महिलाओं की भी  क्या कोई जिम्मेदारी नहीं होनी   चाहिए?
   आज पार्कों,मैट्रो स्टेशनों, पर्किंगों जैसी 
 सार्वजनिक जगहों पर जितनी बेसब्री  से लड़के अपनी तथाकथित प्रेमिका का 
इंतजार करते देखे जाते हैं उससे कम बेसब्री उन लड़कियों में नहीं होती जो 
अपने तथाकथित प्रेमियों का इंतजार कर रही होती हैं।ऐसे तथाकथित प्रेमी 
प्रेमिका जब तक पटरी खाती है तब तक दोनों एक दूसरे को चिपटने चाटने में 
पूरी तरह समर्पित होते हैं।सच्चाई ये है कि विवाहित लोग  भी  इतने स्नेह से
 कम ही रहते देखे जाते होंगे जितने स्नेह से विवाहेतर  संबंधी या अविवाहित 
लोग रहते हैं। दोनों का दोनों के प्रति पूर्ण समर्पण होता है।जिन्हें देखकर
 कभी नहीं लगता कि इन्हें कोई जबरर्दस्ती घसीट या बॉंध कर एक जगह लाया 
है।दोनों इतना खुश  होते हैं कि वे एक नहीं सात नहीं सात सौ जन्म भी एक साथ
 रहने का वायदा करते देखे जा सकते हैं। दूसरे ही क्षण दो में से किसी का दूसरा कोई
 अच्छा सौदा पटते ही दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं वो दुश्मनी कहॉ 
तक कितनी बढ़ेगी कौन कह सकता है?दोंनों एक दूसरे को मिटा देने के लिए हर 
संभव कोशिश करते देखे सुने जा सकते हैं और वो करते भी हैं कोई किसी को 
बरबाद करने में कसर नहीं छोड़ता है।कोई किसी पर तेजाब फेंकता है तो कोई किसी
 को और तरह से  मारता  या हानि पहुँचाता है । कोई तथाकथित
 प्रेमी या प्रेमिका उसे मारने के बाद भी छोटे छोटे टुकड़े कर रहा होता है। 
ऐसे प्रेम के प्रति कितनी घृणा रही होगी उसमें कल्पना नहीं की जा सकती है!इसी प्रकार और जितने 
भी बासनात्मक व्यवसाय बनाए गए हैं सब में मिलाजुला कुछ ऐसा ही देखने  सुनने
 को मिलता है।आखिर यहॉं या ऐसे मामलों में क्या करे सरकार ?कितनी कितनी, 
किसको किसको, कहॉं कहॉं, क्या क्या, कैसे कैसे सुरक्षा मुहैया करावे सरकार?
 ये बिल्कुल असंभव कार्य है।
      जो अपने पत्नी बच्चों  को छोड़कर किसी और से प्रेम का खेल खेलता है क्या यह उसके पत्नी बच्चों के साथ अन्याय नहीं है?यह जानते हुए भी  कि यह पुरुष विवाहित है फिर भी उससे प्रेम करने वाली लड़कियों  या स्त्रियों को भी  उस पुरुष के साथ साथ  अपराधी क्यों नहीं माना जाना चाहिए?  उचित तो यह है कि  समाज हित में ऐसे कामी पुरुष को महिलाएँ स्वयं दुत्कार दें। यह जिम्मेदारी महिला समाज को स्वयं उठाकर ऐसे प्रेम पाखंडी पुरुषों का  न केवल बहिष्कार  करना चाहिए  अपितु प्रशासन से उन्हें दण्डित करवा कर ऐसे निर्लज्ज पुरुष को उसके पत्नी बच्चों के हवाले करना चाहिए ताकि उसकी पवित्र पत्नी एवं बच्चों को समाज की जलालत न झेलनी पड़े और भटके हुए उस मटुक नाथ जैसे पाखंडी पुरुष को भी उसके अपने परिवार में व्यवस्थित  किया जा सके! ऐसी पवित्र भावना से सम्मान पाने योग्य सामाजिक काम कर सकता है महिला समाज और बचाया जा सकता है महिलाओं का घटता गौरव! 
