Thursday, December 6, 2012

वॉकआउट का मतलब क्या होता है ?

वॉकआउट का मतलब दुम दबा कर भागजाना हैक्या?

    जीवन के किसी क्षेत्र में मुख चुराने का अर्थ समाज साफ साफ समझता है। कई बार ऐसा होता है कि जो चीज हम अपने मन में सोच रहे होते हैं किंतु अनुमान लगाने वाले चतुरखिलाड़ी हमारे सोचने से पहले उस चीज का अनुमान लगा चुके होते हैं।इसलिए  हमारी कोई कमजोरी हमें तभी तक छिपाने की कोशिश करनी चाहिए जब तक उसकी कोई चर्चा ही न उठी हो जब बात एक बार प्रारंभ हो जाती है तब तो दूर तक जाती ही है। इसमें दुविधा यह होती है कि लोग किसी मुद्दे पर अपने अपने अनुमान लगा रहे होते हैं।यह सबसे खतरनाक होता है।
     किसी मुद्दे पर लोक सभा में बहस चलाई जाए और वह प्रश्न देश के भविष्य और वर्तमान दोनों से ही जुड़ा हो।मुखिया होने के नाते सरकार का किसी मुद्दे पर संसद में सांसदों की राय जानने की पहल करना सराहनीय कदम है।उस पर कुछ सांसदों का अपने अपने अनुभव, जानकारी के अनुशार मत व्यक्त करना उनका दायित्व है जिससे सरकार को निर्णय लेने में आसानी होती है। जो पक्ष में आए सरकार ने उन्हें उस मुद्दे का समर्थक माना जो विपक्ष में गए उन्हें विरोधी माना किंतु जो वाकआउट करते हैं उन्हें क्या माने सरकार ?     

    यदि सोचा जाए कि उन्हें इस बिषय में कोई जानकारी नहीं होती है इसलिए जो  समझ नहीं पाते हैं वो बेचारे मुखछिपाकर भाग जाते हैं।दूसरा कारण यह होता है कि किसी मुद्दे पर अपनी अच्छी जानकारी अनुभवआदिअनुमान लगाकर संसदीय मंच पर सरकार को उसके निर्णय के बड़े बड़े नुकसान गिनाकर भी उस मुद्दे पर सरकार के मत के विरूद्ध चाहते हुए भी अपना मत न व्यक्त कर पाना यह एक प्रकार की लाचारी या किसी भय के कारण दुम दबा कर भागने जैसा होता है।
      ऐसी परिस्थिति में या तो उन्हें सरकार के द्वारा अकारण सताए जाने का भय हो सकता है या फिर अपने किसी पूर्वकृत पाप का भय मान लिया जाए जिसकी जॉंच से बचना चाहते हों और सीबीआई को सर्पिणी समझ बैठे हों तथा भयभीत हों।ऐसा लगभग बहुत लोगों का अनुमान भी होता  है।
     ऐसे वाकआउटी लोग एक साथ कई अनुत्तरित प्रश्न  छोड़ जाते हैं।उनके साथ उनके क्षेत्र की जनता का स्वाभिमान जुड़ा होता है क्या जनता अपने नेता को बेईमान या अपराधी समझ ले या डरपोक मान ले? वह तो यह भी कहने लायक नहीं बची कि अपनी सरकार बचाने के लिए हमारे नेता को ऐसा अप्रिय फैसला लेना पड़ा,क्योंकि सरकार किसी और पार्टी की है।गॉंवों चौराहों पार्कों में ऐसे मुद्दों पर अपने अपने नेता का पक्ष लेकर अक्सर लोगों को झगड़ते देखा जा सकता है।क्या संदेश  जाएगा उन तक ?
    इससे फैसला भी उलटा ही होता है जैसे वाकआउटी लोग अपने भाषण में तो उस मुद्दे का विरोध कर चुके होते हैं।इसका मतलब ईमानदारी से तो वह सरकार के उस मुद्दे के विरोधी हैं।और यदि उनके इसी आत्म मत को या आत्मा की आवाज को माना जाए तो सरकार को उस मुद्दे पर ईमानदारी से अपनी पराजय स्वीकार करनी चाहिए इसके साथ ही किसी भी जॉंच के माध्यम से इस बात की भी सच्चाई समाज के सामने लाई जानी चाहिए कि वे चाहते हुए भी किस कारण से अपना मत विरोध में व्यक्त नहीं कर सके  ?

      अन्यथा चुनावों के समय वाकआउट करने का विकल्प जनता के सामने भी खुला रहता है यदि समाज ने इस अधिकार का उपयोग किया तो क्या होगा लोकतंत्र का जिसके दोषी केवल वो लोग होंगे जो ऐसे वाकआउटों के समर्थक हैं ।जनता के जीवन से जुड़े किसी प्रश्न पर पहले तो उसका भय दिखाकर

डराना फिर उसे पास हो जाने देने का मतलब क्या यह समझा जाए कि अपने सभावित भयों से भयभीत होकर  बेचारी  जनता को उस भाड़ में झोंक कर अपनी जान बचाकर भाग आए ।जनता ने चुनकर आपको अपनी आवाज उठाने के लिए भेजा है यह  तो याद रखा ही जाना चाहिए।



   जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।।

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।



         


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