ज्योतिष वैज्ञानिकों को पहचाना कैसे जाए !
कुछ उच्च कोटि के विद्वान ज्योतिषियों के विचारों एवं अनुभवों पर आधारित निम्न लिखित प्रश्नोत्तर हैं उनकी पीड़ा ही समाज के सामने रखने का प्रयास किया जा रहा है उनके प्रति लोगों के उदासीनता एवं दरिद्रता पूर्ण व्यवहार ने गंभीर ज्योतिष वैज्ञानिकों को अपने विषय में भी सोचने पर मजबूर कर दिया है जिसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं आज परिवार बिखर रहे हैं संस्कार नष्ट हो रहे हैं वैवाहिक सम्बन्ध टूट रहे हैं।प्राकृतिक आपदाओं की सूचना समय से पहले नहीं मिल पा रही है उत्तराखंड जैसी आपदाएँ इसका ही परिणाम हैं आदि आदि!
प्रश्न -क्या ज्योतिष एक विज्ञान है ?
उत्तर-जिस ज्ञान से मुहूर्त, वास्तु ,वर्षा,बाढ़ ,सूखा, बीमारी, महामारी, आकाश, पाताल, आदि से सम्बंधित भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की जानकारी मिलती हो वह शास्त्र विज्ञान ही हो सकता है। इसके अलावा भविष्य सम्बन्धी जानकारी देने वाला कोई दूसरा शास्त्र या आधुनिक विज्ञान में कुछ और हो भी नहीं सकता है और न है ही विज्ञान ने भविष्य जानने के लिए अभी तक किसी नई विधा का अन्वेषण ही किया है!
प्रश्न-क्या ज्योतिषी को वैज्ञानिक मानाजानाचाहिए ?
उत्तर-अवश्य,जो विद्वान् आकाश,पाताल, आदि से सम्बंधित भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान काल के विषयों की खोज बिना किसी लौकिक पदार्थ के कर लेता हो वो वैज्ञानिक ही हो सकता है उसे सामान्य पंडित पुजारी समझने की भूल करने वाले लोग उसकी विद्या का लाभ कभी नहीं ले पाते हैं।
प्रश्न-सामान्य पंडित पुजारियों और ज्योतिष वैज्ञानिकों में अंतर क्या होता है?
उत्तर- जिसने कुछ पढ़ा लिखा ही न हो अपितु केवल पंडितों जैसी वेष भूषा बनाकर अपने बच्चों का भरण पोषण करता हो ऐसे स्वरूपतः ब्राह्मणों से या मंदिरों के पुजारियों से ज्योतिष जैसे गंभीर विषय में किसी सच्चाई की आशा ही क्यों ?जहाँ तक ज्योतिष वैज्ञानिकों की बात है वो सरकारी विश्व विद्यालयों से ज्योतिष का कोर्स करके उच्च डिग्रियाँ लेते हैं।वे ही वास्तव में ज्योतिष पर यथार्थ वक्तव्य दे सकते हैं। बाकी जो जैसे लोगों के पास पूछने जाएगा उसके साथ वैसा व्यवहार होगा इसके लिए ज्योतिष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।
प्रश्न-क्या कारण है कि सौ प्रतिशत सच मानी जाने वाली भविष्य वाणियाँ गलत हो रही हैं ?
उत्तर- आज कुछ घुस पैठियों ने ज्योतिष जैसे गंभीर विषय को घायल कर रखा है जिनके जवाबों का सामना ज्योतिष वैज्ञानिकों को करना पड़ रहा है!कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ज्योतिष पढ़ तो नहीं पाए किन्तु चंचल, चापलूस, चाटुकार, शर्महीन,झूठे एवं नकलची होने के कारण न केवल ज्योतिषियों जैसी बातें करने लगे अपितु अपनी हर भविष्य वाणी की गारंटी लेने लगे,इसी प्रकार हर किसी के काम होने की गारंटी लेने लगे,इन गारंटियों का भाड़े के प्रशंसा कर्मियों से पैसे दे दे कर प्रचार प्रसार करवाने लगे पैसे के बल पर ही टी.वी.चैनलों तक पहुँचने लगे किन्तु था ये सब कुछ झूठ !इन लोगों का मानना होता है कि यदि हम सौ लोगों की भविष्य वाणी गारंटी पूर्वक करेंगे तो दस बीस जितने पर भी सही हो जाएगी वो न केवल पैसे देंगे अपितु प्रचार प्रसार भी करते घूमेंगे बाकी लोग भाग जाएँ तो जाने दो नए आ जाएँगे! बंधुवर, ये सब तो ठीक है किन्तु जिनके विषय में इनका तुक्का सही लगा होता है वो सबसे अधिक खतरे से खेल रहे होते हैं!इन्हें सँभलना चाहिए।वैसे ऐसे भविष्य भौंकने वाले लोग न कुछ पढ़ते हैं और न ही पढ़ना चाहते हैं या जो लोग पढ़े लिखे हैं भी वे ज्योतिष नहीं पढ़े हैं,उनसे ज्योतिष जैसे विज्ञान की आशा ही क्यों रखनी?