     आधुनिक प्यार की  ईच्छा रखने वाला कोई भी व्यक्ति आधी अधूरी  बलात्कारी  भावना से जुड़ ही जाता है क्योंकि
 उसका मन न जाने कब किस पर आ जाए और उसके मन के अनुकूल सामने वाला तैयार हो
 या न हो!ऐसे समय लवलवाने वाला व्यक्ति  अपने मन पर काबू कर पाए न कर पाए उसका तथाकथित प्रेम अचानक बहने ही लगे तो क्या करेगा ऐसे में वो     या  तो किसी को लोभ देकर फँसाता है या 
फिर झूठा लालच देकर फँसाता है  या तो जबर्दस्ती करता है किन्तु वह तो मन के
 आधीन होता है जैसे मिले  वैसे मिले उसे तो जिस पर दिल आ गया है वो चाहिए ही चाहिए चाहे जैसे मिले ! 
      इसीप्रकार प्रेमिका को खुश करने के लिए गाड़ी घोड़ा 
आदि जो भी अच्छी चीज हो वह  सब इन्हें चाहिए ही कैसे भी मिले ये प्यार भावना ही 
लूट पाट किडनैपिंग आदि अपराधों को जन्म देती है तथाकथित प्रेमिका को प्रसन्न करने के लिए कोई प्रेमी  सब कुछ कर सकता है जिसके पास धन नहीं है वो अपराध नहीं करेगा तो कहाँ से लाएगा प्रेमिका को देने के लिए !
      पत्नी और प्रेमिका में यही अंतर होता है कि पत्नी तो पति की परिस्थिति देखकर डिमांड रखती है जब कि प्रेमिका तो बस अपनी डिमांड रखती है।यहाँ प्रेमिका को प्रसन्न करने के चक्कर में प्रेमी  न केवल अपराध करने पर उतारू होता है अपितु अपराधी हो भी जाता है।  
   पहले राजा लोग  धनी होते थे इसलिए उन्हीं की प्रेम कहानियाँ होती थीं गरीब लोग इन लफड़ों से दूर रहते थे वैसे भी जिसके पास पैसे भी न हों अपराध भी न करना चाहे तो कैसे होगी ऐय्याशी ?  इसीलिए पुराने ज़माने में  धार्मिक  लोगों की संख्या अधिक होती थी।आम आदमी अत्यंत संपन्न लोगों या राजाओं के घर न तो घुस पाता था इसलिए उस तरह के भोग विलास की भावना भी नहीं होती थी इसीलिए अधिकांश लोग तब धार्मिक ही होते थे । अब टेलीविजन की संस्कृति ने रईसों की रासलीलाएँ गरीबों तक पहुँचा दी हैं अब वहाँ भी प्रेम प्यार की बातों में ये लोग  भी रस लेने  लगे हैं जिनके पास प्रेमिका पर खर्च करने के  लिए अपनी कोई कमाई नहीं है और इतनी जल्दी हो भी नहीं सकती!अपराध न करें तो करें क्या ?जब प्रेम के पचड़े में फँस ही गए हैं तो क्या करे पुलिस और क्या करे सरकार?
    ये लोग अपराध की ओर मुड़ते भी जल्दी हैं।वस्तुतः प्यार का नाटक करने वालों
 का मन मजबूत एवं आत्मा कमजोर होती है।सतोगुणी आदमी 
की ही आत्मा मजबूत होती है जिसकी आत्मा मजबूत होती है वह आत्म रंजन का 
शौक़ीन होता है वहाँ गलत काम करने की भावना ही नहीं होती है इसीप्रकार
 जिनका मन मजबूत होता है उनकी आत्मा पर मन हावी होता है ऐसे लोग मनोरंजन के
 शौक़ीन एवं हर भोग भोगना चाहते हैं।वो कैसे भी मिलें!उनके लिए कितना भी 
अपराध ही क्यों न करना पड़े?जो प्रसिद्ध,सक्षम, गुणवान एवं धनवान होते हैं 
उनका प्रेम तो सम्मानित विवाह जैसा दिखने लगता है  बाकी जिनकी क्षमता कमजोर  होती
 है वो बेनकाब हो जाते हैं।इसलिए जो लोग चाहते हैं कि भारतीय समाज अपराध 
मुक्त हो उन्हें प्यार  नामकी परेशानी से बचना चाहिए।अपराध मुक्ति के लिए हमें स्वयं सुधरना होगा। बलात्कार की हर छोटी बड़ी घटना में हम सभी सभी प्रकार से दोषी हैं।अपराध करने से सहने वाला कम दोषी नहीं होता है।किसी भी आपराधिक वारदात के बाद हम सभी लोग पुलिस को कोसने लगते हैं आखिर क्यों?क्या कैंडिल मार्च निकालकर रोड़ों पर इकट्ठा होने,सरकार एवं पुलिस के विरुद्ध नारे लगाने से अपराध रुक जाएँगे? हमें यह  भी समझना होगा कि कोई भी अपराधी किसी अपराध में फँसने से पूर्व अपराध के विरुद्ध रोड़ों पर इकट्ठा होते, कैंडिल मार्च निकालते ,सरकार एवं पुलिस के विरुद्ध नारे लगाते लगाते जिस दिन उसकी अपनी पोल खुल गई वास्तव में उस दिन उसे यह सच्चाई भी पता लगी  कि अपराध अपने से ही शुरू होता है और अपने सुधरते ही सब कुछ सुधरने लगता है।