Monday, May 19, 2014

भाजपा को मिली प्रचंड विजय में किसका कितना योगदान ?और किसकी कितनी कृपा ?

   भाजपा विजय की श्रेय समस्या का समाधान आखिर क्या है किसके परिश्रम या प्रयास से मिला भाजपा को प्रचंड बहुमत ?

     बंधुओं ! हारी हुई पार्टियों को यदि आत्म मंथन करते हुए सुना और देखा जाता है तो जीती हुई पार्टियों को क्यों नहीं करना चाहिए आत्म मंथन? आखिर जीते हुए दल को पता कैसे लगे कि उसका कौन सा प्रयास फलीभूत हुआ या उससे कहाँ क्या लापरवाही हुई है ,ताकि उसे ही केंद्र में रखकर आगे का नीति निर्धारण किया जा सके ! बिडम्बना यह है कि कई बार निर्णय जनता ले रही होती है और राजनैतिक दल पीठ अपनी या अपने नेतृत्व की और नीतियों की थपथपा रहे होते हैं इसी भ्रम में वो जनता की अपेक्षाओं की परवाह ही न करके पार्कों में अपनी और अपने हाथियों की मूर्तियाँ लगाने में पैसा पानी की तरह बहा रहे होते हैं कोई कोई तो सैफई महोत्सव मना रहे होते हैं । चूँकि उन्हें लगा करता है कि जनता तो हम पर फिदा है ही हम जो भी करें जनता तो हमारे समर्थन में ही मोहर मारेगी किन्तु अपनी योजनाओं से विमुख राजनैतिक दलों या सरकारों के स्वेच्छाचार को जनता सहन नहीं करती है देखिए अबकी बार बड़ी बड़ी घमंडी पार्टियों का घमंड चूर किया है जनता ने !जिन्हें अपनी कलाकारी पर भरोसा था उनकी कलाकारी रखी की रखी रह गई और अबकी चुनावों में जनता ने उनका खाता तक  नहीं खुलने दिया सारी  चतुराई चित्त हो गई !इसलिए हमारे विचार से हारने की तरह ही जीतने का भी कारण जरूर पता किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में जनता का और अधिक से अधिक हित  साधन किया जा सके ! जिससे पार्टी का प्रभाव दिनोंदिन और अधिक बढ़ाया जा सके या यूँ कह लें कि पक्ष या विपक्ष में रहते हुए जो अबकी बार कमियाँ छूट गई हैं उन्हें भविष्य में सुधारा  जा सके यह लेख भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर लिखा जा रहा है फिर भी किसी को कुछ बुरा लगे तो क्षमा प्रार्थी हूँ !मैं भी भाजपाई सिद्धांतों के लिए समर्पित हूँ किंतु इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि मुझे आत्म मंथन नहीं करना चाहिए !

  भाजपा की विजय का श्रेय आखिर किसे मिलना चाहिए ? मोदी जी को , राजनाथ सिंह जी को ,अमित शाह जी को ,या सम्पूर्ण भाजपा को या कल्पित जेपीगाँधी बाबा जी को , या स्वयं आम जनता जनार्दन को ?

       आडवाणी जी ने कृपा शब्द  का प्रयोग जिस सन्दर्भ में किया भले  ही मोदी जी ने उस प्रकट सभा में इस शब्द के प्रयोग से असहमति व्यक्त की हो किन्तु अधिकांश लोगों के द्वारा माना जाने वाला सच यही है कि भारत के लोग भाजपा की इस प्रचंड विजय का सर्वाधिक श्रेय मोदी जी को ही देते हैं । 