कुछ और लोग भी हैं जो यद्यपि पंडित नहीं होते हैं किन्तु लंगड़े, लूले,काने ,कैंचे,टेढ़े ,मेढ़े अर्थात बिकलांग या धनहीन शराबी कबाबी या किसी और प्रकार के नशा या लत के शिकार जब रोजी रोटी कमाने लायक नहीं रह जाते हैं तब पंडिताई बेचने लगते हैं।ऐसी ही कुछ महिलाएँ भी इस क्षेत्र में कूद पड़ी हैं वो भी बेंच रही हैं ज्योतिष!ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या किसी भी प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?
पंडित-जो अपने विद्या बल से एवं परिश्रम पूर्वक परिवार पालना चाहते हैं।यह वर्ग पंडितों का होने के कारण कुछ पढ़ा लिखा भी होता है। इनकी पढ़ाई की कोई सीमा रेखा यद्यपि नहीं होती है फिर भी ये कम ज्यादा कुछ भी पढ़े हो सकते हैं किन्तु ये बेशर्म,लप्फाज एवं धोखे बाज कम होते हैं जितना जानते हैं उतना ही बोलते हैं।विद्वान होना इनके लिए अनिवार्य नहीं होता है,किन्तु ये लोग सदाचरण का ध्यान रखते हैं।
ये लोग स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके अपने बच्चे पाल लेते हैं इनके बीबी बच्चे इनके ही आधीन रहते हैं।यद्यपि कई जगह इस वर्ग के लोग भी स्वाभिमान पूर्वक परिश्रम करके पुजारियों का काम भी करते हैं किन्तु पुजारी रहते हुए भी इनका सम्मान सुरक्षित बना रहता है। इनमें पवित्रता के संस्कार बने रहते हैं ।
प्रश्न- भ्रष्टाचार के कारण क्या ज्योतिष का भी नुकसान हुआ है?
उत्तर -सामान्य अपराधियों की तरह ज्योतिष के क्षेत्र में भी अपराधियों का बोलबाला है।जहाँ एक दिन बीस मिनट एक टी.वी. चैनल पर झूठी ज्योतिषीय बकवास करने के लिए किसी एक को दस से बीस हजार के बीच देने होते हैं। जो लोग एक साथ ही कई कई टेलीविजन चैनलों पर वर्षों से यह सब कर रहे हैं उनका महीने का बिल हो सकता है कि करोड़ों में हो!आखिर यह पैसा कहाँ से आता होगा?उस पर भी जिसके पास ज्योतिष की शिक्षा बिलकुल हो ही न और ज्योतिष शिक्षा की डिग्री भी न हो!फिर भी यदि ये कहते हैं कि मैं ज्योतिष जानता हूँ तो अपने को विश्व का नंबर वन ज्योतिषी कहने वाले शास्त्रीय लुटेरे उत्तराखंड के इतने बड़े जन संहार से अनजान कैसे बने रहे!और नहीं तो इस घटना को पहले पता लगा लेने का प्रमाण क्या है और सबूत क्या है ?इसके बिषय में पहले कहा क्या और किया क्या है ?इन सब बातों को सामने रखकर समाज में व्याप्त ज्योतिषीय भ्रष्टाचार का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। यह सबको पता है फिर भी सबकुछ चल रहा है।ऐसे किसी भी व्यक्ति से ज्योतिष या अन्य किसी प्रकार के ज्ञान विज्ञान की आशा ही क्यों करनी?
