Sunday, November 18, 2012

व्राह्मणों विद्वानों से कराई गई पूजा का फल यजमान को कैसे मिल सकता है ?

      ब्राह्मणों का भी ईश्वर पर अविश्वास !

    इसका फल यजमान को मिलता है यह शास्त्रीय प्रमाण के साथ कहा जा सकता है, किन्तु इसमें कुछ सावधानियाँ रखनी पड़ती हैं। पहली बात उस विद्वान में केवल विद्या ही नहीं तपस्या और सदाचरण एवं चरित्र गौरव भी होना चाहिए। भोजन पर संयम पवित्रता शाकाहारी भोजन होना चाहिए। दूसरी बात किसी के लिए जप करने वाला संकल्प सही सही और ईमानदारी से लिया जाये। इसके लिए आवश्यक है कि वो व्राह्मण संस्कृत बोलना जानता हो क्योंकि संसार में सबकी अलग अलग परेशानियाँ होती हैं। उनसे मुक्ति दिलाने का संकल्प लेते समय ब्राह्मण को उनका ट्राँसलेशन देवभाषा (संस्कृत) में करके ही बोलना होगा अन्यथा संकल्प गलत होगा जिससे अनुष्ठान का कोई फल यजमान को नहीं मिलेगा। तीसरी बड़ी बात संकल्प किया हुआ संपूर्ण मंत्र जप हवन आदि हो जाने के बाद विद्वान  चावल अथवा कटोरी में जल लेकर प्रतिज्ञा करे कि जो अमुक देवी देवता का सवा लाख आदि वेदमंत्र हमने (अपना नाम गोत्र बोले) जप किया है उसका संपूर्ण पुण्य फल अमुक यजमान (उसका नाम गोत्र बोले) को देता हूँ ऐसा कहकर जल उसे पिला दे। ईमानदारी पूर्वक यदि ऐसा किया जाए तो ब्राह्मणों से कराई गई पूजा का लाभ भी यजमान को मिलता है।
विशेष बातः 

 पूजा कराने वाले को भी ध्यान रखना चाहिए कि संकल्प वापस करते समय जप करने वाला ब्राह्मण यजमान की दी हुई दक्षिणा, श्रद्धा आदि से प्रसन्न हो अथवा जो कुछ मिल जाए उसमें प्रसन्न होने वाला संतोषी ब्राह्मण हो। यदि ऐसा न हुआ तो किये कराये अनुष्ठान का कोई लाभ नहीं होता। विद्वान की योग्यता के अनुसार धन न मिलने पर वह आशीर्वाद नहीं शाप ही देगा जो यजमान को भोगना पड़ता है। कोई भी दुखी परेशान ब्राह्मण किसी और के सुख-सुविधा पूर्ण जीवन के लिए ईश्वर से क्यों भीख माँगेगा। इसीलिए कुछ लोगों को कहते सुना होगा हमने बड़े-बड़े विद्वानों से पूजा कराई किन्तु उससे कोई लाभ नहीं मिला आप ही सोचिए बिजली होने पर भी जितने वॉड  का बल्ब लगाया जाता है उतना ही प्रकाश मिलता है। इसलिए अनुष्ठान के पूर्व ही या तो पैसे निश्चय कर लें अथवा चरित्रवान, तपस्वी, विद्वान एवं संतोषी ब्राह्मण ढूँढें, किन्तु यदि दक्षिणा देने की सामर्थ्य  हो फिर भी कंजूसी करने वाले व्यक्ति के पतन का कारण भी ऐसे अनुष्ठान बने हैं। व्यवहार में इसके लाखों उदाहरण हमें भी मिलते हैं। ऐसे लोग पूछते हैं कि हमने तो बहुत अनुष्ठान यज्ञ आदि ब्राह्मणों के द्वारा करवाए फिर भी हम बरबाद हो गये सबकुछ नष्ट हो गया। आप याद रखिए देवता अन्याय करने वाले का अंत कर देते हैं। वह ब्राह्मण तो विचारा अपनी परिस्थितियों के कारण मजबूर है जो आपके लिए पूजा कर रहा है इसलिए कुछ नहीं कहता किंतु देवता नहीं सह पाते। कई बार योग्य लोगों से बड़े-बड़े लाभ लेकर धनियों ने उन्हें सौ-दो सौ रुपये देकर पैर छूकर हाथ जोड़कर बड़ी चतुराई से निपटा दिया यह सोचकर कि इसको पता क्या चलेगा किन्तु ईश्वर ने उन्हें माफ नहीं किया  और वो बरबाद हो गए।
 ब्राह्मणों का भी ईश्वर पर अविश्वास -

 ब्राह्मणों में भी एक बहुत बड़ा वर्ग है जो ईश्वर पर विश्वास नहीं करता है, धंधा मानकर मजबूरी में इस काम से जुड़ा है। यज्ञोपवीत न पहनना, कहीं का बना हुआ या बाजार का खाना खा लेना,पेशाब करके पैर न धोना,जूते पहनकर भोजन करना, अपने लिए कथा पूजा, धर्माचरण, तपस्या आदि कुछ भी सदाचरण नहीं करना आदि । केवल चार किताबें (विवाह पद्धति, सत्यनारायण व्रतकथा, पंचांग और गरुड़ पुराण) पढ़कर ऐसे लोग धोती, चंदन माला भी यजमान को प्रभावित करने के लिए धारण करते हैं इनका किया हुआ जप भी फलप्रद नहीं होता है। इन्हें देखकर ही लोग कहने लगते हैं कि यदि ये हमारे लिए पूजा पाठ करके फायदा करा सकते हैं तो अपने लिए क्यों नहीं कर लेते? किंतु इस दृष्टि से तपस्वी और चरित्रवान विद्वानों को नहीं देखा जा सकता।

 

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