    कुछ लोग राजनाथ सिंह जी के कुशल प्रबंधन को इसका श्रेय देते हैं !कुछ लोग अमित शाह जी की कुशल कार्यक्षमता को उत्तर प्रदेश में पार्टी की बड़ी विजय के लिए श्रेय देते हैं । कुछ लोग भाजपा के सिद्धांतों मूल्यों आदि को इसका श्रेय देते हैं, कुछ लोग भाजपा के अनुसांगिक संगठनों  के प्रयास को इसका श्रेय देते हैं । कुछ लोग एक बाबा जी को इसका श्रेय देते हुए उनकी  तुलना जेपी और गाँधी जी तक से कर बैठे !यद्यपि बाबा जी ने भी आशाराम जी की दुर्दशा देखकर सुना है कि अपने आश्रम में कुछ महीनों से जाना छोड़ दिया था वो भी अब सारे भय बिसराकर भाजपा को जिताने का श्रेय लेने के लिए न केवल हवन पूजन में लगे हुए हैं अपितु बड़े नेताओं को भी बुलाकर बुलाकर अपनी तुलना जेपी और गाँधी जी तक से करवाने का आनंद ले रहे हैं । 

     आप  आप  के चक्कर में अलग अलग लोगों को विजय वर माला पहनाए जाने की वास्तविकता आखिर क्या हो सकती है या यूँ कह लें कि भाजपा की इस प्रचंड विजय का श्रेय वस्तुतः मिलना किसे चाहिए ?सब के द्वारा  इतना प्रचारित आखिर इस कृपा कारोबार की सच्चाई क्या है किसकी कृपा से हुई भाजपा की इतनी प्रचंड विजय ?इस विषय में मैं निषपक्ष भावना से अपने निजी विचार रखना चाहता हूँ हो सकता है कि हमारे बहुत सारे मित्र हमसे सहमत न हों यह भी संभव है कि किसी को मेरे विचार हलके लगें किन्तु जो हमारा  अपना अनुभव है उसे आपके सामने रखना चाहता हूँ यदि किसी को बुरा लगे तो अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ -

      इस देश की चुनावी प्रणाली के हिसाब से सबको पता है कि सामान्य परिस्थितियों में सरकार पाँच वर्षों में बदल ही जाती है विशेष परिस्थितियों  में अर्थात या तो सरकार बहुत अच्छा काम कर रही हो या फिर विपक्ष की अत्यंत दुर्बलता हो कि उसमें जनविरोधी अकर्मण्य सरकार से भी सत्ता छीनने की क्षमता ही न हो !ऐसी परिस्थिति में सरकार दस वर्ष या उससे अधिक भी चलते देखी जाती रही  है।

      इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनमोहन सरकार कभी लोक प्रिय नहीं हो सकी किन्तु N.D.A.जैसा दुर्बल विपक्ष U.P.A. जैसे अकर्मण्य एवं महँगाई भ्रष्टाचार आदि आरोपों से घिरी सरकार से सत्ता छीनने की क्षमता ही नहीं रखता था ,N.D.A.वालों को आपसी मतभेदों से ही समय कहाँ था चुनाव आते थे चले जाते थे, पार्टी में किसी को पता चलता था किसी को नहीं भी चलता था इसलिए मनमोहन सरकार बिना कुछ करके भी दस वर्ष तक चलती चली गई ये सबसे बड़ा आश्चर्य है!वो N.D.A. आज अचानक कहाँ से बहादुर हो गया जिसके बल पर मिला भाजपा को प्रचंड बहुमत ?

      U.P.A. के समय में बड़े बड़े घोटाले हुए ,भ्रष्टाचार हुआ ,बलात्कार आदि  के केस भी सुनाई पड़ते रहे ,उधर सरकार के नगीने ए राजा ,कलमाड़ी ,टू जी, थ्री जी,कॉमन बेल्थ, कोयला घोटाला,दामाद घोटाला आदि आदि इनकी निरंकुश उपलब्धियाँ जनता ने देखीं,  महँगाई ,भ्रष्टाचार,बलात्कार जैसे और भी बहुत सारे जनता से सीधे जुड़े मुद्दे जिनकी पीड़ा से जनता को प्रतिदिन जूझना पड़ता था यहाँ तक कि जनता के हिस्से के गैस सिलेंडर तक काटे गए, इस प्रकार से समाज U.P.A. से बहुत तंग हो गया था किन्तु सरकार  चलती रही और विपक्ष किसी खास प्रतीकार की स्थिति में दिखा ही नहीं, यहाँ तक  कि जनता सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के लापरवाह रवैये से इतना अधिक तंग हो चुकी थी कि सरकार के विरोध में खड़े होने का निश्चय जनता ने स्वयं कर लिया था किन्तु उसका नेतृत्व करने वाला कोई प्रभावी  नेता तक जनता को विपक्ष ने उपलब्ध नहीं कराया ! मजबूर होकर जनता ने स्वयं विगुल फूंका और निर्भया काण्ड  में जनता स्वयं उतरी रोडों पर और करने लगी अत्याचार का प्रतीकार ! तब सवाल उठने लगे कि जनता तो है किन्तु उसका कोई नेता नहीं है बात किससे की जाए ! उस समय N.D.A.जैसी विचित्र भूमिका में था ।ऐसी परिस्थिति में आखिर कैसे विश्वास किया जाए कि चुनावों में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में N.D.A. की कार्यशैली का कोई विशेष योगदान रहा होगा !