ज्योतिष वैज्ञानिक- इन सबसे ऊपर शास्त्रीय एवं संवैधानिक सीमाओं से बँधा हुआ यह वह वर्ग है जो ज्योतिष विद्या के विषय में समाज के प्रति जवाब देय होता है यह वर्ग ज्योतिष विद्या का न केवल सम्पूर्ण रूप से अध्ययन करता है अपितु ज्योतिषीय भ्रष्टाचारियों के कारण पवित्र ज्योतिष विद्या पर होने वाले हमलों को झेलता भी है।इनके लिए ज्योतिष विद्या की सर्वोच्च शिक्षा न केवल अनिवार्य है,अपितु किसी प्रमाणित संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिष विषय में एम.ए.पी.एच.डी. जैसी उच्च डिग्रियाँ भी ये लोग हासिल करते हैं।इनके सामने कम पढ़ाई करने का कोई विकल्प ही नहीं होता है इन्हें न केवल अपने विषय(Subject) की सम्पूर्ण जानकारी रखनी होती है अपितु इसके लिए उसके ही सिद्धांतों के अनुशार चलना भी होता है। जिस बात का प्रमाण शास्त्र से नहीं दिया जा सकता ऐसी झूठ बात ज्योतिष वैज्ञानिक लोग बोलते ही नहीं हैं।
आजकल कहीं भी सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि की पढ़ाई एवं परीक्षाएँ होती हैं।जिनकी सर्वोच्च पढ़ाई करके उच्च डिग्री हासिल करने वाले ऐसे विद्वान् लोग ही ज्योतिष वैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी होते हैं जो डाक्टर इंजीनियरों की तरह ही किसी की श्रृद्धा के गुलाम नहीं होते,दरिद्रों को मुख लगाना इनका स्वभाव ही नहीं होता है क्योंकि दरिद्रता करने वाले लोग ज्योतिष वैज्ञानिकों का पारिश्रमिक या तो देना नहीं चाहते हैं या फिर कम देना चाहते हैं या गिफ्ट आदि देकर स्वार्थ साधना चाहते हैं जिसके बदले में ज्योतिष वैज्ञानिकों को उनके प्रश्नों पर बिना परिश्रम किए ही जान बचाने के लिए यथा संभव कुछ बोलना पड़ता है जो सच्चाई से लगभग दूर होता है ये उनकी मज़बूरी है। इसप्रकार उनकी आदत झूठ बोलने की पड़ती जाती है जिस कारण उनकी विद्या ,कीर्ति ,आदि धूमिल पड़ने लगती है।
जिन लोगों के अपने लड़के उस ज्योतिष वैज्ञानिक की अपेक्षा कम पढ़े लिखे या अयोग्य होते हैं फिर भी उनकी कुंडली इसलिए दिखाने लाते हैं कि ये लाखों करोडों रुपए महीने कैसे कमाएँ !जिससे पूछने गए ज्योतिष वैज्ञानिक को मात्र सौ दो सौ रुपए देकर बेवकूप बना देना चाहते हैं।कई बार तो कोई परिचय निकालकर,या घर पर पड़ी हुई या बाजार से कोई यूजलेस चीज लेकर हँसते मुस्कुराते हुए ज्योतिषी के पास चले जाएँगे केवल इसलिए कि जिस लाभ के लिए ज्योतिष वैज्ञानिक के पास जा रहे हैं उस लाभ में बनने वाला उसका हिस्सा न देना पड़े ! कई लोग तो इतने ड्रामेबाज होते हैं कि साल में एक आध तिथि त्योहारों पर गिफ्ट नाम की कोई चीज ज्योतिषी को केवल इसलिए दे आते हैं कि आने वाले साल भर उस विद्वान् से फ्री में गुलामत कराई जा सके !सोचने लायक है कि उच्च कोटि की शिक्षा लेकर कोई विद्वान् किसी की ऐसी ओछी हरकतें क्यों सहेगा?क्यों करेगा उसके लिए परिश्रम?
जिसके लाभ होने से ज्योतिष वैज्ञानिक को लाभ न हो उसे कोई हानि हो जाए तो हो जाए!इसकी चिंता ज्योतिष वैज्ञानिक क्यों करे?
इसप्रकार से अपमानित एवं उपेक्षित ज्योतिष वैज्ञानिक उसके लिए जो कुछ कर पाएगा वो सच न होगा और न ही ऐसी आशा ही करनी चाहिए !
प्रश्न- पहले तो संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि शिक्षा एवं डिग्रियों की व्यवस्था नहीं थी ?
