Thursday, November 22, 2012

मटुक नाथ का विद्यालय !

                       मटुक नाथ  एक खोज 


     बात उस भटके हुए मटुक नाथ की है जो अपनी इन्द्रियों पर निग्रह नहीं रख पाया और दुर्भाग्य से अत्यंत निंदनीय ब्यभिचार की ओर प्रवृत्त हुआ।  जिसने अध्यापक  के रूप में अभिभावकों के विश्वास को तोड़ा  है गुरु पदवी की पवित्रता को ध्वस्त किया है और अपनी विवाहिता पत्नी एवं बच्चों के सम्मान से खेला है।अब उसके द्वारा पहले पढ़ाई जा चुकी बच्चियाँ किस मुख से कहना चाहेंगी कि मुझे भी इन्होंने पढ़ाया था।पत्नी एवं बच्चे भी सामाजिक अपमान सहने के लिए विवश होंगे। कम उम्र की बच्ची जो किसी भी प्रकार से बरगलाकर शील शोषण का शिकार बनाई गई।उसके माता पिता को भी इसी समाज में जीना है वो इज्जत पूर्वक कैसे जी सकेंगे,क्या उन्हें सामाजिक जलालत नहीं झेलनी पड़ेगी?क्या इन सबके लिए ऐसे  मटुकों को दोषी नहीं माना जाना चाहिए ? इस प्रकार बासनात्मक स्वेच्छाचार के विरोध में मैंने जितने भी प्रश्न उठाए हैं, उन हर जगहों पर अपने को खड़ा करके देखा है मुझे बहुत पीड़ा हुई वही मैं लिख रहा हूँ जिस किसी को अच्छा लगे तो लगे अपना अपना मन अपनी अपनी भावना !

   इसी प्रकार  प्रायः वो हर आदमी ऐसा ही मटुक नाथ होता  है जो इस समाज के बने मर्यादित संबंधों के ताने बाने को ध्वस्त करने की इच्छा रखता हो जो अपने आस पास की सीधी सरल लड़कियों को अपनी हवश का शिकार बनाने की घात लगाये अपनी ही समाज में बैठा हो। अपने परिवारों की,नाते रिश्तेदारों की,गॉंवों की गरीबों की अपने से काफी कम उम्र की लड़कियों के कौमार्य भंग या शीलहरण  का दोषी  है, जिसने  अपनी बासना के बुने जाल में फॅंसा कर प्यार के नाम पर एक अक्षम्य अपराध किया हो वो दुर्भाग्य से आज भी अपने को सही ठहरा रहा है और लोग उसकी बात सुन भी रहे हैं कुछ उसका साथ भी देने को तैयार हैं। मुझे नहीं पता कि कानून इस प्रकरण को किस दृष्टि  से देखता है किंतु धार्मिक मर्यादा इसे केवल और केवल चरित्र हीनता मानती है।इसके अलावा कुछ भी नहीं।चरित्र हीनता यदि इसे नहीं तो किसे मानेंगे ?