     इसी बीच भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना के आहवान के समर्थन में उनके साथ पूरा देश खड़ा हुआ हर शहर में अनशन हो रहे थे भीड़ बढ़ती चली जा रही थी तो जनता के सरकार विरोधी रुख से घबराकर सरकार ने अन्ना जी की शर्तों के सामने आत्म समर्पण कर दिया  !

    उधर सरकार के रुख से निराश जनता फिलहाल U.P.A. की सरकार को बदलने का निश्चय कर चुकी थी अब इस सरकार को दस वर्ष हो भी चुके थे !आम जनता केंद्र की U.P.A.सरकार को अब और अधिक दिन  ढोना  नहीं चाहती  थी । 

      इसलिए U.P.A. की केंद्र सरकार से नाराज जनता ने स्वयं सत्ता परिवर्तन करने का मन बना लिया था चूँकि देश में दो ही मुख्य राजनैतिक गठबंधन हैं U.P.A. और N.D.A. एक जाएगा तो दूसरा आएगा इन दोनों को अलग करके अपने देश में कोई सरकार आज की परिस्थिति में नहीं बनाई जा सकती है, इसलिए  U.P.A. को हटाने का सीधा सा मतलब था कि N.D.A. को सत्ता में लाना और N.D.A.में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को ही लाया जाना था और भाजपा के द्वारा P.M. प्रत्याशी के रूप में आगे किए गए प्रत्याशी को ही चुनना था भाजपा ने चूँकि नरेंद्र मोदी जी को आगे किया तो जनता ने नरेंद्र मोदी जी पर ही मोहर लगा दी यह जनता ने स्वाभाविक सत्ता परिवर्तन किया है। U.P.A.,काँग्रेस और मनमोहन सिंह को हटाकर और N.D.A.,भाजपा और मोदी जी को जनता ने स्वाभाविक रूप से सत्ता सौंपी है अब इसमें कोई अपनी पीठ थपथपाए तो थपथपाता  रहे ! इसके अलावा जनता के पास और कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था जिसे  चुनने के लिए जनता स्वतन्त्र होती । अजीब बात है कि जनता जनार्दन  के निर्णय एवं संकेत को नजरअंदाज करके विजयी दल अपनी एवं अपनों की पीठ ठोंकता घूम रहा है आखिर बताए तो सही कि उसने एवं उसके अपनों ने जन हित में ऐसा कार्य कौन सा कर दिया है कि जिसके फल स्वरूप यह प्रचंड बहुमत पाने का दावा किया जा रहा है । 

     U.P.A., काँग्रेस और मनमोहन सिंह को हटाने के लिए जननिश्चय था ही फिर भी काँग्रेस ने कल्पित पी.एम.प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी को प्रचारित किया था ! किन्तु जनता का सोचना यह था कि यदि राहुल कुछ करने लायक ही होते तो अभी तक U.P.A. के कार्यकाल में वो बहुत कुछ करके दिखा सकते थे और जब वो कुछ कर ही नहीं सकते थे तो उन्हें पी.एम.प्रत्याशी बनाकर जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया ही क्यों गया ?इसका औचित्य ही क्या था ! जो कभी मंत्री न रहा हो मुख्यमंत्री  भी न रहा हो  ऐसे अनुभव विहीन बिलकुल कोरे नौसिखिया व्यक्ति को U.P.A.डायरेक्ट प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार कैसे हो गया इसका मतलब इनके हिसाब से जनता पागल है जो  ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकती है !इसी जिद्द में जनता ने बहुत बुरी तरह से हराया U.P.A.को और उसी अनुपात में N.D.A. को जीतना ही था इसलिए मिला प्रचंड बहुमत भाजपा और N.D.A. को !

