रेलवे के घाटे का कारण क्या है ?
जिस घर का मालिक लापरवाह होगा वहॉं घाटे के अलावा और कोई कल्पना करनी भी
नहीं चाहिए।ऐसे लोगों का न तो कोई व्यापार चलता है और न ही घर में आया
हुआ पैसा ही टिकता है तो बरक्कत कैसे हो?
इस विषय में सरकार से निराश मैं समाज को याद दिलाना चाहता हूँ कि रेलवे
की रिजर्वेशन कोच की प्रायः यह स्थिति ही होती है कि जिस सरकार के रेलवे
मंत्रालय के विभाग का टी. टी.उन
यात्रियों को एडजेस्ट करके बैठने की सलाह दे रहा होता है जिन्होंने कई कई
महीनें पहले रिजर्वेशन केवल इस लालच में कराए होते हैं कि हम पत्नी एवं
छोटे छोटे बच्चे लेकर जाएँगे जिससे दिक्कत न हो किंतु ट्रेन के रिजर्वेशन
कोच में घुसने में इतनी मारा मारी हो रही होती है कि सामान लेकर अंदर पहुँच
पाना अत्यंत कठिन होता है।क्या ये मारा मारी रिजर्वेशन वाले यात्रियों के
द्वारा की जा रही होती है?
ये उन यात्रियों की भीड़ होती है जिनकी टी. टी.साहब
से बात हो चुकी होती है। पिछले वर्ष की बात है जब हमारी सीट से हमें
ही बच्चों सहित यह कह कर उठाया गया था कि जो करना हो सो कर लो इस पर आपको
नहीं बैठने दूँगा। हमारे बच्चे खड़े खड़े जा
रहे थे। यह देखकर हमने ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी महोदय से जाकर कहा
तो वो हमारे साथ चले तो आए किन्तु हमारी सीट खाली कराने के बजाए उनको पूछा
कि आपकी बात टी. टी. महोदय से हो चुकी है तो उन्होंने बताया कि हाँ मैंने सेवा पानी कर दिया है। पुलिस कर्मी महोदय ने टी. टी.महोदय
से जाकर पूछा तो उन्होंने बताया कि हाँ मैंने ही उन्हें बैठाया है।आप
इन्हें कहीं जगह बनाकर बैठा दो। यह सुन कर मैंने कहा कि अलग अलग बैठने में
हमें दिक्कत होगी,बच्चे भी हमारे साथ हैं तो उन्होंने कहा कि यह होटल तो है नहीं,
सफर में दिक्कत तो होती ही है। यह कह कर उन्होंने हमें वापस भेज दिया।
इसके बाद शिकायत करने के उद्देश्य से मैंने जाकर शिकायत पुस्तिका माँगी
जिसे देने से मना कर दिया गया। जब हमने रिजर्वेशन की जोरदारी दिखाई तो
उसने भी हमें समझाते हुए कहा कि हम आपकी व्यवस्था करा सकते हैं आपको एक सीट
दिला देते हैं एक दिन की बात है चले जाओ तुम कम्प्लेन कर के क्या कर लोगे ?तुम
क्या समझते हो तुम्हारे जैसे लोग यहाँ पहले कभी नहीं आए होंगे क्या?या ये
खेल किसी अधिकारी को पता नहीं है!सबको पता है आखिर यह पैसा ऊपर तक जाता है
इसलिए कोई क्या कर लेगा?यह सब सुनकर मैंने भी उसका प्रस्ताव मानकर एक ही
सीट पर संतोष कर लिया!
सच्चाई यह है कि टिकट लेने जावो तो सरकार भाड़ा ले लेती है ट्रेन पर जावो तो टी. टी.कहता है कि मैं पागल हूँ क्या?आपने सरकार को पैसे दिए हैं सरकार से ही सीट माँगो हम क्या करें ?इस प्रकार सरकार वाले और टी. टी.वाले यात्री आपस में लड़ते झगड़ते हैं पुलिस वाले लोग टी. टी.के आज्ञा कारी होते हैं और टी. टी.ने जिससे पैसे लिए होते हैं वो उसका पक्ष लेता है।टी. टी.जिसका
पक्ष लेता है पुलिस वाले उसी का पक्ष लेते हैं वहाँ किसी प्रकार के अपराध
पर किसी का ध्यान नहीं होता है वसूली ही प्रधान धर्म माना जाता है। टी. टी.से लेकर पुलिस वाले तक बड़ी समझदारी से इस काम को अंजाम दे रहे होते हैं ।
इस
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाए रेलमंत्री घाटा दिखाकर किराए में हर
बार बढ़ोत्तरी करते रहते हैं आम आदमी सहने के अलावा कहे किससे?
