Wednesday, August 28, 2013

क्यों नहीं होती है अब आश्रमों में साधना की सुगंध ?

टेलीवीजनी बाबाओं ने बदनाम किए ज्योतिष ,वास्तु ,सत्संग,साधना,  साधू और आश्रम !

     गुरु महात्मा साधू संन्यासी बाबा बैरागी जैसे पवित्र लोगों के नाम पर कुछ कामचोर धर्म एवं धर्म शास्त्र व्यापारियों ने धार्मिक परिस्थितियाँ बहुत बिगाड़ दी हैं।इनकी झूठी लप्फाजी बातों पर लोग न केवल भरोसा करने लगे   हैं अपितु इनके धंधे से जुड़ने  भी लगे हैं!

      जब तक ऐसे बाबाओं के पाप का शिकार दूसरे तीसरे लोग बनते रहते हैं तब तक तो ऐसे चेला चेली लोग उनकी रास लीला की वकालत करते रहते हैं जब ब्यभिचार के छींटे उन चेला चेलियों या उनके सगे सम्बन्धियों पर भी पड़ने लगते हैं तब कुछ लोग तो शोर मचाते हैं कुछ स्त्री पुरुष उसी ब्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हैं और वे अज्ञानी लोग इसी को बाबा के द्वारा समझाई गई श्री राधाकृष्ण की दिव्य रास लीला समझने की भयंकर भूल कर बैठते हैं !इनसे प्रेरित हो हो कर भीड़ बढ़ने लगती है और बढ़े भी क्यों न! जहाँ रोज बदल बदल कर सभी प्रकार के भोजन भोग मिलते हों और साधुओं जैसा सम्मान भी! ऊपर से भोजन वस्त्र रहन सहन के खर्च की चिंता भी न हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा ऐसी जिंदगी जीने के लिए ?जिस बाबा की छत्र छाया में ऐसे सारे सुख सुलभ हो रहे हों उसे लोग बापू जी क्या बाप जी भी कहने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए!ऐसे बाबाओं के बचाव में इन बाबाओं के गिरोह के सभी लोग इसलिए गला फाड़ फाड़ कर चीखने चिल्लाने लगते हैं,क्योंकि बाबाओं के साथ साथ उनके अपने ब्यभिचार के  पोल खुलने का भय भी  सता रहा होता है। 

      एक धार्मिक संस्था का संस्थापक होने के नाते मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि आजकल बाबा बलात्कारों में आरोपित क्यों हो रहे हैं वो कितना सच या झूठ है ये तो वो जाने जो शिकार हुए और वो जानें जिन्होंने शिकार किया बाकी काम कानून का है जो गवाहों और साक्ष्यों के आधीन है।

     और तो जो होगा सो होगा हमारी चिंता इस बात की है कि ऐसा कब तक चलेगा?ऐसी परिस्थिति में समाज की धार्मिक,नैतिक आदि खुराक पूरी कौन करेगा?यदि यही चलता रहा तो यह धार्मिक ब्यभिचार उस सामान्य ब्यभिचार से अधिक घातक हो जाएगा!फिर कौन मानेगा धर्म कर्म कौन सिखाएगा नैतिकता का पाठ?कैसे बच पाएँगी सुरक्षित बच्चियाँ!आज बात बात में गोली चल जा रही है लोग मार एवं मर रहे हैं!बच्चियों पर तेजाब फ़ेंका जा रहा है!परिवार टूट रहे हैं समाज बिखरता जा रहा है वृद्धों की उपेक्षा हो रही है!धर्म भय नाम की बात ही समाप्त हो चली है जिससे मानव मन का शोधन होता था!आज हर धार्मिक व्यक्ति धनार्जन की ओर भाग रहा है बाबा ब्यूटी पार्लर जा रहे हैं !समाज में बढ़ते अपराध के लिए केवल सरकार या पुलिस ही जिम्मेदार नहीं है अपितु हमारा धार्मिक समाज एवं शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है!

    धर्म भय बिहीन कर्मचारी बिना घूस लिए एक कदम नहीं बढ़ाना चाहते !अधिक खर्चा करके भी सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से पराजित हैं,सरकारी डाक कोरियर से,सरकारी फोन प्राइवेट फ़ोन से इसी प्रकार सरकारी अस्पताल प्राइवेट अस्पतालों से पराजित हैं पुलिस में प्राइवेट व्यवस्था नहीं है तो अपराधियों के हौसले बुलंद हैं । 

      धार्मिक एवं शिक्षित जगत की लापरवाही के कारण नैतिक एवं धार्मिक भय घट रहा है इसकी पूर्ति कहाँ से हो !

