जीवन से  सम्बंधित तीन  नारियों  की महती भूमिका 
 1.  माता- कवच बनकर सुरक्षित रखना चाहती है 
2.  पत्नी - प्रसन्नता  का एहसास कराना चाहती है  
 3. प्रेमिका -प्रसन्न रहने का आश्वासन देकर न जीने देती है न मरने !
 
 माता और पत्नी के सम्बन्धों  को शास्त्रों ने  पवित्र माना है किंतु 
प्रेमी प्रेमिकाओं के सम्बन्धों को घातक माना है  उन्होंने ने कहा कि जिन 
दो के बीच ये सम्बन्ध बनते हैं वे यदि चल जाते हैं तो जैसे पतंगा अपने 
प्रेमी से मिलकर मर जाता है वैसे मरना पड़ता है और यदि प्रेम सम्बन्ध टूट 
जाते हैं तो जैसे पानी से अलग होकर मछली तड़प तड़प कर मरती है वैसे मरना पड़ता
 है !
      इसीलिए  शास्त्रों ने कहा है कि स्नेहवान् ज्वलतेनिशम्  
 अर्थात जब तक स्नेह रहता है तब तक जलना पड़ता है  ! स्नेह के दो अर्थ होते 
हैं एक तेल और दूसरा प्रेम । अर्थात जब तक दीपक में तेल रहता है तब तक दीपक
 जलता है और जब तक किसी के मन में किसी के प्रति प्रेम रहता है तब तक वह 
हमेशा जलता रहता है 
 
       इसीलिए लिए देवी भागवत में लिखा गया है कि  प्रेमी प्रेमिकाओं का 
हृदय  बाल  काटने वाले नाई  के  छूरे    की  धार  के समान होता है कोई किसी
 को कभी भी काट सकता है इसलिए प्रेम सम्बन्धों से बचो सतर्क रहो कहीं किसी 
से  प्रेम न हो जाए  !
 हृदयं क्षुरधाराभं  प्रियः को नाम योषिताम् 
                                                 -     देवी भागवत 
 
      निवेदक   -       डॉ.  एस. एन. वाजपेयी 
   संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान 
   ब्लॉगर -  स्वस्थ समाज                                 
 
 
 
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