Wednesday, July 23, 2014

'' साईं भगवान हैं या नहीं ' इस विषय पर बहस ही क्यों ?

     आखिर पैदा ही क्यों हुआ धर्म में साईं संकट ?

      साईं को भगवान की तरह ,भगवान के मंदिरों में, भगवान की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों की भाँति, भगवान के मन्त्रों एवं पूजा पद्धति से पूजा जाना ही  सनातन धर्म पर विधर्मियों का बहुत बड़ा हमला है !

   इसलिए सनातन धर्मियों का फाइनल फैसला यही है कि साईं बुड्ढे में भगवान की कल्पना  भी नहीं जा सकती !अतः इस विषय पर बहस का औचित्य क्या है !

      अभी तक सनातन  धर्म द्रोहियों के द्वारा किसी के धर्म के विषय में दुष्प्रचार तो किया जाता रहा है किसी के धार्मिक ग्रंथों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है,किसी के धार्मिक महापुरुषों के विषय में दुष्प्रचार भी किया जाता रहा है किन्तु अब तो भगवान के आस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया गया है।ऐसे तो कभी भी कोई भी ऐरा गैरा  बन जाएगा हिन्दुओं का भगवान !

     सनातन धर्मियों के भगवान , भगवान की मूर्तियों ,भगवान की पूजा पद्धतियों, भगवान के मंदिरों जैसी अत्यंत पवित्र अवधारणा पर ही अब तो साईं नाम  का हमला हुआ है अब हम लोग पंचायत करते घूम रहे हैं कभी टी. वी. चैनलों पर तो कभी वैसे और वो भी इस विषय पर कि साईं भगवान हैं कि नहीं !ये विषय बिचार करने के लिए लाया जाना भी साईं के आस्तित्व को न्यूनाधिक रूप से स्वीकार करना ही है जबकि उचित तो यह है कि इस विषय को जड़ से ख़ारिज ही किया जाना चाहिए !

     वैसे भी इस विषय में सनातन धर्मशास्त्र के अनुशार शास्त्रीय संतों के धर्मशास्त्रीय विचार ही विश्वनीय माने जा सकते हैं किन्तु साईं किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होंगे ! फिर भी यदि सौभाग्य से सनातन धर्म के शास्त्रीय संतों की सभा होनी ही है तो आत्ममंथन इस विषय पर हो कि साईं नाम की समस्या पैदा ही क्यों हुई ?इससे निपटा कैसे जाए ?दूसरी बात वर्तमान समय के सनातन धर्म के जिम्मेदार महापुरुषों से चूक आखिर कहाँ हुई है ,आखिर क्यों पैदा हुआ है धर्म में साईं संकट ?और दुबारा ऐसी परिस्थिति पैदा ही न हो इसके लिए क्या किया जाएगा !

      साईं पूजा के समर्थन में जिन धर्माचार्यों ने जो बयान  दिए हैं वो कहाँ तक उचित हैं उस पर शास्त्रीय संत समाज का रुख स्पष्ट किया जाए !साईं के संदर्भ में शास्त्रीय सच्चाई समाज के सामने रखने के लिए सनातन धर्म के अधिकृत शास्त्रीय संत क्या कुछ करने का आदेश देंगे वही सनातन धर्मियों को मान्य होगा  !

     साईं शब्द के प्रारम्भ में ॐकार और अंत में राम लगाकर ,झूठ मूठ में साईं गायत्री बना एवं बताकर मंदिरों में साईं की मूर्तियाँ घुसा कर जिन सनातन धर्मियों को भगवान के भ्रम में साईंयों के द्वारा फाँसा गया है उनके सामने शास्त्रीय सच्चाई कौन रखेगा किस प्रकार से रखी जाएगी आदि आदि बातों पर देश काल परिस्थिति के अनुशार शास्त्रीय संत विचार करें !

    अंधेर हो गई साईं भगवान बनेंगे !"जान न पहचान बड़े मियाँ सलाम"    वर्तमान समय में तो साईंयों ने जो घृणापन  फैला रखा है उसके आधार पर साईं को संत भी नहीं माना जा सकता है क्योंकि "संत वही भगवंत जो मानै"और जो भगवान की जगह अपनी पूजा कराने लगे ये तो सनातन हिन्दुओं की परंपरा ही नहीं है और जो हिन्दुओं की परंपरा का पालन ही न करता हो वो जब हिन्दू ही नहीं हैं तो संत कैसे हो सकते हैं और जहाँ तक बात भगवान की है वो तो कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि भगवान हमारे निश्चित  हैं उनकी संख्या घटाई बढ़ाई कैसे जा  सकती है !