उत्तर-उस समय राजा लोग समय समय पर विद्वानों की परीक्षा स्वयं लिया करते थे।जैसे -वर्षा आदि के विषय में बहुत पहले से भविष्यवाणियाँ करा लेते थे इसके लिए समय समय पर विषय बदलते भी रहते थे। ऐसी ही परीक्षाओं में सफल होने पर विद्वानों का राजा लोग सम्मान किया करते थे साथ ही उन्हें राज ज्योतिषी आदि की उपाधियाँ दी जाती थीं तब उस तरह की राजकीय व्यवस्था थी तो विद्वान् उसका सम्मान करते थे आज संस्कृत विश्व विद्यालयों में ज्योतिष विषय में एम. ए.,पी .एच. डी.आदि शिक्षा एवं डिग्रियों की सरकारी व्यवस्था है तो विद्वान् लोग इनका सम्मान करते हैं। बाकी बिना पढ़े लिखे झुट्ठे लोगों को तो नेकर पहनना नाक पोछना भी आ जाता है तो उन्हें लगने लगता है कि यह मेरी रिसर्च है यदि वास्तव में इन्होंने पढ़ा है तो ज्योतिष के किसी विश्व विद्यालयी कोर्स का सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं पड़ती है ?
प्रश्न-पहले ज्योतिष विद्वानों के द्वारा की गई भविष्य वाणियाँ जितनी सच हुआ करती थीं अब क्यों नहीं होती हैं ?
उत्तर-पहले के ज्योतिषियों के भरण पोषण की अत्यंत उत्तम व्यवस्था राजा लोग स्वयं करते थे जिससे उनका परिवार संतुष्ट रहता था तो विद्वान् लोग भी ज्योतिषीय भविष्यवाणियों के लिए जितने परिश्रम की आवश्यकता होती थी वो सम्पूर्ण परिश्रम बेहिचक करते थे जिससे उनकी भविष्यवाणियाँ भी सच हुआ करती थीं ।उस ज़माने में लोगों के मन में ज्योतिषियों का वैज्ञानिकों की तरह का सम्मान हुआ करता था।अपने से अधिक विद्वानों की सुख सुविधाओं का ध्यान रखा जाता था तब विद्वानों में भी दूसरे का काम करने का उत्साह होता था ।
आज लोग अपनी कोठी बंगला बनाने के लिए ज्योतिष वैज्ञानिकों से अपेक्षा रखते हैं कि वो उनके लिए जी जान लगा दें जिससे उनकी कोठी बंगला बन जाए या व्यापार चल जाए !शादी हो जाए या संतान हो जाए आदि आदि और वो राजा महाराजाओं के लिए उस सुख सुविधा का भोग करें! किन्तु कोई ज्योतिष वैज्ञानिक उसके इस स्वप्न को पूरा करने में साथ क्यों दे ?आखिर ज्योतिषी ऐसा क्यों करे ?किसी के राजा महाराजा बन जाने से उस ज्योतिषी का आखिर क्या भला होगा ?
जिसको ज्योतिष विद्वानों की सुख सुविधाओं तथा साधन सम्पन्नता से लेना देना न हो उसके सत्यानाश को सौभाग्य में बदलने के सूत्र कोई ज्योतिषी क्यों खोजे ?क्यों ढोता फिरे ऐसे समाज का कोढ़?रही बात सौ दो सौ पाँच सौ रुपए देने की आज की महँगाई के युग में उसकी कोई कीमत नहीं है वो तो लेबर मिस्त्री मजदूर भी कमाकर खर्च कर देते हैं।ऐसी दरिद्रता करने वाले लोगों के लिए अच्छे अच्छे विद्वान् ज्योतिषियों को उसके लिए परिश्रम करने में भी दरिद्रता करते देखा है।वो भी सोच लेते हैं कि यदि हमारी ज्योतिष संबंधी बात गलत भी होगी तो जो सौ दो सौ पाँच सौ रुपए ये हमें दे देते हैं वो नहीं देंगे और हमारा क्या बिगाड़ लेंगे? सच भी यही है कि किसी विद्वान् के विषय में जो जितनी गिरी हुई सोच लेकर उसके पास जाता है उस विद्वान् को भी उसके साथ उतना ही गिरा वर्ताव करने का अधिकार है!शास्त्र सम्मान के लिए यह आवश्यक भी है।इसलिए जिसकी ज्योतिष शास्त्र एवं ज्योतिष वैज्ञानिक के प्रति आस्था न हो तो उसे ज्योतिष विद्वान् के पास जाना ही नहीं चाहिए। यदि जाए तो पूरी आस्था लेकर जाए!
