जो होना है वो टाला जा सकता है क्या?
 यह
 प्रश्न एक बार देवकी ने गर्गाचार्य जी से किया था। मुनिवर !  जो होना है 
वो होगा ही यदि यह सच है तो तंत्र, मंत्र, यंत्र की शास्त्रीय विधाएँ बेकार
 हैं। बीमारियों को समाप्त करने की आयुर्वेद की विद्या भी व्यर्थ है 
क्योंकि  जो होना है वो होगा ही फिर क्या सोचना?
इस पर गर्गाचार्य ने तीन प्रकार के कर्म बताएः
1. प्रारब्ध कर्म-जो भोगने ही पड़ते हैं।
2. संचितकर्म-जो तपस्या, पूजापाठ, मंत्र जप से टल सकते हैं।
3. वर्तमान कर्म-प्रयास के द्वारा सही कर्म करके बचा जा सकता है।
विशेष बातः-इसलिए
 हर परेशानी को टालने का प्रयास करना चाहिए यदि टलने लायक होगी तो टल 
जाएगी। यदि प्रारब्ध है तो भोगना ही पड़ेगा किन्तु टालने का प्रयास किए बिना
 कैसे पता लगाया जाए कि क्या प्रारब्ध कर्म से मिला है और क्या संचित कर्म 
से?
आयु का निर्णय-किसकी
 कितनी आयु होगी यह जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र में जैमिनि सूत्र अधिकृत 
ग्रंथ है जिसे अत्यंत परिश्रम और योग्य गुरु की कृपा से ही समझना संभव हो 
सकता है। सत्याचार्य आदि के मत भी इस विधा में प्रभावी रूप से स्वीकार किए 
जाते हैं। इसमें स्पष्ट ग्रहों को कलात्मक करके 21 हजार 6 सौ से भाग देकर 
सामान्य रूप से आयु निर्णय किया जाता है। इसकी सामान्य अवधारणा है कि 
व्यक्ति एक दिन में 21 हजार 6 सौ स्वाँस लेता है। उसी पर आयु निश्चित होती 
हैं यहाँ बड़ी बात यह है कि स्वाँस कब कितनी चलेगी यह अपने आचरण पर आधारित 
है जैसेः किसी भी व्यक्ति के  एक
 जगह बैठने पर एक मिनट में बारह स्वाँस चलते हैं। चलने फिरने पर अठारह 
स्वाँस एवं सोने पर बत्तीस स्वाँस तथा वासना (सैक्स) में एक मिनट में चैंसठ
 (64) स्वाँस चलते हैं। इसी प्रकार स्वाँसों के अनिश्चित होने के कारण आयु 
घटा बढ़ा करती है। आयु के निश्चय का ज्योतिष से अनुमान तो लगाया जा सकता है 
किन्तु निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अकाल मृत्यु वाले प्रकरण 
में जीव बिना शरीर के भी बची हुई स्वाँसें यहीं भोगकर अंत में यमपुरी आदि 
में जाता है। मारकेश की र्दुर्दशा से कष्ट का समय जाना जा सकता है।  इसीलिए
 प्राणायाम आदि से स्वाँसें बचाने वाले योगियों की लंबी आयु होते देखी गई 
है।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 
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