दलित शब्द का अर्थ कहीं दरिद्र या गरीब तो नहीं है ?
 
       समाज के एक परिश्रमी वर्ग का नाम पहले तो दलित अर्थात दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड
 आदि रखने की साजिश हुई। ऐसे अशुभ सूचक नाम कहीं मनुष्यों के होने चाहिए 
क्या?  वो भी भारत वर्ष की जनसंख्या के बहुत बड़े वर्ग को दलित जैसे अपमानित
 करने वाले कुशब्दों से संबोधित
 किया जाने लगा है। आखिर क्या ऐसा दोष या दुर्गुण या कमजोरी दिखाई दी 
दलितों में ?क्या वो लाचार हैं, अपाहिज हैं, विकलांग हैं या वो परिश्रमी वर्ग  परिश्रम पूर्वक कमाई करके अपने  बच्चे नहीं पाल सकता है  क्या  ?
    
 आखिर गरीब सवर्ण भी अपनी मेहनत की कमाई से ही बच्चे पालते हैं ।उन बच्चों 
में अपने माता पिता के संघर्ष का स्वाभिमान होता है जिसके बल पर
 वे आगे बढ़ते
 हैं।सवर्णों में भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो संघर्ष नहीं करना चाहते वो बेशक
 दलित न कहे जाते हों किन्तु हालात उनके भी बहुत खराब हैं।कुछ लोग संघर्ष 
करके भी सफल नहीं हो पाते हैं उसमें वो भाग्य को कोसते हैं जबकि अन्य लोग 
सवर्णों को कोस कर सुख पाने का असफल प्रयास करते हैं।माना कि तथाकथित दलितों की अपेक्षा कुछ प्रतिशत अधिक लोग सवर्णों में सम्पन्न होगें किन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि सारे सवर्ण  सम्पन्न ही हैं।ऐसा भी नहीं है कि सवर्णों का सम्पन्न वर्ग गरीब सवर्णों की कोई मासिक या अन्य प्रकार से कोई आर्थिक सहायता करता हो।     
    
 1947 में देश आजाद हुआ उसके पहले सैकड़ों वर्ष तक देश गुलाम रहा तो उन 
आक्रांताओं ने सवर्णों को कोई अतिरिक्त आर्थिक सहायता राशि नहीं दी थी जो तथाकथित दलितों को न मिली हो जिससे वे दलित हो गए।
       यदि वेद न पढ़ने देने के कारण वे
 तथाकथित दलित रह गए तो आरक्षण क्यों ?वेद  पढ़ने की सुविधा मुहैया करानी 
चाहिए आखिर वे भी कश्यप ऋषि की संताने हैं उन्हें वेद पढ़ना ही  चाहिए।
         अछूत माने जाने के कारण यदि वो तथाकथित दलित पीछे
 रह गए तो आरक्षण क्यों ?उन्हें अब  सवर्णों को अछूत घोषित करके उनसे रोटी 
बेटी का सम्बन्ध रोक देना चाहिए। आखिर अछूत घोषित किए जाने जैसे अपमान को  
आरक्षण रूपी लालच में क्यों सह जाना ?
       इस युग में वो तपस्या भी कर सकते हैं अब तो कानून का राज है।अब उन्हें कौन रोक सकता है?किन्तु आरक्षण क्यों ?
         बनियों ने व्यापार करके अपने को आगे बढ़ाया यदि कोई और भी करता तो उस पर क्या रोक लगी थी ? 
 