यदि आपने अपने सारे जीवन में परिश्रम पूर्वक धन कमाया है तो ज्योतिषी ने अपने सारे जीवन में परिश्रम पूर्वक विद्या कमाई है जितना लगाव आपका अपने कमाए हुए धन से है उतना ही लगाव ज्योतिषी का उसकी विद्या से होता है।
जितनीजिसकीहिस्सेदारी।उतनी उसकी भागीदारी।। आप अपनी कमाई हुई संपत्ति में जितनी भागीदारी ज्योतिषी को देंगे ज्योतिषी भी अपनी कमाई हुई विद्या में उतनी ही भागीदारी आपको देगा!
जिस तरह अपनी संपत्ति में भागीदारी देते समय आपकी सोच केवल कुछ देने की होती है आपका दिया हुआ ज्योतिषी के काम आवे न आवे कितना आवे इससे उसका कुछ काम बने या न भी बने! ज्योतिषी के पास हमें खाली हाथ नहीं जाना चाहिए केवल इसलिए जो कुछ दे दिया सो ठीक है।बंधुओ,यही भाव ज्योतिषी का सामने वाले के प्रति भी होता है कि जो कर दिया सो ठीक है!खाली हाथ लौटाना नहीं चाहिए इसलिए कुछ समझा कर भेजो वह झूठ ही क्यों न हो ! किसी के स्वास्थ्य, जीवन, परिवार, व्यापार आदि के विषय में ज्योतिषी का यही रुख होता है!इस प्रकार किसी व्यक्ति के विषय में ज्योतिषी के द्वारा बताया गया आधा अधूरा सच कितना घातक होता होगा ?इन विषयों में ज्योतिषी की थोड़ी सी चूक या लापरवाही या आधे अधूरे सच से कितनी भारी हानि हो सकती है!
प्रश्न- सबका भला करने वाले ज्योतिषी अपना भला क्यों नहीं कर लेते ?
उत्तर-ईश्वर किसी को विद्या देता है किसी को धन देता है सबको सब कुछ एक साथ नहीं देता है इसीलिए इस दुनियाँ में सबका काम सबके सहारे चला करता है।
आप स्वयं कल्पना कीजिए -
यदि आप अपनी लंबी आयु या
स्वास्थ्य के बिषय में जानना चाहते हैं
यदि आप उत्तम पति या पत्नी चाहते हैं
अच्छी बहू या दामाद चाहते हैं
यदि आप उत्तम व्यापार एवं सुख शान्ति
पूर्ण अपना परिवार देखना चाहते हैं
यदि आप माता-पिता तथा भूमि, भवन,
वाहन सुख के बिषय में जानना चाहते हैं
लोगों के ऐसे गंभीर प्रश्नों का शास्त्रीय उत्तर खोजने के लिए जितने परिश्रम की आवश्यकता होती है कुशल ज्योतिष वैज्ञानिक चाहते हुए भी उस प्रक्रिया को केवल इसलिए पूरा नहीं कर पाते और जो मुख में आता है सो बक देते हैं लोग उसे भविष्य वाणी समझ लेते हैं! क्योंकि ज्योतिषी उसकी श्रृद्धा से संतुष्ट नहीं होता है-
वैसे भी किसी का काम उसके लिए कितना महत्व रखता है ये उसकी श्रृद्धा से पता लगता है ज्योतिषी के प्रति श्रृद्धा कितनी है ये उसे किसी के द्वारा दिए गए धन से पता लगती है जिसके प्रभाव से वह काम करता है।
ज्योतिष शास्त्र गहराई में समुद्र के समान होता हैअपना बर्तन जितना बड़ा होता है समुद्र उतना ही जल देता है अधिक नहीं !
ज्योतिष शास्त्र तेज में बिजली के समान है किंतु जितने बॉड का बल्व होता है प्रकाश उतना ही होता है।अधिक नहीं !
ज्योतिष शास्त्र वेदों का नेत्र माना गया है जैसा चश्मा होता है वैसा दिखाई देता है अधिक नहीं !ज्योतिषं नयनं प्रोक्तम् ।
ज्योतिष शास्त्र देवता के समान है जितना श्रृद्धा विश्वास और समर्पण होगा उतना ही लाभ होगा।अधिक नहीं !
विद्याध्ययन एवं त्याग तपस्या पूर्ण,अत्यंत अनुशासित जीवन से थके हुए ज्योतिष विद्वानों से अब और अधिक त्याग, बलिदान की आशा नहीं रखनी चाहिए !
जो लोग केवल अपने को ही परेशान समझते हैं जो लोग केवल अपने को ही परिचित समझते हैं जो लोग केवल अपने को ही चालाक समझते हैं जो केवल अपने गुणों,शिक्षा,समय की ही कीमतसमझते हैं
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