       आखिर उत्तर प्रदेश में भाजपा  का कम्पटीशन था ही किससे ? विपक्षी दल सपा ,बसपा ,काँग्रेस तीनों तो U.P.A.सरकार के अंग हैं और जनता का गुस्सा U.P.A.सरकार के विरुद्ध था, यदि U.P.A.सरकार में सम्मिलित दलों के विरुद्ध जनता वोट देना  चाहती तो N.D.A.के नाम पर वहाँ थी ही केवल भाजपा ! इसलिए जनता ने भाजपा को वोट दे दिया !इसमें आश्चर्य किस बात का ?और किसी की पहलवानी किस बात की ? भाजपा के अलावा उत्तर प्रदेश में जनता के पास और कोई  विकल्प ही नहीं था ? फिर भी भाजपा या N.D.A. की इस प्रचंड विजय का श्रेय यदि भाजपा या उसका कोई भी योद्धा लेना चाहे तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि उसने U.P.A.सरकार के कुशासन से दुखी जनता के हित  में कौन सा प्रभावी , आंदोलन या प्रभावी कार्य किया है या जनहित के किस कार्य में जनता के साथ कभी मजबूती से खडी हुई है ऐसा है तो बताए नहीं तो किसी को श्रेय किस बात का ?   यहाँ सीधी सी बात है कि जनता ने U.P.A. को हराया है उसी से N.D.A. जीत गया है इसमें विजय में N.D.A. या भाजपा के अपने किसी प्रयास का कोई विशेष परिणाम नहीं दिखाई पड़ता ! थोड़ी बहुत  भागदौड़ तो चुनाव जीतने के लिए हर राजनैतिक पार्टी करती ही है इससे इतना प्रचंड जन समर्थन नहीं मिला करता !इसलिए इस सत्ता परिवर्तन को जनता के द्वारा किया गया निर्णय मानकर स्वीकार करने में ही भलाई है अन्यथा  जनता जब विरुद्ध निर्णय लेगी तब सारी  चतुराई चित्त हो जाएगी।

     इसीप्रकार U.P.A. के विरुद्ध जनाक्रोश का शिकार राजद हुआ उसे भी सरकार के विरोध का जनाक्रोश  सहना पड़ा और इन बड़े प्रदेशों की अधिकाँश सीटें भाजपा को मिलीं !रही बात जद यू की  इनके मोदी विरोध का साफ अर्थ था कि ये N.D.A. का समर्थन करेंगें नहीं और दूसरे किसी की सरकार बनेगी नहीं और यदि बनी तो जोड़ तोड़ से बनेगी जिसका कोई स्थायित्व नहीं होगा वो सीटों का दुरुपयोग न करें इसलिए जनता ने उन्हें सीटें ही नहीं  दीं !और भाजपा को जिता दिया । इसमें जनता के अलावा किसी और की कोई विशेष भूमिका दिखती ही नहीं है ?

       इसलिए कहा जा सकता है कि भाजपा के अलावा देश की वर्तमान परिस्थिति में जनता के सामने और दूसरा कोई विकल्प था ही नहीं । यदि केजरीवाल की ओर जनता देखना भी चाहती तो न उनकी इतनी विश्वसनीयता ही थी और न ही वो दिल्ली में सरकार चलाकर ही दिखा पाए तो जनता उन पर विश्वास कर ही कैसे लेती ? 

