लोक सभा में सोते दिखे राहुल गाँधी ! आखिर क्यों ?
संसद भवन में सोने का अपना ही आनंद है
रात रात भर जगते रहते इतनी मेहनत इतना काम।
कहाँ भाग्य में बदी सभी के यह संसद सदनी आराम ॥
मोदी जी का राज सुखद है बहुमत भी है अपने पास।
शीतल मंद सुगंध पवन है अच्छे अवसर का एहसास ॥
मंत्री पद पर हुई प्रतिष्ठा और न है कोई अभिलाष ।
इतने में संतोष हमें है होगा अपने आप विकास ॥
संसद शयन सुरक्षित सुन्दर सुखद स्वप्न के सारे रंग ।
चिंता रहित मस्त यह जीवन संसद में अतुलित आनंद ॥
-डॉ.एस.एन.वाजपेयी
आखिर क्यों ? बहस समझ में नहीं आ रही थी या बहस सुनना जरूरी नहीं समझ रहे थे,या सत्ता से हटने के बाद जिम्मेदारियाँ घटने से मन हल्का हुआ और नींद आ गई ,या कोई तनाव है जो घर में सोने नहीं देता संसदीय चर्चा में मन भटक गया और नींद आ गई,या अगले पाँच वर्ष तक खालीपन की निश्चिंतता का एहसास है कि कौन क्या कह रहा है कहने दो अभी से क्या चिंता जब चुनाव आएँगें तब फिर सुन लेंगे दो चार भाषण अभी से कौन मत्था मारने जाए ,या जो मैंने दस वर्ष किया है और हम लोगों ने बोला है मिलाजुला कर कर वही करना और वही बोलना मोदी जी को भी है इसलिए नया क्या होगा जो सुनें इसलिए नींद आ गई !
बलात्कार तब हो रहे थे वो अभी भी हो रहे हैं महँगाई तब थी महँगाई अब है डीजल पेट्रोल के दाम तब बढ़ रहे थे वो अभी भी बढ़ रहे हैं चुनावों में जीतकर जो पार्टी सरकार में आती है उसे सपने बड़े बड़े जनता को दिखाने ही पड़ते हैं और जब सरकार में आती है तो धन के अभाव में उन्हें पूरा करना कठिन हो ही जाता है तब बताना ही पड़ता है कि पिछली सरकार खजाना खाली करके गई है इसमें कोई नै बात नहीं है क्या सुनें ऐसा हर कोई कहता और करता है वो तो कहना ही पड़ेगा आखिर जनता को कुछ जवाब तो देना ही है देने दो क्या करना है ये सब बातें सुन के ,कुछ दिनों में धीरे धीरे जनता को सच्चाई समझ में आ जाएगी कि खजाना ही होता तो काम पिछली सरकार भी कर सकती थी वो कब हारना चाहती थी चुनाव !
खजाना खाली खजाना खाली ऐसा कहते कहते धीरे धीरे बाकी सरकारों की तरह ही नई सरकार भी महँगाई की कड़ुई दवा पिलाने लगती है और धीरे धीरे जनता को भी सहने का अभ्यास होने लगता है !
चुनावों के समय खजाना खाली करने के लिए लाखों करोड़ के घोटालों का तत्कालीन सरकार पर आरोप लगाया जाता है किन्तु ये आरोप यदि सच होते हों तो दाम बढ़ाने की जरूरत क्या है वही घोटालों और भ्रष्टाचार वाला पैसा निकलवाना चाहिए और लेना चाहिए काम में किन्तु सत्ता में आने के बाद कौन कराता है किसकी जाँच !और कोई थोड़ा बहुत हाथ पैर मारे भी तो बदले की कार्यवाही कह कर बंद करा दी जाएगी जाँच आखिर किसे नहीं पता होता है कि कल जब ये सत्ता में आएँगे और हम विपक्ष में होंगे तो वही होगा हमारे साथ जो हम आज इनके साथ करेंगे इसलिए अपना बुरा कोई नहीं चाहता है वैसे भी कोई केवट किसी और केवट से कहाँ लेता है उतराई ! देखिए यू. पी. में सपा बसपा जैसे परस्पर विरोधी दल दोनों चुनावों के समय एक दूसरे पर बड़े बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं किन्तु जब सत्ता में आ जाते हैं तो बड़े प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं दोनों अपनी अपनी बारी की प्रतीक्षा में काट लेते हैं दिन !वो बात और है जब विपक्षी पार्टी के नेताओं को मीडिया वाले पिन मार देते हैं तो कह देते हैं कि सरकार चोर है खूब घोटाला हो रहे हैं कानून व्यवस्था चरमरा गई है बाकी ऐसी गर्मी में कौन जाता है घर से निकल कर जनता को देखने हाँ चुनावों के समय तो मजबूरी हो जाती है जाना ही पड़ता है पांच वर्ष के रोजी रोजगार की बात होती है !
इसलिए ऐसे लोकतंत्र में किसी के भाषणों का क्या महत्त्व जहाँ अपनी कही हुई बातों पर अमल करने के लिए कोई बचन बद्ध नहीं होता है फिर क्यों अपना समय ऐसे वैसे बिताना बल्कि इससे तो अच्छा ये है कि समय का सदुपयोग करो और सो जाओ वैसे भी जो जाग रहे थे वही कौन सुन रहे थे वहाँ होने वाले भाषण !हाँ कुछ हंगामा वंगामा होता तो बात और ही थी कोई किसी को गाली दे देता तो सब ने सुनी होती और सबको याद होती किसी से पूछ लिया जाता एक भी मात्र पाई छूूटती नहीं सब पूरी पूरी बात बताते कि कैसे किसने कौन सी गाली दी थी किन्तु ऐसे सामान्य नीरस भाषणों में किसने क्या कहा किसको याद रहता है और सुनता ही कौन है मीडिया वाले सुन लेते हैं उतना बहुत है चबा चबा कर मीडिया वाले खुद बताएँगे दिन बताएँगे रात बताएँगे समझा समझाकर बताएँगे फिर क्यों नींद ख़राब करना ! ऐसे अपनी सुविधानुशार जब चाहेंगे तब टी वी पर या नेट में देख सुन लेंगे कुछ जरूरी होगा तो !
रही बात भाषण की किसी से पूछ लो जो जग रहे थे वही कहाँ सुन रहे थे हाँ कुछ प्रतिशत लोग ही बता पाएँगे कि आज संसद में क्या क्या बोला गया था बाकी तो जागते हुए भी सो रहे होंगे राहुल जी तो सोते हुए सो रहे थे कोई बात नहीं थकावट तो उतारनी ही चाहिए !धन्यवाद राहुल जी !!
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