मंगली दोषः-
यह लगभग सभी को पता है कि 1, 4, 7, 8, 12 वें स्थान में मंगल के बैठने से मंगली योग होता है।
इसके
परिहार भी शास्त्रों में कहे गए हैं परिहार का अर्थ होता है कि ग्रहों के
ऐसे संयोग जिससे मंगली दोष घटता या समाप्त होता है। जैसे मंगल के साथ शनि
या कोई अन्य पापग्रह होने से, सप्तमेश प्रबल होने से, केन्द्र में शुभ ग्रह
होने से, संबंधित जीवन साथी की कुंडली में उत्तम आयु के योग होने से मंगली
दोष का परिहार होता है, अर्थात् यह दोष कम हो जाता है। विशेषः
एक बात याद रखिए जैसे- धागा टूटने के बाद जुड़ तो जाता है किन्तु गाँठ पड़ी रहती है जिसके कभी भी खुल जाने की संभावना रहती है।
दूसरा उदाहरण जैसेः
बिना पुल वाली कोई खुली नाली पर से गाड़ी पार करनी आवश्यक हो तो उसके ऊपर
लकड़ी का पट्टा आदि डालकर गाड़ी निकालने की संभावना बनाई जा सकती है, किंतु
पट्टे से फिसल कर गाड़ी फँस भी सकती है। इसके लिए तैयार रहना चाहिए। इसी
प्रकार परिहार समझना चाहिए। इसलिए परिहार का उपयोग बड़ी सावधानी पूर्वक
ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान के तत्वावधान में करना चाहिए योग्य
विद्वान कौन है?इसकी एक ही परिभाषा है या तो उसके विषय में आपका अनुभव सटीक
हो अथवा उसने किसी प्रमाणित विश्वविद्यालय से ज्योतिष शास्त्र में
प्रमाणित डिग्री हासिल की हो।
उपायः कुंभ
विवाह, पिप्पल विवाह आदि शास्त्रीय विधान कन्याओं के मंगली दोष के लिए हैं
जिन्हें करने से आजीवन सकुशल वैवाहिक जीवन रहता है ऐसी शास्त्र मान्यता
है।
नोटः कुछ
लोगों ने एक ड्रामा फैलाया है कि 28 वर्ष या कुछ कम ज्यादा आयु होने पर
मंगली दोष नहीं रहता। मेरा विनम्र निवेदन है कि इस प्रकार की बकवास पूरी
तरह मन गढ़ंत है, और इसके पीछे का सच यह हो सकता है कि यदि 28 वर्ष तक शादी
नहीं कर सके तो ऐसे ही धक्का दे दो आगे जो होगा सो देखा जाएगा ।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
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