वत एवं दूर देश की यात्राएँ वर्षा बाढ़ आदि के उपद्रवों से बचने के लिए रोक दी जाती थीं न कि धर्म के लिए! यदि इसका कारण धर्म होता तो केवल धार्मिक लोग ही यात्रा बंद करते किंतु श्री राम अपना चातुर्मास व्रत पूरा होने पर स्वयं लक्ष्मण से कहते हैं कि देखो वर्षा का चातुर्मास समय समाप्त हो गया है इसलिए राजा ,तपस्वी, व्यापारी और भिखारी ये चारों लोग अपना अपना नगर छोड़ कर चल पड़े हैं यथा-

दो.चले हरषि तजि नगर नृप तापस बनिक भिखारि     इससे यह बात साफ हो जाती है कि श्री राम ने चातुर्मास व्रत को धर्म से न जोड़कर अपितु सुरक्षा से जोड़ा है। इस दृष्टि से अयोध्या की परिक्रमा से किसी को क्या आपत्ति होनी चाहिए ? 

    एक तर्क यह भी दिया गया कि इस समय देवता सो रहे हैं या दक्षिणायन सूर्य हैं इस लिए धार्मिक कार्य करने का निषेध है !इसलिए अयोध्या की परिक्रमा इस समय नहीं होनी चाहिए थी। 

       इसपर मेरा निवेदन यह है कि काम्य कर्म अर्थात जिस धर्म कार्य के बदले कोई कुछ पाना चाहता है उन्हें करने के लिए तो मुहूर्त का  बिचार किया जाता है किंतु निष्काम कर्म अर्थात भक्ति के लिए कोई धर्म कार्य कभी भी किया जा सकता है ।इसलिए अयोध्या की परिक्रमा इस समय होने में किसी को क्या और क्यों आपत्ति है ?

     एक तर्क यह भी है कि ऐसी यात्रा पहले कभी नहीं हुई अब क्यों हो रही है ?

    इस पर मेरा निवेदन है कि यदि लोकतांत्रिक संबिधान में संशोधन हो सकता है तो धार्मिक संबिधान में क्यों नहीं हो सकता ?वह भी तब जब किसी और को कोई हानि न पहुँच रही हो!

       कुछ दलों या लोगों को यदि इस बात की आपत्ति है कि इसमें विश्व हिन्दू परिषद् भाजपा को चुनावी फायदा कराने के लिए ऐसी धार्मिक यात्राओं के आयोजन कर रही है इस लिए यह धार्मिक यात्रा न होकर अपितु राजनैतिक यात्रा आन्दोलन है !

      इस पर मेरा निवेदन है कि यदि  ऐसा भी है तो इसमें गलत क्या है?वर्तमान समय में देश की परिस्थिति इस प्रकार की बन गई है कि बिना राजनैतिक पकड़ के जब कोई काम होता ही नहीं है तो श्री राम मंदिर कैसे बन जाएगा !ऐसे समय हिन्दुओं के सामने सबसे बड़ा प्रश्न है कि या तो श्री राम मंदिर बनाने की ईच्छा ही छोड़ दी जाए तो ऐसा संभव नहीं है यदि श्री राम मंदिर बनाना ही है तो बलपूर्वक बनाया जाए उससे हिंसा फैलेगी!तीसरा रास्ता कानून बनाकर मंदिर बनाने का है। कानून बनेगा संसद में वो भी सांसदों के बहुमत से,सांसद बनाने के लिए जनता का समर्थन चाहिए ही, जनता का समर्थन पाने के लिए जनता को जगाना और दिखाना होगा कि देखो तुम अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन भी नहीं कर सकते परिक्रमाएँ रोकी जा रही हैं ऐसे श्री राम मंदिर कैसे बना पाओगे?यह बात समाज भी समझेगा कि यदि अपने प्यारे प्रभु श्री राम का मंदिर बनाना है तो अधिक से अधिक सांसद जिताने पड़ेंगे जो सबके  सहयोग के बिना संभव नहीं है।इस प्रकार से सामाजिक जन जागरण के लिए संत शांति पूर्ण ढंग से धार्मिक आयोजन करते हैं हिन्दू संगठन होने के नाते विश्व हिन्दू परिषद् का नैतिक दायित्व बनता है कि वो न केवल संतों के संकल्प का समर्थन करे अपितु उसे कार्यान्वित भी करे!जो विश्व हिन्दू परिषद् करता भी है।

