रावण की निंदा आखिर क्यों?क्या कमी थी उसमें ?          
रावण विद्वान था तपस्वी था शिवभक्त था वीर था यशस्वी था वह वेदपाठी था वह तेजस्वी था अपनी सभा देवताओं से सुसज्जित कर रखी थी आखिर उसके किस दुर्गुण के कारण समाज  उससे घृणा  करे
उसके किस दुर्गुण को निंदनीय माना  जाय ? किस दोष से उसका पुतला जलाया जाता है ?क्यों उसकी निंदा करना सिखाया जाता है?समाज को यह जानने का अधिकार है कि वह रावण की निंदा क्यों करे ?
  समाज में अक्सर देखा जाता है कि किसी भी फील्ड में अपने से आगे बढ़ने वाले 
किसी व्यक्ति को देखकर हम उसकी निंदा करने लगते हैं ये हमारा अहंकार होता 
है। रावण का चरित्र भी बहुत कुछ इसी भावना का शिकार हुआ है।मैं यह कतई नहीं
 कह रहा हूँ  कि रावण पाक साफ ही था किंतु यदि पाप हम भी करते हैं पाप उसने
 भी किए थे।जब दोनों ही पापी हैं तो एक पापी दूसरे पापी का पुतला जला कर 
क्या संदेशा देना चाहता है ?
     रावण का पाप क्या था? 
 प्रश्न -रावण ने सीता का अपहरण पत्नी बनाने के लिए क्यों किया था?
 उत्तरः-यदि
 यह सच होता तो रावण ने माता सीता को महलों में रखा होता, जबकि उसने अशोक 
वाटिका में रखा था।दूसरी बात यदि पत्नी बनाने का बिचार होता तो सीताहरण से 
पूर्व सीता को प्रणाम क्यों करता ?
    मन महुं  चरन बंदि सुखु माना। 
                                                    रा.च.मानस  प्रश्न-उसने परस्त्री का अपहरण साधु का  वेष  रखकर क्यों किया था ?
 
 उत्तरः-
 साधु का वेष  पुण्य और पाप दोनों करने के लिए होता है। साधु का वेष रखकर 
कोई भी पाप आसानी पूर्वक किया जा सकता है क्योंकि अरबों वर्ष  पुरानी 
भारतीय संस्कृति में साधुओं ने अपने त्याग तपस्या और सर्वोत्तम चरित्र के 
बल पर जो साख बनाई है बदले में समाज के सामने अपनी किसी आवश्यकता के लिए 
कभी हाथ नहीं फैलाया है एकमा़त्र ईश्वर पर भरोसा करने वाले उन देवतुल्य 
संतों की भारत में हमेंशा  से शाख रही है।लोग उन पर विश्वास करते हैं।
     उसी विश्वास को भुनाने के लिए कुछ लोग साधु का वेष  रखकर इसी समाज
 से पत्नी परिवार की जगह दासी, शिष्याओं आदि का सुखोपभोग करते हैं। मकान की
 जगह सुख सुविधा पूर्ण आश्रम बना लेते हैं। पार्टी की जगह भंडारा करते हैं।
 सभी प्रकार से ऐश  आराम होती है सधुअई में।इसीलिए नेता लोग जब  भ्रष्टाचार
 में पकड़े जाते हैं तो कहते हैं कि अपराध साबित हो गया तो सन्यास ले लेंगे 
क्योंकि स्वतंत्र ऐय्याशी  उन्हें या तो नेतागिरी में लगती है या फिर 
संन्यास गिरी  में। रावण भी राजनेता था ही इसनीति से जब पाप करने का मन हुआ
 तो साधुवेष  धारण करना उसने भी ठीक समझा होगा, किंतु साधुवेष  त्यागते ही 
उसकी बुद्धि बदल गई और वह सीताजी को अशोकवाटिका में छोड़ आया। इसलिए कहा जा 
सकता है कि साधु का वेष  रखकर यदि धर्माचरण और ईश्वर भजन न किया गया तो बड़े
 सारे पाप होते हैं  इस वेष  से।
  
