Wednesday, November 6, 2013

भाजपा न जाने खोई खोई क्यों रहती है ?

  भाजपा को इससे अच्छा मौका और कब मिलेगा ?

        बिना कुछ काम किए भी जिस काँग्रेस को अपनी बारी आने पर बिना प्रयास किए ही सत्ता मिल जाती हो  उसका उन्मत्त होना स्वाभाविक ही है इसीलिए संभ्रांत वर्ग काँग्रेस से बहुत पहले ही निराश हो चुका था क्योंकि उसे पता है कि इन्हें कुछ करना ही होता तो बहुत बार सत्ता में रह चुके हैं अब तक कभी का  कर लेते! इसलिए  या तो इनके बश की बात नहीं है या इन्हें पता नहीं है कि करना क्या और कैसे है या फिर ये लोग कुछ करना ही नहीं चाहते हैं !इन्हें पता है कि जब हमारी बारी आएगी तब हमें सत्ता स्वयं ही मिल जाएगी इसलिए क्यों कुछ करना !किन्तु अबकी बार देश काँग्रेस से मुक्ति पाने का मन बना चुका है किन्तु इसका  अर्थ ये कतई नहीं है कि देश का झुकाव  भाजपा की ओर हो रहा है और न ही भाजपा को सन 2009  के चुनावों की तरह अपनी बारी के इंतजार में ही भाग्य के भरोसे बैठना चाहिए अन्यथा काँग्रेसी सरकारों की फीडर पार्टियाँ चुनावों  से कुछ पूर्व सरकार  से अलग होकर काँग्रेस की  बुराई करके विपक्ष की भूमिका निभा लेती हैं और सरकार के विरोधी वोट पर कर लेती हैं अपना कब्ज़ा और ये सारा पत्रं पुष्पं  लेकर चढ़ा देती हैं काँग्रेस के चरणों में इस प्रकार बदले में माँग लेती हैं कोई अभय वरदान ! इसी  प्रकार से बन जाती है उनकी सरकार और भाजपा अगले चुनावों की प्रतीक्षा में अपनी बारी की आशा लगा कर दिन बिताने लगती है मन मारकर!फिर कब चुनाव आएँगे कब मेरी बारी आएगी किन्तु चुनाव आते हैं काँग्रेस फिर मार ले जाती है दाँव भाजपा फिर देख़ती  रह जाती है ।आखिर चक्कर क्या है ?

      मेरी समझ में सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँ जहाँ  भाजपा नंबर दो पर है वहाँ वहाँ काँग्रेस जीतती नहीं है अपितु भाजपा हार जाती है इसलिए स्वाभाविक है कि काँग्रेस जीतेगी  ही !केवल आलू प्याज की  कीमतें बढ़ने पर दिल्ली की भाजपा सरकार काँग्रेसियों ने उखाड़  फेंकी थी तब से आज तक भाजपा को दिल्ली की गद्दी नसीब नहीं हुई किन्तु आज काँग्रेसियों की सरकार भगवान् दया से सारे दोषों से भरी पुरी  है फिर भी उसके विरुद्ध आज भाजपा कोई लहर नहीं बना पाई है! काँग्रेसियों की सरकार के विरुद्ध आज क्या क्या मुद्दे नहीं भाजपा के पास हैं केवल उठाने वाला चाहिए उठावे कौन?

     जो उठाने वाला था वो इस दुविधा में था कि वो मुख्य मंत्री का प्रत्याशी होगा कि नहीं इसलिए  व्यर्थ परिश्रम क्यों करे ! इसी प्रकार भाजपा की ओर से जो आज दिल्ली के मुख्य मंत्री पद का प्रत्याशी है वो तब निश्चित नहीं था जब काँग्रेस के विरुद्ध एवं भाजपा के पक्ष में लहर बनाने का समय था तो वो अकारण परिश्रम क्यों करता ? और जब प्रत्याशी निश्चित हुआ तब समय इतना कम है कि कोई लहर पैदा कर पाना सम्भव ही नहीं है इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि मानसिक रूप से पराजित हो चुकी काँग्रेस फिर से न केवल बराबरी में खड़ी हो गई है अपितु जीत के सपने भी देखने लगी है  क्या भाजपा की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी कौन होगा इस विषय का  निर्णय कुछ और पहले नहीं लिया जा सकता था ? मैं तो कहूँगा कि यह सारी  प्रबंधन की कमजोरी है जिसका दंड भाजपा के सारे कार्यकर्ताओं को भोगना पड़ता है कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है निराशा बढती है ।

    क्या क्या मुद्दे नहीं हैं आज भाजपा के पास ? सम्पूर्ण दोषों से भरी पूरी है काँग्रेसी सरकार ! कौन सा दोष नहीं है इस सरकार में ?महँगाई है , भ्रष्टाचार है,चरमराती कानून व्यवस्था है,ध्वस्त होती शिक्षा व्यवस्था है ,छिन्न भिन्न हुई चिकित्सा व्यवस्था है ,लचर डाक व्यवस्था है , उपेक्षित फोन व्यवस्था है इसी प्रकार से बलात्कार आदि सम्पूर्ण दोषों से समलंकृत इन काँग्रेसी सरकारों का कार्यकाल है फिर भी भाजपा की उदासीनता चिंतनीय है लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में भाजपा से अधिक अरविन्द केजरीवाल ने सफलता पाई है। चुनाव शिर पर हैं भाजपा न जाने कहाँ खोई खोई रहती है !!!

 

अब पढ़िए श्री हनुमत सुन्दर काण्ड बिलकुल अलग अलग    एवं  शास्त्रीय  शंका  समाधानों  सहित!

 

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