        आप स्वयं सोचिए कि किसी लड़की को लालच देकर,अपनी चालाकी से,चाटुकारिता से बहला फुसलाकर  इतनी बुरी तरह बेशर्म बनाने में जो भी  सफल होते हैं ।वे  बहसी दरिंदे  इसके पहले भी न जाने कितनी अबोध बालिकाओं की जिंदगी के साथ खेले  होंगे ?कुछ लड़कियॉं इस अत्याचार को झेलकर भी नहीं आई होंगी समाज के सामने, कुछ गरीबत के कारण डर गई होंगी,कहीं उनका कैरियर न चौपट हो जाए इस कारण नहीं आई होंगी सामने,कौन जाने कुछ को अपने सोर्स सिफारिस के बल पर डरा धमका कर उनसे दुष्कर्म किया गया हो और उनकी वाणी भयवश  बंद कर दी गई हो बासना के आगोश में आए  हुए कोई भी अपराधी जितने तरह के अपराध करते पहले पाए जा चुके  हों  उन सभी दृष्टिकोणों से ऐसे मटुकनाथों की जॉंच की जानी चाहिए।आखिर ऐसी बहसी आदत वाले लोगों की शिकार बनी बच्चियों को कहॉं मिलेगा न्याय,आखिर कौन करेगा पहल?
     अपने प्राणों से प्यारे बच्चे आखिर किसके सहारे विद्यालयों में छोड़े जाएँ आखिर अब ये चिंता अभिभावकों को  सताना स्वाभाविक है।आज उनके सामने विश्वास का सबसे बड़ा संकट जो खड़ा हुआ है आखिर उसे पाटने की जिम्मेदारी किसकी है?गुरु और शिष्य  का संबंध कलंकित हुआ है।इसकी भरपाई कैसे होगी? आखिर डॉक्टर और मरीज,किसी विभाग में सीनियर कर्मचारी और जूनियर कर्मचारी,इसीप्रकार राजनैतिक क्षेत्र आदि सभी प्रकार के विश्वास पर चलने वाले क्षेत्र क्या अब सुरक्षित नहीं हैं ? पर्दे के पीछे यदि कुछ गलत करने में सफल हो जाए तो प्रेमी,  पकड़ जाए तो मटुकनाथ!
     वैसे भी पी.एच. डी. करने वाली लड़कियों को अक्सर मटुकनाथों से जूझना पड़ता है।देश के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साहब के अंडर में शोध करने वाली दो लड़कियों को प्रोफेसर साहब ने एक दिन अपने घर पर बुलाया, संयोग से मैं भी उस दिन उनसे मिलने गया था।उन लड़कियों को बार बार वो एक ही बात समझा रहे थे कि तुम खैर कहो कि हमारे अंडर में हो अमुक अमुक प्रोफेसर के अंडर में होते तो वो सब तुम्हारे साथ क्या क्या करते पता है तुम्हें?उनसे लगभग कम  उम्र की लड़कियॉं बार बार बेचैन हो जातीं और सिहर उठतीं शर्मा जातीं। वो अध्यापक महोदय की उम्र से आधी उम्र की थीं।ये सच है कि अध्यापकों की एक पवित्रमुखी छवि होती है उनके मुख से ये सब शोभा तो नहीं ही दे रहा था अपितु बड़ा बुरा लग रहा था।उन्होंने मटुकनाथी निकृष्टता में जो नाम गिनाए उनमें  कई बहुत पवित्र नाम थे जिन्हें मैं निजी तौर पर भी जानता हूँ  फिर भी यदि कुछ ऐसा रहा हो तो मुझे पता नहीं।   
     इसीप्रकार  कुछ आश्रमों में किराएदार रखने की व्यवस्था होती है सुदूर ग्रामीण अंचलों से हैरान परेशान लोग अपने बीबी बच्चों के साथ अपने पास के शहरों में भाग आते हैं कुछ धार्मिक तीर्थस्थलों में निकल जाते हैं। कहीं भी हो शुरू शुरू में अशिक्षित बेरोजगार लोगों की इतनी आर्थिक व्यवस्था नहीं होती है कि अपनी  ईमानदारी की कमाई के बल पर बच्चे पाले जा सकें। उस परिवार  में गावों की गरीबत  एवं रईसों के शोषण  का भय इतना अधिक भरा होता है कि वो परिवार कितनी भी जलालत सहने को तैयार हैं  किंतु अब वापस जाकर गॉंव में रहने को तैयार नहीं हैं।ऐसे में वो चरित्रवान परिवार या तो सब तरह की मुशीबत सहकर संघर्ष  पूर्वक रहने  को तैयार होता है वो व्यक्ति ओबरड्यूटी आदि से अधिक धन कमाकर अपने एवं अपने परिवार को सादगी पूर्वक बचा ले जाता है। यदि वो व्यक्ति हिम्मत हारता है तो शिक्षित पत्नी भी छोटे मोटे काम से और अशिक्षित पत्नी परिश्रम पूर्वक अपनी गृहस्थी को सॅंवार ले जाती है।यहॉं एक परिस्थिति ये भी आती है जो दम्पति अधिक परिश्रम भी नहीं करना चाहते हैं शिक्षा भी नहीं है और झूठ शौक  शान भी नहीं छोड़ना चाहते हैं।ऐसे लोग निःशुल्क या अल्प शुल्क आवास के चक्कर में या तो किसी आश्रम में कोई छोटा मोटा कमरा लेकर रह लेते हैं या  जहॉं काम करते हैं वही फैक्ट्री आदि में ही कोई साधारण सा आवास गुजर बसर करने लायक मिल जाता है।