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार अकर्मण्य है और उसका हर विभाग फेल चल
रहा है अपने खर्चे निकालने के लिए सरकार टैक्स पर टैक्स बढ़ाये जा रही
है।सरकार को भी अब तो मुक्त कंठ से स्वीकार कर लेना चाहिए कि सरकार एवं
सरकारी नौकरी वाले लोग इस देश को सभी प्रकार से भोगने में लगे हैं।नेता
घोटालों में व्यस्त हैं उधर अफसर लोग आय से अधिक संपत्ति इकट्ठी करने में
व्यस्त हैं किस किस से घृणा की जाए!
यही कारण है कि सरकारी नौकरियाँ आज टाफी गोली की तरह बाँटी जाती हैं जो लोग लंगड़े। लूलेए अपाहिजए दिनए हीनए अकिंचन,असहाय
हैं या जो लोग बिना पढ़े लिखे एवं बीमारी आदि के कारण परिश्रम न कर सकने
वाले हैं तथा वे जो आरक्षण आदि लोभ से बिना परिश्रम किए ही बहुत सारा धन
इकट्ठा करने वाले लोभी लोग हैं। ऐसे सभी लोगों की पुकार से प्रसन्न होकर
किसी भी प्रकार से जब सरकार ऐसे किसी परिवार पर कृपा करना चाहती है तो उसे
वरदान स्वरूप सरकारी नौकरी देने का ऐलान करती है क्योंकि सरकार को भी पता
है कि इससे अच्छी मौज मस्ती और कहाँ मिलेगी? ये बात
समाज को पता ही है तभी लोग सरकारी नौकरी पाने के लिए कितनी मारा मारी करते
हैं।ऐसी पुरुस्कार स्वरूप नौकरी पाकर कोई परिश्रम क्यों करना चाहेगा?और
करे भी क्यों?
इस नर्क में बेईमान
लोगों के साथ साथ ईमानदार लोग भी अपमानित होते रहते हैं।यद्यपि ईमानदार लोग
अभी भी बहुत हैं बेशक वे उतने अधिक प्रभावी न हों फिर भी ऐसे लोग काम
करना चाहते भी हैं तो वे अपने विभाग में ही अलग थलग पड़ जाते हैं।कई
सरकारी विभाग तो खुले तौर पर बेईमानी का अड्डा बने हुए हैं यही कारण है कि
उन उन विभागों की धार कुंद होती जा रही है सम्मान घट रहा है विश्वास टूटता
जा रहा है किन्तु किसे परवाह है इस बात की?
सरकारीविद्यालयों, सरकारीअस्पतालों, डाक सुविधाओं, सरकारी मोबाईल कंपनियों आदि का लोग मजबूरी में भले ही उपयोग करें किन्तु प्राइवेट विद्यालयों, अस्पतालों,डाक की जगह कोरियर सुविधाओं एवं मोबाईल कंपनियों ने आखिर क्यों सरकारी विभागों को पीट रखा है?