जिस दिन हम स्वयं संकल्प ले लेंगे कि इस घिनौने प्रेम प्यार के लफड़े में हम कभी न पड़ेंगे,न ऐसे लोगों से किसी प्रकार का कोई संपर्क ही रखेंगे और ऐसे कामियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए वह अपना कितना ही खास क्यों न हो!महिलाओं में भी ऐसी  ही व्रती  वीरांगनाएँ  तैयार हों,यह देखते जानते ही अपराधियों के हौसले पस्त हो जाएँगे। पुलिस को भी देश हित के कुछ और दूसरे काम करने का भी मौका मिलेगा ।  
      कई बार कोई कामी पार्क की 
झाड़ियों में अपनी प्रेमिका को गोद में लिटाए प्यार  करने का नाटक कर रहा 
होता है न जाने किस बात पर कब चिढ़ कर वो प्रेमिका का गला
 दाब दे किसे क्या पता?कई बार किसी दूसरी के प्रति चाहत होने के कारण मान लो कि उसने 
पहली प्रेमिका को मारने का मन बना ही लिया हो और मार ही दे तो चाह कर भी 
पुलिस उसे कैसे बचा पाएगी ?क्या कर लेगा कठोर कानून क्या कर लेगी ईमानदार सरकार?ये प्यार का धंधा होता ही ऐसा है यहाँ कोई किसी का सगा नहीं होता है जब जहाँ जिससे सौदा पट गया वहीं प्यार मान बैठे अगले दिन,अगले महीने या अगले वर्ष फिर कोई नया शरीर ढूंढते फिरते हैं ऐसे लोग   !     
    महिलाओं को भी अपने सम्मान के विषय में न केवल स्वयं सोचना होगा अपितु जन जागरण भी करना होगा ।जैसे किसी भी प्रकार 
की किसी भी चीज के विज्ञापनों में, कोई प्रोडक्ट बेचने के लिए महिलाओं के 
शरीरों को भड़कीला बनाकर अर्द्धवस्त्रों में उन शरीरों को दर्शनार्थ  परोसकर
 अपने प्रोडक्ट बेच रहे होते हैं व्यापारी !
  ऐसे शरीर धारण करने वाली सुंदरियॉं पूरे होश  हवाश में अपने शरीरों
 के शिथिल प्रदर्शन का बाकायदा तय शुदा पेमेंट लेती हैं। जो लोग देखकर पागल
 होते हैं और पैसा खर्च करते हैं कुछ पोडक्ट खरीदने में कुछ उस विज्ञापिका को 
 देखने छूने  एवं पाने के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं।कोई इसप्रकार का अपना
 पागलपन किसी और  पर निकालता है जो जब जहॉं शिकार बनता है वो सरकार को 
दोषी  ठहराता है। क्या करे सरकार, क्या करे कानून व्यवस्था ? आखिर ये तो 
उसे भी पता है कि हम शरीर की नुमाईश बनाने जा रहे हैं फिर क्या करे 
सरकार?कितनी कितनी किसको किसको, कहॉं कहॉं, क्या क्या, कैसे कैसे, सुरक्षा 
मुहैया करावे सरकार ?
        त्याग बलिदान की प्रेरणा 
देने वाले शिक्षण संस्थानों में आज अध्यापक अध्यापिकाएँ इतना भड़कीला 
श्रंगार करते हैं।क्या बच्चे उनसे संयम की प्रेरणा लेंगे?कैसे  और क्यों 
लेंगे?प्राथमिक सरकारी स्कूलों में शिक्षा ही नहीं होती है छोटे छोटे बच्चों को केवल भोजन ही दिया जाता है कोई शिक्षक पढ़ाने को तैयार नहीं होता है शिक्षक लोग कई कई दिन क्लासों में जाते भी नहीं हैं कोई अधिकारी यह जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है कि बच्चों को शिक्षा या नैतिक शिक्षा मिल सके। वैसे भी बच्चों को पढ़ाने के नाम पर मोटी मोटी सैलरी उठाने वाले सरकारी शिक्षक यदि बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं तो वो स्वयं अनैतिक हैं उनसे नैतिक शिक्षा की आशा कैसे की जाए ! आखिर प्राइवेट विद्यालयों में बढ़ती जाती भीड़ यह सिद्ध करती है कि सरकारी विद्यालयों में नहीं होती है पढ़ाई!ऐसे में बच्चे कहाँ पावें शिक्षा एवं उन्हें कौन दे सुसंस्कार? यदि नहीं तो भोगना हम लोगों को ही पड़ेगा !अकेले क्या करे पुलिस क्या करे सरकार ?  
