सुन्दर स्त्री पुरुषों की पहचान क्या है ?
साहित्य शास्त्र में कहा गया कि
क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयतायाः।
अर्थात जिसे देखने में हर क्षण कुछ नए प्रकार का आनंद मिले वही सर्वोत्तम सुंदरता है।
1. जिसकी सुंदरता बिना दिखाए ही दिख जा रही हो और सबके मन को आनंदित करती हो वह पूर्वजन्म के संचित पुण्यों से प्राप्त होती है । ऐसे मित्र या जीवन साथी बड़े भाग्य से मिलते हैं। ये जन्म जन्मांतर के लिए समर्पित साथी होते हैं। ये सम्बन्ध अंत तक सुरक्षित रहते हैं ।
2. जहाँ दूसरों को प्रभावित करने के उद्देश्य से तरह तरह की पोशाकें वेष भूषा आदि बदलकर सुंदरता पैदा करने का प्रयास किया जा रहा हो वह केवल कुछ उन लोगों को प्रसन्न कर सकती है जो उस सुंदरता की चाहत रखते हों ! यह अपने प्रयास से पैदा की जाती है।ऐसे मित्र या जीवन साथी बड़े प्रयास से मिलते हैं।ये इसी जन्म में खोजने से मिल जाते हैं प्रयास करके एक दूसरे का साथ देते रहते हैं !
3. जहाँ श्रृंगार की अत्यधिकता हो वास्तविकता काफी कम हो यह ब्यूटी पार्लरी स्वार्थ साधक क्षुधित सुंदरता में स्त्री पुरुष प्रधान नहीं रह जाते यहाँ तो वैभव से संबंध जुड़ते टूटते रहते हैं ये वास्तविकता पर टिके हुए सम्बन्ध न होने के कारण जब तक वैभव रहता है तब तक ही संबंध जुड़े रहते हैं वैभव समाप्त होते ही टूट जाते हैं ।
4. जो सुंदरता केवल बाल और वस्त्रों को बनाने बिगाड़ने पर टिकी हो यह केवल दूसरों की देखा देखी धारण की गई अभिनयात्मक सुंदरता केवल अपनी मानसिक बासना व्यक्त करने के लिए होती है इससे जुड़े सम्बन्ध तब तक चलते हैं जब तक उससे अच्छा कोई और साथी न मिल जाए ऐसे साथियों की खोज ये लोग आजीवन जारी रखते हैं !
5. जो लोग भयंकर तरह से बाल बिखेरने, कटाने, लटें बना लेने वाले, आधे चौथाई कपड़े पहनने वाले, नग्न अर्ध नग्न आदि रहकर बासनात्मक गीत संगीत नाचने गाने शोर मचाने वाले ये बासना विक्लवित लोग कहीं भी कभी भी किसी से भी केवल बासना पूर्ति के लिए जुड़ते छूटते रहते हैं। ऐसे लोग बासना विहीन किसी अन्य सम्बन्ध पर भरोसा ही नहीं करते जहाँ बासना है वहीं सम्बन्ध है अन्यथा नहीं !बासना की क्षमता समाप्त होते ही नशा या मृत्यु का वरण कर लेते हैं । ये इतने अधिक कामी होते हैं कि केवल अपनी काम बासना की पूर्ति के लिए अपने माता पिता भाई बहन आदि सभी के सम्बन्ध भूल जाते हैं !ये बहुत भयंकर लोग होते है ये बीमार लोग प्रेम प्यार का खेल खेलते खेलते एक दूसरे के प्राणों के प्यासे तक हो जाते हैं।शास्त्रों में ऐसी सुंदरता को राक्षसी सुंदरता कहा गया है ।
इस तरह की सुंदरता का उदाहरण रामायण में सूर्पणखा के सन्दर्भ में मिलता है कि बूढ़ी और कुरूप होने के बाद भी शरीर में इसी प्रकार के आधुनिक सौंदर्य से युक्त होकर श्री राम के पास प्रणय निवेदन करने पहुँची तो श्री राम समझ गए कि भारतीय नारी इतने भयंकर श्रृंगार की शौक़ीन कभी नहीं होती हैं इसलिए यह कोई राक्षसी ही हो सकती है तो श्री राम ने सूर्पणखासे कहा कि
"त्वं हि तावन्मनोज्ञांगी राक्षसी प्रतिभासि मे"
अर्थात तुम इतनी सुन्दर हो कि साक्षात राक्षसी जान पड़ती हो !
इसी प्रकार पुराने समय में बालों को पति प्रेम का प्रतीक माना जाता था इसीलिए महिलाएँ बाल बाँध कर रहती थीं जब कि लंका में ऐसा प्रचलन नहीं था वहाँ की महिलाएँ उनकी भाषा में एक पति से बँधकर अपनी जिंदगी नरक नहीं करती थीं यह संकेत था वहाँ उनके बाल न बाँधने का! किन्तु कुछ महिलाओं में प्रचलन था कि जो जितने पतियों के साथ जुड़ पाती थीं उनके नामों की उतनी चोटियाँ बाँध लिया करती थीं उसी क्रम में सबसे कम अर्थात तीन चोटियाँ बाँधने वाली त्रिजटा से सीता जी ने बात चीत करना प्रारम्भ किया था।
इसी प्रकार से हनुमान जी लंका में सीता जी को खोजने जब गए तो सीता जी को कभी देखा तो था नहीं आखिर पहचानते कैसे! जैसे ही सीता जी पर दृष्टि पड़ी तो देखा कि -
""राजत शीश जटा एक बेनी""
शिर में एक जटा थी देखते ही पहचान गए कि ये ही माता सीता हो सकती हैं।
भारतीय संस्कृति में भी कुछ महिलाएँ किसी व्रत या संकल्प लेने या क्रोध करने पर बाल बिखेरती देखी गईं हैं जैसे द्रौपदी कैकेई आदि! इसी प्रकार पुरुषों को भी देखा गया है चाणक्य ने शिखा खोल ली थी !आधुनिक भारत में अपनी संस्कृति के नाम पर सब मिला जुला ही चल रहा है कैसे किसको पहचाना जाए ?
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