हमें हमारी औकात पता होनी चाहिए
दमादों की खातिरदारी में लोग न जानें क्या क्या दे देते हैं यहाँ तो
क्लीनचिट जैसी छोटी चीज पर शंका और शोर क्यों ? इतना तो बनता भी है ।
अब तो ये आम बात हो गई है कि किसी पर पहले घोटाले के आरोप लगते हैं फिर
मीडिया या आरोप लगाने वाले अन्य लोग अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए बड़े
बड़े प्रमाण देते नजर आ रहे होते हैं। कई कई प्रेस कांफ्रेंस होती हैं, लोग
बड़े बड़े पोथी पत्रा पढ़ पढ़ कर जनता को दिखा रहे होते हैं आखिर जनता ने उन्हें जो काम सौंपा है वही वो कर रहे हैं किसी को क्यों बुरा लगे ?
मीडिया की दहाड़ एवं समाजिक कार्य कर्ताओं की ललकार सुनकर सारी जनता यह सोच
कर रिमोट पकड़ कर टी.वी. के सामने बैठ जाती है कि लगता है अब महॅंगाई की जड़
पकड़ ली गई है। इसके बाद जॉंच होगी, दोषियों से धन वसूला जाएगा फिर महॅंगाई घटना शुरू होगा किंतु ऐसा कभी हुआ ही नहीं।
दमदार आदमी होने पर सरकार की तरफ से उसे क्लीनचिट का पुरूस्कार मिलता है।
कुछ लोग साक्ष्य मिटाने में सफल हो जाते हैं तो बाद में छूट जाते हैं। कुछ
बड़े लोग होते हैं । उनके बारे में सबको पता होता है कि ये तो छूटेंगे
ही।कुछ तो बहुत बड़े लोग होते हैं उनका तो बस .......!खैर क्या कहना ?
कुछ लोग अपनी
पार्टी के होते हैं यदि वे भी पकड़ जाएँ तो अपनी सरकार का फायदा ही क्या
?चुनावों में बेकार ही चीखते चिल्लाते रहे क्या ?अपना या अपने नाते
रिश्तेदार का मामला हो तो प्रश्न उठाने वाला ही समझदारी से काम नहीं ले रहा
है जबकि उसे भी पता है कि इस मामले में कुछ नहीं होगा तो आग से खेलना ही
क्यों ?
आज ही टी.वी. पर सुन रहा था कि किसी के दमाद को
क्लीनचिट दे दी गई है। कुछ पार्टियों के लोग शोर मचा रहे थे। पत्रकार बड़ी
तल्लीनता से बहस करा रहे थे लग रहा था कि बहुत कुछ निकल कर सामने आ जाएगा।
समय पूरा हुआ वो सब शांत हो गए।
जब ये सब हो रहा था तब मुझे लग रहा था कि जब मीडिया में भूमि घोटाले का शोर मच रहा था तब तो किसी ने किसी को घास डाली नहीं , सफाई देने के लिए न तो दमाद सामने आया और न ही ससुराल पक्ष से ही कोई सामने आया ,
अब शोर क्यों ? हो सकता है कि उन्होंने समझा हो कि शोर मचाकर कोई क्या कर
लेगा? ये बात भी सही है आज तक किसी ने क्या कर लिया ? या फिर हो सकता है
कि उन्हें पता ही न लगा हो कि उनके विषय में देश
में कुछ इस तरह की बातें भी चल रही हैं।वैसे भी उन्हें पता कैसे लगेगा
किसकी हिम्मत है कि वो इस तरह की बात बता कर उनके विश्राम में बाधा डाले
?यह तो चलो आरोप की बात है अगर कोई पुरस्कार देने की बात भी होती तो भी डर
की वजह से कोई यह
सूचना लेकर भी वहॉं नहीं जाता तो घोटाले के आरोप की सूचना लेकर वहॉं कौन
जाएगा? हमें तो लगता है कि क्लीन चिट देने की बात भी सही नहीं है क्योंकि
उन्हें यह सूचना जाकर देगा कौन ? इतनी मर्यादा तो रखनी ही पड़ती है इसलिए
मीडिया को ही सीधे बता दिया गया होगा कि आप लोग देश को बता दें कि यह क्लीनचिट का मैटर है,इसे तूल न दिया जाए।
इसप्रकार आम जनता को सनसनीखेज बातें बता कर उसके परिवार
का ज्ञानबर्धन करने की जरूरत क्या थी ?आखिर उसका समय क्यों नष्ट किया
गया ?
हो सकता है कि इस पर बिचार करके ऐसे लोगों के खिलाफ
किसी कार्यवाही की तैयारी भी चल रही हो। जिन्होंने इस तरह की आवाज उठाने का
अपराध किया है।
आपके देश
का बडा़ से बड़ा पद पाने के लिए जिसकी कृपा की जरूरत होती है
मंत्री-मुख्यमंत्री टाईप के लोग तो जिस दरवाजे पर लोटकर बिना बताए ही वापस
लौट जाते होंगे। लोग उसके दामाद पर उँगली उठाएँ यह शोभनीय नहीं है।यह देश तो वैसे भी दमादों का सम्मान करता है।
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