सरकारी विभागों से सम्बंधित लोग भी प्राइवेट संस्थाओं की सर्विस से ही खुश हैं।सरकारी विद्यालयों, सरकारी अस्पतालों, डाक सुविधाओं सरकारी मोबाईल कंपनियों आदि पर सरकारी कर्मचारियों का भरोसा भी अत्यंत कम ही देखा जाता है, क्योंकि सरकारी विभागों में जवाबदेही न के बराबर है। कई मामलों में तो सोच कर लगता है कि अब सरकार भरोसे लायक बची ही कहाँ है?लगता है कि सरकारों ने अब ईमानदारी और सच बोलने के विषय में सोचना भी छोड़ दिया है!समाज
के मन में भी ये बात इसी रूप में बैठ गई है। आज अगर ट्रेन भी प्राइवेट
होती और पुलिस की सुविधा भी प्राइवेट रूप से मिलती होती तो कोरियर आदि की
तरह ही इनमें भी प्राइवेट वाली ट्रेन और पुलिस भी प्राइवेट वाली ही पसंद
की जाती, किन्तु ऐसा विकल्प ही नहीं है।यह सरकारों की नाकामी ही है कि कम
संसाधनों से भी प्राइवेट में लोग अच्छी सुविधाएँ दे लेते हैं किन्तु अच्छे
संसाधनों से भी सरकारी संस्थान उतनी अच्छी व्यवस्था नहीं दे पाते हैं।
अनट्रेंड और कम पढ़े शिक्षक प्राइवेट विद्यालयों में जितनी अच्छी शिक्षण
सुविधाएँ वे लोग दे लेते हैं वहीं सरकारी विद्यालयों में ट्रेंड और अधिक
पढ़े शिक्षक उनकी बराबरी कर पाने में असमर्थ हैं ।
इसीप्रकार देश के गृहमंत्री ने भगवा परिवार को आतंकवाद से सम्बद्ध बताकर
देश को आश्चर्य चकित कर दिया यदि ऐसा था भी तो गृहमंत्री को जाँच आदि जो भी
कार्यवाही करनी थी करते किन्तु सनसनी फैलाना उन्हें शोभा नहीं देता
था।दूसरी बात देश या विदेशों को बताने का उनका उद्देश्य क्या था?जब
विश्व के लोग भारतीय भगवा परिवार को इसी दृष्टि से देखेंगे या आरोपित
करेंगे तब उनका पक्ष आखिर कौन वो भी किस मुख से लेगा?जब गृहमंत्री ही ऐसा
अभद्र भाषण कर चुके हों !कहीं ऐसा तो नहीं है कि गृहमंत्री जी केवल भगवा
परिवार के आतंक वाद को ही आतंक वाद मानते हों बाकी को नहीं! हाल के बम
विस्फोट उनकी इसी सात्विक दृष्टि का परिणाम तो नहीं है?
दो आतंक वादियों को फाँसी देकर उसके परिणाम स्वरूप देश को बम विस्फोट
जैसा यदि दारुण दुःख झेलना ही पड़ा जिसमें अनेकों निर्दोष लोग मारे गए जिस
अनहोनी की आशंका सारे देश को पहले से ही थी अन्ततः देश को वही तो सहना ही
पड़ा। यदि ऐसे हमलों को बचाया जा सका होता तब तो ऐसी सजा से जो सन्देश
सरकार देना चाहती थी उसमें सफल हो सकती थी किन्तु हमारी लचर सुरक्षा
व्यवस्था के कारण आतंकवादियों ने हमेशा ही देश को पीड़ा दी है और सरकार
सुरक्षा कर पाने में नाकाम रही ही है। साथ ही गृहमंत्री जी भगवा परिवार के
बढ़ते बर्चस्व से परेशान हैं जिन्हें भगवा परिवार के कारण अपनी कुर्सी एवं
अपनी सरकार का आस्तित्व ही तो नहीं संकट में दिखने लगा है जिस कारण वे
उन्हें आतंकवादी कह रहे हों खैर जो हो सबकी अपनी अपनी सोच !उनकी अपनी
सोच......!
शिक्षा व्यवस्था
प्राइवेट विद्यालयों में तीस रुपए की लागत की किताबें दो या तीन तीन सौ
रुपए में भी बिक रही हैं अपने यहाँ से दिए जाने वाले हर सामान में
विद्यालयों ने खुली लूट मचा रखी है किसका अंकुश है उन पर?
ये विद्या के पवित्र मंदिर व्यापार बनते जा रहे हैं। पूर्वी दिल्ली के कई
विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति जानने के लिए मैं गया।सरकारी विद्यालय
वालों ने साफ कह दिया कि हमारे यहाँ अच्छी पढ़ाई नहीं हो पाती है।हम तो
यहाँ एक तरह का बसेरा दे रहे हैं, पढ़ाना है तो प्राइवेट विद्यालय में
एडमिशन दिलाना ही ठीक होगा यह सुनकर पूर्वी दिल्ली के ही एक मध्यम स्तर
के प्राइवेट विद्यालय में मैं इसी विषय में बात करने गया तो मुझे वेटिंग
में बैठा दिया गया वहाँ मैं ही अकेला था। जब काफी देर तक कोई नहीं आया तब
मुझे पता लगा कि किसी मैडम के साथ प्रेंसिपल साहब हास परिहास में व्यस्त
हैं जिनसे मैं मिलने के लिए बैठा हूँ । मुझे बुरा लगा मैंने चपरासी से
पूछा तो उसने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अच्छी लड़कियाँ रखी ही
इसीलिए जाती हैं कि वो सभी के मनोरंजन का साधन बनें।छोटे क्लासों में पढ़ाना
तो कुछ खास होता नहीं है बस बच्चे घेर कर रखने होते हैं वैसे भी इस समय वो
यदि उनसे बात ही कर रहे थे तो भी आपको बुलाकर आपकी बात भी सुनी जा सकती थी
और ऐसी भी क्या बात जो किसी एक मैडम से ही इतनी इतनी देर तक चले खैर जो
भी हो उस व्यक्ति की बातों से वह सब कुछ साफ हो चुका था जो वो कहना चाह रहा
था। उसने हँसते हुए कहा कि इस समय मैडम प्रेंसिपल साहब की सेवा में होंगी
इसीलिए वो अभी आप से नहीं मिलेंगे अन्यथा ब्लेक शीशा वाला दरवाजा खुला होता
आखिर उसे वो बंद करते हैं कोई तो कारण होगा ईश्वर ही जाने! मैं यह सब
सुनकर वहाँ से चला आया !
