Friday, July 25, 2014

- माता पिता के साथ भी गद्दारी-

                   पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है किन्तु अपवित्र प्रेम क्या होता है ?

      जब तक मित्रता है तब तक ही प्रेम पवित्र रहता है तब तक किसी को किसी से कोई खतरा नहीं होता है किन्तु मित्रता के संबंध जब मूत्रता में बदलने लगें तो पवित्रता नहीं रह जाती इसलिए वहाँ परमात्मा भी नहीं रहता इसलिए वहाँ जितना भी बड़ा धोखा मिले उसे छोटा ही समझना चाहिए अर्थात कुछ भी घटित हो सकता है  तैयार  रहना चाहिए ! या तो सहने के लिए या अलग रहने के लिए !मर्जी अपनी अपनी !!!


                                          - युवाओं की माता पिता के साथ भी गद्दारी-  
        कुछ लोग अपने माता पिता से छिपकर किसी लड़की या लड़के से प्रेम करते हैं ऐसे लोग जब अपने माता पिता के नहीं हुए तो किसी और के क्या होंगे ! सुख दुःख हैरानी परेशानी आदि सभी परिस्थितियों में अपनी संतानों के साथ तन मन धन से साथ खड़े रहने वाले माता पिता के साथ भी गद्दारी करने वाली संताने सुखी कैसे हो सकती हैं !


       जो लोग मनोकामनाओं की पूर्ति के भ्रम में अपने भगवान को बदल कर साईं को भगवान बना बैठे ऐसे लोग अपने जीवन में कब क्या बदल लेंगे विश्वास नहीं किया जा सकता !

                     आज हार्ट अटैक की घटनाएँ बढ़ क्यों रही हैं ?इससे क्या है पुत्रियों का सम्बन्ध ?
     पुत्र तन का पोषण करता है खाना पीना रहन सहन आदि किन्तु पुत्री मन का पोषण करती है जब बुढ़ापे में एकांत में उदास बैठे होगे उस समय आया हुआ पुत्री का एक फोन या पत्र भी सारे दुःख दूर कर देता है वो सुख धरती पर और कहीं नहीं मिल पाएगा जिनके पुत्रियाँ नहीं है पूछो उनसे उनके बुढ़ापे का हाल हृदय में कितने घाव हैं है कोई भाव का लेप लगाने वाला !

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