धर्म और राजनीति सब जगह प्रदूषण है
देश की सुरक्षा के लिए कृत संकल्प राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं!बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
देश की सुरक्षा के लिए कृत संकल्प राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं!बिना किसी ब्यवसाय के राजनैतिक क्षेत्र के लोगों की संपत्ति बढ़ने का रहस्य आखिर क्या है ?चरित्र निर्माण के लिए दंभ भरने वाले बाबा लोग आज चरित्र संकट से जूझ रहे हैं!आरक्षण की नीतियों से निरपराध एक वर्ग दबाया कुचला जा रहा है !फिर भी हम सबसे सक्षम लोकतांत्रिक देश हैं यह इस देश के आम आदमी की सहन शीलता का ही परिणाम है !मुझे चिंता है कि जिस दिन आम जनता के धैर्य की नदी के तट बंध टूटेंगे उस दिन कौन सँभालेगा यह लोकतांत्रिक देश !आखिर कब सहेगा आम आदमी !
वैसे तो आधुनिक संतों और नेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
उसे पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
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