     आज हाईटेक आश्रमों का प्रचलन बढ़ रहा है इस प्रकार के आश्रम तपस्या के अनुकूल नहीं अपितु बासना के अनुकूल बनाए जा रहे हैं दूर से ही देखकर पता लग जाता है कि इसमें कैसी कैसी तपस्या होती होगी कौन कौन लोग ठहरते होंगे!एक बड़ा सा आश्रमनुमा फार्म हाउस होता है उसके किसी कोने में दस पाँच कमरे बने होते हैं उसमें भी बिल्कुल एकांत में राजा महराजाओं की तरह के बेडरूम बने होते हैं।वहाँ मुख्य गेट से बेड रूम तक फार्म हाउस के मालिक संत नुमा बाबा की मर्जी के बिना परिंदा पर भी नहीं मार सकता!वहाँ सौ नहीं लाख गलत काम हों उस बाबा के विरुद्ध गवाही कोई क्यों देगा !वो भी वो जो इस प्रकार की बातों को छिपाने की ही सैलरी पाता हो ऐसा चौकीदार! दूसरी बात अपने बीबी बच्चों के लिए बिना परिश्रम किए दो रोटी उसे भी कमानी हैं।

    ऐसे आश्रम बाबाओं के नाम पर बनते और चलते जरूर हैं,बाबाओं की फोटो लगती है किन्तु बाबा जी कभी कदा भले आ जाएँ बाकी तो इनमें और और प्रकार की तपस्या और और लोग ही करते हैं वही उठाते हैं यहाँ के भारी भरकम खर्च !वो राजनीति एवं अर्थ नीति के बड़े बड़े खिलाड़ी होते हैं,अन्यथा  ऐसे आश्रमों में लगाई जाने वाली भारी भरकम धनराशि आती कहाँ से है?बाबा जी देते हैं तो वो कहाँ से लाते हैं सत्संग करके !सत्संग के हाईटेक कार्यक्रमों के आयोजनों से लेकर प्रचार प्रसार में जो धन खर्च होता है वही उन कार्यक्रमों से निकल पाना मुश्किल होता है फिर फार्म हाउसी आश्रमों का खर्च वहाँ कहाँ से निकलेगा ?रही बात सत्संगों की!जितने ये हाईटेक फार्म हाउसी बाबा हैं कभी जाकर देखो इनके सत्संग नाम के मिलन शिविरों में कोई धर्म कर्म का आचार व्यवहार नहीं होता कुछ रटी रटाई बातें बोलने सुनने की रस्म अदायगी भर  होती है बाकी तो जो होता है वही होता है लोग खुशी में झूम रहे होते  हैं और लगा रहे होते हैं बाबा जी के जयकारे!इस प्रकार से महीनों वर्षों के बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं में छलक रहा होता है आत्मानंद!

    बाबा जी के नाम या फोटो का लाकेट पहनने एवं घर में फोटो सजाकर रखने से बाबा जी के गिरोह से सम्बंधित लोगों में आपसी प्रेम बहुत जल्दी हो जाता है, फेस बुक पर परिचय किया और बाबा जी के सत्संग शिविरों में मिलन हुआ घर वालों को पता ही नहीं लग पाता है वहाँ सबकुछ हो जाता है जवान लड़के लड़कियाँ ऐसे बाबाओं को मन से खूब आशीर्वाद देते हैं जिन्होंने सत्संग शिविरों के नाम पर मिलने का अवसर उपलब्ध करवाया!

      एक परिवार की लड़की को अचानक एक बाबा जी के सत्संग शिविर में जाने की ईच्छा हुई वो पहले भी एक बार जा चुकी थी इसलिए किसी की बात न माने घर वाले मेरे पास आए कि मैं उसे समझाऊँ।जब मैंने सब से अलग अलग बात की तो घर वालों से उस लड़की के स्वभाव के बारे में पता लगा कि उसमें कोई दुर्गुण नहीं है भगवान की भक्ति में मन लगता है अपने गुरू जी का लाकेट पहनती है पिछले बार भी  हरिद्वार में किसी गुरू जी के सत्संग शिविर में पड़ोस की आंटी के साथ गई थी किन्तु अबकी बार वो हैं नहीं अकेले कैसे भेजूँ ?यह सब सुनकर मैंने लड़की से बात की वह सत्संग  शिविर में जाने की जिद कर रही थी। मैंने उसे समझाया कि तुझे भजन ही करना है तो घर बैठ कर कर ले ईश्वर तो सब जगह है आदि आदि, तब उसने किसी को न बताने की शर्त पर बताया कि वहाँ उसका प्रेमी आया होगा उससे बात हो चुकी है इसलिए जाना जरूरी है मैं पहले भी उसके साथ सात दिन रह कर आई हूँ। यह सुनकर मैंने पूछा कि पिछली बार तो तुम किसी आंटी के साथ गए थे तो वहाँ प्रेमी के साथ रहना कैसे संभव हुआ ?उसने बताया कि आंटी भी किसी के साथ प्रेम करती हैं जिससे करती हैं वो भी हर शिविर में आता है आंटी का ऐसा बहुत दिन से चल रहा है यह तरकीब भी मुझे आंटी ने ही बताई थी कि इससे कोई शक भी नहीं करता और मिलने का बहाना भी बन जाता है। यह सब सुनकर मैं समझ गया कि ये सत्संग से उपजा कुसंग है और मैंने उन्हें बिना समझाए बुझाए वापस भेज दिया !ज्योतिष का काम होने के नाते लोगों की समस्याओं का अनुभव होता  रहना स्वाभाविक ही है।

