प्यार,प्रेम या प्रेम विवाह जैसी दुर्घटनाएँ उसके जीवन में घटती हैं जिसके भाग्य में विवाह का सुख योग नहीं होता है ! " विवाह बाधक योग होने पर प्रेम विवाह"
ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि जिस व्यक्ति को जीवन में जो सुख किसी को नहीं मिलने होते हैं उस व्यक्ति का ध्यान उधर ही अधिक रहता है और वो उस दिशा में आगे बढ़ने का बचपन से ही प्रयास करने लगता है ।
ऐसे सुखों के प्रति बचपन से ही उसके मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है।जैसे -किसी व्यक्ति को शाम में यदि खाना न मिले और भूखा सोना पड़े तो वह अगले दिन सुबह होते ही सबसे पहले खाना ही खोजता है ठीक उसी प्रकार से किसी जन्म के पाप प्रभाव से जो स्त्री पुरुष इस जन्म में विवाह बासना या सेक्स सुख से बंचित रह जाते हैं वो अगले जन्म में बचपन से ही लग जाते हैं इन्हीं धंधों में और उसी पाप प्रभाव से सारे जीवन कुत्ते बिल्लियों की तरह किसी से जुड़ते किसी को छोड़ते बीत जाता है किन्तु बासना का सुख संतोष जनक फिर भी नहीं मिलता है इसी प्रकार से तड़पते बीतती है पूरी जिंदगी !किन्तु जिनके माता पिता थोड़े जानकार एवं अपने बच्चों के प्रति सजग होते हैं वो विद्वानों से वैदिक विधान द्वारा इसकी शांति करवा देते हैं जिससे उनका जीवन अच्छा बीतने लग जाता है यहाँ तक कि जिसने प्रेम विवाह कर लिया होता है उसका भी जीवन अच्छा बीतने लगता है !लापरवाही के कारण जो लोग ऐसा नहीं कर या करवा पाते हैं वे बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों से स्वयं तो अपमानित होते ही रहते हैं साथ ही समाज को प्रदूषित किया करते हैं ये इतने बेशर्म हो जाते हैं कि बिना किसी की परवाह किए कहीं भी पशुओं की तरह एक दूसरे से चिपक जाते
हैं किन्तु इनका आपस में एक दूसरे से चिपकना इतना अस्थाई होता है कि अगली सुबह कब किससे चिपकना पड़े या कल तक किससे चिपके रह चुके हैं किसी को पता नहीं होता !फिर भी एक दूसरे से झूठ बोला करते हैं कि हमारे लिए बस तुम्हीं तुम हो किन्तु कभी कभी एक दूसरे के सामने एक दूसरे की पोल खुल भी जाती है यहीं जन्म लेता है अपराध !इसमें दोनों सदस्य लगभग समान रूप से सहभागी होते हैं ये ज्योतिष के दोष का ही परिणाम है
सामान्य जीवन में ऐसा माना जा है कि जीवन में आपको जिस चीज की आवश्यकता हो वह इच्छा होते ही मिल जाए इसका मतलब होता है कि वो सुख उसके भाग्य में बहुत है यह उस विषय का उत्तम सुख योग है, किंतु जिस चीज की इच्छा होने पर किसी से कहना या मॉंगना पड़े तब मिले ये मध्यम सुख योग है और यदि तब भी न मिले तो ये उस बिषय का अधम या निम्न सुख योग मानना चाहिए।और यदि वह सुख पाने के लिए पागलों की तरह गली गली भटकना पड़े लोगों के गाली गलौच या मारपीट का सामना करना पड़े या तब भी न मिले तो इसे सबसे निकृष्ट समझना चाहिए।
अब बात विवाह की प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लड़का कह रहा होता है कि अभी हमें शादी नहीं करनी है अभी पढ़ना या अपने पैरों पर खड़ा होना है किंतु माता पिता अपनी जिम्मेदारी समझकर विवाह कर रहे हों और उनका आपसी स्नेह भी उत्तम हो जाए ये सर्वोत्तम विवाह योग हुआ इसमें उस लड़के को अपनी बासना अर्थात सेक्स की इच्छा प्रकट नहीं करनी पड़ी इसलिए माता पिता के लिए वो हमेंशा शिष्ट,शालीन ,सदाचारी आदि बना रहता है। ऐसे माता पिता अपने बच्चे का नाम बड़े गर्व से हमेंशा लिया करते हैं कि उसने किसी की ओर आँख उठाकर देखा भी नहीं है। ऐसा उत्तम विवाह योग किसी किसी लड़के या लड़की को बड़े भाग्य से मिलता है बाकी जितना जिसे तड़प कर या बदनाम होकर मिलता या नहीं भी मिलता है उतना उसे इस बिषय में भाग्यहीन या अभागा समझना चाहिए।
ऐसे भाग्यहीन लोग प्रेम का धंधा करना शुरू करते हैं एक को छोड़ते दूसरे को पकड़ते दूसरे से तीसरा ऐसा करते करते थक कर कहीं संतोष करके मन या बेमन किसी के साथ जीवन बिताने लगते हैं जिसे देखकर लोग कहते हैं कि उनकी तो बहुत अच्छी निभ रही है।सच्चाई तो उन्हें ही पता होती है।ऐसे ही निराश हताश लोग कई बार अपनी जिंदगी को तमाशा ही बना लेते हैं कई बार हत्या या आत्महत्या तक गुजर जाते हैं वो ऐसा समझते हैं कि वे प्रेम पथ पर मर रहे हैं जब सामने वाला या वाली को उससे अच्छा कोई और दूसरा मिल गया होता है तो वो पहले वाले से पीछा छुड़ाने के लिए उसे कैसे भी छोड़ना या मार देना चाहता है।ऐसे लोगों का एक दूसरे के प्रति कोई समर्पण नहीं होता है जबकि प्रेम तो पूर्ण समर्पण पर चलता है कोई भी प्रेमी अपने पेमास्पद को कभी दुखी नहीं देखना चाहता।
