Tuesday, November 20, 2012

आधुनिक संत शास्त्र और मीडिया एवं भ्रष्टाचार

                       भ्रष्टाचार, शास्त्र और  मीडिया 

          आज भ्रष्टाचारी एवं अपराधी वर्ग समाज के हर क्षेत्र में घुस चुका है यहॉं तक कि धर्म क्षेत्र जैसे आश्रमों, यज्ञों, सत्संगों तीर्थों, प्रवचनों, भागवत कथाओं, साधकों, सिद्धों, भविष्यवक्ताओं, तांत्रिकों, योगियों आदि के रूप में चारों ओर ऐसे ही लोग धार्मिकों के प्रतीक बनते जा रहे हैं ये ही शास्त्रीय प्रतिनिधियों के रूप में धन के बल पर  शिविर समागम सत्संगों के नाम पर बड़े बड़े आयोजन करने में सफल हैं। ऐसी आधारहीन बकवास ही आज शास्त्रीयमत के रूप में प्रतिष्ठित होती जा रही है।

      मीडिया के प्रायः सभी वर्ग विज्ञापन के नाम पर मोटाधन लेकर पहले इनका शोर मचा मचाकर प्रचार प्रसार करते हैं। आपसी डील बिगड़ते ही चिल्ला चिल्लाकर निंदा करते हैं तरह तरह से पोल खोलने का दावा करते हैं। मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि जरा जरा सी बात में बाल में खाल निकालने वाले मीडिया के महापुरूषों को क्या पहले पता नहीं होता  कि धर्म के नाम पर ये ठगी हो रही है, यदि मान भी लिया जाए कि इन्हें पता नहीं था तो क्या इन्हें पारदर्शी  शास्त्रों का अध्ययन करके स्व शास्त्रीय विवेक के आधार पर ईमानदारी पूर्वक निर्णय करने के बाद  ही प्रचार प्रसार नहीं करना चाहिए था?आखिर बहुपठित परिश्रमशील पत्रकारों की योग्यता का लाभ समाज को धार्मिक क्षेत्र में भी क्यों नहीं मिलना चाहिए ?ऐसा लगता है कि ऐसे मीडिया के महापुरूषों  ने भी  या तो समाज से किनारा कर लिया है या समाज ने उन्हें किनारे लगा दिया है।
     ऐसे धार्मिक एवं नैतिक प्रकरणों में सरकार यदि अपने को दोषमुक्त रखना चाहती है तो उसे चाहिए कि टी. वी. चैनलों से लेकर प्रिंट मीडिया व विज्ञापन की हर विधा पर अंकुश लगाये और उन्हें इस बात के लिए बाध्य करे कि ज्योतिषी, तांत्रिक, योगी, वास्तु आदि के द्वारा भविष्य बताने या ठीक करने तथा स्वास्थ्य सुधारने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति का विज्ञापन देते समय संबंधित विषय की योग्यता संबंधी विश्वविद्यालयी डिग्री प्रमाण पत्र की एक कापी जरूर लेनी चाहिए। विज्ञापन देते समय संबंधित विषय में उसकी डिग्री या डिप्लोमा का स्पष्ट उल्लेख किया जाए। साथ ही उसकी प्रशंसा करने पर इतना ध्यान अवश्य रहे कि डिग्री की सीमा रेखा के अंदर रहकर ही उसका गुणगान किया जाए। वास्तविकता यह है कि टी वी चैनलों या विज्ञापन की सभी विधाओं में महिमामंडित किये जा रहे इन विषयों से जुड़े लोग प्रायः विश्वविद्यालयी शिक्षा से अनभिज्ञ या दूर हैं। कई लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि ज्योतिषाचार्य का अर्थ ज्योतिष शास्त्र में परास्नातक अर्थात एम.ए. है, लेकिन वे अपने नाम के साथ ये ज्योतिषाचार्य डिग्री लगाते हैं और शास्त्रविद होने का झूठा दावा करते हैं। इसी बल पर धोखाधड़ी करके बीसों लाख रूपये महीने का खर्च विज्ञापन के नाम पर करते हैं। उनकी मासिक आय का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है जो इसी प्रकार के भ्रष्टाचार की देन है। विज्ञापन माध्यमों ने अयोग्यता को भी योग्यता में बदलने के कुछ नुस्खे निकाले हैं। योग्यता को बढ़ा चढ़ाकर बोलने के लिए वह अलग से मोटा चार्ज लेते हैं, जिसके अलग अलग पैकेज हैं। इसी प्रकार कई विज्ञापन कम्पनियाँ पैसे अधिक लेकर लोगों को गारंटी स्टैम्प की सुविधा उपलब्ध कराती हैं जो सिद्ध करता है कि यह विज्ञापन कम्पनी संबंधित व्यक्ति की विद्वता की गारंटी लेती है। जिसने जितने अधिक पैसे देकर विज्ञापन लिया है, वह उतना अधिक प्रमाणिक विद्वान सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। विश्वास करके बहुत लोग इस झांसे में फँस भी जाते हैं और मोटी धनराशि गवाँ भी बैठते हैं। कई बार विश्वविद्यालयी डिग्री प्रमाण पत्र प्राप्त व्यक्ति की योग्यता को धता बताते हुए अयोग्य व्यक्ति का महिमामंडन करते हैं। क्या सरकारी संरक्षण के बिना इस प्रकार के अपराध संभव हैं?और यदि नहीं तो ऐसे लोगों को दंडित क्यों नहीं किया जाता? आज तो पुजारियों का एक बड़ा वर्ग भी अपने नाम के साथ शास्त्री अर्थात बी.ए., आचार्य अर्थात एम.ए., शिक्षाशास्त्री अर्थात बी.एड., पी.एच.डी.आदि डिग्रियॉं लिखने लगा है। उसे पता है कि इसकी जाँच तो होनी नहीं है तो इनका उपयोग करके आर्थिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा का लाभ क्यों न लिया जाए? इस प्रकार संस्कृत विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय शिक्षा के नाम पर खर्च की जा रही बड़ी से बड़ी धनराशि  का समाज को कोई लाभ नहीं हो पा रहा है और शास्त्रीय विषयों में झोलाछाप लोगों का बोलबाला जारी है।ऐसे में वर्षों परिश्रम करके कोई संस्कृत विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय शिक्षा क्यों लेगा ?उसे भी बनना होगा तो वह विज्ञापन कम्पनियों के पास जाएगा जो सीधे बिजनेस में सफलता देते हैं क्या रह जाएगा संस्कृत विश्वविद्यालयों का महत्त्व ?क्या होगा इन प्राच्य विद्याओं का?आखिर किसकी जिम्मेदारी है ? 

   अपने उद्देश्यों  में निष्फल होने के कारण प्रभाव विहीन होते जा रहे शास्त्रों की भूमिका समाप्त सी होती दिख रही है।अब कौन सिखाएगा समाज को समरसता का पाठ ?कौन बढाएगा परिवारों और समाज में अपनापन तथा  लोगों में सहनशीलता ? 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 

   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।

     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 

       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

 

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