 यदि रावण की लंका सोने की थी तो कौन नहीं चाहता है कि उसका भी आश्रम या घर
 सोने का बनें। जो नहीं बना पाते वे असफल होने के कारण रावण को गालियॉं 
देते हैं।
    इसीप्रकार एक स्त्री के साथ 
गुजर बसर न कर पाने वाले लोग चैदह हजार स्त्रियों के साथ सफलता पूर्वक रहने
 वाले रावण की निंदा करते हैं।
    संतान सुख
 तो रावण को इतना अधिक था कि पिता की अनैतिक ईच्छा का भी उसके  बेटों ने 
सम्मान किया। सब मरते चले गए किंतु किसी बच्चे ने यह नहीं कहा कि पिताजी आप
 सीता को वापस क्यों नहीं कर देते?आजकल जिनके बेटे माता पिता की न्यायोचित 
बात भी नहीं मानते वो असफल मॉं बाप रावण को गाली नहीं देंगे तो क्या 
करेंगे?
    रावण के पास बल इतना अधिक था कि 
तीनों लोकों पर उसने विजय प्राप्त कर ली थी, देवताओं को भी पराजित कर दिया 
था।पराजित लोग ईर्ष्या वश  रावण की निंदा करने लगे।
    
 वैभव रावण का इतना अधिक था कि देवता  वहॉं सेवकाई करते थे।ब्रह्मा जी  वेद
 पढ़ते थे, शिवजी पूजा करवाने आते थे।आखिर कुछ तो देखा होगा शिव जी ने 
उसमें? हमारे जैसे असंख्य लोग भी तो पूजा करते हैं कभी शिव जी नहीं आए। हम 
रावण का यश  गाने के बजाए उसकी निंदा करने लगे। आखिर क्या कमी दिखाई दी 
हमें उसमें ? हम उसकी शिवभक्ति सह नहीं सके यही न ?
   
 भगवान शिव पर रावण अपने शिर काट काट कर चढ़ाता था। हम तो फल और फूलों के 
शिर काट काट कर चढ़ाते हैं और फल अपने लिए मॉंगते हैं।हम रावण की बराबरी 
कैसे कर सकते हैं?उसकी निंदा करना हम जैसों की मजबूरी है। 
   
 रावण बहुत बड़ा विद्वान था हमारे पास वे दिव्य विद्याएँ  नहीं हैं हम रावण 
की बराबरी करने के लिए ही उसकी निंदा करके अपनी भड़ास निकालते हैं ।
     हमारी भक्तराज रावण नाम की किताब में मैंने इसी प्रकार की और बहुत सारी  शास्त्रीय बातें लिखने का प्रयास किया है।जो उपलब्ध है।
    
 इतनी लंबी आयु जीकर रावण का मन मृत्यु वरण करने का हुआ तो सोचा किसी और के
 हाथ से मरने की अपेक्षा इस पवित्र काम के लिए क्यों न भगवान को ही 
प्रार्थना पूर्वक बुला लिया जाए?और उसने ऐसा ही किया श्रीराम प्रभु आ भी 
गए, कहॉं मिलता है ऐसा सौभाग्य?मरते समय जिसके मुख पर श्रीराम का नाम आ जाए
 तो वह भाग्यशाली माना जाता है।वहॉं तो प्रभु राम न केवल स्वयं सामने आए 
अपितु रावण की मृत्यु उन्हीं के हाथों से हुई।उसका यह सौभाग्य हम पचा नही 
पाते हैं और रावण की निंदा करके आत्मसंतुष्टि  करना चाहते हैं।
  
 रावण के चरित्र पर अँगुलियॉं उठाने वाले हम कौन होते हैं ? हमारे युग में 
तीन चार वर्ष  की बच्चियॉं  भी हवस का शिकार हो रही हैं।परायों से क्या 
कहें स्वजनों से नहीं बच पा रहीं  हैं। उचित होता कि हमें उसके कारण और 
निवारण ढूँढ़ना चाहिए किंतु आज भी हम ईर्ष्या वश रावण का पुतला ही पकड़े बैठे
 हैं ।नाचने गाने वाले कथावाचक इससे आगे समाज को कभी बढ़ने ही नहीं देते और न
 बढ़ने देंगे संयोगवश  यदि कभी ऐसा हो गया तो सारी पोल खुल जाएगी और अरबों 
रूपए का धार्मिक कारोबार बंद हो जाएगा।   
   हो 
सकता है कि उस युग में रावण निंदनीय रहा हो किंतु आज हमारा चरित्र उससे 
लाखों गुना अधिक नीचे गिर चुका है।अब हमें रावण का पुतला भी जलाने का 
अधिकार नहीं रह गया है।       
 
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