आजतक का हिंदी महामंच
      
 यह काफी अच्छा कार्यक्रम होगा यह जानते हुए भी मैं व्यस्तता के कारण बहुत 
अधिक समय नहीं दे सका फिर भी जब कभी समय निकाल कर कुछ देखने का प्रयास 
अवश्य करता रहा।उसके कुछ अंशों  पर मैं चिंतित हूँ  कि काश बाबा जी ने इस 
बातका उत्तर दिया होता कि वो साधु हैं या कि व्यापारी?इस समय का मेरी समझ 
में यह सबसे जरूरी प्रश्न था,जो अनुत्तरित ही छूट गया क्योंकि संपूर्ण साधु
 समाज एक जैसा नहीं हैं कुछ चरित्रवान विरक्त संत भी देश में हैं।यदि 
वर्तमान समय में लोगों के मन में यह प्रश्न  उठने ही लगा है कि अमुक बाबा 
साधु है या व्यापारी?ऐसी जितने प्रतिशत बाबाओं पर शंकाएँ उठ रही हैं।वह 
सबकुछ सनातन समुदाय को शर्मसार  करने के लिए काफी है। आखिर भगवा वस्त्रों 
में शरीर लिपेट कर बैठे किसी साधु को टैक्स चोर कह कर कोई नेता एक टी.वी.चैनल पर बैठ कर ललकार
 रहा हो यह शर्मनाक है इसमें चैनल को हस्तक्षेप करना चाहिए और अपनी तरफ से 
स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी और उन नेता जी को टैक्स चोर कहने के लिए रोका 
जाना चाहिए था विशेष कर तब जब सरकार उनकी हो और जॉंच एजेंसियॉ जब ऐसे किसी बाबा के विरुद्ध जॉंच के लिए छोड़ी जा चुकी हों।
        दूसरी बात उन दामाद जी पर है जिनके विषय में  यहॉं भी कईबार प्रश्न  पूछे गए वैसे भी मीडिया पर अक्सर इन विषयों को लेकर प्रश्नोंत्तर होते रहते हैं कि आखिर क्या कारण है कि उन
 पर जिस प्रकार से भूमि घोटाले के आरोप लगे उन्होंने देश की मीडिया के 
सामने आकर क्यों अपनी अच्छी बुरी कोई भी सफाई नहीं दी?यह भी समझ में नहीं 
आया कि वो कहॉं हैं उन्हें पता लगा है या नहीं वो आखिर क्यों भारतीय मीडिया
 के माध्यम से समाज के सामने आने में कतराते हैं। वहीं दूसरी ओर विपक्षी 
पार्टी के अध्यक्ष पर भी आरोप लगे किंतु उन्होंने मीडिया से मुख नहीं 
चुराया और उद्घोषणा की कि हम पर यदि कोई आरोप सिद्ध होता है तो हम 
त्यागपत्र दे देंगे।इस विनम्र उत्तर पर उनकी सराहना होनी ही चाहिए।जॉंच का 
परिणाम तो कानून व्यवस्था की बात है उसका वो अपना सामना करेंगे जो जैसा 
करेगा भरेगा किंतु जनता के प्रति जवाबदेही उन्होंने समझी यह एक सराहनीय पहल
 है उचित भी यही है। दूसरी तरफ किसी और पर यदि ऐसे ही कुछ आरोप लगे हों और 
उन्होंने इस पर जवाब देना ही उचित न समझा हो तो क्या कहा जाएगा? किसी और आम
 आदमी के साथ ऐसा हो तो उसे क्या करना चाहिए?उसे मीडिया एवं कानून की 
उपेक्षा करने की कहॉं तक कितनी छूट दी जा सकेगी?यदि लोक तंत्र है तो व्यवहार सबके साथ ही समान होना चाहिए यहॉं संशय हुआ है। 
    
       दूसरी ओर अरबिंद जी हैं आम आदमी की हैसियत से यदि उन्होंने कुछ प्रश्न उठाए हैं तो आमजनता समझकर ही उनकी बातों का उन्हें जवाब भी मिलना
 ही चाहिए।यदि अब वो भी राजनीति में आ गए हैं तो विरोधी पक्ष से प्रश्न  
करने का उनका हक बनता ही है।ऐसे में उन पर चारों तरफ से हमले क्यों?
      
 इस हिंदी महामंच के कार्यक्रम में हर किसी की तोपों के गोले न जाने क्यों 
अरविंद जी की ओर ही दागे जा रहे थे।सत्ता पक्ष विपक्ष के प्रतिनिधियों ने 
बहुत कुछ नसीहत सलाहें उन्हें दीं,एक सम्मानित गीतकार ने भी उन्हीं की ओर 
अपने तर्क ताने,ऐसे ही ओर कुछ लोगों ने भी। मैं मानता हूँ  कि आम आदमी की 
हैसियत से अरबिंद जी का सोचना अपनी जगह सही है सभी लोगों का शंका  करना 
अपनी जगह सही है,और अरबिंद जी को जवाब देने भी चाहिए वो विनम्रता पूर्वक दे
 भी रहे हैं किंतु जो जवाब देने की तो बात ही छोड़ो अपितु जवाब देने की 
जरूरत ही न समझता हो उसका ,अपने लोकतंत्र में क्या उपाय है?
 
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