      सन 2014 के चुनावी अखाड़े में प्रधान मंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रचार पाने वाले जो तीन प्रमुख लोग थे उनमें केजरी वाल ,राहुलगाँधी और मोदी जी ही तो थे। मोदी जी के सामने केजरी वाल और राहुलगाँधी दोनों की ही उम्र बहुत कम है अनुभव बिल्कुल नगण्य है लड़कपन इतना अधिक है कि एक ने बिल फाड़ने की बात की तो दूसरा अनशन के नाम पर अपनी सरकार रजाई में लिपेटे रात भर रोड पर पड़ा रहा ! ये भी कोई सरकार चलाने का ढंग है क्या ? जनता ऐसे लोगों को कैसे चुन लेती अपना प्रधान मंत्री?इसलिए प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में मोदी जी ही एक मात्र व्यक्ति थे उनका किसी से कोई रंचमात्र भी कम्पटीशन ही नहीं था राहुल या केजरीवाल जैसे हलके कैंडीडेट मोदी जी के सामने  देखकर लगता है कि एक प्रकार से इन चुनावों में मोदी जी लगभग निर्विरोध रूप से प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए हैं जब विरोध में कोई था ही नहीं तो लड़ाई या कम्पटीशन किससे और किस बात का था ?ये सब देखकर कहा जा सकता है कि U.P.A. और AAP जैसी पार्टियों के कमजोर कंडिडेट होने से इसका लाभ भी मोदी जी को मिला है । 

      वैसे भी मोदी जी  से इनकी तुलना ही क्या थी ! मोदी जी सफलता पूर्वक इतने वर्षों से न केवल सरकार चला रहे हैं अपितु उन्होंने गुजरात का विकास भी किया है । यहाँ मैदान में जो दो और प्रत्याशी थे भी वो बिलकुल नौसिखिया थे इसलिए जनता ने अनुभवी और बयोवृद्ध मोदी जी को चुना तो इसमें भाजपा की अपनी पहलवानी किस बात की है ये स्वयं जनता का विवेक है जिसका उसने प्रयोग किया !

     वैसे भी किसी संसदीय क्षेत्र में यदि यही कम्बिनेशन बन जाए अर्थात दो नौसिखिया और एक अनुभवी, बयोवृद्ध प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा गया हो तो स्वाभाविक है कि नौसिखिया प्रत्याशी ही  चुनाव हारेंगे और अनुभवी प्रत्याशी ही चुनाव जीतेगा !ये सहज बात है !इसलिए मोदी जी को चुनाव जीतना ही था ये परिस्थिति ही ऐसी बन गई थी !इसमें किसी की बीरता किस बात की ?   

     U.P.A.,की प्रमुख पार्टी के आकाओं को देश और देशवासियों के दुःख दर्द के विषय में कुछ पता ही नहीं था उन्हें तो किसी के द्वारा लिखा हुआ भाषण पढ़ना होता है पिछले दो बार से एक ही भाषण जनता को सुनाए जा रहे थे अबकी बार भी वही फोटो कापी ले लेकर माँ बेटे निकल पड़े ,जनता ने अबकी बार  चोरी पकड़ ली और अबकी बार चुनावों में वोट न देकर अपितु U.P.A.की जमकर की धुनाई ! जनता ने अब काँग्रेस को सत्ता से तो बाहर कर ही दिया बेचारी को विपक्ष के लायक भी नहीं रखा विपक्ष का पद भी अपने बल पर नहीं मिल सकता ऐसा धक्का देकर बाहर कर दिया है ! ये काम जनता ने किया है इसमें और किसी का क्या योग दान है ?

      वैसे भी माननीय अटल जी की सरकार भी पाँच वर्षों में ही सत्ता से बाहर कर दी गई थी । ये सरकार तो फिर भी दस वर्ष चल गई अब इसे तो हटना ही था !  इसे हटाने में किसी का क्या योगदान?ये तो जनता की सूझ बूझ है किन्तु लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं आखिर क्यों !       