ऐसे में कई बार वो परिवार घबड़ाकर वापस गॉंव जाने को तैयार हो जाता है।इसी बीच इस परिवार को किसी  ऐसे ही मटुकनाथ के सहयोग का आफर मिलता है। वह आश्रम या फैक्ट्री  मालिक या और कोई भी हो सकता है। अंतर सिर्फ इतना होता है कि ऐसे लोग अपने उस व्यभिचार को प्यार कह कर खुश  भले हो लें किंतु यह दुष्कर्म कई बार बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं को जन्म दे जाता है।कई बार पूरे पूरे परिवार समाप्त होते देखे गए हैं।हत्या आत्महत्या या सामूहिक हत्याएँ  तक दुखद रूप से सुनने को मिलती हैं। यह परिस्थिति केवल लेवर वर्ग में ही नहीं हैं  यह हर उस जगह है जहॉं भी कोई व्यक्ति अपनी झूठी शौक शान के कारण अपने परिवार को किसी के एहसान के तले दबा देता है।वहीं ऐसे मटुक नाथ सक्रिय हो जाते हैं।महानगरों में मंदिरों के पुजारियों का एक वर्ग भी इस त्रासदी को झेल रहा है वहॉं काम तो वो करते हैं खर्चे अच्छे से अच्छे हैं मासिक बेतन हजार दो हजार होता है उसपर भी निष्कासन की तलवार लटकी रहती है।वहॉं भी योग्य लोग तो अपने बलपर परिवार का पोषण करते हैं अयोग्य लोग अपनी शौक शान के कारण किसी ऐसे ही मजबूत मटुकनाथ के चक्कर में पड़ जाते हैं।वहॉं भी कुछ तो सह जाते हैं और कुछ परिवार बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं के शिकार होते देखे गए हैं। इसके बिपरीत कई सुरा सुंदरी के शौकीन रईस परिवारों में जहॉं पुरुष वर्ग अनियंत्रित वासना का शिकार है वो महीनों महीनों लगातार कार्यक्षेत्र में ही सुरा सुंदरी से मूर्च्छित  होकर घर घुसता है।ऐसी जगह सहज प्रवेश  पा जाने वाले धार्मिक लोग ही मटुकनाथी परंपराओं का निर्वाह कर रहे हैं।कई देखने सुनने में सुंदर लोग तो ऐसे ही परिवारों के अर्थ सहयोग से बिना पढ़े लिखे होकर भी अच्छे अच्छे कथा व्यास हो गए।नाच गाकर उछलने कूदने से रिझा लेने में सफल हो गए यहॉं के सब सुख पाकर भूल गए अपने पत्नी बच्चों को। उनका महीना बॉंध दिया है।इसी प्रकार अन्य क्षेत्र भी हैं।
      क्या ये उन परिवारों के साथ अन्याय नहीं है।आखिर उनके परिवारों का क्या दोष  है? उन्हें जो समाज की जलालत झेलनी पड़ती है उसका जिम्मेदार कौन है?मानलीजिए कि एक चरित्रभ्रष्ट  बहसी व्यक्ति बेशर्मीवश  अपने अनियंत्रित व्यभिचार को मंडित करने के लिए प्यार का लबादा ओढ़ना ही चाहे तो इसका समर्थन  कैसे किया जा सकता है?क्योंकि समाज का दायित्व उसके प्रति अधिक है जो उसका संयमित परिवार है जो पति ,पिता आदि के व्यभिचार दोष से सामाजिक शर्मिंदगी का शिकार हुआ है।
      रही बात प्यार की तो ये प्यार हो ही नहीं सकता प्यार का अर्थ कभी भी बासना अर्थात सेक्स नहीं किया जा सकता अन्यथा इससे तो विश्वास  का सबसे बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।डाक्टर, मास्टर,गुरुजन,महात्मा,पंडित आदि भारतीय समाज में स्वाभाविक सम्मान्य माने जाने वाले लोगों को उस घर की बेटी बहुएँ  भी सम्मान देने लगती हैं।इसका मतलब ये नहीं हुआ कि वो उनसे प्यार के हाथ आजमाने लगें अगर वो पटाने में या भगाकर ले जाने में सफल हो जाएँ तो प्यार अन्यथा अपराध वो सिद्ध हो न हो वो तो  उस परिस्थिति पर आधारित होगा।       
       ऐसे अमर्यादित आचरणों  का यदि समय रहते सामूहिक सामाजिक बहिष्कार  न किया गया तो ऐसे निर्लज्ज लोग प्यार के नाम पर कहीं कपड़े उतार कर खड़े हो जाएँगे।महिला आयोग जैसी न्याय प्रिय संस्थाओं को भी इन बिषयों में कोई स्पष्ट  लकीर खींचनी चाहिए जिसका पालन करने के लिए समाज बाध्यहो।जिससेडाक्टर,मास्टर,गुरुजन,महात्मा,पंडित आदि भारतीय समाज में स्वाभाविक सम्मान्य माने जाने वाले लोगों का पारिवारिक दृष्टि से विश्वास  बरकरार रखा जा सके।इन  लोगों को भी अपनी महान मर्यादा एवं  गौरव का ध्यान रखना चाहिए। 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।


 


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