कई ने तो एक साथ कई कई पाल रखे होते हैं।ऐसे लोग कई बार सार्वजनिक जगहों पर एक दूसरे के साथ शिथिल आसनों में बैठे होते हैं या एक दूसरे के मुख में चम्मच घुसेड़ घुसेड़ कर खा खिला रहे होते हैं। इसी बीच तीसरी या तीसरा आ गया उसने ज्योंही किसी और के साथ देखा तो पागल हो गया या हो गई जब पोल खुल गई तो लड़ाई हुई कोई कहीं झूल गया कोई कहीं झूल गई।भाई ये कैसा प्रेम? ये तो बीमार विवाह योग है।यहॉ विशेष बात ये है कि इस पथ पर बढ़ने वाले हर किसी लड़के या लड़की की जिंदगी बीमार विवाह योग से पीड़ित होती है।इसी लिए ऐसे लोग अपने जैसे बीमार विवाह वाले साथी ढूँढ़ ढूँढ़कर उन्हें ही धोखा दे देकर अपनी और अपने जैसे अपने साथियों की जिंदगी बरबाद किया करते हैं।जैसे आतंकवादियों को लगता है कि वे धर्म के लिए मर रहे हैं इसीप्रकार ऐसे तथाकथित प्रेमी भी अपनी गलत फहमी में प्राण गॅंवाया करते हैं।
ऐसे लोगों की जन्मपत्रियॉं यदि बचपन में ही किसी सुयोग्य ज्योतिष विद्वान से दिखा ली जाएँ तो ऐसे योग पड़े होने पर भी ऐसे लोगों को अच्छे ढंग से प्रेरित करके जीवन की इस त्रासदी से बचाया जा सकता है।
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ
यदि आप ऐसे किसी
बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी
ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा चुके
हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।
कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास
जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं
चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों
का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे
संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य
शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक
सदस्यता या तात्कालिक शुल्क के रूप में देनी होगी, जो शास्त्र से
संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप
चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख
लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना और सही
जानकारी देना।
विशेष बात यह है कि यदि आप चाहें तो आपके प्रश्न के
उत्तर में दी गई जानकारी शास्त्रीय प्रमाणों के साथ लिखित रूप में दी
जाएगी। जो कानूनी आवश्यकता पड़ने पर भी प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की जा
सकेगी।
विशेष- आपके द्वारा शुल्क रूप में जमा की गई धन राशि किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं की जाएगी।
नम्र निवेदनः-
आदरणीय सभी
सदाचारी, विद्वानों, महात्माओं भागवत वक्ताओं, योगियों, ज्योतिषियों आदि
को यदि हमारी किसी बात से ठेस लगी हो तो हम उसके लिए न केवल क्षमाप्रार्थी
हैं प्रत्युत आपके दिए हुए मंतव्य को सम्मिलित कर भूल सुधार का बचन देते
हैं। हमारा उद्देश्य केवल पाखंड से दूषित हो रहे शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को बचाना है।
संस्थान के उद्देश्य-ऋषि
मुनियों के स्वाध्याय, साधना, परिश्रम से प्राप्त हुए अपने शास्त्रीय
ज्ञानामृत से समाज को लाभान्वित होने का जो अवसर मिला है जो ग्रंथामृत सुलभ
हुआ है उससे हर जाति, वर्ग समुदाय, सम्प्रदाय लाभान्वित हो। बिखरते परिवार
राष्ट्र समाज फिर से एक दूसरे के साथ पूर्ण विश्वास पूर्वक जुड़ सकें। इससे
परिवार, राष्ट्र, समाज फिर से खुशहाल हो सकेगा और
अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने के लिए प्राच्य विद्याओं के बहाने अपने
सरल समाज को फँसने फँसाने का यह घृणित खेल बंद होना चाहिए ।
शास्त्रीय विद्वानों से विशेषआग्रहः-
सभी शास्त्रज्ञानी गुणवानों, सदाचारियों, मुनि महात्माओं, योगियों,
ज्योतिषियों, साधकों तांत्रिकों आदि से निवेदन है कि यदि आपका शास्त्रीय
स्वाध्याय है या आप किसी भी शास्त्रीय विषय में अपने आपको हर प्रकार के