     लगभग हर संस्था रिसेप्सन पर कोई न कोई  सुंदर युवा लड़की न केवल बैठाती
 है बल्कि उसकी वेष भूषा ऐसी रखती है ताकि उसे देखने वाले लोगों को पूरा 
दर्शन सुख मिले।आज  बाबाओं को भी आगे बढ़ने के लिए सुंदरियों की जरूरत पड़ती 
है जब तक ऐसी वैसी कुछ सुंदरी नायिकाएँ  योग सीखने नहीं आती हैं तब तक 
बाबाजी अच्छे योगी नहीं माने जाते हैं ।  जब तक सुंदर चेली साथ में न हो तब
 तक साधुता जमती नहीं है इसी प्रकार ज्योतिष आदि को भी व्यवसाय की दृष्टि 
से देखने वाले लोग भी केवल अपनी विद्या के बल पर समाज में नहीं उतरते 
हैं।उन्हें भी इस तरह के ग्लेमर की जरूरत पड़ती है।वो  भी विज्ञापनीय झूठ 
बोलने के लिए एक ऐसी लड़की साथ लिए बिना आगे नहीं बढ़ते हैं जो उनके लिए झूठ बोलने में अच्छी खासी कुशल हो !
    इन सारी बातों को
 कहने के पीछे हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि स्वाभिमान एवं सदाचार प्रिय
 महिलाएँ  अपने शरीर की नुमाईस लगाकर उसे अर्थोपार्जन का माध्यम बनाती ही 
क्यों हैं ?अपने गुणों एवं शिक्षा को आगे करके कमाएँ तो शायद ज्यादा 
सुरक्षित एवं सम्मानित रह सकती हैं ।
     प्राचीन भारतीय संस्कृति में 
महिलाओं को जो सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त था वह केवल उनके सद्गुणों के कारण
 ही था। इसका यह कतई मतलब नहीं था कि वो सुंदरी नहीं थीं या वो श्रंगार 
नहीं करती थीं। पुरुषों  को हर युग में फिसलते देखा जा सकता है जबकि 
महिलाओं ने हर युग में धैर्य एवं संयम से काम लिया है और हमेंशा अपने गौरव 
की रक्षा की है। कानून व्यवस्था भी ठीक होनी चाहिए किंतु जिस जगह  हमने 
कानून का  आसरा लगाया है वह हितकर नहीं है और पूर्ण होने की कम से कम हमें तो कोई आशा नहीं दिखती है ।सरकार को कोई ब्यर्थ में कोसे तो कोसे ! 
       एक अत्यंत सुंदरी युवती पर 
किसी परेशान तथाकथित प्रेमी ने तेजाब फेंका जिससे उस बेचारी की मौत से 
ज्यादा दुर्दशा हुई। टी.वी. के किसी सो में उसे बुलाया गया था जिसे देखकर 
मेंरा दिल दहल उठा मैं अपने को सॅभाल नहीं सका मैं सोचता रहा कि सरकार यदि 
अब तथाकथित कानूनी नियंत्रण कर  भी ले तो इस बिटिया का जीवन तो बरबाद हो ही
 गया। हॉं आगे के लिए ही इन पर नियंत्रण हो सके दोबारा किसी बिटिया के साथ 
ऐसी दुर्घटना रोकी जा सके तो भी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि ये जघन्य 
अपराध है।
      मैंने न केवल यह लेख लिखा 
अपितु सरकार को भी एक प्रार्थना पत्र लिखकर ऐसी घटनाओं पर यथा संभव 
नियंत्रण करने का प्रयास तो होना ही चाहिए। ऐसा निवेदन सरकार से भी करना 
चाहता हूँ ।
 
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 
   यदि
 किसी को
 केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  
प्राचीन 
विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई 
जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक 
भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
 शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या 
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक 
अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं 
स्वस्थ समाज बनाने के लिए  
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के 
कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके 
सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी 
प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 
       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है। 
 
 
 
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