       ऐसे ऐकान्तिक आश्रम नुमा फार्म हाउसों में बाबा सारे साल में दो चार दस बार ही मुश्किल से  पहुँच पाते होंगे किन्तु दूर से चमक रहे इन विशाल आश्रमों के रख रखाव पर खर्च होने वाली इतनी मोटी धनराशि देता कौन है यदि बाबा जी को वहाँ रुक कर साधना करने का समय ही नहीं था अथवा यदि बाबा जी को वर्ष में दो एक दिन ही रुकना था तो उसके लिए इतनी बड़ी धन राशि का दुरूपयोग क्यों ?

        एक बार किसी ऐसे ही आश्रम के चौकीदार से मैं ऐसा ही प्रश्न कर बैठा तो पता लगा कि ये किसी साहूकार का फार्म हॉउस है यहाँ अक्सर लड़कियाँ लाई जाती थीं मनाई जाती थीं रंग रैलियाँ !एक बार किसी की सूचना पर पुलिस का छापा पड़ गया तो बड़े बड़े लोग एवं कई लड़कियाँ यहाँ से पकड़ी गई थीं काफी रुपए लगे थे तब जान बची थी फिर बाबू जी किसी की सलाह पर एक प्रसिद्ध बाबा के चेला बन गए एक दिन बाबा जी को यहाँ घुमाने भी लाए थे बाबा जी ने ही इसका उद्घाटन किया था तबसे आश्रम के गेट पर बाबा जी की फोटो लगी है उन्हीं के नाम पर आश्रम का नाम भी है। आश्रम के नाम पर एक पंडित जी आकर हवन कर जाते हैं गो शाला में दो तीन गाएँ पली हैं जिनका दूध बाबू जी के यहाँ जाता है वहीं एक टीना में गुड़ रखा है जब कोई श्रृद्धालु आता है तो हमसे कहा गया है कि गायों को गुड़ खिलाने लगना मैं ऐसा ही करता हूँ!

    अब तो यहाँ आदमी औरतें कोई भी आवें किसी को कोई शक नहीं होता है!बाकी अब भी यहाँ उसी तरह मौज मस्ती चलती है कई बड़े बड़े अधिकारी नेता लोग आदि भी सम्मिलित होते हैं किन्तु अब न तो कोई शिकायत करता है और न ही पुलिस आती है सारा खर्चा पानी बाबू जी ही करते हैं वैसे तो बाबा जी का यहाँ से कोई लेना देना नहीं है हम लोगों को बेतन भी बाबू जी ही देते हैं।अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पिछले साल बाबा जी के लड़के को किसी ने बताया होगा कि आपका एक आश्रम यहाँ भी है तो वो यहाँ आए थे वो कहने लगे कि आश्रम हमारा है तो बाबू जी ने उन्हें बताया कि मैं तो बाबा जी के रुकने के लिए देता हूँ वैसे तो हमारा ही है यह सुनकर उनमें और बाबू जी में विवाद हो गया था तो बाबा जी के नाम कागज तो थे नहीं फर्जी कब्जे का शोर मचा! तब से तो कोई यहाँ आता नहीं है अब तो सब कुछ बाबू जी ही देखते  करते हैं !

    वास्तविक संत झूठ फरेब धोखाधड़ी चोरी छिनारा बदमाशी ब्याभिचार आदि सभी प्रकार के प्रपंचों से दूर रहने वाले विरक्त संत न तो किसी नेता की चाटुकारिता करते हैं और न ही किसी धनी सेठ साहूकार की! इसी लिए उन्हें भी न कभी कोई नेता घास डालता है और न ही कोई धनी सेठ साहूकार आदि! किन्तु उन्हें इसकी परवाह भी नहीं होती है वो शास्त्रों के अनुशार जीना चाहते हैं और भगवान के भरोसे रहना चाहते हैं जो मिला जहाँ मिला वहाँ अपने संन्यास धर्म की मर्यादा के अनुशार उसे ईच्छा हुई तो स्वीकार किया अन्यथा बिना परवाह किए छोड़ कर चल दिए !ये संन्यासी हमारे प्रणम्य महापुरुष हैं। 

 

No comments:

Post a Comment