प्रश्नोत्तर के लिए सक्षम समझते हैं तो कृपा करके अपने पत्र व्यवहार का पता
तथा फोन नम्बर आदि उपलब्ध कराएँ, और हमारे विद्वज्जनों के समुदाय में
सम्मिलित होकर अलंकृत करें संस्थान को।आप अपने घर में ही रहकर पत्र व्यवहार
या फोन के माध्यम से यह परोपकार कर सकते हैं,ताकि आपकी योग्यता से समाज को लाभान्वित कराने का पुण्य भागी बनने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो सके । याद रखना आपका अपनाराजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान संस्थान आपके संपर्क सूत्र की प्रतीक्षा में है।
धर्म भक्त धनवानों से विशेष आग्रहः-
यदि
आपको भी लगता है कि धर्म को लेकर चारों तरफ एक दूसरे को बरगलाने का दुखद
वातावरण बना हुआ है। हर कोई बिना परिश्रम किए हुए सुख सुविधा पूर्ण जीवन
जीने के लिए धर्म का दुरुपयोग कर लेना चाहता है । जिसके लिए टी.वी. आदि सभी
प्रकार के विज्ञापनों में वह वर्ग अंधाधुंध धन झोंक रहा है स्वाभाविक है
कि वो इसी धार्मिक धंधे से ही निकालना चाहेगा। इसी धर्म की आड़ में धन
इकट्ठा करने के लिए वह कितना भी बड़ा कपटकार्य करने को तैयार है।यदि आपको भी
धर्म के विषय में सोचते हैं तो दीजिए अपना बहुमूल्य सहयोग ।
शास्त्रीय
विद्वानों के पास न विज्ञापनों में खर्च करने के लिए अनाप सनाप धन है और न
ही धोखाधड़ी पूर्वक वो समाज को नोंचना ही चाहते हैं यदि चाहें तो वो भी
उन्हीं लोगों की तरह निर्ममतापूर्वक धर्म को धंधा बना सकते हैं किंतु वो
शास्त्रीय साधक हैं इसलिए उनकी धर्म पर असीम आस्था है वो इसे धंधा नहीं
बनाना चाहते हैं तथापि जीवनयापन का साधन भी वो अपनी विद्या से ही बनाना
चाहते हैं, यह उनका
नैतिक अधिकार भी है आखिर जिस प्राचीन विद्या के अध्ययन में उन्होंने लगभग
बारह वर्ष लगाए हैं अब वो अपनी रोजी रोटी के लिए यदि व्यवसाय आदि करेंगे तो
उनकी योग्यता का समाज हित में उपयोग नहीं हो सकेगा। अतः समाज हित में उनकी
योग्यता का लाभ उठाने के लिए राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
ऐसे विद्वानों को एक मंच उपलब्ध कराकर उनकी योग्यता का लाभ समाज हित में
लेना चाहता है। जिसके लिए उन्हें आजीविका के लिए आर्थिक सहयोग करना आवश्यक होगा।
अतः इसके अलावा भी संस्थान ने ऐसी सभी प्रकार की अपनी गतिविधियाँ
निस्वार्थ रूप से संचालित करने के लिए जो सदस्यता शुल्क रखी है उसे भी
मुक्त किया जा सके इसके लिए सभी धर्म एवं शास्त्र प्रेमी सज्जनों से
धनात्मक सहयोग की अपेक्षा है। यदि आप सहयोग करना या किसी और को प्रेरित
करना चाहें तो हमारे यहॉं आपका सादर स्वागत है। इसके साथ ही इस व्यवस्था को
और अधिक बेहतर बनाने के लिए आपके न केवल सुझाव अपितु सभी प्रकार के सहयोग
सादर आमंत्रित हैं।यदि आप संस्थान कार्यों के प्रचार प्रसार से लेकर किसी
भी प्रकार से सहयोग या समय देना चाहें तो यह संस्थान के लिए सौभाग्य की बात
होगी।
सदस्यता शुल्क माफ करने का विचार क्यों-
प्रायः धार्मिक समाज अभी तक इतना एवं न जाने कितने बार विविध रूपों में ठगा
जा चुका है कि अब वह धर्म के मामले में किसी का विश्वास नहीं कर पा रहा है
हर किसी से डरने लगा है।संस्थान की गतिविधियों एवं आश्वासनों को भी वह उसी
दृष्टि से देख रहा है अतः वह संस्थान के संपर्क में भी आने से डरता है
इसलिए सदस्यता शुल्क माफ करने का बिचार है ताकि उसे सभी प्रकार से भय मुक्त
किया जा सके।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि
किसी को
केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय
प्राचीन
विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी नीतिगत पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई
जानकारी लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक
भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक
अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं
स्वस्थ समाज बनाने के लिए
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के
कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके
सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी
प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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