ट्रेन सुविधाएँ
इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि सरकारी विभागों में बिना डर भय या
लोभ के बिना काम करने की ईच्छा रखने वाला कोई भी व्यक्ति समर्पण पूर्वक
काम करते कम ही देखा जाता है।
ट्रेन में तैनात सुरक्षा कर्मियों से लेकर टी. टी.तक
कोई नहीं सुनता है शिकायत।वो लोग रिजर्वेशन के किराए से आधा किराया लेकर
धडा़धड़ बैठा रहे होते हैं यात्री। डग्गामार टैंपू वालों से खराब स्थिति है
रिजर्वेशन कोच के टीटियों की !
ट्रेन के अंदर बाथरूम तक में भरे गए होते हैं यात्री।रिजर्वेशन कोच में
इसी सुविधा की बात कर रही है सरकार?लघु शंका तक जाने के लिए परेशान रहते
हैं लोग ।फर्श से लेकर सब कुछ बेच दिया होता है टी. टी.ने,है
कोई देखने सुनने वाला उन यात्रियों को जिनसे पहले पैसे ले चुकी होती है
सरकार ? जिसे उन लोगों से परेशानी हो वो स्वयं लड़े तो लड़े टी. टी.तो उसको एडजेस्ट करने की सलाह ही दे रहा होता है। पैसे वसूलने में पुलिस वाले केवल टी. टी.की
मदद कर रहे होते हैं।रेलवे में अपराधों के बढ़ने का एक प्रमुख कारण पुलिस
वालों की इस प्रकार के कामों में व्यस्तता भी है। क्या खिलवाड़ बना है रेलवे
विभाग ? एक दिन अपने परिवार के साथ मैं कानपुर से दिल्ली आ रहा था। हमारी सीट भी टी. टी.ने
बेच रखी थी मुझे बहुत विवाद करने के बाद भी सीट नहीं मिली ।अचानक मुझे याद
आया तो जब हमने अपना प्रेस कार्ड दिखाया तब अलीगढ़ में हमारी सीट हमें
मिली।कितना बुरा लग रहा था जब अपनी सीट के पास खड़े होकर परिवार सहित हमें
आना पड़ा था? हमारे जैसे जिन लोगों ने सरकारी रिजर्वेशन काउंटर से टिकट बुक कराई थी उनकी हालत ऐसी ही होती है,जबकि सौ दो सौ रूपए टी. टी.को तत्काल देने पर टी. टी.न
केवल तुरंत सीट दे देता है अपितु गंतव्य तक सारी जिम्मेदारी भी निभाता है।
कई बार तो एक तिहाई यात्री रिजर्वेशन वाले और दो तिहाई टी. टी.वाले
होते हैं। त्योहारों के समय यह संख्या और अधिक बढ़ जाती है।ऐसे में सरकार
किराया बढ़ाकर घाटे की भरपाई भले कर ले किंतु उसकी सरकार चलाने की
कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं।
सरकार जब अपने टी. टी.नहीं सुधार पाई तो अन्य सुख सुविधाओं की आशा ही कैसे की जाए?
सरकार से अब इतनी उमीद भी कैसे की जाए कि इसके बाद ही ट्रेन के ठेकेदार
एवं सुरक्षा कर्मी रिजर्वेशन वाले यात्रियों का शोषण नहीं
करेंगे।
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