भारत की सर्वाधिक शक्तिशाली शक्तिपीठ
या
राजघराने का सच
यदि सरकार ईमानदार है तो दमादघोटाला प्रकरण में क्या किया सरकार ने अपितु लोगों को सरकारी गुस्सा का शिकार होना पड़ रहा है, जबकि भ्रष्टाचार रोकने में सरकार का सहयोग करना चाह रहे हैं लोग । कितने शर्म की बात है कि सारा कुनबा ही देश पर बोझ बनता जा रहा है। घोटाले करके खुद तो देश का धन हड़पते हैं घाटा पड़ने पर गरीब जनता के गैस सिलेंडरों की कटौती कर ली जाती है। गरीब जनता के पेट पर लात मारने वालो तुम्हें दया नहीं आती गरीबों के भूखे बच्चे रोते बिलखते देखकर।
जो भी हो आप जैसे नेताओं से निराश देश तो अचानक मोदी जी से भी आशाएँ लगाने लगा है। ईश्वर करे मोदी जी स्वस्थ सुरक्षित सदाचारी एवं दीर्घायु हों एवं भारतीय समाज को स्वस्थ सुखी करने के लिए उनके हिस्से के प्रयास का फल एवं यश ईश्वर उन्हें अवश्य दे।
देश में परेशानी क्यों आई? भ्रष्टाचार किसने बढ़ाया? अपराधों के बढ़ने का कारण क्या है? आदि बातें हर किसी के मन में कौंध रही हैं किंतु भ्रष्टाचार रूपी सर्प को पकड़ पाना संभव नहीं हो पा रहा है।
सरकारी पार्टी एवं सरकार का हाल सर्पों की एक बांबी जैसा है। जहॉं नाना प्रजातियों के सर्प (घोटालेहोते) रहते हैं।मोदी जी एक सफल सॅपेरे हैं जिस तरह उन्होंने भ्रष्टाचार रूपी सर्प का फन गुजरात में पकड़ा है यह सबसे उचित ढंग है। सर्पों के रहने के स्थान को बांबी कहते हैं। जिसमें सर्पों के अंडे बच्चे अनंत काल तक सुरक्षित पड़े रहते हैं जो वहॉं के बुजुर्ग सर्प एवं सर्पिणी होते हैं। वही अपने परिवार की रक्षा किया करते हैं।सारा कुनबा उन्हीं की मक्खन पालिस में लगा रहता है। वहॉं उनकी प्राण प्यारी मणि भी सर्वाधिक सुरक्षित दिखाई देती है।उस पर किसी प्रकार का संकट आते ही सारा कुनबा चीखने चिल्लाने लगता है।अपने सारे कुनबे की रक्षा में तत्पर सर्प एवं सर्पिणी फन फैलाए बैठ कर उनका हौसला बढ़ा रहे होते हैं।उनकी पारिवारिक एकता को देखकर उनकी बांबी में डर के मारे कोई हाथ भी नहीं डालता है।इसी प्रकार से उनकी बांबी की परंपरा सैकड़ों हजारों साल पुरानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। ग्रामीण जीवन से जुड़े लोग प्रायः इससे परिचित होंगे।
भारतीय सत्ता की शक्तिपीठ भी इसी प्रकार की वर्षों पुरानी बांबी है इसकी भी सुरक्षा में कोई न कोई सर्पिणी फन फैलाए अवश्य बैठी रहती है ऐसा समय समय पर दिखाई भी देता है। सारा कुनबा उसी की चाटुकारिता के लिए चीखता चिल्लाता रहता है, बदले में बेचारे कुछ न कुछ पा ही जाते हैं, मंत्री मुंत्री पद तो आम सी बात है।इसी लोभ से उसी शक्तिपीठ की परिक्रमा इनकी मजबूरी होती है। सारा कुनबा इसी प्रकार मक्खन पालिस में लगा रहता है। आरती पूजा परिक्रमा सब उसी शक्तिपीठ से संबंधित करते रहते हैं। इस बल पर वे देश या समाज को चाहें जब और जैसे डसें कोई क्या कर लेगा उनका ? इनका कुनबा भारतीय सत्ता की सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ के रूप में इसे पूजता है, जस्ट लाइक तीर्थ। इस कुनबे में वर्षों पुराने बूढ़े से बूढे़ भयंकर से भयंकर बिषैले(भ्रष्टाचारी)बहुत पुराने पुराने सर्प रहते हैं किंतु अपना बड़प्पन भूल कर अपने तीर्थ में दंडवत, परिक्रमा, आरती, पूजा करने सब जाते हैं। भ्रष्टाचार के जहर के बल पर ये हमेशा फुंकारते रहते हैं।यहॉं हाथ डालने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ती है।
सर्प पकड़ने वाले को जोगी या कनफट्टा कहते हैं उनका पुस्तैनी काम सर्प पकड़ना ही माना जाता है।भ्रष्टाचार की इस अति प्राचीन बांबी में हाथ डालते ही आखिर एक बनावटी जोगी को औरतों के कपड़े पहन कर भागना पड़ा था,उसे मंत्र पता नहीं था।बीमारियों की लंबी लंबी लिस्ट रटकर टी.वी. पर न केवल पढ़ना अपितु उन बीमारियों को ठीक करने का दावा जैसी बकवास करने की उसे आदत थी। इसी लत के कारण वो बेचारा आज भी कुनबे सहित डसा जा रहा है।कब तक और कितना डसा जाएगा वो, ये उसे भी नहीं पता होगा, अब उसकी सुरक्षा भगवान भरोसे ही समझो या फिर उसी तीर्थ में जाकर पूजा पाठ से उसी शक्तिपीठ को प्रसन्न करना होगा और दुबारा इस तरह की गलती नहीं होने का भरोसा दिलाना पड़ेगा तब जान बच सकती है।
खैर जोगी को तो केवल चीख चिल्लाकर अपनी मार्केट बैल्यू बढ़ानी थी सो बढ़ा ली, इससे देश के भले की तो आशा भी नहीं थी। करोड़ों रूपए इकट्ठा करके आखिर उस पैसे का देश हित में क्या उपयोग ? समाज को तो बड़ी बड़ी कंपनियों की तरह उससे भी दवाएँ खरीदनी ही पड़ती हैं। वैसे भी यदि योग से रोग भगते तो दवाओं की आवश्यकता ही क्यों पड़ती? ये सच्चाई समाज समझ चुका था। यही कारण है कि वह जब औरतों के कपड़ों में लुक छिप कर भाग रहा था तो उसकी सच्चाई भीड़ समझ गई और उसने भी भागने में ही अपनी भी भलाई समझी अन्यथा इतनी बड़ी भीड़ को चुप होकर यदि भागना ही था तो इसे एकत्रित करने का उद्देश्य आखिर क्या था? धरना प्रदर्शन आदि विरोध तो किया ही जा सकता था ।
जो भी हो अबकी तो मोदी जी से सामना है वो शालीन एवं प्रमाण सहित संयत शब्दों में अपनी बात विनम्रता पूर्वक रखने के अभ्यासी दिखते हैं वो विद्वान भी लगते हैं।वो संकल्पवान एवं दृढ़व्रती लगते हैं यदि ये सच है तो ऐसा लगता है कि ईश्वर उनसे कुछ बहुत अच्छा करवाकर उसका श्रेय उन्हें देना चाहता है। भगवान उन्हें लंबी आयु दे और वो सत्कर्म के पथ पर सदाचार पूर्वक आगे बढ़ते रहें। ये सद्कामना तो मैं नेताओं के लिए भी करूँगा !
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