   दलित जैसे अपमानित करने वाले कुशब्द से मनुष्य जाति के किसी परिश्रमी वर्ग  को संबोधित
 किया जाना गंभीर राजनैतिक साजिश लगती है ।ये शब्द भिखारियों के उस कटोरे 
की तरह है जिसे लेकर वे भीख माँगनें का काम करते हैं।
      सरकार चाहे तो ऐसी नीतियाँ बनावे जिनका लाभ 
अपने
 को गरीब समझने वाला हर व्यक्ति ले सके।किसी के मस्तक पर दलित या 
दरिद्र  लिखकर किसी का अपमान क्यों करना ?हो सकता है कोई अभी गरीब हो कुछ 
दिन बाद उसका काम चल निकले उसकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाए तो उसके मस्तक पर
 हमेंशा के लिए दलित या दरिद्र क्यों लिखना ?इस वर्ग के बहुत लोगों ने आरक्षण का लाभ लिये बिना ही अपनी आर्थिक
 स्थिति परिश्रम पूर्वक सुधारी है वो गर्व से जीवन यापन करते हैं।उन्होंने 
दालित्य की खाल को उतार कर फेंक दिया है।उन्हें किसी की कृपा पर नहीं अपने 
परिश्रम पर भरोसा होता है। 
 हमें चिंता है कि जिस देश के इतने बड़े वर्ग को दलित सिद्ध कर ही दिया
 जा चुका है।सवर्ण नाम के आवादी के छोटे से भाग को भी कब दलित सिद्ध करके 
इस देश को ही दलित अर्थात दबा कुचला देश घोषित करदिया जाय और  विश्व के विशाल मंच पर 
हमेंशा के लिए अपमानित कर दिया जाए तथा रईसत का पेटेंट वो देश अपने नाम करा 
लें ! इस विषय में ऐसी भ्रामक  बातें फैलाने के पीछे किसी का उद्देश्य आखिर क्या हो सकता है ? 
    दलित शब्द
 का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें 
टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के  किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द
 बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी 
मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे
 कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे 
जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल  बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना 
दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है।इस प्रकार दलित शब्द के 
टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ  किंतु दलित शब्द का अर्थ 
दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है।
            राजनैतिक
 साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि  करके ही 
कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का 
अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन 
जिन प्रकारों का वर्णन है वो
 सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का 
दोष  कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया 
होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ  तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेव कहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर
 की बनाई हुई सृष्टि  में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा 
कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।
    आज दलित साहित्य या साहित्यकार,दलित विधायक ,दलित संसद ,दलित मंत्री ,दलितमुख्य मंत्री,दलित प्रधान मंत्री आदि कहा जाने लगा है तो दलित शब्द का अर्थ दबा कुचला शोषित पीड़ित नहीं है क्या ?क्योंकि मुख्य मंत्री,गृहमंत्री,प्रधान मंत्री आदि यदि स्वयं दलितअर्थात 
 दबे  कुचले  शोषित पीड़ित आदि कहेंगे तो देश उनसे क्या आशा करे ?और क्या वे
 विदेशों के ही महान मंचों पर देश का पक्ष गौरवान्वित कर पाएँगे ? क्या 
हमेशा से हमारे प्रति उपेक्षा का भाव रखने वाला  पश्चिमी जगत मौका मिलने पर
 इस बात के लिए चूक जाएगा ?क्या वह  कह सकता है कि तुम तो खुद दबे 
 कुचले  शोषित पीड़ित हो तुमसे क्या आशा?कैसे निपटोगे आतंकवाद से?तुम तो 
आतंकवादियों को सजा होने पर भी कठोर दंड देने से डरते हो । 
    इस लिए  हमारा इस देश के नीति नियामकों से निवेदन है कि
 दलित और अल्प संख्यक जैसे मनोबल गिराने वाले शब्दों का प्रयोग करने से न 
केवल बचना चाहिए अपितु देश के हर नागरिक को यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए 
कि सारा देश आपका है और आप सारे देश के हैं ।
 
         हम जाति, क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय ,लिंग आदि के नामपर यदि भेद 
भाव करते ही रहे तो स्वस्थ समाज की परिकल्पना कैसे की जा सकती है ?
 
        
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 
   यदि
 किसी को
 केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु आदि समस्त भारतीय  प्राचीन 
विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई 
जानकारी  लेना चाह रहे हों।
     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
 शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या 
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के 
कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके 
सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी 
प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 
       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।
 
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