    वैसे भी हिन्दू संगठन और संत मंदिर बनाने की बात ही करेंगे इसी में उनकी प्रासंगिकता है और यही उनका कर्तव्य है जनता को भी उनसे ऐसी ही अपेक्षा है।इस प्रकार से न केवल श्री राम के मंदिर का निर्माण अपितु समस्त सनातन धर्मावलंबी प्रतीकों मर्यादाओं की सुरक्षा के लिए हिन्दू संगठन और साधू संत इसी पवित्र भावना से प्राण प्रण पूर्वक  समर्पित हैं।श्री राम मंदिर निर्माण हेतु सहयोग के लिए ईर्ष्या द्वेष के बिना सभी सम्प्रदायों संगठनों राजनैतिक दलों आदि से सहयोग का आह्वान भी इसी भावना से करते हैं,जैसे श्री राम प्रभु को मनाने के लिए जब भरत जी बन जाते हैं तो जो मिलता उसको प्रणाम तो करते हैं किन्तु उसके प्रति समर्पित नहीं होते समर्पण तो श्री राम प्रभु के प्रति ही रहता है यथा -

              करि  प्रनाम पूछहिं जेहि तेही।

              केहि  बन  राम  लषन वैदेही ॥ 

     यही स्थिति हिन्दू संगठनों  और संतों एवं सभी राम भक्तों की भी है ये श्री राम मंदिर विरोधी सम्प्रदायों के प्रमुखों एवं ऐसे राजनेताओं से भी मिलते हैं,जिन राजनैतिक दलों या नेताओं का समर्थन करते हैं उनसे भी मिलते हैं! इन सभी बातों विचारों का पवित्र उद्देश्य तो प्रभु श्री राम की प्रणम्य जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण ही है इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। 

    कुछ लोग कहते हैं कि विश्व हिन्दू परिषद्और संतों के द्वारा प्रायोजित अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा को बल पूर्वक रोक दिया गया,इन लोगों की पराजय हुई इन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला, कुछ धर्म से जुड़े लोगों ने भी इस यात्रा के समय महूर्त परम्परा आदि का सहारा लेकर यात्रा के विरोध में कुछ अशास्त्रीय आधारहीन कुतर्क दिए जिनका कहीं किसी भी मंच पर उद्घोषणा पूर्वक खण्डन किया जा सकता है किसी भी परिस्थिति में निष्काम  परिक्रमा या पूजा का कहीं भी निषेध नहीं है। 

      विश्व हिन्दू परिषद्और संतों के द्वारा प्रायोजित इस यात्रा का पवित्र उद्देश्य चूँकि श्री राम का मंदिर का निर्माण था तो लक्ष्य पवित्र होने के कारण प्रभु कार्य के लिए किए गए प्रयास यदि न भी सफल हों तो भी प्रयास जन्य पुण्य तो मिलता ही है! रही बात विश्व हिन्दू परिषद्और संतों के पराजय की तो प्रभु कार्य के लिए मिली पराजय भी पूजा की तरह ही होती है।प्रभु कार्य के पथ पर अग्रसर रामभक्तों का ध्यान जय और पराजय पर होता ही कहाँ है वहाँ तो ध्यान इस पर होता है कि अपने प्रयास में कहीं कोई कमी न रह जाए !जब रामभक्त श्री हनुमान जी लंका में बाँध  लिए गए तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा -

           मोहिं   न  कछु   बाँधे   कर  लाजा। 

           कीन्ह  चहहुँ  निज प्रभुकर काजा ॥ 

   इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सभी श्री राम भक्त संतों संगठनों आदि के प्रति हम एवं हमारा  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान हार्दिक कृतज्ञता करते हैं एवं इस प्रकार के जन जागरण के प्रयास के लिए बारबार आभार प्रकट करते हैं ।

             

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