         यदि भाजपा की विजय का श्रेय भाजपा को ही देने की कोशिश की भी जाए तो बलात्कार,महँगाई ,भ्रष्टाचार या गैस सिलेंडरों की कटौती से जनता चाहे जितनी परेशान रही हो किन्तु भाजपा ने कभी कोई प्रभावी जनांदोलन केंद्र सरकार के विरुद्ध चलाया हो ऐसा कभी कुछ दिखाई सुनाई नहीं पड़ा !अगर काँग्रेसी केंद्र सरकार देश वासियों को सताती रही तो उसमें भाजपा कभी हाथ लगाने नहीं आई !इसलिए भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में भाजपा का भी कहीं कोई विशेष योगदान नहीं दिखता है।  

     भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी की कार्यकुशलता को ही भाजपा की महान विजय का श्रेय दिया जाए तो वो अपने गृह प्रदेश जहाँ के वो मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं हमारे अनुमान के अनुशार वहाँ भी वे अपने बल  पर पार्टी का वजूद प्रभावी रूप से उतना बना और बढ़ा नहीं पाए जो वो अपने बल पर आत्म विश्वास के साथ उत्तर प्रदेश के विषय में किसी को कोई बचन दे सकें दूसरी बात केंद्र में इसके पहले भी वे अध्यक्ष रह चुके हैं तब कुछ ऐसा चमत्कार नहीं हुआ तो ये कैसे मान लिया जाए कि आज अचानक उन्होंने चमत्कार कर दिया ! और उनकी अध्यक्षता में U.P.A. सरकार की अलोक प्रिय नीतियों के विरुद्ध कोई जनांदोलन या योजना बद्ध ढंग से जनहित का कोई काम ही करते या करवाते दिखाई दिए हों संघ और भाजपा नेताओं से कानाफूसी मात्र से जनता इतनी खुश तो नहीं हो जाती कि इतना प्रचंड बहुमत दे दे !इसलिए मानना पड़ेगा कि U.P.A. सरकार को हटाने का जनता ने स्वयं निर्णय लिया था उसी के फलस्वरूप हुई है यह प्रचंड विजय !

         जहाँ तक बात मोदी जी की है तो ये सच है कि पिछले दस वर्षों में U.P.A. सरकार के शासन से त्रस्त जनता की समस्याएँ तो दिनोंदिन बढ़ती जा रहीं थीं ये बात मोदी जी अपने भाषणों में बोलते भी रहे इसका मतलब वो उस समय भी देश की जन समस्याओं से सुपरिचित थे किन्तु उन समस्याओं को कम करने का राष्ट्रीय स्तर पर कोई कार्य या आंदोलन मोदी जी ने स्वयं तो किया ही नहीं और प्रभाव पूर्वक  सम्पूर्ण देश का दौरा  करके जनता को कभी कोई धीरज भी नहीं बँधाया ! ऐसा भी नहीं हुआ कि उन्हें अपनी पार्टी को ही जनता के साथ प्रभावी रूप से खड़े होने के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करते सुना गया हो ! कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर न तो मोदी जी ही दिखाई पड़े और न ही मोदी जी का कोई विश्वास पात्र  पार्टी योद्धा ही उत्तर प्रदेश या सम्पूर्ण देश में दौरा करके जनता का हौसला बढ़ाने  के लिए ही भेजा गया ! इसप्रकार से U.P.A. सरकार के कुशासन से त्रस्त जनता  NDA  के सहयोग के बिना अकेले जूझते रही !       

      माना जा सकता है कि मोदी जी ने इन  चुनावों में परिश्रम बहुत किया है किन्तु किसके लिए ?अपनी पार्टी के प्रचार के लिए न कि जनहित के किसी आंदोलन के लिए !ऐसा हर राजनैतिक पार्टी या राजनेता अपना जनाधार बढ़ाने के लिए करता है वही मोदी जी ने भी किया है !चूँकि गुजरात की जनता के विकास के अलावा पूरे देश की जनता के हित में उन्होंने ऐसा कभी कुछ खास किया भी नहीं था जिसकी वो जनता को याद दिला पाते इसलिए अपने भाषणों में अधिकाँश समय में वो U.P.A. सरकार एवं उनके परिवार की आलोचना ही करते रहे जिससे जनता बीते दस वर्षों से भोगने के कारण सुपरिचित थी इसलिए  जनता  इन बातों से प्रभावित होकर उन्हें इतना प्रचंड बहुमत क्यों दे देती? 