     साईं संकट कोई आम घटना नहीं है ये सब कुछ सुनियोजित सा लगता है । अभी हाल ही में पैदा हुआ एक अदना सा  टी.वी.चैनल धर्म ,धर्मशास्त्रों ,धार्मिक महापुरुषों ,धर्माचार्यों एवं श्रद्धेय साधूसंतों की  छीछालेदर करने के बल पर ही आज राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय आदि जो कुछ कहें सो हो गया है! लाख टके का सवाल यह है कि केवल एक टी.वी. चैनल चलाने के लिए धर्म जैसे संवेदन शील विषय की तथ्यहीन एवं लक्ष्य हीन चीड़फाड़ करना या कराना कहाँ तक उचित एवं नैतिक है ! वह भी तब जब एक धर्म विशेष के आस्था महापुरुषों की पोशाक की नक़ल करने मात्र से बवाल हो चुका हो किन्तु आज सनातन धर्मियों की भावनाओं से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को कैसे और क्यों दिया जा रहा है कोई झिझक क्यों नहीं होती! ऐसी बातें सनातन हिन्दू धर्म एवं धर्मशास्त्रों के विरुद्ध बोलने पर ? 

      हिन्दुओं का भगवान  कैसे बनाया जा सकता है साईं भगवान हैं या नहीं इस  पर बहस ही क्यों और किस बात के लिए  बहस !और बहस से यदि  ये सिद्ध भी कर दिया जाएगा कि साईं भगवान हैं तो क्या श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा गणेश हनुमान जी जैसे देवी देवताओं के बराबर साईं को बैठाया जाना स्वीकार कर लिया जाएगा !

   हिन्दुओं के धर्म एवं धर्मशास्त्रीय विषयों का निर्णय  कुचक्रपाणियों ,आमोद प्रमोदों ,प्रज्ञाकुंदों से कराया जाना कहाँ तक ठीक है ? जिनका शास्त्र से कोई सम्बन्ध ही नही है ये बिना पेंदी के लोटे जिधर पैसे देखते हैं उधर लुढक जाते हैं ऐसे लोगों से ही टी.वी.चैनलों को भी मजा आ रहा है धर्मसंसद के नाम पर अशास्त्रीयता को स्थापित करने में टी. वी.चैनल भी महती भूमिका अदा कर रहे हैं ।

      पाखंडियों ने धर्म को विकृत करने की कसम सी खा रखी है अग्निवेश कह रहे हैं कि "बाबा अमरनाथ में शिव लिंग केवल बर्फ का पुतला है " 

    आखिर  यह कहकर अग्निवेश जी समझाना क्या चाहते हैं ,कहीं ये तो नहीं कि वो सामान्य बर्फ पिंड मात्र है इसके अलावा कुछ नहीं है यदि उनके कहने का वास्तव में यही मतलब है जो मैं समझ पा रहा हूँ तो मैं अग्निवेश जी से जानना चाहता हूँ कि हमारा और उन जैसों का शरीर भी उस दृष्टि से तो मांस पिंड  ही है अर्थात इसमें शरीर की दृष्टि से केवल मीट ही मीट है इसके अलावा  कुछ भी  नहीं है किन्तु क्या हमारे शरीरों की तुलना कसाई की दूकान पर रखे मीट से की जा सकती है ! यदि हम लोग केवल मांस पिंड  अर्थात मीट के लोथड़े मात्र हैं तो आपका विचार अपनी दृष्टि से सही माना जा सकता है !

     अज्ञानी अग्निवेश जी ! आपकी धर्म एवं धर्म द्रोह करने की आदत ठीक नहीं है आखिर क्यों करते हैं बुढ़ापे में भी गाली खाने का काम ?माना कि आपको धार्मिक होने का सम्मान नहीं मिल पाया इसलिए आपको अपनी इज्जत की परवाह नहीं अपितु धर्म से चिढ है किन्तु कौशेय वस्त्रों की तो मर्यादा बनी रहने दीजिए !संतों की सी वेष  भूषा बनाकर घूमने वाले किसी व्यक्ति के मुख से ये मंदिरों में स्थापित मूर्तियों की आलोचना एवं बाबा अमर नाथ जी के बर्फ लिंग की आलोचना सुन कर न केवल सम्पूर्ण हिन्दू समाज हतप्रभ  है अपितु उसके बाद से लोग आपको कलियुग  का  कालनेमि कहने लगे हैं !

     कुल मिलाकर हमारा तो सभी सनातन धर्मी साधू संतों विचारकों से यही निवेदन है कि चोरों को गाली देने की अपेक्षा अपना घर ही क्यों न सँभाल लिया जाए !

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