       जब मोदी जी को प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत करने की भाजपा ने घोषणा की  तब मोदी जी ने सारे देश में विशेष भागदौड़ की किन्तु गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के साथ साथ ! अर्थात देश की जनता ने यदि प्रधानमंत्री बनाने का बहुमत दिया तब तो देश के साथ अन्यथा हम गुजरात के गुजरात हमारा ,क्या जनता तक यह भावना जाने  से रोकी जा सकी है ? अर्थात बीते दस वर्षों में जनता को इस बात का खुला एहसास खूब कराया गया कि यदि वोट नहीं तो सेवा नहीं ! इसप्रकार से U.P.A. सरकार के कुशासन से त्रस्त जनता बेचारी  अकेले जूझते रही !और जनता ने ही अपनी रूचि से किया है सत्ता परिवर्तन ! इसमें किसी और को कोई विशेष श्रेय कैसे दिया जा सकता है!

इसलिए भाजपा की इस प्रचंड विजय का श्रेय मोदी जी को भी पूर्णरूप से नहीं दिया जा सकता है !

        इन सब बातों को यदि ध्यान में रखकर सोचा जाए तो इन चुनावों को जीतने में भाजपा की ओर से उतना प्रयास नहीं किया गया है जितनी बड़ी बिजय हुई है वैसे भी दिल्ली प्रदेश के चुनाव रहे हों या देश के, भाजपा में चुनावों के समय तक तो कलह चलती है ! इसलिए भाजपा का अपना कितना योगदान कहा जाए !

     अब बात एक बाबा जी की जिन्होंने इस विजय का श्रेय अपने शिर समेट रखा है अपना संकल्प पूरा होने पर खूब हवन पूजन किया एवं अपनी प्रशंसा में लोगों को बुला बुलाकर खूब भाषण करवा रहे हैं उन्हें भी इस बात की गलत फहमी है कि शोर तो मैंने भी खूब मचाया है हनीमून वाली बात भी मैंने ही बोली थी हो सकता है लोगों को ये बात अधिक अच्छी लग गई हो यदि ऐसा न होता तो भाजपा की इतनी प्रचंड विजय भी नहीं होती !हनीमून की तो कुछ बात ही और है वाह !

       मैंने भाजपायी मनीषियों के मुख से उनकी तुलना जेपी और गाँधी जी से करते सुना किन्तु यह तुलना स्वस्थ भाव से न करके स्वार्थ भाव से की गई लगती थी और स्वार्थ भाव से की गई ऐसी तुलनाओं को चाटुकारिता के अलावा कुछ भी  नहीं माना जाता है । चाटुकारिता में ही कई बार लोगों को कहते सुना जाता है कि  आप तो हमारे लिए भगवान की तरह हो !आदि आदि । 

       जहाँ तक बाबा जी के योगदान के मूल्यांकन की बात है तो ये बहुत स्पष्ट है कि बाबालोगों  के साथ जुड़ी भीड़ें कभी भी राजनैतिक आन्दोलनों में सहभागिता नहीं निभा पाती हैं ये भजन, योग, कथा और कीर्तन आदि के नाम पर इकट्ठी जरूर हो जाती हैं किन्तु ये भंडारा और भोजन या प्रसाद तक ही सीमित रहती हैं यदि ऐसा न होता तो जब बाबा जी पिछली बार औरतों के कपड़े पहनकर राम लीला मैदान से भागे थे तब उन्हें वहाँ रुकना चाहिए था और वीरता पूर्वक सरकार के विरुद्ध एक कड़ा सन्देश दिया जाना चाहिए था किन्तु समर्थकों के साथ इस बहादुरी से बाबा जी चूक गए ! दूसरी बात बाबा जी के अनुयायिओं की है कि वो यदि वास्तव में कोई संकल्प लेकर अपने घर से निकले थे तो उन्हें चाहिए था कि पुलिस वालों का विरोध करते !यदि अधिक और कुछ उनके बश का नहीं था तो कहीं दूर हटकर धरना प्रदर्शन तो कर ही सकते थे किंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि पता ही नहीं चला कि वो सब चेला चेली कहाँ भाग गए ! इसलिए बाबा जी के आंदोलनों का समाज पर कोई प्रभाव पड़ा होगा और उससे भाजपा की इतनी प्रभावी विजय हुई है ऐसा मानना उचित ही नहीं है!यह जनता का अपना संकल्प फलीभूत हुआ है । 

      वैसे भी बाबाओं का समाज पर कितना असर होता है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आशाराम जी जैसे लोगों के अनुयायी पता लगता है कि चार करोड़ हैं किन्तु जब आशाराम जी पकड़ कर जेल में डाल दिए गए और अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है किन्तु उन चार करोड़ में से यदि एक करोड़ भी रोडों पर उतरकर आंदोलन करते तो परिणाम कुछ और ही होता किन्तु बाबाओं की भीड़ आंदोलन के लिए होती  ही नहीं है । 

      इसलिए भाजपा की इतनी बड़ी जीत का श्रेय  अकेले किसी भी बाबा बैरागी को नहीं दिया जा सकता ! हाँ ये आम जनता का रुख है जिसमें बाबा लोग भी शामिल हैं

       इसमें सत्ता परिवर्तन का सारा श्रेय देश की जनता को जाता है जिसने जाति संप्रदायवाद से ऊपर उठकर एक निश्चित दिशा में मतदान किया है दूसरा सबसे बड़ा श्रेय भारतीय जनता पार्टी के उन दायित्ववान या बिना दायित्ववान लाखों कार्यकर्ताओं को जाता है जिन्होंने दिन रात परिश्रम पूर्वक समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की है और समाज को अपने विश्वास  में लिया है !यह तो मानना ही पड़ेगा कि देश की जनता के सामने इस समय N.D.A. और भाजपा  के अलावा कोई दूसरा विकल्प था ही नहीं फिर भी मोदी जी की विनम्रता ,निरंतर कार्य करने की क्षमता और विश्वसनीय व्यक्तित्व एवं उनके नेतृत्व में गुजरात के विकास की बात ध्यान में रखकर जनता ने न केवल मतदान में अधिक रूचि ली अपितु उनके पक्ष में अधिक मतदान भी किया है इसलिए श्रेय मोदी जी को भी जाता  है मोदी जी के अलावा भी भाजपा का नया पुराना समस्त नेतृत्व समान रूप से श्रेय भाजन है!आखिर पुराने नेतृत्व ने ही भाजपा के कलेवर को इतना अधिक विस्तारित किया है उनकी सैद्धांतिकता एवं विश्वसनीयता का भी अत्यंत विशाल योगदान है !भाजपा के पुराने नेतृत्व पर भी किसी प्रकार के किसी कालुष्य की कोई खरोंच तक नहीं मार सकता है उस परंपरा का भी कम योगदान नहीं है !

        इसलिए 'सबका साथ और सबका विकास' यही सही है इसके अलावा यदि भाजपा ने कल्पित जेपी और गाँधी गढ़ने की कोशिश की तो निस्वार्थ भावना से बिना कोई पद लिए बिना किसी लोभ लालच के दिन दिन भर भाजपा के पक्ष में हवा बनाने में दिन रात लगा रहा एक विराट वर्ग निराश आहत 'एवं ठगा सा जरूर महसूस करेगा !

     मुझे भय है कि श्रेयापहरण के चक्कर में कहीं जनता के संकल्प एवं निर्णय को भुला न दिया जाए ! दूसरी बात जिस जनता की जगह अभी तक भाजपा और मोदी जी को श्रेय दिया जा रहा है किन्तु मुझे ध्यान रखना होगा कि सत्ता परिवर्तन का यह निर्णय जनता का है और जनता के आवश्यक संकल्प को पूरा करने की उसकी अपनी सहनशीलता एवं समय सीमा है इसलिए उसे भी ध्यान में रखकर चला जाना चाहिए ,क्योंकि जनता कभी किसी को अधिक दिनों तक अनावश्यक रूप से क्षमा नहीं कर पाती है। 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



 


      

     


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